लेख
मीडिया और हिंदी- हिमकर श्याम
भारत में अनेक समृद्ध भाषाएँ हैं। इन भाषाओं में हिंदी एकता की कड़ी है। हमारे सन्तों, समाज सुधारकों और राष्ट्रनायकों ने अपने विचारों के प्रचार के लिए हिंदी को अपनाया। क्योंकि यही एक भाषा है जो कश्मीर से कन्याकुमारी तक और राजस्थान से असम तक समान रूप से समझी जाती है। हिंदी ही एकमात्र भाषा है जो समस्त भारतीय को एकता के सूत्र में जोड़ने का कार्य सम्पन्न करती है। देश में प्रायः सभी जगह हिंदी व्यापक स्तर पर बोली और समझी जा रही है। दक्षिण भारत हो या पूर्वोत्तर भारत हर जगह हिंदी का सहज व्यवहार हो रहा है। भाषाओं के लम्बे इतिहास में ऐसी बहुरूपी भाषा का अस्तित्व और कहीं नहीं मिलता। हिंदी बोलने वाले लोगों की संख्या 50 करोड़ है। जनसंख्या की दृष्टि से हिंदी विश्व में सर्वाधिक बोली जाने वाली तीसरी सबसे बड़ी भाषा है। यदि हिंदी समझने वालों की संख्या भी इसमें जोड़ दी जाये तो यह दूसरे नम्बर पर आ जाएगी। दुनिया में शायद ही किसी भाषा का इतना तीव्र विकास और व्यापक फैलाव हुआ होगा। हिंदी को पल्लवित-पुष्पित करने में मीडिया की महती भूमिका रही है।
हिंदी जैसी सरल और उदार भाषा शायद ही कोई हो. हिंदी सबको अपनाती रही है, सबका यथोचित स्वागत करती रही है. किसी भी भाषा के शब्द को अपने अंदर समाहित करने में गुरेज नहीं किया. अंग्रेजी, अरबी, फारसी, तुर्की, फ्रांसीसी, पोर्चुगीज आदि विदेशी शब्द हिंदी की शब्दकोश में मिल जायेंगे. जो भी इसके समीप आया सबको गले से लगाया. भौगोलिक विस्तार के अनेक जनपदों और उनके व्यवहृत अठारह बोलियों (पश्चिमी हिंदी के अंतर्गत खड़ी बोली, बाँगरू, ब्रजभाषा, कन्नौजी, पूर्वी हिंदी में अवधी, बधेली, छत्तीसगढ़ी, बिहारी में मैथिली, मगही, भोजपुरी, राजस्थानी में मेवाती-अहीरवादी, मालवी, जयपुरी-हाड़ौती, मारवाड़ी- मेवाड़ी तथा पहाड़ी में पश्चिमी पहाड़ी, मध्य पहाड़ी, पूर्वी पहाड़ी) के वैविध्य को, जिनमें से कई व्याकरणिक दृष्टि से एक-दूसरे की विरोधी विशेषताओं से युक्त कही जा सकती है, हिंदी भाषा बड़े सहज भाव से धारण करती है. हिंदी के स्वरूप के सम्बन्ध में इसलिए वैचारिक द्वैत की भावना ग्रियर्सन में जगह-जगह दिखती है. ‘भाषा सर्वेक्षण’ के भूमिका में वे लिखते हैं ‘इस प्रकार कहा जा सकता है और सामान्य रूप से लोगों का विश्वास भी यही है कि गंगा के समस्त काँठे में, बंगाल और पंजाब के बीच. उपजी अनेक स्थानीय बोलियों सहित, केवल एकमात्र प्रचलित भाषा हिंदी ही है.’ इन सारी बोलियों के समूह और संश्लेष को पहले भी हिंदी, हिंदवी, हिंदई कहा जाता था, और आज भी हिंदी कहा जाता है. बंटवारे से पहले समूचे पाकिस्तान में पंजाब से लेकर सिंध तक हिंदी की बोली समझी जाती थी. लाहौर हिंदी का गढ़ था. वहाँ हिंदी के कई बड़े प्रकाशन भी थे. बंटवारे के बाद हिंदी की अनदेखी की गई, लेकिन हिंदी फिल्मों और भारतीय टीवी चैनलों के मनोरंजक कार्यक्रमों, धारावाहिकों के कारण वहाँ हिंदी का प्रभाव फिर बढ़ रहा है. नेपाल और बंगलादेश में भी हिंदी का प्रभाव है. 50 देशों में हिंदी पढाई जा रही है. 500 से ज्यादा संस्थानों में हिंदी की पढ़ाई होती है. अमेरिका से लेकर चीन तक कई विश्व-विद्यालयों में हिंदी पढ़ाई जा रही है. ब्रिटेन, अमेरिका, कनाडा, दक्षिण अफ्रीका, मॉरीशस, युगांडा, गुयाना, फिजी, नीदरलैंड, सिंगापुर, त्रिनिदाद, टोबैगो और खाड़ी देशों में बड़ी संख्या में हिंदी भाषी हैं. दुबई जैसे शहरों में हिंदी बोलचाल की भाषा बन गयी है.
