कविता-कानन
बाल कविता- गैया मैया
मालिक से चारा खा गैया
करती चैन जुगाली
नज़र प्यार से उसने अपने
बछड़े पर फिर डाली
हल्के से रंभा कर उसने
बछड़े को दुलराया
आँखों-आँखों बछड़े ने भी
अपना प्यार जताया
आया ग्वाला लिये बाल्टी
दूध निकाले इतना
सोचे मैया बछड़े ख़ातिर
देखो बचता कितना
तब आई बछड़े की बारी
थोड़ा दूध पिलाया
बस इतने से दूध से बछड़ा
कूद-कूद झल्लाया
प्यार से बछड़े को तब मैया
यह कह कर समझाये
मालिक के बच्चे भी मैंने
समझे कहाँ पराये
मालिक देता रोज़ बनाकर
मुझको अच्छा चारा
साफ़-सफ़ाई रखता घर की
धोता आँगन सारा
रहे पेट में जब तुम बच्चे
मालिक ने की सेवा
रोज़ खिलाता था वह मुझको
गुड़ दाने का मेवा
तभी पुष्ट तुम पैदा होकर
करते खेल-लड़ाई
दूध पिएँ घर के बच्चे भी
खायें तभी मलाई
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बाल कविता- जाड़े का मौसम
धूप गुनगुनी अच्छी लगती
जाड़े के दिन आये
लड्डू-किशमिश-बादामों के
मम्मी खूब बनाये
गर्म ऊन के रंग-बिरंगे
लगते कपड़े अच्छे
खुली धूप में खेलें-दौड़ें
खुश-खुश सारे बच्चे
गजक, रेवड़ी, मूँगफली की
रौनक ठेलों छाई
खूब बेचता गर्म जलेबी
कोने का हलवाई
बूंदी-बांदी में घर बनते
अक्सर गर्म पकोड़े
मगर चाय के संग मिलें ये
सबको थोड़े-थोड़े
पापा टाई सूट पहन कर
दफ़्तर रौब जमायें
मम्मी नये-नये फ़ैशन के
कपड़ों पर इतरायें
गर्म कचौड़ी, चाट चटपटी
गाजर हलुवा खाओ
पिकनिक, शापिंग के मौसम का
मिलकर मज़ा उठाओ
– लक्ष्मी खन्ना सुमन