लघुकथाएँ
वेंटिलेटर
वृद्ध पिता ने कंपकंपाती हुई आवाज़ में अपने इकलौते बेटे को फोन करके बताया- “तुम्हारी माँ चन्द घण्टों की मेहमान है, डॉक्टर ने इलाज करने से मना कर दिया है। वह तुम्हारी माँ को घर ले जाने की सलाह दे रहा है।”
पुत्र ने पिता को ढांढस बँधाते हुए कहा- “पिताजी, आप चिन्ता न करें, मैं शीघ्र भारत आने का प्रयास करता हूँ तब तक आप माँ को किसी दूसरे अस्पताल में ले जाकर वैंटिलेटर पर रखवा देवें।”
पिताजी ने पुत्र की सलाह के अनुसार अपनी पत्नी को किसी निजी अस्पताल में वैंटिलेटर पर रखवा दिया। 24 घंटे में एक-दो बार उन्हें अपनी पत्नी को 10 मिनट के लिए देखने की अनुमति मिलती। वे जाकर उस मृतप्राय: काया को देख आते और फिर पुत्र के आने का इंतज़ार करते।
लगभग 5 दिन बाद पुत्र अमेरिका से आ गया। आते ही माँ को घर ले गया और दो घंटे बाद उसकी माँ संसार से विदा हो गयी।
मृत्योपरान्त सामाजिक परम्पराओं का पालन करने के बाद पुत्र अमेरिका के लिए रवाना हुआ। पिता ने विदाई देते समय बेटे से पूछा कि वापिस कब आने का विचार है।
पुत्र ने कहा- “पिताजी, आप बिलकुल चिन्ता न करें। मैंने उस अस्पताल के डॉक्टर को हिदायत दे दी है कि दुर्भाग्यवश आपकी स्थिति माँ वाली होती है तो मेरे आने तक वह आपको वैंटिलेटर से नहीं हटायेगा।”
पुत्र निश्चिन्तता के साथ वैंटिलेटर पर अटूट विश्वास करते हुए पुन: अमेरिका चला गया।
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सौगात
रहमत अली और दयाशंकर बहुत अच्छे मित्र थे। बचपन साथ-साथ बीता। शिक्षा भी साथ-साथ हुई और दोनों को बैंक में अच्छी नौकरी भी मिल गयी। दोनों की शादी को लगभग 10 वर्ष हो गये थे पर कोई सन्तान नहीं हुई। दोनों जब भी मिलते, इसी बात पर चर्चा चलती कि ऊपरवाले का दिया सबकुछ है पर सन्तान नहीं है, अतः सब बेकार है। दोनों का ऊपरवाले पर गहरा भरोसा, विश्वास और श्रद्धा थी। दोनों अपने-अपने तरीकों से ऊपरवाले से प्रार्थना करते और अपनी दुआ क़ुबूल होने का इंतज़ार करते। ऊपर वाला सबकी सुनता है।
संयोग से पड़ोसी गाँव के एक खेत में पड़े जुड़वाँ नवजात शिशुओं के मिलने की ख़बर आग की तरह आसपास के क्षेत्रों में फैली। सभी इस बात की चर्चा कर रहे थे कि कैसे कोई माँ अपने दो नवजात बेटों को इस तरह सुनसान खेत में छोड़ सकती है!
दोनों मित्रों को पता चला कि नवजात स्वस्थ हैं तथा उनको लव-कुश बालगृह में रखा गया है। उनको लगा ऊपरवाले ने हमारी दुआ सुन ली। दोनों सपत्नीक उस बालगृह पहुँचे और बच्चों को गोद लेने की इच्छा प्रकट की। दोनों को बच्चे गोद दे दिए गये। गोद लेते समय रहमत अली के दिमाग़ में एक बार भी यह विचार नहीं आया कि बच्चा किसी हिन्दू का है या मुसलमान का। दोनों ने इसे ऊपरवाले की सौगात मानकर सहर्ष स्वीकार लिया।
– अरुण कुमार गौड़