कविता-कानन
लॉकडाउन में लोग
अजीब ढीठ लोग हैं
बसों में भरकर
केमिकल से सेनेटाईज़्ड होते
लाठी की मार सहते,
बढ़े चले जा रहे हैं
समय के पहिये के साथ
काल की आँख में आँख डाले
आख़िर, भूख से बिलबिलाते लोग
कैसे तोड़े निवाले
जब बंद हो गए उनकी
रोजी रोटी के सारे साधन
जब हो गया पूरा देश लॉकडाउन
जब हो गए घरों में बंद सभी
अपनी अपनी उम्मीदों और
आशाओं के दीप लिये
जब इनके परिश्रम की थकन
विचलित नही कर रही किसी को
इनकी भूखे पेट की चीत्कार
दस्तक नही दे पा रही किसी के हृदय में
तब ये हठी लोग चल पड़े हैं
कांधे पे रिश्तों को उठाये
सर पे कफ़न बांधे
एक संकल्प मन मे लिये
रिश्तों की गर्माहट लिये
अपनी मिट्टी को गले लगाने
क्योंकि ठहरना मृत्यु है और
संघर्ष ही जीवन है इनके लिये..
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लॉकडाउन में सीखना
लॉक डाउन में
दादा जी सीखा रहे हैं
घर के सभी लोगों को योग
पापा सीखा रहे हैं बच्चों को
खेल के कई नियम
और पढ़ाई करने के नए तरीके
भईया सीखा रहे छोटों को
रंगों से दुनिया रंगीन करने का जादू
और साथ ही संगीत के स्वरों का रहस्य
माँ सीखा रही दीदी को
पकवान बनाने के गुर
और दादी सबसे छुपकर
सीखा रही है माँ को फिर से
पैसों का जोड़ घटाव
और बता रही है
कैसे रखा जाए
बुरे दिनों में सबका ख्याल..
– आस्था दीपाली