विमर्श
सिक्किम के पर्व–त्योहार
-वीरेंद्र परमार
तिब्बत, नेपाल, भूटान की अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर अवस्थित सिक्किम एक लघु पर्वतीय प्रदेश है। यह सम्राटों, वीर योद्धाओं और कथा-कहानियों की भूमि के रूप में विख्यात है। पर्वतों से आच्छादित इस प्रदेश में वनस्पतियों तथा पुष्पों की असंख्य प्रजातियाँ विद्यमान हैं। सिक्किम राज्य की स्थापना 16 मई, 1975 को हुई थी। सिक्किम की राजधानी गंगटोक है। राज्य में मुख्यत: लेपचा, भूटिया, नेपाली तथा लिंबू समुदाय के लोग रहते हैं। नेपाली इस प्रदेश की संपर्क भाषा है। नेपाली को भारतीय संविधान की अष्टम अनुसूची में शामिल किया गया है। सिक्किम का कुल क्षेत्रफल 7,096 वर्गकिलोमीटर तथा जनसंख्या 6,07,688 है, जिनमें पुरुष 3,21,661 एवं महिला 2,86,027 है। जनसंख्या का घनत्व प्रति वर्गकिलोमीटर 86 है तथा लिंग अनुपात प्रति 1000 पुरुषों पर महिलाओं की संख्या 954 है। प्रदेश में साक्षरता दर 76 प्रतिशत है।
तिस्ता नदी सिक्किम की जीवनधारा है। मौसम की दृष्टि से सिक्किम अत्यंत खूबसूरत जगह है। सिक्किम की गणना भारत के उन चुनिन्दा राज्यों में होती है, जहाँ हर साल नियमित तौर पर बर्फ़बारी होती है। यहाँ के निवासी हमेशा नियंत्रित और सुहाने मौसम का मज़ा लेते हैं। यहाँ का मौसम उत्तरी क्षेत्र में टुन्ड्रा से पूर्वी क्षेत्र में उपोष्णकटिबंधीय मौसम में बदल जाता है। उत्तरी क्षेत्र हर साल चार महीने बर्फ से ढँका रहता है और यहाँ का तापमान 0 डिग्री सेल्सियस तक नीचे गिर जाता है। यहाँ का मौसम सुहाना इसलिए भी रहता है क्योंकि यहाँ का तापमान गर्मियों में कभी 28 डिग्री सेल्सियस से ज़्यादा नहीं होता और जाड़े में 0 डिग्री सेल्सियस पर जमता नहीं है। यहाँ मानसून में भारी बारिश होती है, जिससे भूस्खलन होने का खतरा रहता है और पर्यटकों को यह सलाह दी जाती है कि वे इस समय यहाँ आने से बचें। सिक्किम को रहस्यमयी सौंदर्य की भूमि व फूलों का प्रदेश जैसी उपमाएँ दी जाती हैं। नदियाँ, झीलें, बौद्धमठ और स्तूप बाहें फैलाकर पर्यटकों को आमंत्रित करते हैं।
विश्व की तीसरी सबसे ऊँची पर्वत चोटी कंचनजंगा राज्य की सुंदरता में चार चाँद लगाती है। सिक्किम को चार भागों में बाँटा जा सकता है- पूर्वी, पश्चिमी, उत्तरी और दक्षिणी सिक्किम। पूर्वी सिक्किम में 2000 वर्ष पुराना ऊँचा बौद्ध विहार है। माघी संक्रांति, दुर्गापूजा, लक्ष्मीपूजा, रामनवमी, सोनम लोसुंग, नामसुंग, लोसर आदि सिक्किम के प्रमुख त्योहार हैं।
