कथा-कुसुम
सपना
बाहर तूफ़ानी हवा चल रही थी। पास ही समुद्र में दैत्याकार लहरें उठ रही थीं। वहाँ मौजूद सब लोग भाग कर पीछे आ रहे थे। पर जानी-पहचानी पीठ वाली एक युवती समुद्र-तट से टकरा रही उन लहरों की ओर चली जा रही थी। मैंने चिल्लाकर उससे पूछा, “तुम उधर क्यों जा रही हो?”
जवाब में वह बोली, “दूसरी ओर तुम रहते हो, इसलिए मैं तुमसे दूर उल्टी दिशा में जा रही हूँ।”
यहीं पर मेरी आँख खुल गई और मैं सपने में मौजूद उस युवती को पहचान गया। वह मेरी प्रेमिका थी, जो हाल ही में मुझसे अलग हो गई थी। शायद यह सपना मुझे यह बता रहा था कि उसके मन में मेरे प्रति प्रेम का भाव अब ख़त्म हो चुका था।
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नौकरी
अभी-अभी पत्र से सूचना मिली कि मुझे यह नौकरी मिल गई थी। भाई दौड़कर मिठाई ले आया। माँ ने आशीष देते हुए मेरा माथा चूम लिया। पिता ने प्यार से मेरे सिर पर हाथ फेरा। उनकी आँखें कह रही थीं- यह नौकरी तो मेरे होनहार को मिलनी ही थी। बहन ‘पार्टी हो जाए’ चिल्ला रही थी। किंतु मेरे मन का एक कोना आशंकित था। न जाने मैंने नौकरी पाई थी या नौकरी ने मुझे पा लिया था।
– सुशांत सुप्रिय