व्यंग्य
व्यंग्य लेख- तमाशा
मुझे तो राजनीति का खेल तमाशे से ज्यादा कुछ नहीं लगता। चुनाव आये नहीं कि इन तमाशों की धूम मची। कहीं राजनीतिक दंगल तो कहीं पर मजमा। लाउडस्पीकर भी थक जाता होगा बोलते-बोलते पर ये राजनेता नहीं थकते उस वक्त। इन नेताओं की घै-पै घै-पै बावरी जनता को विवश होकर सुननी ही पड़ती है। जब शोर करेंगें तो उस शोर से बचने के दो ही तरीके हैं- या तो शोर में स्वयं भी सम्मिलित हो या फिर शोर के स्थान को छोड़ दें। स्थान तो छोड़ा नहीं जाता और इन सब का विरोध करने का कोई सवाल ही नहीं क्योंकि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है फिर विशिष्ट व्यक्तियों को तो वैसे भी कई स्वतंत्रताएँ लुभाव में मिल जाती हैं सो अलग! इसलिए जनता को सुनना पड़ता है।
कई जगह तो ये तमाशा करने वाले ऐसा तमाशा करते हैं कि जनता मोहित हो जाती है। इनके पधारने से पहले ही तमाशे का ऐसा प्रचार-प्रसार किया जाता है कि क्या कहने। जनता अपने प्रिय नेता के लिए पलक पांवडे बिछाती है। नेता जी के दर्शन पा लिए- जन्म सफल। कुंभ स्नान का फल पा गये! दर्शन भी आसानी से थोड़े मिलते हैं। नेता जी के आने का समय यदि प्रातः 10 बजे हो तो नेता जी अपने व्यस्त कार्यो को छोड़–छाड़ कर मुश्किल से 5 बजे सांय तक प्रकट हो जायेंगे। लोग मैदान में डटे रहेंगे। जब माननीय का विमान आयेगा तो लोगों में खलबली मच जायेगी और धूल भरे क्षेत्र में भी वे अपने नेता के दर्शन पाने को लालायित ही रहेंगें। खूब खींचा तानी भी होगी आपस में पर इसकी तनिक भी शिकायत नहीं, न स्वयं से न नेता जी से! नेता जी देर से आये तो मन को समझा लेते है लोग ‘कोई हमारे जैसे ठाली तो है नहीं, दिन को सौ काम रहते है और काम भी किसके लिए हमारे लिए ही तो। तब इतनी देर होना तो स्वाभाविक ही है ये कोई नयी बात नहीं।’ नेता जी हाथ हिलाते हुए विमान से उतरेंगें और सीधे सुरक्षा घेरे में आते हुए मंच की ओर प्रस्थान करेंगें। हाथ बराबर हिलता रहेगा मानो भाषण आदि देने से ज्यादा महत्वपूर्ण हाथ हिलाना हो। मंच पर आसीन होंगें। आसीन नहीं, मंच पर खड़े रहेंगें। कुछ मिनटों तक तो भाव-विभोर हो जायेंगे नेता जी। ख़ूब खिल उठेंगे भीड़ को देखकर। मन ही मन अपनी प्रसिद्धि के भाव से गौरवान्वित महसूस करेंगे और स्वयं को भारत का भाग्य विधाता समझ बैठेंगे। ‘मैं ही हूँ वो शख्स जो इस देश को चला रहा हूँ।’ इस भाव में गहरे डूबने को उनका मन करेगा पर इन उत्सुक चेहरों की ओर देखकर अपने भाव को मन में ही दबा लेंगे- एक त्यागी पुरुष की भांति इन भावों का त्याग करेंगें। और फिर एक योद्धा की भांति माइक संभाल लेंगे। माइक संभालते ही शब्द-बाणों से अपने विपक्षी को घायल करेंगे, जो उस वक्त भले ही वहाँ मौजूद न हो। अचूक वार। जो विफल न हो और विपक्ष औंधे मुँह में गिरे। सोचेंगे- ‘वाह! कितना ग़ज़ब का बोल रहा हूँ, जनता वाकई विस्मित हो रही है।’ जनता का ये भाव ताड़कर फिर जनता पर सम्मोहन शब्दों का प्रहार करेंगें। उन्हें अपने होने की ज़रुरत गिनायेंगे और आश्वासनों की लंबी लिस्ट भी पढकर सुना देंगें। साथ ही भ्रष्टाचार के खिलाफ अपने आंदोलनों की सफलताओं का बखान करेंगें और इतने ऊंचे स्वर में बोलेंगें मानो भ्रष्टाचार यहीं दम तोड़ देगा यह सिंह गर्जना सुनकर। स्वयं को जमीन से जुड़ा आदमी सिद्ध करने में कोई कोर कसर न छोड़ेंगे चाहे और विपक्ष में इस बात की कमी को लेकर कोसते रहेंगें। जनता मुग्ध होगी। जब जनता के इस भाव को ताड़ लेंगें फिर वो जनता के सामने अपनी व्यथा कथा कहेंगे, स्वयं का रोना रोयेंगें। कुल मिलाकर इमोशनल ब्लैकमेलिंग। उनसे देर से आने की क्षमा मागेंगे और आइन्दा से ख्याल रखेंगें। फिर भाव भरा धन्यवाद और आश्वासन।
जनता एक बार फिर मुग्ध और जय जयकार करेगी प्यारे नेता जी की। नेता जी का मुखमंडल गर्व से चमक उठेगा। नेत्र इस भीड़ के उद्घोष को सुनकर कुछ क्षण के लिए बंद हो जायेंगे। मानों वो भीतर तक इस भीड़ का अपने नाम का जयघोष सुन रहे हों और साथ ही अपने दिल में इसे समाहित किये जा रहे हों। मंच से फिर हाथ हिलाते हुए उतरेंगें। जनता जयघोष करती रहेगी।
उतरने पर धन्यवाद देंगे आयोजको को जिसके बूते ये आयोजन सफल रहा। भीड़ इकट्ठा करना कोई खेल नहीं, ये लोग दिन-रात लगा देते हैं भीड इकट्ठा करने में। पैसा तो नेता जी देते ही हैं परंतु काम कोई सरल नहीं होता। सैकड़ों ऐसे लोगों को इकट्ठा करना पड़ता है, जो भीड़ को रोके रखें। नारेबाजी करें। नेता जी का गुणगान करें। तभी तो भीड़ टिकी रहती है। नेता जी अपने भाषण लिखने वाले को भी धन्यवाद देना नहीं भूलेंगे। भाषण ओजस्वी न हो तो फिर नेता जी स्वयं को धन्यवाद देंगें- क्या खूब बोल गये। पूरी शक्ति लगा डाली। ओजस्विता वास्तव में भाषण में नहीं उनकी वाणी में है! खूब सराहेंगे अपने आपको।
खैर! नेता जी का भाषण उन्हें ढांढस बंधाता है और विश्वास दिलाता है कि कुर्सी हथियाने में कोई कोर कसर वो छोड़ने वाले नहीं हैं। भाषण को याद कर उनका सीना फटने को हो जाता है चूंकि जो कार्य कभी हुए ही नहीं, उसका भी पूर्ण विवरण मौजूद रहा। फिर ऐसे कार्यो की प्रशंसा हो और नेता जी का सीना चौड़ा न हो तो क्या होगा?