गुरु रिमपोचे जयंती (Guru Rimpoche’s Thrungkar Tshechu)– यह सिक्किम का एक प्रमुख त्योहार है। महागुरु पद्मसंभव को गुरु रिमपोचे के नाम से भी जानते हैं। सिक्किम में गुरु रिमपोचे की जयंती अत्यंत धूमधाम और श्रद्धा के साथ मनाई जाती है। यह त्योहार प्रत्येक वर्ष तिब्बती चंद्र पंचांग के छठे महीने (जुलाई–अगस्त) की दसवीं तिथि को आयोजित किया जाता है। आठवीं शताब्दी में गुरु रिमपोचे ने सिक्किम का भ्रमण किया था तथा इस प्रदेश को नकारात्मक शक्तियों से मुक्त कर यहाँ बौद्ध धर्म को प्रतिष्ठित किया था। सिक्किम की राजधानी गंगटोक में एक सप्ताह तक यह पूजा चलती है। सुबह में गुरु रिमपोचे की मूर्ति को देवराली चोरटन (स्तूप) से निकाला जाता है। मूर्ति के साथ धार्मिक जुलुस निकलता है, जिसमें सभी क्षेत्र के लोग शामिल होते हैं। जुलूस में शामिल लोग पवित्र मंत्र “ॐ अह हुंग वज्र गुरु पद्म सिद्धि हुंग” का उच्चारण करते हैं। सुक्लाखंग बौद्ध मठ में जुलूस समाप्त हो जाता है। सभी लोग गुरु रिमपोचे की मूर्ति के सामने प्रार्थना करते हैं। सिक्किम सरकार ने समद्रुपसे में गुरु रिमपोचे की 135 फीट लंबी मूर्ति स्थापित की है। यह गुरु रिमपोचे की विश्व की सबसे लंबी मूर्ति है।
पंग ल्हासोल (Pang Lhasol)– पंग ल्हासोल सिक्किम का एक अनोखा त्योहार है I सिक्किम के तीसरे चोग्याल चगदोर नामग्याल ने इस त्योहार को लोकप्रिय बनाया I इस त्योहार में कंचनजंघा की पूजा की जाती है I कंचनजंघा को स्थानीय मदिरा, फल आदि वस्तुएं अर्पित की जाती हैं और उनसे प्रार्थना की जाती है कि वे समय पर वर्षा और अच्छी फसल प्रदान करें I यह त्योहार भूटिया और लेपचा समुदाय के बीच भाईचारे का प्रतीक है I यह त्योहार भूटिया कैलेंडर के सातवें महीने की 15 वीं तिथि को मनाया जाता है I कंचनजंघा को प्रदेश का अभिभावक देवता माना जाता है I इस त्योहार में सर्वप्रथम रिमपोचे और लामा द्वारा कंचनजंघा की उपासना की जाती है I लामा अपने रंगबिरंगे और चटकीले परिधान और मुखौटे धारण कर नृत्य करते हैं I इस अवसर पर “शा – नक” अथवा ब्लैक हैट नृत्य प्रस्तुत किया जाता है I पूजा के दौरान देवताओं के मनोरंजन के लिए पारंपरिक तलवार नृत्य भी किया जाता है। बुराई पर बौद्ध पंथ की जीत को इस नृत्य में दर्शाया जाता है। इसका उद्देश्य सिक्किम के संरक्षक देवता और अन्य देवी-देवताओं का सम्मान करना और उनका आभार प्रदर्शन करना है ।
तेंदोंग -ल्हो -रूम -फात (Tendong Lho-Rum Faat) – यह सिक्किम के लेपचा समुदाय का प्रमुख त्योहार है जो प्रति वर्ष 8 अगस्त को आयोजित किया जाता है I यह लेपचा समुदाय के सबसे पुराने त्योहारों में से एक है । दक्षिण सिक्किम में स्थित माउंट टेंडोंग की प्रार्थना के साथ तीन दिवसीय समारोह शुरू होता है। किंवदंती है कि माउंट तेंडोंग ने उस भीषण जल प्रलय से लेपचा लोगों की रक्षा की थी जिसने पूरे मेयल लिआंग क्षेत्र को बर्बाद कर दिया था I उस क्षेत्र को अब सिक्किम के नाम से जाना जाता है। यह त्योहार उद्धारकर्ता पर्वत के प्रति वार्षिक धन्यवाद ज्ञापित करने का अवसर है। इस अवसर पर राज्य की राजधानी में विभिन्न साहित्यिक और सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। समापन के दिन पारंपरिक लेपचा भोजन, वेशभूषा और गहने प्रदर्शित किए जाते हैं। यह सिक्किम के लेपचा समुदाय के पौराणिक आख्यान