व्यंग्य
व्यंग्य कथा- शिकार करने का जन्मसिद्ध अधिकार
एक बार जंगल राज्य में राजा का चुनाव होना था। अजी चुनाव क्या…बस खाना-पूर्ति तो करनी थी, ताकि जंगल लोकतंत्र का भी ख्याल रखा जा सके। भला वर्षों पुरानी इस प्राचीन प्रथा को नया जंगल निजाम कैसे बदल सकता है? जंगल के राजा के चुनाव में कोई जीते या हारे…राजा तो नागनाथ या साँपनाथ में से ही बनेगा…सो बन गया।
नये राजा ने प्राचीन जन्मजात अधिकारों को जंगल का कानून बना दिया। यानि शेर का बच्चा शेर और राजा का बच्चा राजा। हाँ एक-दो बार चालाक भेड़िया, साधु सियार और उत्पाती हाथी या नागनाथ या सापनाथ भी बारी-बारी से इस जंगल के राजा बनने का सुख प्राप्त कर चुके हैं।
लेकिन जंगल में बस शेर और सियार तो रहते नहीं है। इस जंगल में भेड़, बकरी, हिरन, खरगोश, पक्षी और कीट-पतंगे भी ज़िन्दा रहने की कोशिश करते ही रहते हैं, जो कि तादाद में बहुत ज्यादा और बहुसंख्यक भी हैं। इन्होंने संगठित होकर एक-दो बार जंगलराज को जरूर चुनौती दी। लेकिन इनमें से कोई भी कभी भी जंगल का राजा तो क्या संतरी भी न बन सका। बनते भी कैसे सबकुछ जंगल कानूनों के तहत ही तो किया जा रहा है। सब कुछ कानून के मुताबिक। अब कोई जंगल कानूनों पर तो कोई ऊँगली उठा नहीं सकता। जो ऊँगली उठाये उसे जंगल कानून शराफत से समझा देता है।
भेड़, बकरियों में से तो सिर्फ एक को पंच बना दिया जाता है, ताकि राजा के लिए समय-समय पर भोजन मिलता रहे। यह सब भी जंगल कानूनों के अनुसार बनाया गया है। वैसे सालों पुरानी इस प्राचीन प्रथा में थोड़ा तो परिवर्तन करना ही पड़ता है और नागनाथ और साँपनाथ में एकता हो चुकी है… दोनों मिलकर जंगल कानून को पूरी इमानदारी, मेहनत और लगन से लागू करेंगे, चाहे इसके लिए कितना भी खून बहाना पड़े। राजा और उनके सिपाही भेड़, बकरियों और दूसने अदना जानवरों को समय-समय पर ये अहसास दिलाते रहते हैं कि यदि जंगल कानून नहीं होता तो हम कबका तुम्हें खा जाते, उनके पैर कानून की बेड़ियों से जकड़े पड़े हैं। वे तो जंगल कानून का सम्मान करते हैं, जंगल कानून ही एकमात्र सच्चाई है जिसकी बदौलत जंगल आज तक बचा है।
यह जंगलराज के गर्व की बात है कि जन्मजात राजा ही जंगल पर राज करे। राजा ने ये एलान कर दिया कि वह जन्मजात अधिकारों को कभी भी जंगल से हटने नहीं देगा। जो भी जंगलराज के जन्मजात कानूनों को तोड़ने की कोशिश करेगा दंड का भागीदार होगा। पानी, बिजली, पहाड़, नदिया, झरने, खेत-खलियान सब कानूनी तरीके से बेचे जाएं। जंगली कानूनों पर जंगलवासियों को इतना विश्वास है कि कुछ भी कर लो, 25-50 साल से पहले न्याय नहीं मिल सकता, जो जंगलराज को बचाने के लिए एक बड़ी बात है। कुछ बागी भेड़-बकरियों को तो सजा देनी जरूरी भी है ताकि कानून का सम्मान बना रहे बना रहे।
अब जमाना बदल गया है। जंगल में रहने वाले सभी जानवरों की सोच भी बदल रही है। वे बार-बार अपने लिए न्याय की मांग करते रहते हैं। इसीलिए नए राजा के सामने एक कठिन चुनौती आ रही है कि जंगल को नियंत्रित कैसे करे? लेकिन राजा तो राजा ही होता है। राजा के पास पावर है वह सर्वशक्तिमान है। उसका कोई कुछ भी बिगाड़ नहीं सकता। प्राचीन काल से आज तक राजा की पहचान उसके न्याय से होती है। इसीलिए नये राजा को ये समझ में आ गया कि जानवरों को मनुष्य बनने से रोकने के लिए न्याय शब्द ही हटा दिया जाना चाहिए। इसीलिए जंगल के राजा ने घोषणा की है कि सत्य ही ईश्वर है, सत्य ही सुन्दर है, सत्य ही शिव है। सच बोलो, सच के साथ खड़े हो जाओ। न्याय की बात करना जंगलराज में कानूनी अपराध है।
सारे कौवे, चील, गिद्ध इत्यादि को पूरे जंगल में सूचना देने के लिए कहा गया। उन्होंने 24 घंटे चिल्ला-चिल्ला कर सच को स्थापित किया। सच! सच! सच….सच को नियमबद्ध कर दिया गया है। जंगलीकानून को जन्मजात माना जाये। शेर बकरी को खाता है, बकरी घास को खाती है।यही सच है, यह सदियों से चला आ रहा है। अतः इसको कोई भी राजा के रहते छीन नहीं सकता। सियार और भेड़ियों को अपने इलाके में शिकार करने का जन्मसिद्ध अधिकार है।
जंगल के राजा शेर को अपनी परम्परा को बदलना पड़ा क्योंकि वह अच्छी तरह से जानता है कि न्याय जैसी सोच किसी भी जानवर तक नहीं पहुंचनी चाहिए। वरना वे मनुष्य बनने की दिशा में बढ़ने लगेंगे। और अपने अधिकारों के लिए लड़ने पर अमादा हो जायेंगे। संगठित हो जायेंगे। एक दिन जंगल समाप्त हो जायेगा और जंगल कानून इतिहास बन जायेगा।
– आरिफा एविस