निर्विवाद तथ्य है कि खड़ी बोली ही आज की हिंदी है. भारत के हिंदी मीडिया की भाषा भी यही है, पत्र- पत्रिकाओं की भी और टेलीविजन और फिल्मों की भी. हिंदी भाषा का निर्माण और आगे बढ़ाने का कार्य मीडिया ने किया है. साहित्य बहुजन हिताय बहुजन सुखाय की उदात्त भावना लेकर चला है तो पत्रकारिता भी इसी प्रकार के मानव कल्याण के उद्देश्य को लेकर अवतरित हुई है. वस्तुतः साहित्य जीवन की कलात्मक अभिव्यक्ति है. पत्रकारिता भी सत्यम, शिवम सुंदरम की ओर जन मानस को उन्मुख करती है. यदि साहित्य समाज का दर्पण है तो पत्रकारिता उस समाज की प्रतिकृति है. हिंदी साहित्य के क्रमिक विकास पर दृष्टि डालें तो हम पाएंगे कि पत्र पत्रिकाओं की साहित्य के विकास में अहम भूमिका रही है. वास्तव में भाषा के प्रचार प्रसार में इनका उल्लेखनीय योगदान रहा है.
हिंदी पत्रकारिता की शुरुआत बंगाल से हुई और इसका श्रेय राजा राममोहन राय को दिया जाता है. राजा राममोहन राय ने ही सबसे पहले प्रेस को सामाजिक उद्देश्य से जोड़ा. भारतीयों के सामाजिक, धार्मिक, राजनीतिक, आर्थिक हितों का समर्थन किया. समाज में व्याप्त अंधविश्वास और कुरीतियों पर प्रहार किये और अपने पत्रों के जरिए जनता में जागरूकता पैदा की. राममोहन राय ने कई पत्र शुरू किये. जिसमें महत्वपूर्ण हैं- साल 1816 में प्रकाशित ‘बंगाल गजट’. बंगाल गजट भारतीय भाषा का पहला समाचार पत्र है. इस समाचार पत्र के संपादक गंगाधर भट्टाचार्य थे. इसके अलावा राजा राममोहन राय ने मिरातुल, संवाद कौमुदी, बंगाल हैराल्ड पत्र भी निकाले और लोगों में चेतना फैलाई. 30 मई 1826 को कलकत्ता से पंडित युगल किशोर शुक्ल के संपादन में निकलने वाले ‘उदंत्त मार्तण्ड’ को हिंदी का पहला समाचार पत्र माना जाता है. 1873 ई. में भारतेन्दु ने ‘हरिश्चंद्र मैगजीन’ की स्थापना की. एक वर्ष बाद यह पत्र ‘हरिश्चंद्र चंद्रिका’ नाम से प्रसिद्ध हुआ. वैसे भारतेन्दु का ‘कविवचन सुधा’ पत्र 1867 में ही सामने आ गया था और उसने पत्रकारिता के विकास में महत्वपूर्ण भाग लिया था. परंतु नई भाषाशैली का प्रवर्तन 1873 में ‘हरिश्चंद्र मैगजीन’ से ही हुआ. भारतेन्दु के बाद इस क्षेत्र में जो पत्रकार आए उनमें प्रमुख थे पंडित रुद्रदत्त शर्मा, बालकृष्ण भट्ट, दुर्गाप्रसाद मिश्र, पंडित सदानंद मिश्र, पंडित वंशीधर, बदरीनारायण, देवकीनंदन त्रिपाठी, राधाचरण गोस्वामी, पंडित गौरीदत्त, राज रामपाल सिंह, प्रतापनारायण मिश्र, अंबिकादत्त व्यास, बाबू रामकृष्ण वर्मा, पं. रामगुलाम अवस्थी, योगेशचंद्र वसु, पं. कुंदनलाल और बाबू देवकीनंदन खत्री एवं बाबू जगन्नाथदास. 1895 ई. में ‘नागरीप्रचारिणी पत्रिका’ का प्रकाशन आरंभ हुआ. इस पत्रिका से गंभीर साहित्य समीक्षा का आरंभ हुआ और इसलिए हम इसे एक निश्चित प्रकाशस्तंभ मान सकते हैं. 1900 ई. में ‘सरस्वती’ और ‘सुदर्शन’ के अवतरण के साथ हिंदी पत्रकारिता के इस दूसरे युग पर पटाक्षेप हो जाता है. इन वर्षों में हिंदी पत्रकारिता अनेक दिशाओं में विकसित हुई. प्रारंभिक पत्र शिक्षा-प्रसार और धर्म प्रचार तक सीमित थे. भारतेन्दु ने सामाजिक, राजनीतिक और साहित्यिक दिशाएँ भी विकसित कीं.