पर आधारित त्योहार है I इस त्योहार में लेपचा लोग अपने पुजारी के माध्यम से देवी “इत्बु- देबु- रूम – दाओर” की प्रार्थना करते हैं जो लेपचा समुदाय के सृष्टिकर्ता और विनाशकर्ता दोनों माने जाते हैं I वेलोग देवी को स्थानीय मदिरा (ची) अर्पित करते हैं और अपनी सुरक्षा की कामना से देवी की पूजा करते हैं I यह त्योहार लेपचा समुदाय के उद्धारकर्ता के रूप में माउंट टेंडोंग (दक्षिण सिक्किम) के सम्मान में मनाया जाता है। ऐसा कहा जाता है कि बहुत पहले सिक्किम के दक्षिण क्षेत्र में दो मुख्य नदियों के अवरुद्ध होने के कारण भयानक बाढ़ आ गई थी जिसके कारण पूरी घाटी जलप्लावित हो गई थी । प्रतिदिन जल स्तर बढ़ता जा रहा था I लोगों का जीवन संकट में था । हताश होकर अपने जीवन की रक्षा के लिए लेप्चा लोग टेंडन पर्वत पर चढ़ गए और उन्होंने देवी से अपने जीवन की रक्षा करने के लिए प्रार्थना की। लेप्चा समुदाय की मान्यता है कि कंचनजंगा पर्वत एक देवता के सींग से उत्पन्न हुआ है । इस त्योहार में लेप्चा लोग भूमि और लोगों की रक्षा करने के लिए प्रकृति की विनाशकारी शक्तियों से प्रार्थना करते हैं।
सागादावा (Sagadawa)- सागादावा सिक्किम का एक प्रमुख त्योहार है। सागादावा त्योहार को सबसे पवित्र बौद्ध त्योहार माना गया है। यह सिक्किम के प्रमुख बौद्ध त्योहारों में से एक है, जिसे बौद्ध कैलेंडर के चौथे महीने में पूर्णिमा को मनाया जाता है। सागादावा को ‘गुणों का महीना’ कहा जाता है। यह त्योहार मई-जून में पड़ता है। यह पर्व भगवान बुद्ध के जन्म, ज्ञान प्राप्ति और निर्वाण का स्मरण कराता है। सिक्किम में सागादावा के अवसर पर लोग मठों में इकट्ठा होते हैं और जल, अगरबत्ती आदि चढ़ाते हैं। इसके अलावा कई लोग गोम्पा की परिक्रमा करते हैं। वे मंत्रों का जाप करते हैं, धार्मिक पाठ करते हैं और प्रार्थना चक्र को घुमाते हैं। इस अवसर पर जुलूस भी निकाला जाता है, जो पूरे शहर में घूमता है।
तिहार (Tihar)- तिहार सिक्किम के नेपाली समुदाय का सबसे बड़ा त्योहार है, जो प्रत्येक वर्ष प्रायः दिसंबर महीने में मनाया जाता है। किरात मिथक के अनुसार प्राचीनकाल में एक किरात राजा था, जो बहुत दयालु और प्रजापालक था। उसका नाम बाली हंग था। (लिंबू भाषा में ‘हंग’ का अर्थ राजा होता है) प्रजा राजा से बहुत प्यार करती थी। राजा भविष्यज्ञाता था, इसलिए उसे अपनी मृत्यु की तिथि ज्ञात हो गई। राजा ने अपने दरबारियों को अपनी मृत्यु के बारे में सूचना दी। दरबारी अत्यंत दुखी हो गए। दरबारियों ने राजा से अनुरोध किया कि वे मृत्यु से बचने का कोई रास्ता निकालें। राजा ने कहा कि मृत्यु का कोई समाधान नहीं है, सबको एक न एक दिन मरना पड़ता है, लेकिन यदि प्रजा वास्तव में राजा को बचाना चाहती है और उनसे प्रेम करती है तो उसे पूरी रात सरसों के तेल में दीपक जलाकर मृत्यु देवता से प्रार्थना करनी होगी। लोगों की प्रार्थना को सुनकर यमराज राजा को दीर्घायु कर