कविता-कानन
सहज होना
सहज होना
जैसे निरभ्र आकाश में
पंछी का उड़ना
श्वेत निर्झर का झरना
उदधि में उठने वाला फेनिल ज्वार
एक माँ का अपने बच्चे से दुलार
एक पत्नी का
अपने पति के लिए फुलके पकाना
रूठने पर पति का उसे मनना
सहज होना
जैसे भाई-बहन की परस्पर लड़ाई
नाती-पोतों की दादी-नानी से ढिठाई
सहज होना
जैसे कोई गीत गुनगुनाना
कुछ याद आ जाना
पलकों का भीग जाना
मन को कुछ भा जाना
कदमों की थिरकन
हल्की-सी सिहरन
सहज होना
जैसे सब में व्याप्ति
और स्वयं की प्राप्ति
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स्मृति
स्मृति! कैसे विस्मृत करूँ तुझको
तू तो उस फूल की तरह है
जो कभी मुरझाता नहीं
तेरी गंध इतनी सोंधी है
कि जिसे जब भी अनुभव करती हूँ
धँस जाती हूँ अपनत्व की मिट्टी में
तेरी ममता उड़ेल देती है
प्यार का सागर
मेरी रिक्तता में
तेरे अनेक चित्र
मेरे मन की आँखों को रंग देते हैं
तेरे अनेक प्रेमिल प्रतिरूप
मुझे संबल देते हैं
तेरी अठखेलियाँ
मुझे मेरा बचपन देती हैं
तेरी गहराइयाँ
मुझे जीवन का दर्शन देती हैं
स्मृति! कैसे विस्मृत करूँ तुझको
तू तो उस स्वप्न की तरह है
जो सदैव साकार होता है
उस गीत की तरह है
जो सदैव गुंजार होता है
उस मीत की तरह है
जो मन की पुकार होता है
स्मृति! क्यों कर विस्मृत करूँ तुझको?
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प्रेम है शायद
प्रेम है शायद
तुम्हारे आने की प्रतीक्षा
तुम्हारे न आने की उदासी
तुम्हारे मिलन का गीत
तुम्हारे बिछोह का संगीत
प्रेम है शायद
तुम्हारा अपनापन
तुम्हारी ख़ुशी
तुम्हारी सफलताएँ
और मेरी मुस्कान
प्रेम है शायद
तुम्हारे साथ कुछ पल बिताना
मन का जमुना हो जाना
तुम्हारा कृष्ण हो जाना
और मेरा राधा हो जाना
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मैं और तुम
मैं बोलूँ
और तुम सुनो
मैं कहूँ
और तुम गुनो
और कभी
तुम बोलो
मैं सुनूँ
तुम कहो
मैं गुनूं
इस सुनने
और गुनने के मध्य
स्थापित हो
स्नेह का व्यापार
मधुरता का संचार
आकंठ तृप्ति
इयत्ता से विहित
भावाभिव्यक्ति
मैं हूँ
पर तुम नहीं हो
या यहाँ नहीं हो
या यहीं हो
यहीं कहीं हो
– डॉ. जया आनंद