सन् 1880 से लेकर, सदी के अंत तक लखनऊ, प्रयाग, मिर्जापुर, वृंदावन, मुंबई, कोलकाता जैसे दूरदराज क्षेत्रों से पत्र निकलते रहे. सन 1900 का वर्ष हिंदी पत्रकारिता के इतिहास में महत्त्वपूर्ण है. 1900 में प्रकाशित सरस्वती पत्रिका अपने समय की युगान्तरकारी पत्रिका रही है. वह अपनी छपाई, सफाई, कागज और चित्रों के कारण शीघ्र ही लोकप्रिय हो गई. उसी वर्ष छत्तीसगढ़ प्रदेश के बिलासपुर-रायपुर से ‘छत्तीसगढ़ मित्र’ का प्रकाशन शुरू होता है. ‘सरस्वती’ के ख्यात संपादक आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी और ‘छत्तीसगढ़ मित्र’ के संपादक पंडित माधवराव सप्रे थे.
पत्रकारिता का यह काल बहुमुखी सांस्कृतिक नवजागरण का यह समुन्नत काल है. इसमें सामाजिक, आर्थिक, शैक्षिक, वैज्ञानिक और राजनीतिक लेखन की परंपरा का श्रीगणेश होता है. इस दौर में साहित्यिक लेखन और पत्रकारिता के सरोकारों को अलग नहीं किया जा सकता. सांस्कृतिक जागरण, राजनीतिक चेतना, साहित्यिक सरोकार और दमन का प्रतिकार इन चार पहियों के रथ पर हिंदी पत्रकारिता अग्रसर हुईं. माधवराव सप्रे ने लोकमान्य तिलक के मराठी केसरी को ‘हिंद केसरी’ के रूप में छापना शुरू किया. समाचार सुधावर्षण, अभ्युदय, शंखनाद, हलधर, सत्याग्रह समाचार, युद्धवीर, क्रांतिवीर, स्वदेश, नया हिन्दुस्तान, कल्याण, हिंदी प्रदीप, ब्राह्मण,बुन्देलखण्ड केसरी, मतवाला सरस्वती, विप्लव, अलंकार, चाँद, हंस, प्रताप, सैनिक, क्रांति, बलिदान, वालिंट्यर आदि जनवादी पत्रिकाओं ने आहिस्ता-आहिस्ता लोगों में सोये हुए देशभक्ति के जज्बे को जगाया और क्रांति का आह्नान किया.
