कथा-कुसुम
लघुकथा- आत्मबल
छोटी बिटिया की शादी निपट चुकी थी। बधाईयों और मेहमानों की लँबी कतार में सबसे पीछे खड़े तारकेश्वर बाबू भी क्षमा याचना के भाव आँखों मे लिये, पछतावे से सिकुड़े सिमटे बाहर निकल गए।
निढाल-सी सोफे पर पसर गयी रत्ना। मन अतीत की गलियों मे भटकने लगा। पदवी और पैसे से मदांध तारकेश्वर बाबू अपनी सिक्रेट्री से शादी रचा उसे दो मासूम बेटियों के साथ अकेला छोड़ गए थे। दोनों मासूमों की परवरिश के लिए वो खुद को जीवन समर मे झोंक दी। तपते रेगिस्तान-सी अपनी ज़िंदगी की छांव तक न पड़ने दी बेटियों पर। शिक्षा, संस्कार के साथ आज कन्या दान का भी फर्ज निभा लिया अकेले।
पर अकेली न थी वो,एक ही तो संगी था इस जंग में, जिसने कभी अकेला न छोड़ा उसे, हर कदम पर साथ रहा साए की तरह।
उसका आत्मबल और वही तो था ‘तीसरा पहिया’
लघुकथा- छोटी मछलियाँ
“नमस्ते सर” रमा देवी ने जिलाधिकारी के कक्ष मे प्रवेश किया।
“नमस्ते, बैठिए! कैसे आना हुआ?” जिलाधिकारी माधव जी ने बैठने का इशारा करते हुए कहा।
“सर, लिंक रोड पर अतिक्रमण के खिलाफ मेरे द्वारा की गई शिकायत मैं वापस लेना चाहती हूँ।” रमादेवी ने कहा।
रमादेवी बगैर किसी अनुदान या मदद के समाज सेवा करने वाली एक निडर महिला थीं। काम का अलहदा तरीका, अकाट्य तर्क और भीड़ से अलग व्यक्तित्व।
“पर रमा जी, संबंधित अधिकारी कल से वहाँ काम शुरू करने वाले हैं।”
“सही कहा सर, और इस कार्यवाही की गाज रोजाना रेहड़ी, खोमचा लगाकर परिवार पालने वालों पर गिरेगी।”
“मैं समझा नहीं” माधव जी की पेशानी पर बल पड़ गए।
कड़वी मुस्कान लिए रमादेवी बोलीं, “सर पाँच सौ मीटर सड़क के दोनों तरफ करोड़ों के नर्सिंग होम्स और व्यावसायिक प्रतिष्ठान हैं। जहाँ पार्किंग की कोई व्यवस्था नहीं और इस कारण गाड़ियां बेतरतीब सड़कों पर लगी रहती हैं। असली अतिक्रमण तो ये करते हैं। इनके खिलाफ क्या करेंगे जबकि आपका सिस्टम इन्हें एन.ओ.सी. दिए बैठा है।”
“उन्हें भी लिखित चेतावनी और मोहलत दी जाएगी ताकि व्यवस्था दुरुस्त कर लें।” माधव जी जैसे खुद को तसल्ली दे रहे हों।
“ठीक है सर, फिर कार्यवाही सबके साथ एक ही दिन एक जैसी हो।”
माधव जी के चेहरे पर असमंजस के भाव देख व्यंगात्मक मुस्कान के साथ रमादेवी ने सवाल उछाला, “आपका सिस्टम मगरमच्छों को पाल सकता है तो क्या मैं इन छोटी मछलियों को नहीं बचा सकती?”
– अपराजिता अनामिका श्रीवास्तव