कथा-कुसुम
लघुकथा- मददगार
उमेश ने सहानुभूति के साथ कहा, “भाईजी! आप तो बहुत होशियार बैंक मैनेजर थे। फिर उस नेता के चक्कर में आकर नोटबंदी के लाखों रूपए, वह भी एक ही सीरियल वाली गड्डी के कैसे दे दिए? यदि सावधानी बरतते तो आज आप निलम्बित नहीं होते। फिर जरुरी नहीं था कि किसी नेता का काम किया जाए।”
“उस नेता का काम करना था, चाहे जैसे भी हो।”
“लेकिन अपने हाथ-पैर तो बचाना थे!” उमेश ने कहा, “यदि यह प्रमाणित हो गया कि तुमने नियम को ताक में रखकर यह काम किया है तो एफआईआर कट सकती है। जेल हो सकती हैं।”
“ऐसा नहीं होगा।” वह बोला, “नेता जी मेरे साथ है।”
“मान लो ऐसा हो गया तो?”
“हो जाने दो, आज बैंक सँभाल रहा था, कल को नेता बनकर देश सँभालूँगा।” वह प्रत्यक्ष बोला, मगर मन ही मन बुदबुदाया, “क्या फर्क पड़ता है, जहाँ से आया था वही चला जाऊंगा।”
– ओमप्रकाश क्षत्रिय प्रकाश