ये तो मजमें का हाल रहा। दंगल तो ये नेता आपस में खेलते ही रहते हैं। कभी अपने किसी प्रतिद्वंद्वी या विपक्षी की टाँग खींचते हैं कभी हाथ, कभी तो ऐसा धर दबोचते हैं कि चारों खाने चित्त। बस जीत का पूरा विश्वास। फिर क्या? फिर तो सत्ता पर काबिज होने का हौंसला बुलंदी छूने लगता है। भारतीय नेता बनाने की कुछ आवश्यक शर्तें जो लिखित रुप में तो नहीं परंतु साकार रुप में/ प्रत्यक्ष रुप से दृष्टिगोचर होती हैं- वे जानते , देखते तो सभी हैं परंतु यहां यदि उनका जिक्र न किया गया तो नेता के चरित्र को समझने में कुछ गुंजाइश रह सकती है, ये योग्यताएं कुछ खास न हो परंतु नेता को खास बनाने में इनका बडा योगदान होता है और इन योग्यताओं केा अपने चरित्र में समाहित करने वाले व्यक्ति को ही राजनेता बनने का अवसर आसानी से मिल जाता है। तो ये योग्यताएं हैं- नेता बनने जा रहा उम्मीदवार देश/प्रदेश/क्षेत्र का नामी गुंडा हो,चोर उचक्का हो, उस पर कानून का शिकंजा कसा हो परंतु उससे कहीं अधिक उसने कानून पर अपना शिंकजा कसा हो, वह हत्यारा हो तो चलेगा, न भी हो तो उसमें हत्या कराने का माद्दा होना चाहिए, जेल में अपना प्रारंभिक जीवन बिता चुका हो जो अन्य के लिए प्रेरणा स्त्रोत रहें क्योंकि जेल जाना तो बडे नेताओं के कष्टप्रद जीवन की गाथा सुनाता है, उम्मीदवार पार्टी को समर्पित हो या न हो परंतु वह स्वार्थभावना से पूर्णतः लिप्त होना चाहिए तभी वह अपनी इस स्वार्थ भावना के कारण कुर्सी पर बैठने का अधिकारी हो सकता है और उच्च पद पर आसीन होने की लालसा प्रकट कर सकता है, वह व्यभिचारी हो, उसमें हर वो ऐब होना चाहिए जो उसे देश को खोखला बनाने के लिए प्रेरित करते रहें साथ ही रिश्वत खोरी का गुण तो उसमें होना ही चाहिए इससे देश के धन का उपयोग अपने और स्वजनों के जीवन को बेहतर बनाने में किया जा सके क्योंकि आत्मकल्याण से बढकर कोई पुण्य नहीं, उसमें दगाबाजी इस कदर भरी हो कि समय आने पर वह अपने देश, अपनी पार्टी का भी साथ न दें, दगा करने में वह इतिहास के चरित्र मीरजाफर का भी बाप हो जाये तो क्या कहने परंतु इससे कम न चलेगा, वह विदेशो से हाथ मिलाने में अपना सम्मान मानें और स्वेदेशियों के साथ बडबोली बात ही करें, वास्तव में स्वदेशियों के लिए वह शून्य हृदय हो, साथ भावी नेता में वे सभी गुण ग्रहण करने की क्षमता होनी चाहिए जो वह अपने वरिष्ठ नेताओं की बुराईयों को ग्रहण कर सकें, गंभीर मुद्दों पर मौन की साधना भी उसे कर ही लेनी चाहिए, वह निडर होना चाहिए और उसका स्वभाव निराश करने वाला, साथ ही आतंकित करने वाला होना चाहिए जिससे जनता उसके विरुद्ध मुंह खोलने की जुर्रत न कर सके। वह पूर्णतः जमीन से जुडा होना चाहिए। आकाश में उडता हो पर उड उड के जमीन पें गिरता हो ….ऐसा व्यक्तित्व जो दिखें -सज्जनता की धुंधली प्रतिमूर्ति, रहस्यमयी हंसी लिये वो जनता का प्रतिनिधित्व कर सकें अथवा न कर सकें पर दलालगिरी का काम अवश्य निष्ठापूर्वक कर पाता हो !! …….इत्यादि इस प्रकार के समस्त गुणों से ओतप्रोत व्यक्तित्व ही पूर्ण नेता बनने में आज के भारत में समर्थ है अन्यथा वह अधूरी और लचर तैयारी के कारण मात खा जाता है और चलने लायक भी नहीं रहता! वर्तमान देश की लूट में जिस नेता ने सहयोग न दिया उस नेता के नेतापन पर कलंक! भविष्य की लूट में सहयोग न देने वाले को आज हम नेता नहीं मान सकते !……..नेता सब कुछ हो ….वह पापात्मा हो तो चलेगा , वह उग्रवादी हो चलेगा, वह बकवादी हो चलेगा, वह देश भक्षक हो चलेगा….परंतु यदि वह आज के समय में पुराने नेताओं की भांति जननेता हो, जनता का चहेता हो, देश का भला सोचने वाला हो, निष्कामी हो, स्वार्थ भावना से मुक्त हो, राष्ट्रभक्ति उसके हृदय में रमी हो, वह देश की परिस्थितियों, देशहित का ही चिंतन करता हो, ….वह महात्मा हो सकता है, साधारण जन हो सकता है या कुछ ओर हो सकता है परंतु आज के विकट समय में वह नेता नहीं हो सकता !