भारत के स्वाधीनता संघर्ष में पत्र-पत्रिकाओं की अहम भूमिका रही है. राजा राममोहन राय, महात्मा गांधी, मौलाना अबुल कलाम आजाद, बाल गंगाधर तिलक, पंडित मदनमोहन मालवीय, बाबा साहब अम्बेडकर, यशपाल जैसे आला दर्जे के नेता सीधे-सीधे तौर पर पत्र-पत्रिकाओं से जुड़े हुए थे और नियमित लिख रहे थे. जिसका असर देश के दूर-सुदूर गांवों में रहने वाले देशवासियों पर पड़ रहा था. सत्याग्रह, असहयोग आन्दोलन, सविनय अवज्ञा आन्दोलन के प्रचार प्रसार और उन आन्दोलनों की कामयाबी में समाचार पत्रों की अहम भूमिका रही. कई पत्रों ने स्वाधीनता आन्दोलन में प्रवक्ता की भूमिका निभायी. हिंदी पत्रकारिता के क्षेत्र में प्रेमचंद, निराला, बनारसीदास चतुर्वेदी, पांडेय बेचन शर्मा उग्र, शिवपूजन सहाय आदि की उपस्थिति ‘जागरण’, ‘हंस’, ‘माधुरी’, ‘अभ्युदय’, ‘मतवाला’, ‘विशाल भारत’ आदि के रूप में दर्ज है.
‘उदन्त मार्तण्ड’ के सम्पादन से प्रारंभ हिंदी पत्रकारिता की विकास यात्रा कहीं थमी और कहीं ठहरी नहीं है. पंडित युगल किशोर शुक्ल के संपादन में प्रकाशित इस समाचार पत्र ने हालांकि आर्थिक अभावों के कारण जल्द ही दम तोड़ दिया, पर इसने हिंदी अखबारों के प्रकाशन का जो शुभारंभ किया वह कारवां निरंतर आगे बढ़ा है. साथ ही हिंदी का प्रथम पत्र होने के बावजूद यह भाषा, विचार एवं प्रस्तुति के लिहाज से महत्त्वपूर्ण बन गया. अपने क्रमिक विकास में हिंदी पत्रकारिता के उत्कर्ष का समय आजादी के बाद आया. 1947 में देश को आजादी मिली. लोगों में नई उत्सुकता का संचार हुआ. औद्योगिक विकास के साथ-साथ मुद्रण कला भी विकसित हुई. जिससे पत्रों का संगठन पक्ष सुदृढ़ हुआ. हिंदी पत्रों ने जहाँ एक ओर बहुमुखी विकास का मार्ग प्रशस्त्र किया वहीं राष्ट्रभाषा को सर्वाधिक उपयोगी बनाने का सफल प्रयास किया. पत्रकारिता की शुरुआत एक मिशन के रूप में हुई थी. स्वतंत्रता की पृष्ठभूमि यहां के पत्रों एवं पत्रकारों ने ही तैयार की थी. आजादी की लड़ाई में पत्रकारिता देशभक्ति और समग्र राष्ट्रीय चेतना के साथ जुड़ी रही. इसमे देशभक्ति के अलावा सामाजिक उत्तरदायित्व की भावना भी शामिल है. स्वाधीनता से पहले देश के लिए संघर्ष का समय था. इस संघर्ष में जितना योगदान राजनेताओं का था उससे तनिक भी कम पत्रों एवं पत्रकारों का नहीं था. स्वतंत्रता पूर्व का पत्रकारिता का इतिहास तो स्वतंत्रता आन्दोलन का मुख्य हिस्सा ही है. तब पत्रकारिता घोर संघर्ष के बीच अपना अस्तित्व बचाये रखने के लिए प्रयत्नशील थी.
90 के दशक में भारतीय भाषाओं के अखबारों, हिंदी पत्रकारिता के क्षेत्र में अमर उजाला, दैनिक भास्कर, दैनिक जागरण, प्रभात खबर आदि के नगरों-कस्बों से कई संस्करण निकलने शुरू हुए. जहां पहले महानगरों से अखबार छपते थे, भूमंडलीकरण के बाद आयी नयी तकनीक, बेहतर सड़क और यातायात के संसाधनों की सुलभता की वजह से छोटे शहरों, कस्बों से भी नगर संस्करण का छपना आसान हो गया. साथ ही इन दशकों में ग्रामीण इलाकों, कस्बों में फैलते बाजार में नयी वस्तुओं के लिए नये उपभोक्ताओं की तलाश भी शुरू हुई. हिंदी के अखबार इन वस्तुओं के प्रचार-प्रसार का एक जरिया बन कर उभरा है. साथ ही साथ अखबारों के इन संस्करणों में स्थानीय खबरों को प्रमुखता से छापा जाता है. इससे अखबारों के पाठकों की संख्या में काफी बढ़ोतरी हुई है. पिछले कुछ सालों में हिंदी मीडिया ने अभूतपूर्व सफलता अर्जित की है. प्रिंट मीडिया को ही लें, आइआरएस रिपोर्ट देखें तो उसमें ऊपर के पांच अखबार हिंदी के हैं. हिंदी अखबारों और पत्रिकाओं का प्रसार लगातार बढ़ रहा है. इलेक्ट्रानिक मीडिया में हिन्दी न्यूज चैनलों की भरमार है. भारत में 182 से ज्यादा हिंदी न्यूज चैनल हैं. नई तकनीक और प्रौद्योगिकी ने अखबारों की ताकत और ऊर्जा का व्यापक विस्तार किया है.
