व्यंग्य
पर्यावरण के देवता
– मीना अरोड़ा
सृष्टि के जन्मदाता ब्रह्मा जी का दरबार सजा था। सभी देवी देवता वहाँ उपस्थित थे। पवन देव, जल देव, अग्नि देव, और इन्द्र देव हाथ जोड़कर ब्रह्मा जी के समक्ष चुपचाप खड़े थे। उनके चेहरों पर मायूसी छाई थी। धरा से सभी ने अपनी-अपनी कंपनियाँ बंद कर किसी दूसरे ग्रह पर जाकर बसने का निर्णय कर लिया था। वहीं ब्रह्मा जी के दरबार में उपस्थित सूर्य देव सोने से चमक रहे थे। उनकी कंपनी अरबों-खरबों के मुनाफे में थी। उनके रथ के घोड़े बड़ी तेजी से दौड़ रहे थे। धरती पर सिर्फ उन्हीं का राज चल रहा था। शीघ्र ही उनका पृथ्वी पर एकाधिकार स्थापित होने वाला था। चारों ओर उन्हीं के नाम का हाहाकार था।
कंपनियों के मालिकों ने यह फैसला मानव जाति की गैरजिम्मेदाराना हरकतों को देखकर ही लिया था। कुछ स्वार्थी मनुष्यों ने प्राकृतिक संसाधनों पर ही नहीं अपितु देवताओं की कृपाओं पर भी कब्जा कर लिया था। जल देवता और पवन देव को अपनी व्यक्तिगत संपत्ति मान उन्हें दूषित करना आरंभ कर दिया था। दोनों देवता पूरी तरह से बेजान तथा निष्क्रिय होने की तैयारी पर थे। उनकी ऐसी हालत देख ‘प्रदूषण रक्तबीज’ प्रसन्नता के गीत गाने लगा। धरा का ओज़ोन आंचल छिद्रयुक्त होने लगा। बनावटीपन धरा से पर्यावरण को लीलने लगा।
ब्रह्मा जी अपने समक्ष खड़े दिवालिया मालिकों से ज्यादा सृष्टि के विनाश के लिए दुखी थे। वो सोचने लगे, यदि उनकी कंपनियों द्वारा उपलब्ध कराई जाने वाली सुविधाओं से सबको वंचित कर दिया गया तो बहुत बड़ा अनर्थ हो जाएगा। ब्रह्मा जी यह बात बखूबी जान गए कि डूबने का डर देवताओं के दिमाग में खलबली मचा रहा है। वो सब आम इंसानों की भांति एक जगह से दूसरी जगह भागने का मन बना चुके हैैं। चूंकि सृष्टि को बचाना ब्रह्मा जी का दायित्व है सो, उन्होंने वार्तालाप गतिविधि को आरंभ किया।
ब्रह्मा जी ने पवन देव को संबोधित करते हुए कहा- “सबसे पहले तुम मुझे अपनी कंपनी धरती से बंद करने का एक कारण बताओ।?”
पवन देव ने कातर नज़रों से ब्रह्मा जी की और देखा फिर अपना मुँह खोला। पर उनके कंठ से आवाज़ बाहर नहीं आई। वहाँ उपस्थित सभी उनकी ऐसी हालत देखकर सिहर गए। ब्रह्मा जी ने उनके कंठ पर अपना हाथ फिराया। पवन देव को राहत का अनुभव हुआ। उन्होंने अपनी सरसराती आवाज में अपना दुखड़ा सुनाना आरंभ किया कि किस तरह धरती के लोग उनका अस्तित्व मिटाने के लिए एकजुट हो गए हैं। उनकी बात सुनकर सब एक साथ बोले- “अरे! क्या वे मूर्ख प्राणी नहीं जानते कि यदि वे आपको धरती से चलता कर देंगे तो उनकी साँसें चलनी बंद हो जायेंगी।”
पवन देव ने कहा- “मैं नहीं जानता कि धरतीवासी मुझे अपना मित्र मानते हैं या शत्रु। पर मैं आज तक अपना फर्ज ईमानदारी से अदा करता आया हूँ। अब मेरा वहाँ टिकना संभव नहीं। मैं किसी अन्य ग्रह पर जाकर बसेरा कर लूँगा। धरती पर अब और नहीं रहूँगा।”
ब्रह्मा जी ने पवन देव की बात पर हैरान होते हुई कहा- “यदि तुम ऐसा करोगे तो तुम्हारे एजेंट वृक्ष भूखे मर जाएँगे। उन पर आश्रित हजारों पक्षी बेघर हो जायेंगे। उन सबका क्या होगा! एक बार भी सोचा है?”