सकते हैं। राज्य की प्रजा को सलाह दी गई कि वे राजा के लिए प्रार्थना करें और सरसों तेल का दीप जलाएँ। राज्य के युवक–युवतियों ने घर–घर जाकर लोगों को यह संदेश दिया और लोगों से दीप जलाने का निवेदन किया। किरात लोगों का विश्वास है कि रात बारह बजे राजा बाली हंग की मृत्यु हो गई थी लेकिन कुछ पल के बाद ही वे पुनर्जीवित हो गए। ऐसा विश्वास है कि जब यमराज ने देखा कि राज्य की जनता अपने राजा से बहुत प्यार करती है तो उन्होंने राजा को दीर्घायु प्रदान कर दी। लोग बहुत खुश हुए। राजा ने जनता का आभार व्यक्त किया और राज्य भर में आनंदोत्सव मनाने का आदेश दिया। इसके बाद वार्षिक आनंदोत्सव के आयोजन की परंपरा स्थापित हो गई। इसे नेपाली समुदाय की दीपावली त्योहार कहा जा सकता है। अधिकांश नेपाली हिंदू धर्म को मानते हैं तथा देवी लक्ष्मी की पूजा करते हैं। वे अपने घरों को सजाते हैं तथा पुष्पहार पहनाकर लक्ष्मी जी की उपासना करते हैं। वे गाय–बैलों की भी पूजा करते हैं। तिहार के प्रथम दिन को कौवे का त्योहार या ‘काग तिहार’ कहते हैं। कौवे को ‘सियालरोटी’ और अन्य खाद्य पदार्थ खिलाए जाते हैं। दूसरे दिन को ‘कुक्कुर तिहार’ अर्थात कुत्तों का त्योहार कहा जाता है। कुत्तों को गेंदे के फूल की माला पहनाई जाती है एवं अच्छे–अच्छे खाद्य पदार्थ खिलाए जाते हैं। तीसरे दिन दीप जलाकर यमराज की प्रार्थना की जाती है। हिंदू लोग इसे ‘गाई तिहार’ के रूप में भी मनाते हैं। इस दिन गाय और माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है। सुबह में तेल लगाकर और गेंदे के फूलों की माला पहनाकर गाय की पूजा की जाती है और उसे नैवेद्य अथवा ‘सियालरोटी’ खिलाई जाती है। यह दिन असत्य पर सत्य की विजय के रूप में मनाया जाता है। शाम में दीप जलाकर देवी लक्ष्मी की पूजा की जाती है। दूसरे दिन ‘गोरु तिहार’ मनाया जाता है। इस दिन बैलों की पूजा की जाती है। त्योहार के पांचवें दिन को ‘भाई टीका’ के रूप में मनाया जाता है। इस दिन बहनें अपने भाइयों का सम्मान करती हैं। बहनें अपने भाइयों को गेंदे के फूलों की माला पहनाकर उन्हें तिलक लगाती हैं। बहनें अपने भाइयों की लंबी आयु और सुख–समृद्धि के लिए प्रार्थना करती हैं और भाई अपनी बहनों की रक्षा करने का संकल्प लेते हैं। ‘मारुनी नृत्य’ तिहार त्योहार का अभिन्न अंग है।
दसई (Dasai)– दसई सिक्किम के नेपाली समुदाय का महत्वपूर्ण त्योहार है। 14 वर्षों के बाद राम, सीता और लक्ष्मण के वन से लौटने के उपलक्ष्य में यह त्योहार मनाया जाता है। राम, सीता और लक्ष्मण का स्वागत करने एवं अपने सुख–सौभाग्य की कामना से प्रति वर्ष यह त्योहार मनाया जाता है। इस त्योहार के अवसर पर निवास स्थान की साफ–सफाई की जाती है और घरों को फूलों से सजाया जाता है। घर आने वाले अतिथियों के लिए अनेक तरह के व्यंजन तैयार किए जाते हैं। बड़े–बुजुर्ग माथे पर चावल और अबीर टीका लगाकर अपने से छोटे लोगों को लम्बी आयु, आरोग्य और सफलता का आशीर्वाद देते हैं।
