कथा-कुसुम
लघुकथा- दुलारे
मुहल्ले के अल्हड़ किशोरों ने इस बार बूढ़े हिजड़े दुलारे की टूटी खाट को होलिका मइया को सौंपने की ठानी। सुबह-सुबह जब दुलारे जंगल-पानी गया, लड़के उसकी खाट उठा ले गए और ‘जय होलिका मइया’ कहकर उसका पाया-पाया अलग करके होलिका मइया में चढ़ा आए।
इधर रंग खेला जाने लगा और उधर दुलारे बदहवास-सा अपनी खाट ढूँढ़ता फिर रहा था। ढूँढ़ते-ढूँढ़ते लड़कों की टोली में फँस गया। रंगना और भीगना तो ठीक लेकिन उद्दंड लड़कों ने उसके कपड़ों को भी तार-तार कर दिया। शर्म का मारा दुलारे वहीं सिकुड़ गया। लड़कों में से कोई बोला, “अरे देखो! हिजड़ा भी शरमा रहा है।” ठहाके गूँजने लगे। दुलारे टाँगें सिकोड़कर उनसे पेट ढँके अपनी इज़्ज़त बचाने की कोशिश करने लगा। बीच-बीच में लड़कों के हाथ जोड़ता और छोड़ देने की विनती करता। रंग और पानी की बौछारों का उस पर लगातार पड़ना जारी था और जारी था लड़कों का “होली है” चिल्लाना।
– डॉ. लवलेश दत्त