विमर्श
मुख़्तसर लेकिन पुख्त़ा शायरी की अमन ने
– के. पी. अनमोल
अमन चाँदपुरी अपने दोहों के माध्यम से लम्बे समय तक जाने जाते रहेंगे। कम उम्र में अमन ने दोहा लेखन में जो स्थान हासिल किया, वह अच्छे-अच्छे रचनाकार एक उम्र खपाने के बावजूद नहीं कर पाते। छन्द के अलावा अमन ने काव्य की अनेक विधाओं यथा- गीत, ग़ज़ल, छंदमुक्त कविता आदि में लेखन किया और केवल लेखनभर नहीं किया, अच्छा सृजन किया है। यहाँ हम अमन के केवल ग़ज़लकार रूप का अध्ययन करेंगे और जानेंगे की किस प्रकार अमन ने कम लेकिन ठोस शायरी की है।
जहाँ तक मुझे जानकारी है, क़रीब 3 साल पहले ग़ज़ल लेखन की तरफ अमन का झुकाव हुआ। उन्होंने ग़ज़ल को सीखने-समझने के साथ उसे साधना शुरू कर दिया। बहुत कम समय में ही उन्होंने अच्छे शेर कहना आरम्भ किया तथा अपनी लगन और मेहनत से शीघ्र ही ठोस ग़ज़लें कहने लगे। समय की इस छोटी-सी अवधि में अमन चाँदपुरी एक मंझे हुए ग़ज़लकार प्रतीत होने लगे थे, इतने कि मुझसे अपनी अंतिम बातचीत में उन्होंने जो ग़ज़लें और शेर सुनाये, उन्हें सुनकर मैं सुखद आश्चर्य से भर गया था कि इस लड़के ने इतने कम समय में ग़ज़ल को किस ख़ूबसूरती से साध लिया है!
उनकी यह एक ख़ूबी थी कि ग़ज़ल लेखन में वे कभी जल्दबाज़ी नहीं करते थे। बहुत धैर्य और समझदारी के साथ उन्होंने आमद की तरफ ध्यान दिया, वे कभी भावों के साथ ज़बरदस्ती करते हुए नहीं दिखे। ग़ज़ल लेखन में धैर्य एक बहुत महत्वपूर्ण पहलू है। आज के भागमभाग समय में तो हम वैसे ही धैर्य खोये बैठे हैं। शेयर करने, लाइक-कमेन्ट पाने की लालसा ने हमें इस तरह जकड़ लिया है कि फटाफट लिखो और चेपो की प्रवृति बल पकड़ती जा रही है, ऐसे में अमन में धैर्य और मेहनत का दिखना बहुत सुखद था।
अमन ने धैर्य के साथ ग़ज़ल कहने की प्रवृति के कारण बहुत कम ग़ज़लें कही हैं लेकिन उनकी ग़ज़लों से गुज़रने के बाद यह आभास होता है कि उनकी शायरी मुख़्तसर लेकिन ठोस है। ग़ज़ल लेखन के तमाम पहलुओं का ध्यान रखते हुए उन्होंने ग़ज़ल को बहुत ख़ूबसूरती से साधा और इसी कारण वे ख़ुद को एक ग़ज़लकार के रूप में स्थापित करने में सफल रहे।
अमन की ग़ज़लें हिन्दी/उर्दू मिश्रित शब्दावली की हिन्दुस्तानी भाषा-शैली की ग़ज़लें हैं। ये ग़ज़लें बहुत सहजता के साथ अपने समय, अपने आसपास की बातें शेरों के माध्यम से हमारे सामने रखती हैं। वर्तमान समय को उकेरते हुए अमन ने ग़ज़ल के महत्वपूर्ण पक्ष ग़ज़लियत का बा-ख़ूबी ख़याल रखा है। इनकी ग़ज़लों में मंझे हुए ग़ज़लकार की तरह बात कहने का सलीक़ा मिलता है।
यथार्थ लेखन इनकी ग़ज़लों की एक विशिष्टता है। युवावस्था की दहलीज़ पर उन्होंने अपने समय को, अपने हालात को जिस तरह आत्मसात किया, उसी तरह उसे अपने शेरों में पिरोया भी। अपनी लगभग हर एक ग़ज़ल में वे अपने समय से मुख़ातिब दिखते हैं। इस सन्दर्भ में वरिष्ठ ग़ज़ल आलोचक अनिरुद्ध सिन्हा जी का यह कथन कम शब्दों में लगभग सबकुछ कह जाता है-
“इस युवा ग़ज़लकार ने कम उम्र में ही चिंतन से लेखन तक का लम्बा सफ़र तय कर लिया है, जो अपने दृष्टिकोण की बहुत-सी असंगतियों तथा भ्रमों का दृढ़तापूर्वक विरोध करते हुए जीवन के सत्यपरक चित्रण के साथ अपने लेखकीय दायित्व को पूरा करने में सफल हुआ है।”
अपने समय के यथार्थ का चित्रण इनकी ग़ज़लों में भरपूर मिलता है। चाहे मुल्क के हालात हों, सियासत का पतन हो या सामाजिक विसंगतियाँ हों; अमन ने अपनी ग़ज़लों के कथ्य में सभी को बुना है, सभी की ख़बर ली है। हमारे दौर में आदमी पर आदमी के अविश्वास की बढ़ती प्रवृति को उजागर करते हुए वे कहते हैं-
यहाँ कौन, कब लूट ले क्या ख़बर
हर इक शख्स़ ख़ुद को बचाकर चले
अपने एक शेर में तरक्की करते मुल्क में बढ़ती ग़रीबी पर वे प्रश्न करते हैं-
तरक्की कर रहा है मुल्क बेशक
तरक्की ने ग़रीबों को दिया क्या
यहाँ चिंतन है, फ़िक्र है और आत्ममंथन भी।