सोनम लोसर (Sonam Lochar)- यह त्योहार समस्त सिक्किम में मनाया जाता है। यह तमांग समुदाय का नए वर्ष का त्योहार है। यह वसंत पंचमी को धूमधाम से मनाया जाता है। यह त्योहार प्रकृति पूजा पर आधारित मंजुश्री चंद्र कैलेंडर के अनुसार मनाया जाता है। इस त्योहार की शुरुआत सुबह में होती है। सर्वप्रथम बौद्ध देवताओं की पूजा की जाती है और उन्हें जल चढ़ाया जाता है। नए परिधान पहनकर लोग एक–दूसरे के घर जाते हैं तथा एक–दूसरे को शुभकामना देते हैं। तमांग गुम्पा में बड़े स्तर पर इस त्योहार का आयोजन किया जाता है। इस त्योहार पर अनेक सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं, जिनमें सुंदर दंफू नृत्य प्रस्तुत किया जाता है।
लोसूंग (Losoong)- लोसूंग त्योहार सिक्किम के नए साल का उत्सव है। इसे हर साल दिसंबर महीने में मनाया जाता है। यह फसल से संबंधित उत्सव है। हालाँकि लोसूंग त्योहार भूटिया जनजाति का एक पारंपरिक उत्सव है, लेकिन लेप्चा समुदाय के लोग भी इसे पूरे उत्साह और हर्ष के साथ मनाते हैं। भूटिया इसे ‘लोसूंग’ कहते हैं जबकि लेप्चा समुदाय द्वारा इसे ‘नामसंग’ कहा जाता है, जिसका अर्थ है ‘नए साल का जश्न’। मठों में चाम नृत्य और ब्लैक हैट नृत्य प्रस्तुत किया जाता है और लोग चांग नामक स्थानीय शराब पीते हैं। इस अवसर पर तीरंदाजी प्रतियोगिता का भी आयोजन किया जाता है, जो त्योहार के जोश व उत्साह को बढ़ाता है। इस त्योहार के अवसर पर भूटिया लोग नए परिधान पहनकर एक–दूसरे के घर जाते हैं तथा एक–दूसरे को शुभकामना देते हैं। घर पर आए अतिथियों और मित्रों को मदिरा (छांग, आरंग), विभिन्न प्रकार के खाद्य पदार्थ और मांस से स्वागत किया जाता है।
बुमचु (Bumchu)– सिक्किम के बौद्ध धर्मावलम्बी समुदाय जनवरी–फ़रवरी माह में ताशीदिंग मठ में बुमचु त्योहार मनाते हैं। बुमचु त्योहार सिक्किम का एक महत्वपूर्ण धार्मिक आयोजन है, जिसमें पूरे सिक्किम के लोग सम्मिलित होते हैं। ‘बुम’ और ‘चु’ के योग से ‘बुमचु’ शब्द बना है। ‘बुम’ का अर्थ पात्र और ‘चु’ का अर्थ जल है। एक पात्र में पवित्र जल को रखा जाता है। यह जल सिक्किम सरकार के उच्चाधिकारियों की कड़ी निगरानी में रखा जाता है। त्योहार के समय सिक्किम सरकार के उच्चाधिकारियों और लामाओं की देखरेख में पवित्र जल को भवन से निकाला जाता है तथा पात्र को खोलकर भक्तों और लामाओं के बीच पवित्र जल को वितरित किया जाता है। इस पात्र में 21 कप जल होता है। किसी साल यह पवित्र जल 21 कप से अधिक और किसी साल 21 कप से कम हो जाता है। कभी–कभी जल में कमी–बेशी नही होती है। ऐसी मान्यता है कि जिस वर्ष जल में वृद्धि होती है, वह वर्ष सिक्किम के लिए समृद्धिदायक होता है लेकिन जब जल में कमी होती है, वह वर्ष सिक्किम के निवासियों के लिए दुर्भाग्यजनक साबित होता है।
