कथा-कुसुम
लघुकथाएँ
असली चेहरे
पिताजी की मृत्य से शोकाकुल परिवार को सांत्वना देने पड़ोस की स्त्रियाँ घर में एकत्रित हुई थीं।
“बाबूजी के नहीं रहने पर पता चला कि एक पिता क्या होता है! ”
देवी प्रसाद की दोनों विवाहित पुत्रियों में से बड़ी नें मायूसी से कहा। बड़ी बहन की बात सुनकर छोटी सुबकने लगी।
“क्या करोगी बेटी ईश्वर को यही मंजूर था। अब माँ को तुम दोनों बेटियों और तुम्हारे दोनों भाई का हीं सहारा है।” घर के पास वाली चाची नें समझाया। ढ़ाढ़स बढ़ाकर स्त्रियों नें अपने घर की राह ली।
“भईया- भाभी, ध्यान से सुन लीजिये, मम्मी के गहनों और जो कुछ भी है, सबमें चार हिस्सा लगेगा।” सबके जाते हीं बहनों ने आवेश में कहा। भाई-भाभियों नें आश्चर्य से वैधव्य के दु:ख से पीड़ित माँ की ओर देखा| किसी की समझ में नहीं आ रहा थ कि इस शोकग्रस्त माँ की बेटियों का असली चेहरा कौन सा है। अभी थोड़ी देर पहले सुबकने वाला या पिता की तेरहवीं से पहले जायदाद में अपना हिस्सा सुनिश्चित करने वाला!
*****************
सबसे बड़ा रुपैया
आज सुबह से बड़ी दीदी के घर की रौनक देखते बन रही है। हो भी क्यों न! उनके बेटे की सगाई में आए हुए मेहमानों से घर में खूब चहल पहल है। घर के बड़े दामाद अनिल जी बेहतरीन भोजन व्यवस्था के लिए हलवाइयों पर पूरी निगरानी रखे हुएहैं। पाँच साल पहले दामाद बनकर परिवार से जुड़े अनिल जी के लिए बड़ी दीदी के मुख से वसुन्धरा नें कभी अच्छी वाणी नहीं सुनी थी। किसी बात पर दोनों परिवारों में अनबन हो गई थी। उसकी वजह से अनिल जी भी बड़ी दीदी के घर से रिश्ता नहीं रखते थें। आज उन्हें बड़ी दीदी की खुशी में शिरकत करते देख वसुंधरा को सुखद आश्चर्य हो रहा था। बड़ी श्रद्धा से अपनी ननद, बड़ी दीदी के साथ रसोई में नाश्ता बनाते हुए वो खुशी प्रकट करती है,
“दीदी कितना अच्छा लग रहा है सबको एक साथ देखकर! खासकर अनिल जी कितने उत्साहित लग रहे हैं।“ दीदी तपाक से बोल उठीं, “हमें तो पता हीं नहीं था कि अनिल जी इतने अच्छे हैं। देखो न जैसे ही उन्हें पता चला कि हमें पैसों की जरूरत है, झट से 5 लाख निकाल कर दे दिए। आजकल के जमाने में कौन किसको करता है?”
वसुन्धरा आश्चर्यचकित थी बड़ी दीदी के तर्क पर। वर्षों पहले दादी माँ की कही बात जेहन में कौंध गई, “ना बाबा ना भईया, सबसे बड़ा रूपैया!”
– विनीता ए कुमार