मन के रंग
“मोंटू बेटे ! आज तूने फिर अपना टिफ़िन छोड़ दिया, आज तो तेरी मनपसंद आलू की सब्ज़ी दी थी ना तुझे, फिर क्यों छोड़ा?”
सुधा ने स्कूल से लौट कर आये बेटे के टिफ़िन में बचा हुआ भोजन देख कर हल्की नाराज़गी जतलाई।
चार वर्षीय मोंटू मम्मी को अपना छोटा सा हाथ दिखा – दिखा कर समझाता हुआ बोला –
“मम्मी, मुझे भौत सारा टिफ़िन भर के मत दिया करो। मैं छोटा हूँ, खाते -खाते थक जाता हूँ।”
वो भोले अंदाज़ में बोला।
“क्यों! पापा ने समझाया था न, खाते हैं तो बड़े हो जाते हैं।”
“पापा जितना बड़ा।” मोंटू ने अपना दायाँ हाथ ऊपर उठा कर दिखाया।
“तेरी मैम बच्चों को लंच क्यों नहीं खिलाती?
मैं तेरे स्कूल मैम से पूछने जाऊँगी ‘सैटर डे’ को।”
“क्यों मम्मी?” मोंटू के नेत्र अचंभे से फैल गये थे।
“तेरी मैम से कहूँगी, हमारे बेटे का ध्यान रखा करो, सारा लंच लौटा लाता है। फिर वो तुझे भी खिलायेगी।” मम्मी ख़ुश होते हुए बोलीं।
ये सुनते ही मोंटू ने अपनी हथेली मम्मी के मुँह पर रख दी।
“मैम से नहीं कहना, स्कूल भी मत आना मम्मी।”
“क्यों?”सुधा ने मोंटू की यूनिफार्म की शर्ट बदलवाते हुए पूछा।
“सिर्फ गौरव और शान को खिलाएँगी मैम, अपनी गोदी में बिठाल कर।”
“क्यों भाई, उन्हें क्यों? और मेरे लाल को क्यों नहीं?”
माँ शिकायत भरे लहज़े में बोल पड़ीं।
मोंटू ने अपने चेहरे को हथेलियों से छूते हुए कहा –
“शान और गौरव बहुत गोरे हैं,व्हाइट कलर के, और शान के तो गालों में गड्ढे भी पड़ते हैं मम्मी। इसलिए मैम उसे गोद में बैठा कर टिफ़िन खिलाती हैं।”
“मैं काला हूँ ना, मेरे गालों में तो डिम्पल भी नहीं पड़ते हैं। इसलिए मम्मी ….।”
मोंटू ने एक अँगुली से अपने गाल में डिम्पल बना कर दिखाया।
नन्हें मोंटू का वाक्य खट से फाँस- सा दिल में जा चुभा, वो तड़प के रह गई।
उसने बेटे को अपने कलेजे से लगा लिया और बेतहाशा चूमने लगी। उसकी आँखें झर रहीं थीं।
“तू सबसे सुंदर है, मोंटू बच्चे, सबसे शुंदर।
तेरी मैम काली।”
उसने मम्मी का विरोध किया-
‘नो मम्मी नो गंदी बात।’
– विभा रश्मि