आज झुमरी सुबह से ही बड़ी उदास थी। क्या करे, क्या न करे? कुछ समझ नहीं आ रहा था। पति का तो होना न होना बराबर था, जो कुछ कमाता नशे में उड़ा देता था, ऊपर से दो बच्चों की ज़िम्मेदारी। बेचारी पास के बड़े घरों में काम करके खर्च चला रही थी। इस पर भी जब ईश्वर ने कहर ढाया तो कुछ उपाय न सूझा। बेटे का एक्सीडेंट हो गया, अस्पताल में भर्ती किया तो मालूम हुआ कि दिमाग़ में चोट लगी है, इलाज का बड़ा खर्च लगेगा। क्या करती बेचारी? किसी पड़ोसन ने बताया कि आजकल कोख किराए पर देने से अच्छे दाम मिल जाते हैं, सो अस्पताल जा कर फार्म भर आई और तीन लाख में कोख का सौदा कर आई।
उसका टेस्ट चेक-अप सब होने लगा और थोड़ा पैसा एडवांस भी मिलने लगा। आज उसे अपना घर नौ माह के लिए छोड़ ‘रोशनी सदन’ जाना था, जहाँ कोख किराए पर देने वाली सभी महिलाएँ बच्चा पैदा करने तक रहती हैं। बेटे की अस्पताल में देख-रेख की ज़िम्मेदारी अपनी पंद्रह वर्षीय बेटी पर छोड़ नौ माह की क़ैद के लिए जा रही थी बेचारी। पर बेटे के जीवन के लिए यह ज़रूरी था। पूरे नौ माह बाद स्वस्थ बच्चा विदेशी साब-मेमसाब को दे उनका जीवन खुशियों से रोशन कर दिया था झुमरी ने। फिर वह जल्दी से अपने परिवार से मिलने घर को रवाना हो गयी। घर पहुँचते ही सब से मिली लेकिन बेटा वहाँ न था। पूछने पर मालूम हुआ वह तीन माह पहले ही दुनिया छोड़ गया था और किसी ने उसको बताया तक न था। ‘रोशनी सदन’ वाले नहीं चाहते थे की झुमरी को कोई सदमा पहुँचे और कोख में पल रहे बच्चे पर बुरा असर पड़े।
उसे तो खबर भी न थी कि उसके घर का दीप सदा के लिए बुझ गया था। आज उसे बाकी मिले पैसों की कोई कीमत न थी। दूसरों का घर रोशन करने वाली झुमरी का स्वयं का जीवन अंधकार में डूब गया था।
– रोचिका शर्मा