फिल्म समीक्षा
मोहल्ला अस्सी: बार-बार देखो हजार बार देखो
निर्देशक – चन्द्र प्रकाश द्विवेदी
कलाकार – सन्नी देयोल, साक्षी तंवर, रवि किशन, सौरभ शुक्ला, मुकेश
तिवारी, राजेन्द्र गुप्ता, मिथिलेश चतुर्वेदी आदि
आठ साल से अधर में लटकी काशीनाथ सिंह के उपन्यास पर आधारित यह फिल्म इंटरनेट पर लीक हो चुकी थी जिसे मैंने भी देखा था पर आज जब यह सिनेमाघरों में आई है तब इसे फिर से देखना भी खला नहीं। कुछ फ़िल्में आपको बार बार अपनी ओर खींचती हैं और उसी तरह की यह फिल्म भी है। बाबरी मस्जिद की घटनासे हर कोई वाकिफ है। हमारे देश में ऐसी ही कई घटनाएँ घटित हुई हैं जो किसी कलंक या कड़वी यादों से कम नहीं है। यह फिल्म भी उन्हीं दिनों की कहानी है। लेकिन इसके साथ-साथ यह फिल्म कई और संकेत भी देती दिखाती है। मसलन आरक्षण, राजनीति, गाली-गलौज, बाबा- पंडे, वामपंथ की आलोचना, देशभक्ति, राम और शिव के साथ साथ भोग, योग, धर्म – अधर्म कामसूत्र और जाने क्या क्या। फिल्म को कायदे से आज से 8 साल पहले पर्दे पर रिलीज किया जाना था । लेकिन पद्मावत से भी ज्यादा विवादित रही और अब तक सबसे ज्यादा कोर्ट की सुनवाई झेल कर आखिरकार रिलीज हो ही गई है।
विदेशियों ने भारत के इतिहास के साथ बखूबी छेड़छाड़ की है। उस पर भी यह फिल्म गहराई से विचार करती है। फिल्म की एक सटीक समीक्षा ऐसी फिल्मों को लेकर लिखना थोड़ा मुश्किल हो जाता है। कारण फिल्म के संवाद और इसका फिल्मांकन आने वाले कई वर्षों तक भी यूँ ही जो बना रहने वाला है। पाणे जी, तुलसीदासा, रामा, रावणा, लक्ष्मणा जैसे शब्द भले ही अंग्रेजी की चाशनी में लिपटे हों किन्तु उनका प्रभाव बिल्कुल स्वदेशी नजर आता है। यही वजह है कि जो मज़ा बनारस में ना पेरिस में ना फारस में कथन सिद्ध हो सके। इसके अलावा स्वच्छ भारत के नाम पर गंगा किनारे हगना-मूतना भी जारी है। गंगा में पाप भी धोएँगे और पिछवाडा भी और कहेंगे जय गंगा मैया की। गंजेड़ी, भंजेडी, भोसड़ी के जैसे शब्दों के बीच लोकतंत्र की कहानी कहती हुई यह फिल्म अपने आप में विशेष है और देखने लायक भी।
भांग का संबंध अस्सी से जोड़ते संवाद, दक्षिणा पर सवाल , योगाचार्य, भोगाचार्य और दूसरे टाइप के बाबाओं के इर्द गिर्द घूमती इस फिल्म की कहानी काशीनाथ सिंह के उपन्यास “काशी का अस्सी” पर आधारित है जिसमें बनारस के घाट पर पंडितों के हालातों और ठगी गुरुओं के बारे में विस्तार से बताया गया है । इसके साथ ही भारतीय संस्कृति में विदेशी छौंक भी लगा है । इस फिल्म को सेंसर बोर्ड ने अतिशय गालियाँ भरी होने के कारण बैन कर दिया था और यह यूट्यूब पर लीक भी हो गई थी परन्तु उसके बावजूद इस फिल्म के निर्देशकों ने कोर्ट में लम्बी लड़ाई लड़ी और इसे आखिरकार रिलीज किया गया।
रवि किशन, सौरभ शुक्ला, साक्षी तंवर, मुकेश तिवारी, सन्नी देयोल स्टारर इस फिल्म में सभी कलाकारों का अभिनय आला दर्जे का रहा है। फिल्म की सिनेमेटोग्राफी, एडिटिंग, कास्टिंग सभी कमाल हैं। फिल्म के निर्देशक चन्द्र प्रकाश तथा उनकी टीम ने इस फिल्म को लीक होने के बाद भी रिलीज करने का जो जोखिम उठाया है उसको देखते इस फिल्म को हर दर्शक तक पहुँचना ही चाहिए। संस्कृति के होते विनाश और क्षरण की इस कहानी को ए सर्टिफिकेट के साथ पास किया जाना भी ख़ास बात है। बाकी जिन्होंने काशीनाथ सिंह के उपन्यास को पढ़ा है यह फिल्म उन लोगों के लिए ख़ास तोहफा साबित हो सकती है। क्योंकि इसमें अपनी जड़ों से कटा हुआ वर्तमान भारत भी है तो वहीं उसकी आज से दस साल बाद क्या स्थिति होगी वह भी इस फिल्म से बखूबी समझा जा सकता है। प्राणी प्राणी में भेदभाव करने वाली हमारी मानसिकता और प्राणियों में सद्भावना कहने वाले हमारे विचारों के बीच झूलती यह फिल्म उत्तरप्रदेश के लोगों के लिए मनोरंजन का जबरदस्त डोज साबित हो सकती है। मणि और मशीन से उकताए लोगों के बीच ‘निज भाषा उन्नति अहे सब उन्नति को मूल’ जैसे भारतेंदु की पंक्तियाँ और गानों के रूप में रामचरित मानस का पाठ फिल्म को आध्यात्मिक रंग प्रदान करता है। तत्कालीन राजनीति पर तीखा कटाक्ष और राम मंदिर के विवाद के बीच झूलती इस फिल्म को जिस किसी ने नहीं देखा उसे इस हफ्ते इसे लपक लेना चाहिए।
– तेजस पूनिया