पवन देव उदास होते हुए बोले- “मेरे एजेंट बचे ही कितने हैं। आपको पता भी है धरा से बड़े-बड़े वृक्ष उखाड़ उसकी जगह गमलों में नन्हे-नन्हे पौधे रोपकर, वे मूर्ख मनुष्य सोचते हैं कि वे पर्यावरण की रक्षा कर रहे हैैं। और जो वृद्ध वृक्ष बचे हैं, वे उनकी कंपनियों से निकलते धुएं से खाँस-खाँस कर अधमरे हो रहे हैं। कुछ स्वच्छ जल के अभाव में प्यासे खड़े-खड़े तड़प रहे हैं। ऐसे में, मैं उनकी और दुर्गति नहीं देख सकता। अब मैं उन्हें जीवन दान नहीं दूँगा।”
पवन देव की बात सुन ब्रह्मा जी ने जल देवता की ओर क्रुद्ध नजरों से देखा। जल देवता की आँखों से जल बह निकला। वहाँ उपस्थित सभी ने देखा कि उनकी आँखों से बहने वाला जल कालापन लिए हुए है। जल देवता ने ब्रह्मा जी के समक्ष हाथ जोड़ते हुए कहा- “क्षमा कीजिए, पर मैं तनिक भी अपराधी नहीं हूँ। पता नहीं धरती के मनुष्य मेरे जल में कौन-कौन से रसायन मिलाते रहते हैं। पानी के स्रोत उतने ही हैं, पर जनसंख्या अनियंत्रित होती जा रही है। उनके द्वारा खड़ी की जाने वाली गगनचुंबी इमारतें सिर्फ पानी ही नहीं मेरा खून भी चूस रही हैैं। अपना दर्द कैसे बताऊं! वे जिस जल को पीते हैं, उसी में थूकते और मूतते हैं। माँ सरस्वती ने तो कुपित होकर अपना वर्चस्व मिटा दिया है। गंगा और जमुना भी विदाई लेने के मूड में हैं। अब आप बताइए, मैं पवन देव के एजेंटस् को स्वच्छ जल कहाँ से उपलब्ध करवाऊं? इन्द्र देव ने भी वर्षा में कटौती कर दी है।
मैं वर्षा के पानी के लिए लाइन में ऐसे लगा रहता हूँ जैसे बी.पी.एल. धारक अपना कार्ड पकड़ कर सुबह से रात तक लाइन में लगे रहते हैं। और विक्रेता राशन की दुकान का शटर गिरा कर उन्हें अगले दिन आने का आश्वासन दे देता है। अब आप ही बताइए “मैं क्या करूँ’।”
इंद्र देव ब्रह्मा जी के दाहिने मुख की ओर ही खड़े थे। अपने खिलाफ शिकायत सुनकर उनको एक पल को लज्जा का अनुभव हुआ। फिर उन्हें याद आया कि वह स्वर्ग के राजा हैं। किसी देश के मामूली प्रधानमंत्री नहीं। जिसके खिलाफ कोई भी अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर मुँह खोलकर कुछ भी कह डाले। इंद्रदेव ने जल देवता की और घूर कर देखा। जल देवता सकपका कर रह गए।
ब्रह्मा जी ने इंद्रदेव को क्रोधित देख प्यार से उनको पुचकारा। और धरती पर वर्षा न भेजने का कारण पूछा। इंद्रदेव मुस्कुरा कर बोले- “प्रभु, आप तो जानते हैं, स्त्री जाति को कहीं भी जाना हो तो वह तैयार होने में इतना अधिक समय लगा देती है कि समय ही खिसक जाता है। मैं वर्षा को हमेशा सही समय पर आगाह कर देता हूँ। पर वह धरती पर जाने के नखरे करती है। कभी कहती है पॉल्यूशन बहुत है। कॉम्प्लेक्शन को खतरा है। कभी कड़ी धूप से परेशान हो जाती है। जंगलों में लगने वाली आग भी इसकी जल की गठरी को सुखा देती है। आप बताइए मेरा क्या कुसूर है।”
ब्रह्मा जी ने स्त्री, मेकअप और समय का मन ही मन गुणा भाग किया। फिरअपनी आंखें अग्नि देव पर तरेर दीं। अग्नि देव सकपका कर बोले:-” हे देव! मैं एकदम निर्दोष हूं। जंगलों में आग मैं नहीं लगाता। यह तो धरती पर विचरने वाले मनुष्यों की ओछी करतूतें हैं। मैं तो अब गरीब के चूल्हों में भी ठीक से नहीं जलता। और बड़े घरों में तो इंडक्शन, माइक्रोवेव, ओवन, कुकिंग रेंज, आदि की सुविधा के चलते मेरा रोल खत्म हो गया है।”
ब्रह्मा जी को समझ नहीं आ रहा था कि किसको दोषी ठहराएं।सभी अपनी अपनी कंपनी बंद करने के सही कारणों को सुना, अपने आप को निर्दोष साबित कर चुके थे। उन्हें समझ आ गया था कि एकमात्र मनुष्य ही दोषी है। पर फिर भी रहमदिल ब्रह्मा जी को मनुष्यों की चिंता सताने लगी। उन्होंने सूर्य देव की ओर रुख करते हुए कहा:-” यदि हो सके तो तुम अपने ताप को कम कर दो। अपने रथ के घोड़ों को लगाम लगा कर रोक लो। ताकि धरती को जलने से बचाया जा सके।”
सूर्य देव ब्रह्मा जी से बोले:-“देव आपको मनुष्यों की चिंता है या धरती की?
