विंड चाइम
सुविधा संपन्न सोसायटी फ्लैट्स में,
दरवाजे के ऊपर की ओर, लटके होते हैं
‘विंड चाइम’
साथ ही, उसके पल्ले से
झांकती दिखती है
एक अकेली ‘मैजिक आई’
जैसे दरवाजे ने मारी हो आँख
व ठुनकती विंड चाइम की आवाज, पलकें झपकती सी!
दूसरी ओर
गरीबी रेखा से नीचे बसर कर रहे बाशिंदों के घरों में
बने होते हैं किवाड़ों पर
‘स्वास्तिक’ या ‘ॐ’
इन दरके हुए किवाड़ों में होते हैं
सूराख
या, दो तख्तों के बीच लम्बी झिर्री!
झिर्रियों से छनती हवा
कभी नहीं निकालती ओम जैसा स्वर
‘वन वे मिरर’ जैसा होता है
मैजिक आई
जिंदगी को एकतरफा देख पाने का जरिया
जबकि टूटी झिर्री या सुराख
आँखों में आँखे डाले, जुड़ने का दोतरफा रास्ता
मैजिक आई
समृद्धि को दिखने और दिखाने का एक ऐसा साधन
जिसकी आज्ञा सिर्फ अन्दर की ओर से आँख लगाये ही
दे सकता है वो शख्स
जबकि इसके उलट
झिर्रियों से झांकते हुए, देख सकता है
दूर तक कोई भी, अन्दर का घुप्प अँधेरा
भूख व दर्द से जुड़ी आवाज़ें, कराहटें या सिसकियाँ!
ढीली किवाड़ों पर बना
स्वास्तिक या ओम का खुला सिरा
नहीं समेट पा रहा ‘खुशहाली’
जबकि विंड चाइम की टनटनाहट
पंखे की कृत्रिम हवा के साथ भी
फैला रही समृद्धि
कल ही ख़रीदा है ‘विंडचाइम’
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हार्ड बाउंड डायरी
काश एक पूरी मानव जिंदगी को
देख सकें हार्ड बाउंड डायरी में समेट कर!
अधिकतर पन्नें होंगे ऐसे
रूटीन कार्यों से भरें हो जैसे
समय से खाया-पीया
थोड़ी बहुत जरूरत के लायक
निगल ली साँसे, और सो गए
फिर औंधे मुंह …!
मतलब पन्ने बेशक पलट गए
पर न बदली ये जिंदगी
कुछ पन्नें रहें होंगे कोरे
आखिर कुछ दर्द, कुछ कठिनाइयाँ
शब्दों में कहाँ बंध पाते हैं!
किसी-किसी पन्नें पर
होगी लिखावट बेतरतीब, जल्दबाज़ी की
क्योंकि जिंदगी में कई दिन होते हैं ऐसे
जिसमें न मिलता है सुकून, न होता है दर्द
पर पूरे दिन भागते हैं जैसे तैसे!
कुछ खास पन्ने, स्टार-मार्क किए
जैसे कुछ तो ऐसा किया, जो था अहम
दिल से जुड़ा, जिंदगी से जुड़ा
और हाँ, दो-चार पन्नों में लगे थे फ्लेप
दो दिलों का मिलना
जिंदगी में नए रिश्तों का गढ़ना
नए अहसासों का जन्म लेना आदि
जैसे महत्वपूर्ण अद्वितीय सहेजे हुए पल
खूबसूरती से …..!
पर अंतिम पन्ना! उफ़्फ़!
था कोने से फटा
आखिर मृत्यु के लिए
यही तो है एक अकस्मात सूचना….!
मानव जीवन की जिंदगी
थी हार्ड बाउंड डायरी में उकेरित……!
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ख़्वाब मेरे
मेरे कुछ ज्यादा चलते दिमाग ने
आज फिर लगाई, घोड़े-सी दौड़
होगा एक दिन
स्वयं का ख़्वाबों-सा घर
खुद के मेहनत के पैसों से
ख़रीदे हुए ईंट, रेत व सीमेंट का
आभासी ह्रदय के आईने में
देखा, उसमें कहाँ होगा दरवाजा
कहाँ होगी खिड़कियाँ, रौशनदान भी
गमले रखूँगा कहाँ
ये भी पता था मुझे!
घर के लॉन में
हरे दूब पर नंगे पाँव चलते हुए
कैसे ओस की बूँद की ठंडक
देगी सुकून भरा अहसास
और तभी, एक गिलहरी पैरों के पास से
गुजर जायेगी
इस्स! ऐसा कुछ सोचा!
उसी आभासी घर की
डाइनिंग टेबल पर बैठ कर
चाय का सिप लेते हुए
खिड़की से दिखते दरख्तों के ठीक पीछे
दूर झिलमिलाती झील के कोने पर
बैठी सफ़ेद फ्लेमिंगो, एक टांग उठाये
कौन न खो जाए उसकी खूबसूरती में
आखिर वो मुझसे ही मिलने तो आएगी
माइग्रेट कर के, बोलीविया के तटों से!
मुझे पता नहीं और क्या-क्या सोचा
जैसे बालकनी में
मनीप्लांट के गमले के
हरे पत्ते पर हल्का सफ़ेद कलर
मैं भी उस पत्ते को प्यार से थपकी देते हुए
महसूस रहा था
छमक कर आ रही
बारिश की बूंदों को
बहुत सोचने से अच्छी नींद आती है न!
फिर ख़्वाबों में खोना या बुनना किसको बुरा लगे
पर, ये प्यारा-सा ख़्वाब
फिर नींद टूटते ही,
“पापा, स्कूल फीस! आज नहीं दिए, तो फाइन लगेगा!”
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जिंदगी में कितनी सारी उम्मीदें, सोच जवान होती रहती हैं…..है न!