सियासत पर वे पैनी नज़र रखते थे। इसीलिए अपने कई शेरों में इन्होंने सियासत की भी बखिया उधेड़ी हैं। देश में फल-फूल रही स्वार्थपरक राजनीति पर उन्होंने दो टूक कहा कि-
है सियासत ने जहाँ भी पाँव रक्खा
झूठ का परचम वहीं फहरा रहा है
एक सच्चा साहित्यकार हमेशा चाहता है कि उसके समाज में चैन और सुकून बरकरार रहे। लोग मुहब्बत के साथ एक-दूसरे से पेश आएँ। हर ओर ख़ुशहाली रहे। लेकिन कमअक्ल इंसानों की हरकतों और सियासत के एजेंडों की वजह से जब समाज दंगों, खून-ख़राबों की आग में झुलसता है तो उस सृजक का मन बहुत दुखता है। अमन का रचनाकार भी ऐसी घटनाओं से आहत होता है और कहता है-
जली बस्तियाँ ढह गये सब मकां
ये दंगे सभी का बुरा कर चले
सच है, दंगे झुलसने के बाद उम्र, मज़हब, ज़ात कुछ नहीं देखते। इन्हें बस एक काम आता है और वह है- बरबादी।
अमन की ग़ज़लों में फ़लसफ़े भी देखने को मिलते हैं। इससे यह साबित होता है कि अपनी छोटी-सी उम्र में उन्होंने ज़िन्दगी को बहुत क़रीब से जीया है, महसूस किया है।
वो मुसलसल हुआ ग़लत साबित
जबसे उलझा सही के चक्कर में
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तू जो काँटों पे चल नहीं सकता
ख़्वाब सच में बदल नहीं सकता
छल-कपट का शजर ज़माने में
बढ़ तो सकता है फल नहीं सकता
इनकी शायरी में कई जगह अलहदा कहन के शेर भी देखने को मिलते हैं। यहाँ वे एक मंझे हुए ग़ज़लकार की तरह पेश आते हैं-
दिल से दिल ही तलक तो जाना है
ख़त्म क्यूँ रास्ता नहीं होता
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ख़ुद भी सय्याद इम्तिहान में है
एक ही तीर अब कमान में है
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बाहर उदास है कोई भीतर उदास है
जिसको भी देखता हूँ बराबर उदास है
तारीख़ उसके आने की बढ़ती है रोज़-रोज़
दिन को निगल-निगल के कैलेंडर उदास है
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मिला है इश्क़ में किसको मुनाफ़ा
सो तुम घाटे को ही समझो मुनाफ़ा
प्रेम के कोमल एहसास भी इनकी ग़ज़लों में देखने को मिलते हैं। आटे में नमक की तरह प्रेम पर शेर रखकर वे अपनी ग़ज़लों का ज़ायका बढाते हैं-
अब तलक इश्क़ से है महरूमी
अब तलक बदनसीब हैं हम तो
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उठा पाये न इसको ‘मीर’ तक भी
ये पत्थर इश्क़ का भारी बहुत है
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मुसलसल दिल पे दस्तक दो ‘अमन’ जी
कहाँ इक रोज़ में खिड़की खुली है
अमन ने कम अरसे में ही ग़ज़ल की अपनी समझ को बहुत बेह्तर कर लिया था। वे एक ग़ज़लकार के बतौर अपने आसपास जाने जाने लगे थे। कई बेहतरीन ग़ज़लकारों का सानिध्य भी उन्हें लगातार तराश रहा था, जिनमें उस्ताद ग़ज़लकार रामप्रकाश बेख़ुद साहब, डॉ. हरि फैज़ाबादी साहब, शाहिद जमाल साहब आदि शामिल हैं।
उपरोक्त बिन्दुओं पर बात करते हुए हमने जाना कि अमन चाँदपुरी ने बहुत कम लेकिन ठोस शायरी की है, जिसके ज़रिये दुनिया से जाने के बाद भी उन्हें सालों तक याद किया जाता रहेगा। इन तमाम शेरों के अलावा भी कई ऐसे शेर हैं, जो अमन चाँदपुरी के ग़ज़लकार को एक पुख्ता ग़ज़लकार साबित करते हैं-
दुनिया तेरे कहने से नामुमकिन को
मैं मुमकिन मुमकिन चिलाऊँ, नामुमकिन
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बोलना बेहद ज़रूरी है मगर यह सोच लो
चीज़ जब होगी अयां तो ख़ामुशी मर जाएगी
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जो तुम मुझमें बुराई ढूँढ़ते हो
मेरी अच्छाइयों के हैं नतीजे
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आने का वादा किये बिन कृष्ण जब जाने लगे
राधिका की ओर से तब बाँसुरी लड़ने लगी
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पल में तमाम हो गया क़िस्सा हयात का
उसकी निगाह मुझ पे रही इतनी मुख़्तसर
– के. पी. अनमोल