कथा-कुसुम
लघुकथा- निवाला
“तू भी पहले खाना खा ले, काम बाद में निपटा लेना।” मिसिज चड्ढा ने सुबह से काम में लगी कमला को खाने की प्लेट थमाते हुए कहा तो खाना देखकर कमला को घर पर बैठे अपने भूखे बच्चों की याद सताने लगी।
“अरे! खाना? मेम साब! आज घर जाने में बहुत देर हो गयी है, वहाँ घर पर मेरे बच्चे भूखे बैठे होंगे तो यहाँ मेरे मुँह में निवाला कैसे उतरेगा।” बोलते हुए कमला उदास हो गयी।
“बहुत दिनों से उनको कुछ अच्छा खाने को भी नहीं मिला है, सोच रही हूँ आज ये खाना उन्हीं के लिये…” सकुचाते हुए कमला ने कहा।
“ठीक है, उनके लिये भी ले जाना, पर इसे तू ही खा ले।”
और फिर चलते वक्त मिसिज चड्ढा ने बच्चों के लिये भी बहुत सारा खाना कमला को दे दिया। कमला घर जाकर बड़े प्यार से अपने बच्चों को खाना खिलाने लगी और बच्चे भी चटकारे लेकर पार्टी का सा आनन्द लेने लगे।
वहीं दरवाज़े पर पड़ी हुई हड्डियों का ढाँचा बनी कुतिया जो अक्सर सुस्ताने के लिये उन्हीं के दरवाज़े पर लेटी रहती थी और कमला के बच्चों के रूखी-सूखी झूठन पर गुज़ारा करती रहती थी, खाने की खुशबू से वह भी उठ बैठी और बच्चों के हाथों से मुँह तक जाते एक-एक निवाले को गिनने लगी। उसकी आँखों में कमला को याचना नज़र आ रही थी, जिसे देखकर कमला ने दो पूड़ियाँ उस की ओर भी उछाल दीं। “ले तू भी खा ले, क्या याद करेगी, आज मेम साब के बेटे का जन्मदिन था।”
कुतिया कुछ देर उन पूड़ियों को उलट-पलट कर सूंघती रही फिर मुँह में दबाकर वहाँ से निकल गयी। कमला को ये देखकर गुस्सा भी आया। “कितने प्यार सेे अपने बच्चों के मुँह से निवाला निकाल कर दिया था इसे, पर जाने कहाँ लेकर चल दी है चुड़ैल! यहीं बैठकर ना खा लेती! देखूं तो कहाँ जाती है लेकर!!”
देखा गली के छोर पर तीन-चार छोटे पिल्ले पैरों में मुँह छिपाये धूप में लेटे हुए थे, कुतिया ने उनके सामने जाकर अपना मुँह खोल दिया, पिल्ले पूड़ियों पर झपट पड़े। ये देखकर कमला की आंखें नम हो गयीं। “अरी! मैं ये कैसे भूल गयी कि तू भी तो मेरी तरह एक माँ ही है।
– सुनीता त्यागी