आज की देश की परिस्थितियों को देखतें हुए तो ऐसा ही आभास होता है और इस परिस्थिति को बनाने में, इसकी रचना करने में हम सभी भारतीयों का (जनता का) भी पूर्ण सहयोग ही है क्योंकि हम या तो दबाव में या फिर नासमझी में या फिर झूठे आकर्षण से प्रभावित होकर अपना नेता चुन लेते हैं ऐसे व्यक्ति को जिसमें उपरोक्त सभी खूबियां मौजूद होती है और ऐसे नेता घुन की तरह खाने लगते है – देश को। गौर करें तो ऐसे गद्दार देश को बेच सकते हैं परंतु देश का भला कभी नहीं कर सकते। आज एक नहीं अनेक मीरजाफर इस देश में मौजूद है और उनकी मौजूदगी मात्र कहने भर की ही नहीं बल्कि वे सत्ता के प्रतिष्ठित पदों पर आसीन है और देश की आन-बान-शान पर बट्टा लगा रहें हैं। हमें बहकाया जाता है,, भारत निर्माण के सपने दिखाये जाते हैं, लुभाने का हर तरीका अपनाया जाता है….इमोशनल ब्लैकमेल किया जाता है….इतना बडा नाटक चलता है – गुमराह किया जाता है ….हम खो जाते है! हम आ जाते है इनकी चिकनी चुपडी बातों में और मान लेते है अपना सब कुछ और सौंप देते है राष्ट्र की बागडोर इनके हाथों में। इनका कुत्सित आचरण और चरित्र देश को लूटते है, नोंचते हैं और बार बार देश के साथ बलात्कार करते है और इन पर कार्यवाही करने वाला कोई नहीं होता , ये निरंकुशता से छूट्टें सांड की तरह घूमते है …जो देश की सुरक्षा नहीं कर पाते उनकी सुरक्षा में करोडों खर्च किया जाता है और देश लूटता है ….जनता लूटती है….पर चुपचाप सह लेना सहना नहीं बल्कि स्वयं पर अत्याचार करना ही है। इस तरह तो हम देश की आत्मा की हत्या करने पर तुले हैं। हम भी तो इस पाप में सहभागी बनें हैं ……..कब तक?….कब तक?…..
हम सभी इन तमाशों से वाकिफ है। पर हमें हिम्मत दिखानी होगी …….अबकी बार इन नाटकों को या तो देखिए ही मत या फिर पूरे धैर्य और दृढता के साथ सारा तमाशा देखने के बाद भी दिल और दिमाग से सोचकर ही फैसला करें-क्या गलत है और क्या सही है। सोच समझकर ही निर्णय ले ताकि हमें पूर्ण स्वराज्य की प्राप्ति हो सकें।
जय हिन्द!
– सत्येन्द्र कात्यायन