कविता-कानन
सपने
आजकल मेरे सपनों में
रोज़ आते हैं
पहाड़,
नदी,
हवाई जहाज,
खेल के मैदान,
लम्बे-लम्बे रास्ते
और
नृत्य करते लोग
मैं चाहता हूँ कि
चढ़ जाऊँ पहाड़ की किसी चोटी पर
तैर कर पार कर लूँ किसी नदी को
कर लूँ हवाई जहाज से पूरे विश्व का भ्रमण
खेल लूँ फुटबॉल का कोई मैच
चल पडूँ किसी का हाथ थामे
लम्बे रास्तों पर
और
झूम लूँ जीवन की थिरकन लिए
समय के संगीत पर
स्वप्न टूटने से पहले ही
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रंग
मुझे वे सारे रंग पसंद हैं
जो मेरी नानी को पसंद थे
लाल, नारंगी, हरे, पीले
बिल्कुल चटकीले रंग
जिन रंगों के कपड़े पहनाकर
वो कहती थी मुझे
‘मेरा राजा बाबू’
कितने रंग सहेज रखे थे
मेरी नानी ने अपने में
उसकी दिव्य हँसी की धवलता,
गहरी भूरी आँखें,
वे लाल होंठ
जो थकते नहीं थे
मेरे लिए प्रार्थनाएँ करते,
उसके मसाले वाले हाथ
जो कभी हल्दी तो कभी
मेहंदी से होते थे सने
आज भी नानी को याद करते
पहन लेता हूँ उसके खरीदे कपड़े
और ढूँढता हूँ वे सारे रंग
उसकी तस्वीर में
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मील का पत्थर
सोचता हूँ
ये रास्ते कहाँ तक जाते होंगे
उनमें कितने मोड़ आते होंगे
खेत-खलिहान, नदी-तालाब
हँसी-खुशी, पर्व-त्योहार
सभी से तो गुज़रते होंगे ये रास्ते
कहीं मिलता होगा सूखा रेगिस्तान
जहाँ भटकता होगा कोई प्यासा
कहीं झुग्गी झोंपड़ी तो कहीं महल
जो करते होंगे इंतज़ार
अपने घरवालों के आने का
तो कहीं कोई खंडहर
अपने ही अकेलेपन से घबराकर
बुलाता होगा किसी राहगीर को
उनमें से कोई राह
मुझ तक भी तो आती होगी
और कहती होगी ‘चलो मेरे साथ’
और मैं पहाड़-सी यह देह लिए
एक जगह चुपचाप पड़ा
मील का पत्थर बन
बस निहारता रहता हूँ मुसाफिरों को
और दिखाता रहता हूँ उन्हें
उनकी मंज़िल की दिशा
– अनुभव राज