कविता-कानन
प्रेम
रहेगा यह
जब तक श्वांस में हवा
आदमी में पानी है
दिखेगा यह
जब जब किसनी देवी
अपना स्तन पान कराएगी
अनाथ हरिण बच्चे को
या फिर बीमार-अब्दुल को बचाने
रामलाल अपना खून देगा
सुनेंगे प्रेम को हम
घाटी पहाड़ों में भेंड़ें चराते
चरवाहे की बंशी धुन मेंं
या फिर आधी रात में
अलाव के पास
भीखू के गाए
कबीर के भजनों में
चखेंगे इसे
चातक संग स्वाति की बूंदों में
या भरी दोपहरी में
कमली के लाए
कालू किसान के भाते में से निकले
प्याज मिर्ची और सोगरे में
बतियायेंगे इससे
जैसे मां बतियाती है
अपने गर्भस्थ शिशु से
अनंत है विस्तार प्रेम का
ब्रह्माण्ड से पहले भी था यह
प्रलय के बाद भी रहेगा
शाश्वत है यह
अजर अमर आत्मा सा
***************************
स्मृतियाँ
गहरे हृदय-सागर तल में
बिखरी पड़ी हैं
सीपियां सी
स्मृतियाँ….
लोहे के पुराने संदूक में पड़ी
डायरी के पन्नों के बीच
पीला पड़ा
मिला है उसका पहला प्रेम पत्र
उसमें दबे सूखे गुलाब की
सुगंध लिए
सारे शब्द उछल कर
बाहर आ नृत्य करने लगते हैं
डाल देते हैं डेरा
मेरे इर्द गिर्द
भाव विभोर हो
गले लग जाते हैं वे मेरे
पत्र में लौटने से
इंकार कर देते हैं वे
****************************
खेल
धरती
आसमां
वक़्त
ज़िन्दग़ी
सब गतिमान है
कोई खेल नहीं है ये
कि ‘स्टेच्यू‘ बोल दिया
और सभी स्थिर हो गए
ज़िन्दग़ी का खेल खेलें जरुर
पर हार-जीत से परे
भाग्य क्षितिज के उस पार
आनंद पलों की फुहार में
कर्म के मैदान पर
धरती
आसमां
और वक्त को
अपनी टीम में शामिल कर
– मुरलीधर वैष्णव