कथा-कुसुम
लघुकथा- दादी की रोटी
सोनी अपनी दादी के लिए नाश्ता लेकर जाने लगी तो उसकी मम्मी धीरे से बोली, “सुन एक बात, आज छः महीने पूरे हो गये। दादी से बोल देना कल से चाचा के घर चले जाना।”
सोनी- “क्यो माँ?”
सोनी की मम्मी- “ज्यादा सवाल जवाब मत कर, बँटवारे के समय पंचायत के लोग यही समय निर्धारित किये थे।”
सोनी दादी को नाश्ता देकर बगल में बैठ जाती है।
दादी- “सोनी आज दादी के साथ नहीं खायेगी क्या?”
सोनी- “नहीं दादी, आज तू खाले। ऐसे भी अब मैं कल से थोड़े तेरे साथ, तेरे थाली में खा पाऊँगी।
दादी सोनी को छेड़ते हुई बोली- “क्या कल से तू ससुराल जा रही है? जो ऐसा बोल रही हैं। अभी तो तू आठ साल की है ऐसे भी बिना अठारह हुए थोड़े ससुराल जायेगी।”
सोनी- “नहीं दादी, ससुराल तो जाने में अभी बहुत समय है, लेकिन माँ बोल रही थी कि तू अब कल से चाचा के घर छः महीने के लिए, क्योंकि आज मेरे यहाँ छः महीने पूरे हो गये। अब तो तू छः महीने के लिए मेरी दादी से सोहन की दादी बन जाएगी। अब तो लोग तुझे सोनी की दादी नहीं, सोहन की दादी बोलेंगे।”
दादी ने जब अपनी तबादले की बात सुनी तो ऐसा लगा जैसे रोटी उसके गले मे फंसने लगी है। दादी ने जैसे-तैसे एक रोटी खाकर पानी पी लीया। सोनी समझ गई की दादी ने दुःखी होने के कारण रोटी नहीं खाई।
सोनी- “दादी यह भी रोटी खा ले।” सोनी यह बोलते हुए रोटी तोड़ कर दादी के मुँह तक लेकर गई तो दादी ने फौरन सोनी को गले लगा लिया और उनकी आँखे भर आयीं। सोनी भी फफक-फफक कर रोने लगी।
दादी सोनी को रोते देख कर बोली, “क्यों रोती है फिर तो छ: महीने बाद मैं तेरी ही दादी बनूँगी। बस छह महीनों की तो बात है। आ अपनी दादी के साथ यह आज की आखिरी रोटी खा ले।”
– ज़ियाउल हक़