यदि आपको धरा की चिंता है तो आप तनिक भी चिंतित न हों, क्योंकि धरा स्वयं उस पर विचरने वाले मनुष्य नामक बुद्धिजीवियों से तंग आ चुकी है।
जिन्हें आपने बुद्धि देकर धरती को सजाने संवारने को भेजा था, वही उसके सर्वनाश के उत्तरदायी हैं।
धरा से उसकी हरियाली छीनकर हरा, लाल रंग चाहने वालों ने उसको टुकड़ों में बांट दिया है।
आपने धरती को मां का दर्जा दिया। और साथ ही उद्दंड संतान से नवाज दिया।वे मंदबुद्धि संतानें, किसी कल कल करते कलयुग की दुहाई देते हैं। हर समय धर्म और मजहब के नाम पर कलह और राजनीति में कोहराम मचाने वाले कभी नहीं सोचते कि वे कर क्या रहे हैं।स्वार्थ और लालच हर किसी की नस नस में भर गया है। ईश्वर, अल्ल्लाह और ईसा के नाम पर भी लूटपाट होती रहती है। ऐसे दुष्ट बुद्धिजीवियों को आप क्यों बचाना चाहते हो।”
ब्रह्मा जी सूर्य देव की बात सुन उकताए स्वर में बोले:-“मैं इसलिए उन्हें बचाना चाहता हूं क्योंकि उन सबको मैंने उपजाया है।वे सब बुरे नहीं हैं।”
सूर्य देव बोले:-“मैं आपको एक किस्सा सुनाना चाहता हूं।एक रोज मैंने देखा मेरे नाम का डरावा देकर, एक ठग कुछ भोले भाले लोगों को यह कह कर लूट रहा था कि यदि उन्होंने उसे कुछ पैसे दिए तो वो मेरे ताप को कम कर सकता है।उसकी बात सुनकर मैं हैरान हुआ, कि वो यह चमत्कार वो कैसे करने वाला है।”
ब्रह्मा जी ने सूर्य देव की बात काटते हुए कहा:-“वत्स , तुमने अभी एक ठग के साथ कुछ भोले भाले लोगों का भी जिक्र किया। अर्थात पृथ्वी पर भोले भाले लोग भी हैं। मैं उन्हीं सीधे और सच्चे लोगों की खातिर धरा को बचाना चाहता हूं।”
सूर्य देव ने अपनी मुस्कान को गहरा करते हुए कहा:-“प्रभु मुझे मेरी बात पूरी करने दीजिए। मैंने कुछ को भोला इसलिए कहा क्योंकि मैं अपशब्दों का प्रयोग नहीं करना चाहता था। हकीकत में वे लोग अज्ञानी और मूर्ख हैं। किसी पर आंखें मूंदकर भरोसा करते हैं। जब छले जाते हैं तो ईश्वर पर विश्वास करना छोड़ देते हैं। और फिर अपना धर्म भी बदल डालते हैं। वैसे मैंने ज्ञानी और विद्वान लोगों को कहते सुना है– गेहूं के साथ घुन भी पिसता है।”
ब्रह्मा जी ने कहा:-“तुम आगे बताओ, क्या तुम यह जानने में सफल हुए कि उसने तुम्हारे ताप को कैसे रोका।”
सूर्य देव की पूरी बात सुनने को हर कोई उत्सुक था।
सूर्य देव ने हां में गर्दन हिलाई और बोले:-“उसने मेरे ताप को रोका पर सिर्फ अपने लिए।”
सब एक साथ बोले:-“वो कैसे?”
सूर्य देव ने हंस कर कहा:-” वो उन पैसों से अपने लिए एयर कंडीशनर ले आया।”
सूर्य देव की बात सुनकर सब एक साथ ठहाका मारकर हंसने लगे।
पवन देव ने सूर्य देव की बात सुनकर रुआंसे होकर कहा :-“उस एयर कंडीशनर की गरम हवा मेरी ठंडक को धरती से विलुप्त कर रही है।”
ब्रह्मा जी ने अपने मस्तक पर हाथ रखा और उदास होकर बोले :-“मैं अपनी उपजाई सृष्टि का अंत देखने के लिए विवश हूं।”
– मीना अरोड़ा