किसी भी देश के विकास का संबंध भाषा से है. इसमें कोई संदेह नहीं कि आजकल राजभाषा हिंदी अपनी सीमाओं से बाहर आ चुकी है. यह विकास, बाजार और मीडिया की भाषा भी बन रही है. पूरे भारत और भारत के बाहर हिंदी के द्रुत प्रचार-प्रसार और विकास का श्रेय मनोरंजन चैनल, समाचार चैनल, खेल चैनल और कई धार्मिक चैनल को दिया जा सकता है. अगर किसी भी देशी-विदेशी कम्पनी को अपना उत्पाद बाजार में उतारना होता है तो उसकी पहली नजर हिंदी क्षेत्र पर पड़ती है क्योंकि उपभोक्ता शक्ति का वृहत्तम अंश हिंदी क्षेत्र में ही निहित है इसलिए उसका विज्ञापन कर्म हिंदी में ही होता है. दुनिया की एक बड़ी आबादी तक पहुंचने के लिए हिंदी की जरूरत पड़ेगी ही. हिंदी अखबारों, हिंदी पत्रिकाओं, हिंदी चैनलों, हिंदी रेडियो और हिंदी फिल्मों की जरूरत पड़ेगी ही. हिंदी माध्यमों का विकास होगा तो निस्संदेह हिंदी का भी विकास होगा. बाजार और मीडिया का विस्तार होगा तो हिंदी भी फैलेगी और जब तक बाजार और मीडिया है तब तक हिंदी मौजूद रहेगी. बाजार और मीडिया ने हिंदी जाननेवालों को बाकी दुनिया से जुड़ने के नये विकल्प खोल दिये हैं. फिल्म, टी.वी., विज्ञापन और समाचार हर जगह हिंदी का वर्चस्व है.
वर्तमान युग हिंदी मीडिया का युग है. हिंदी भाषा का निर्माण और आगे बढ़ाने का कार्य मीडिया ने किया है. इंटरनेट और मोबाइल ने हिंदी को और विस्तार दिया. हिंदी में संप्रेषण की ताकत है. हिंदी यूनिकोड हुई तो ब्लॉगगिंग में बहार आ गई. चिट्ठा लिखनेवालों की संख्या में अप्रत्याशित वृद्धि हुई. गूगल का मोबाइल और वेब विज्ञापन नेटवर्क एडसेंस हिंदी को सपोर्ट कर रहा है. इंटरनेट पर 15 से ज्याद हिंदी सर्च इंजन मौजूद हैं. सोशल साइट में हिंदी छाई हुई है. 21 फीसदी भारतीय हिंदी में इंटरनेट का उपयोग करते हैं. हिंदी राजभाषा के बाद अब वैश्विक भाषा बनने की ओर तेजी से बढ़ रही है. डिजिटल दुनिया में हिंदी की मांग अंग्रेजी की तुलना में पाँच गुना तेज है. हिंदी मातृभाषा और राजभाषा से एक नई वैश्विक भाषा के रूप में हिंदी बदल रही है. वह नई प्रौद्योगिकी, वैश्विक विपणन तंत्र और अंतरराष्ट्रीय संबंधों की भाषा बन रही है. आज मोबाइल की पहुँच ने गाँव-गाँव के कोने-कोने में संवाद और संपर्क को आसान बना दिया है. इस वजह से बाजार आ रहे नित नवीन मोबाइल उपकरण हर सुविधा हिंदी में देने के लिए बाध्य हैं. हिंदी की इस समृद्ध, शक्ति और प्रसार पर किसी भी हिंदी भाषी को गर्व हो सकता है.
– हिमकर श्याम