विमर्श
शोषित वर्ग के युवाओं की कथा: नुमाइंदे
– डाॅ. बंदना चंद
हिंदी साहित्य जगत के प्रमुख कथाकारों में शीतांशु भारद्वाज भी प्रमुख स्थान रखते हैं। इनका जन्म 1 नवंबर, 1936 में अल्मोड़ा के सल्ट में हुआ। इनकी माता का नाम स्व0 श्रीमती दूला देवी एवं पिता का नाम स्व0 पानदेव था। शीतांशु भारद्वाज ने अपना रचना कार्य दिल्ली एवं राजस्थान में रहकर किया। इन्होंने अनेक विधाओं में लेखन कार्य किया, किंतु सर्वाधिक रूप से कहानी साहित्य एवं उपन्यास साहित्य लिखा। इनके उपन्यास एक और अनेक, डाॅ0 आनंद, दो बीघा जमीन, एक और सीता, मोड़ काटती नदी, फिर वही बेखुदी, सीखचों के पार, दूर का आईना, लौटते हुए तथा शहंशाह-ए-तहबाजारी हंै।
शीतांशु भारद्वाज का नुमाइंदे उपन्यास 24 परिच्छेदों में विभक्त है। इसका प्रकाशन 1996 में सचिन प्रकाशन, दिल्ली से हुआ। इस उपन्यास की कथा सामाजिक-पारिवारिक एवं राजनैतिक जीवन से संबद्ध है।
इस उपन्यास का नायक सचिन सान्याल है। वह अपने पिता के साथ कलकत्ता में रहता है। उसके पिता जूट का व्यापार करते हैं। कुछ समय पश्चात् हृदय गति रुक जाने से उसके पिता की मौत हो जाती है। कलकत्ता में सचिन को चारु नामक युवती से प्रेम हो जाता है। सचिन और चारू के प्रेम की भनक लगते ही चारु की सौतेली मां उसे ननिहाल भेज देती है। पिता की मृत्यु के बाद सचिन का भाई रमेन घर परिवार से दूर रहने लगता है। कुछ समय बाद सचिन की नियुक्ति दिल्ली के एक केंद्रीय संस्थान में जूनियर अकाउंटेंट के पद पर हो जाती है।उस आॅफिस में उसकी मुलाकात चारू की हमशक्ल रमा नामक युवती से होती है। रमा का विवाह मेजर हेमंत से होता है। जो कि कुछ समय बाद शहीद हो जाते हैं जिस कारण रमा को उस आॅफिस में नौकरी मिलती है।
रमा और सचिन एक दूसरे पर आकर्षित होते है और विवाह कर लेते है।सचिन से विवाह होने के बाद भी वह अपने पूर्व पति को मन-ही-मन याद करती हैः ‘‘सचिन में शुरू से ही नेतृत्व का मादा रहा है। विवाह से पूर्व वे केंद्रीय कर्मचारी महासंघ के सक्रिय कार्यकर्ता थे। बाद में वैचारिक मतभेद के कारण वे विरोधी गुट में शामिल हो गए थे। यूनियनबाजी में ही उलझे रहते। आॅफिस की छुट्टी के बाद भी वे न जाने कहां-कहां भटकते रहते।’’ रमा के समझाने के बावजूद भी सचिन राजनीति में लिप्त रहता है। इस कारण उन्हें सरकारी नौकरी से भी निकाल दिया जाता है।
रमा के पड़ोसी परेश मित्रा की पत्नी चारु मित्रा, रमा की ही हमशक्ल होती है। रमा घर से निकलने पर उसे ही चाबी दे जाती है। आॅफिस जाते वक्त रमा झोपड़पट्टी की महिलाओं को सचिन के बारे में अनाप-शनाप बकते हुए सुनती है। उनके मुंह न लगके रमा अपने आॅफिस चली जाती है। झोपड़पट्टी के माहौल से रमा तंग हो जाती है। दिन में रमा का बेटा बेटू स्कूल से घर आता है, तो रास्ते में झोपड़पट्टी के कुछ लड़के उससे छेड़छाड़ करते हैं तथा उसके पिता के बारे में अनाप शनाप बाते बोलते हैं, जिसका बेटू विरोध करता है।शाम को रमा आॅफिस से घर आती है तो चारु उसे बताती है कि सचिन को पुलिस ले गई है। सचिन की जमानत रमा के पिताजी पांडेजी करवाते हैं और वे सचिन को राजनीति छोड़ने के लिए कहते हैं: ‘‘शांतिस्वरूप उर्फ भाईजी अपने क्षेत्र में मदारी की भूमिका का निर्वाह किया करते हैं। जिस स्थान पर आज जनता काॅलोनी खड़ी है, वहां पहले डेढ़-दो सौ झुग्गी-झोपडि़यां हुआ करती थीं। वहां के लोगों के लिए जनता क्वार्टर उन्होंने ही बनवाए हैं।’’ सचिन उस झोपड़पट्टी को उजड़ने से बचाने का प्रयास करता है तभीउसे पुलिस पकड़ लेती है। जब सचिन वापस उस झोपड़पट्टी में जाता हैं तो वहां देखता हैं कि बुल्डोजर ने कोई भी झोपड़ी नहीं गिराई है। वहां सब कुछ सामान्य होता है। कुछ लोग सचिन को बताते हैं कि ये सब चाल भाईजी की है। वहां से घर पहंुचने पर उसकी पत्नी रमा बताती है कि उसने बहुत पहले एक प्लाट खरीदा था। अपने आॅफिस से वह भवन निर्माण का ऋण लेकर उसमें घर बनाना चाहती है। सचिन रमा की इस दूरदर्शिता से प्रसन्न होता है।
अगले दिन रमा के आॅफिस जाने के बाद सचिन भी मजदूरों का हाल-चाल जानने कपड़ा मिल जाने के लिए तैयार होता है। वहां जाते समय उसे चारु दिखाई देती है। वह उसे बताती है कि जब सचिन कलकत्ता से चला गया था तब उसकी सौतेली मां ने उस पर अनेक अत्याचार किए और अधेड़ उम्र के परेश से उसका विवाह करवा दिया। अपनी प्रेयसी की उन बातों से सचिन दुखी हो जाता है।
भाईजी का बचपन गरीबी में बीतता है, किंतु धीरे-धीरे उनमें राजनीतिक प्रवृत्तियां जन्म लेती है:‘‘आज भाईजी करोड़ों में खेल रहे हैं। उनके दो बेटे हैं। कुंदन उनके व्यापारिक प्रतिष्ठान देखा करता है। छोटा कनु सरकारी दफ्तर में ऊँचे ओहदे पर है। अपनी एकमात्र बिटिया का विवाह वे पिछले वर्ष बंबई के प्रतिष्ठित परिवार में कर चुके हैं।’’
एक दिन आॅफिस में रमा को उसके पूर्व पति हेमंत का फोन आता है। हेमंत के जीवित होने पर उसे विश्वास नहीं होता। अपने पूर्व पति के जिंदा होने की खबर से रमा का मानसिक संतुलन खोने लगता है।
सचिन भी कुछ दिनों के लिए बिहार जाता है। वहां श्रमिकों पर जमींदार शोषण करते हैं। तारू मजूमदार जो कि रमा के आॅफिस में काम करता है। वह भी बिना बताए सचिन के साथ जाता है। इस दौरान रमा की मुलाकात हेमंत से होती है। उसे विश्वास ही नहीं होता कि हेमंत जीवित है। हेमंत रमा को सारी सच्चाई बतातेे हैं कि वे मरे नहीं बल्कि बंदी बना लिए गए थे। उन्होंने कांता नामक विधवा से विवाह किया, किंतु वह स्तन कैंसर के कारण जिंदगी और मौत के बीच है। सचिन और तारू बिहार से लौट आते हैं। लौटने के बाद तारू मजूमदार को पुलिस का डर सताने लगता है। इसी डर से वह अपने कमरे में ताला लगाकर अपने दोस्त सुदर्शन के घर पर रहने के लिए जाता है, किंतु सुदर्शन के समझाने पर ही वह आॅफिस जाता है।
सचिन भी अपनी राजनैतिक विचारधारा के कारण दिल्ली के पूर्वी सीमांत का सर्वे करते हैं:‘‘विकसित होते जा रहे उस क्षेत्र में सचिन का अच्छा मन रमेगा। यहां की जमीन पर वह मनमाफिक राजनीति की फसल खड़ी कर लेंगे। चाय पीते हए वे ऐसा ही कुछ सोचते जा रहे थे।’’
इसी दौरान भाईजी संसदीय चुनाव में जीतने के लिए भरसक प्रयत्न करते हैं। इसलिए वह अपने यहां दावत पर क्षेत्र के सभी वर्गों के लोगें को बुलाते हें। एक प्रेस कांफ्रेंस में उनके यहां कुछ पत्रकार आते हैं। वह उन सभी पत्रकारों को लिफाफे के अंदर पैसे डाल कर देते हैं। कंकाल नामक पत्रकार उस लिफाफे को वहीं फेंक कर चला जाता है। वह उस कांफ्रेंस का बहिष्कार करता है। कुछ समय बाद हेमंत की पत्नी कांता की मृत्यु हो जाती है। उसके बाद रमा हेमंत को अपनी बहन रीता से विवाह करने के लिए कहती है। रमा अपना मकान बनाने के बाद दिल्ली में रहने लगती है: ‘‘दो-चार दिन यों ही बीत गए। रमा फिर से अपने आॅफिस जाने लगी। नए घर से बेटू भी नित्यप्रति अपने स्कूल जाता रहता। सचिन घर से निकल कर दूर-दूर तक घूम आया करते। वहां के निर्धनता में जी रहे लोगों का गहराई से अध्ययन किया करते। उनकी जीवन-पद्धति देखा करते।’’ इसके पश्चात रमा को सचिन और चारु के रिश्ते की भनक लगते ही वह सचिन पर बौखलाने लगती है। दोनों के बीच झगड़ा होने लगता है। सचिन भी हेमंत को लेकर रमा पर आरोप लगाते हैं। अंततः रमा अपनी हार मान लेती है और दोनों आपस में समझौता कर लेते हैं।
कुछ समय बाद चारु के पति परेश की मृत्यु हो जाती है। वह रमा के घर रहने लगती है। चारू को उसके पति के स्थान पर नौकरी मिल जाती है। रमा और चारू बहनों की तरह रहने लगती हैं। सचिन भी राजनैतिक संपर्क बढ़ाने के लिए पनवाड़ी का धंधा करने लगता है। जनता काॅलोनी दिल्ली में सचिन को और अधिक लोकप्रियता मिलने लगती है। वह वहां हर किसी के दुख-दर्द में हिस्सा लेकर अपनी पहचान बनाने लगता है। उस इलाके के श्रमिकों के शोषण के खिलाफ वह हड़ताल करवा देता है। उसका नेतृत्व वह स्वयं करता हैं। भाईजी के कहने पर भी वह हड़ताल नहीं तुड़वाता। सचिन को फिर से पुलिस पकड़ ले जाती है। जमानत के बाद जब सचिन वापस आता है, तो उसे तारु मजूमदार झोपड़पट्टी वालों को अपने अधिकारों के लिए लड़ने के लिए भाषण देते हुए दिखाई देता है। तारू अपनी खोजी पत्रकारिता के बल पर भाईजी के कारनामों को उजागर कर देता है। जिससे भाईजी की सारी मान-प्रतिष्ठा मिट्टी में मिलने लगती है। भाईजी तारू और सचिन को मरवाने के लिए सेठिया नामक गुंडे को भेजते हंै। सेठिया को उसकी परिस्थितियों ने बुरा काम करने को मजबूर किया होता है। भाईजीे उसकी बहन का अपहरण कर लेते हैं, जिसके कारण उसकी बहन आत्महत्या कर लेती है। उसके पश्चात् भाईजी सेठिया को अपने जाल में फंसा लेते हैं, तब से वह उनके इशारों में काम करने लगता है। सेठिया सचिन और तारू को सुनसान जगह ले जाता है, किंतु उसका मन बदल जाता है। और उसकी इंसानियत जाग जाती है। वह उन्हें नहीें मारता है। इसके पश्चात् वे तीनों भाईजी के पास जाते हैं, उन्हें देखकर भाईजी के पैरों तले जमीन खिसक जाती है।
इस प्रकार स्पष्ट है कि ‘नुमाइंदे’ उपन्यास में कथाकार शीतांशु भारद्वाज ने अपने अन्य उपन्यासों की भांति महानगर दिल्ली के जन-जीवन और वहां की समस्याओं का चित्रण किया है। वस्तुतः यह उपन्यास सामाजिक, राजनीतिक क्षेत्रों को उद्घाटित करने के साथ-साथ भारतीय परिवारिक समस्याओं को भी उजागर करता है। इस उपन्यास में भारतीय नारियों की समस्याओं को रमा, चारु, रीता आदि के माध्यम से व्यक्त किया गया है। पारिवारिक संबंधों में बिखराव, टूटन आदि की समस्या भी कथाकार ने उजागर की है। इसके अलावा दलितों पर होने वाले अत्याचारों एवं शोषण का यथार्थ प्रकट हुआ है। इस उपन्यास का सचिन, तारू मजूमदार और केशवानंद ‘कंकाल’ ऐसे युवा चरित्र हैं, जो कि शोषित वर्ग के लिए नुमाइंदों की भांति लड़ाई लड़ते हैं। इस प्रकार कथाकार ने इस उपन्यास के माध्यम से भारतीय समाज की स्थितियों का यथार्थ अंकन किया है।
– डाॅ. बंदना चंद