माघी संक्रांति (Maghey Sankranti)– माघी संक्रांति सिक्किम का एक प्रमुख त्योहार है। यह त्योहार प्रतिवर्ष 13-14 जनवरी को मनाया जाता है। यह प्रकृति की पूजा है, जिसका आयोजन तीस्ता नदी के संगम पर (तीस्ता और रंगीत नदी का संगम) किया जाता है। यह त्योहार सिक्किम के लिंबू समुदाय के लिए नए वर्ष का भी उत्सव है। इस त्योहार में प्रातःकाल में लोग नदी में स्नान कर तिलक लगाते हैं तथा प्रकृति की पूजा करते हैं। पहले लिंबू समुदाय के लड़के–लड़कियाँ त्योहार के 2-3 दिन पहले एकत्रित होते थे और साथ मिलकर धान नृत्य (यियालाकमा) करते थे। यह नृत्य पूरे सप्ताह चलता था। यह त्योहार लड़के–लड़कियों के प्रेम प्रदर्शन का अवसर होता था। इस अवसर पर लड़के–लड़कियाँ अपने जीवन साथी का चुनाव करते थे लेकिन आजकल यह परंपरा कमजोर हो गई है। माघी संक्रांति के अवसर पर अनेक विभाग और संगठन सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित करते हैं।
तेयोंगशी सिरिजुंगा सावन तोंगनम (Teyongshi Sirijunga Sawan Tongnam)– तेयोंगशी सिरिजुंगा सावन तोंगनम सिक्किम का एक प्रमुख त्योहार है। यह तेयोंगशी सिरिजुंगा सिंगथे (1704–1741 ई.) की जयंती है। यह प्रतिवर्ष मंगसिर की पूर्णिमा को (दिसंबर) मनाया जाता है। तेयोंगशी सिरिजुंगा सिक्किम के लिंबू समुदाय के एक महान समाज सुधारक थे। उन्होंने लिंबू भाषा के अध्ययन और लेखन प्रणाली को पुनर्जीवित किया। उनका जन्म नेपाल में हुआ था और वर्ष 1734 ई. में वे सिक्किम के मरतम में आए थे। वर्ष 1734 ई. में उनकी हत्या कर दी गई। जयंती के अवसर पर महात्मा तेयोंगशी सिरिजुंगा के चित्र/मूर्ति के सामने दीप प्रज्वलित किया जाता है और उनके योगदानों का स्मरण किया जाता है।
सकेवा (Sakewa)– सकेवा सिक्किम का एक प्रमुख त्योहार है। सकेवा खम्बु–राई समुदाय का त्योहार है, जो बैशाख की चंडी पूर्णिमा (मई–जून) को मनाया जाता है। इस त्योहार को अनेक नामों से जानते हैं। इस त्योहार को उभौली, बुंगबनवा, डोंगवंगा, भूमि पूजा, चंडी पूजा, बाली पूजा आदि नामों से भी जानते हैं। यह कृषि सम्बन्धी त्योहार है, जिसमें अच्छी फसल के लिए भूमि देवता की पूजा-प्रार्थना की जाती है। खम्बु–राई अपने पुजारियों के साथ एक स्थान पर एकत्रित होते हैं तथा अनेक प्रकार के नृत्य प्रस्तुत करते हैं। ‘’चसुम सिली’’ नृत्य में धान उत्पादन से संबंधित विभिन्न गतिविधियों को चित्रित किया जाता है तथा ‘पकलेवा सिली’ में पशु–पक्षियों की विभिन्न गतिविधियों को नृत्य के माध्यम से प्रदर्शित किया जाता है।
बरहीमिजोंग (Barahimijong)- यह सिक्किम के मांगर समुदाय का प्रमुख त्योहार है, जो बैशाख पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। मांगर भाषा में ‘बरही’ का अर्थ ‘ईश्वर’, ‘मी’ का अर्थ पूजा और ‘जोंग’ का अर्थ ‘किला’ होता है। इस प्रकार इस त्योहार का अर्थ है ‘मांगर लोगों की सुरक्षा के लिए ईश्वर की पूजा करना’ है। इस त्योहार में पुजारी द्वारा कुलदेवता, प्रकृति और अन्य देवी–देवताओं की पूजा की जाती है। अच्छी फसल के लिए मांगर समुदाय विभिन्न देवी–देवताओं को धन्यवाद देता है और आगामी फसल के लिए प्रार्थना करता है।
तमु लोहोसर (Tamu Lohochar)- तमु लोहोसर सिक्किम का एक प्रमुख त्योहार है। यह गुरुंग समुदाय का नए वर्ष का उत्सव है, जो पौष माह (दिसंबर–जनवरी) में धूमधाम से मनाया जाता है। पहले इस त्योहार का आयोजन व्यक्तिगत स्तर पर किया जाता था लेकिन आजकल इसका आयोजन सामुदायिक स्तर पर किया जाने लगा है। इसके महत्व को ध्यान में रखते हुए सिक्किम सरकार ने इस त्योहार के लिए राजपत्रित छुट्टी घोषित कर दी है।
द्रुक्पा सेझी (Drukpa-Tsezhi)- द्रुक्पा सेझी सिक्किम का प्रमुख त्योहार है। यह त्योहार उस शुभ दिन की स्मृति में मनाया जाता है, जिस दिन भगवान बुद्ध ने सारनाथ में अपने प्रथम पाँच शिष्यों को अपने चार महान सत्य के बारे में बताया था। प्रथम सत्य है- ‘महान दुःख’, दूसरा सत्य है- ‘कर्म और माया व माया के कारण’, तीसरा सत्य है- ‘महान दुःख की समाप्ति अथवा निर्वाण’ और चौथा महान सत्य है- ‘अष्टम मार्ग, जो निर्वाण का पथ प्रशस्त करता है’। यह त्योहार बौद्ध कैलेंडर के अनुसार प्रायः अगस्त महीने में मनाया जाता है। त्योहार के दिन बौद्ध धर्मावलम्बी और लामा मठों में एकत्रित होकर प्रार्थना करते हैं और भगवान बुद्ध के उपदेशों की चर्चा करते हैं।
ल्हा- बाप – धूचेन (Lha- Bap –Dhuechen)– यह सिक्किम का एक प्रमुख त्योहार है। यह त्योहार अपनी माता के दर्शन करने के बाद 33 देवी-देवताओं के पूर्वज (स्वर्ग) की दुनिया से भगवान बुद्ध के अवतरण का प्रतीक है। इसके संबंध में एक आख्यान प्रचलित है। भगवान बुद्ध के जन्म के उपरांत उनकी माता रानी महामाया अधिक दिनों तक जीवित नहीं रह सकीं। ज्ञान प्राप्ति के बाद भगवान बुद्ध को अपनी आध्यात्मिक शक्ति से ज्ञात हुआ कि उनकी माता कहाँ हैं। इकतालीस साल की उम्र में वे तीन महीने के लिए पूर्वजों के लोक (स्वर्ग) में गये, जिसके दौरान उन्होंने अपनी माँ और अन्य स्वर्गीय प्राणियों को उपदेश दिया। भगवान बुद्ध ने अपने शिष्यों के लिए धरती पर अपने प्रतिनिधि के रूप में मौगलयान को छोड़ दिया था। उनके शिष्य लंबे समय तक उनकी जुदाई को सहन नहीं कर सके, उनके कान भगवान बुद्ध के उपदेश को सुनने के लिए तरसने लगे। मौगलयान ने स्वर्ग में जाकर भगवान बुद्ध से निवेदन किया कि वे पृथ्वी पर चलें लेकिन स्वर्ग के देवता उन्हें पृथ्वी पर भेजने के इच्छुक नहीं थे। बहुत निवेदन करने के बाद अंततः भगवान बुद्ध पृथ्वी पर वापस आए। तिब्बती परंपरा के अनुसार ल्हा- बाप- धूचेन बुद्ध के जीवन की चार घटनाओं को याद करनेवाले चार त्योहारों में से एक है। इसका आयोजन तिब्बती कैलेंडर के नौवें महीने के 22 वें दिन को किया जाता है। त्योहार के दिन बौद्ध धर्मावलम्बी और लामा मठों में एकत्रित होकर भगवान बुद्ध की प्रार्थना करते हैं और उनके उपदेशों की चर्चा–परिचर्चा करते हैं।
– वीरेन्द्र परमार