व्यंग्य
न इधर के रहे न उधर के
सुबह पाँच बजे उठकर गुप्ताजी जब दबे पाँव कमरे से निकलने लगे तो गुप्ताइन ने झट से आँखें खोलीं और पूछा, “इत्ती सुबह सज-धज के कहाँ चले?” बेचारे गुप्ताजी पकडे जाने की दहशत से हड़बड़ा गये, फिर कुछ सोच कर बोले, “देखो न, घर में बैठे-बैठे कितना पेट निकल आया है इसलिए सोच रहे हैं कि सुबह जल्दी उठकर अब रोज़ थोड़ी मोर्निंग वॉक किया करेंगे।” और इससे पहले कि बीवी के सवालों की दुनाली चलनी शुरू हो गुप्ताजी लगभग दौड़ते हुए घर से बाहर निकल गये और साहनी साहब के बताये हुए पते की तरफ लपक लिए। साहनी साहब ने बताया था कि जितनी जल्दी जाकर नंबर लगाया जाएगा, उतनी ही कम भीड़ मिलेगी। इसीलिए रात भर गुप्ताजी अपने फोन पर टाइम चेक करते रहे थे कि कहीं सोते ही न रह जाएँ।
इसे कहते हैं सच्ची चाहत और लगन, जिसमें आदमी न नींद देखता है न आराम और नज़र सिर्फ मछली की आँख पर रहती है। खैर मेहनत रंग लायी और हमारे गुप्ताजी बिना किसी बाधा के ठीक साधे पाँच बजे वाइन शॉप पर पहुँच गये। मगर वहाँ का नज़ारा देखकर तो उनकी सारी ख़ुशी धरी की धरी रह गयी। दूकान के सामने कम से कम एक किलोमीटर लम्बी लाइन लगी हुई थी। जल्दी आने की मेहनत व्यर्थ जाते देखकर बुझे मन से जाकर लाइन में सबसे पीछे खड़े हो गये और गर्दन अगल-बगल निकाल कर अपना नंबर आने की संभावना पर नज़र डालने लगे। जब आगे के लोगों पर नज़र डाली तो गुप्ताजी को एक चीज़ थोड़ी अजीब लगी कि लाइन में खड़े लगभग सभी लोग बड़े स्मार्ट और रंग-बिरंगे औरतों टाइप कपड़ों में थे और हाथों में थैले नहीं बल्कि लेडीज़ पर्स लटका कर आये थे। उनको लगा कि इस दूकान पर दारू लेने का यह कोई विशेष कोड होगा। अब अगर साहनी साहब ने ये बात पहले बता दी होती तो गुप्ताजी भी अपनी पत्नी का एक पर्स लटका कर आ जाते। लेकिन अब क्या किया जाए यह सोचकर उन्होंने अपने आगे खड़े व्यक्ति के पास मुँह ले जाकर पूछा, “भाईसाहब, क्या ये लेडीज़ बटुआ लेकर आना ज़रूरी है यहाँ पर?”
भाईसाहब ने कोई जवाब नहीं दिया तो गुप्ताजी ने उनके कंधे पर हाथ मारकर अपना सवाल दोहराया और फिर तो जैसे आसमान फट पड़ा क्योंकि गुप्ताजी के सामने मास्क लगाए और अपने कजरारे नैनों से घूरती एक लड़की का चेहरा था, जो बड़े गुस्से से देखते हुए पूछ रही थी कि उसे हाथ लगाने की और भाईसाहब कहने की हिम्मत कैसे हुई हमारे गुप्ताजी की! बेचारे गुप्ताजी के काटो तो खून नहीं। फिर भी हिम्मत जुटाकर बोले, “माफ़ करिएगा मैडम, हमने पहले कभी महिलाओं को दारु की लाइन में खड़े देखा नहीं था इसीलिए आपको भाईसाहब कह दिया था।”
लड़की कड़क कर बोली, “आपको क्या लगता है दारु खरीदने का ठेका आप मर्दों ने ही ले रखा है? मिस्टर ये 2020 चल रहा है। औरतें अब जहाज़ उड़ा रही हैं, ट्रेन्स चला रही हैं और बड़ी-बड़ी कम्पनियाँ चला रही हैं तो फिर दारु क्यों नहीं ख़रीद सकती? वैसे अगर आप चाहें तो मैं आपको स्टॉक दिलवाने में मदद कर सकती हूँ।”
गुप्ताजी को पहले तो अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ मगर फिर संकोच से बोले, “मैडम छोडिये, आप क्यों तकलीफ करें! हम खुद ही अपना नंबर आने पर ले लेंगे।” गुप्ताजी की बात सुनकर लड़की ज़ोर से हँसी और आगे को मुँह निकालकर किसी रीना से तेज़ आवाज़ में पूछा कि दूकान में स्टॉक की क्या सिचुएशन है। उधर से जवाब आया कि ‘पीछेवालों का नबर आने तक तो दूकान खाली हो जाएगी, कुछ नहीं मिलेगा। पर तेरा स्टॉक मैं कलेक्ट कर लूँगी डोंट वरी।’ इस जवाब ने गुप्ताजी के शरीर से तो जैसे प्राण ही खींचकर निकाल फेंके। निराश होकर बोले, “तो फिर हम वापिस ही चले जाते हैं। यहाँ लाइन में खड़े रहने से क्या फ़ायदा!”
लड़की फ़ौरन बोली, “अंकल जी, मैंने इसीलिए आपसे पूछा था क्योंकि हम लोग यहाँ लाइन में आप जैसे लोगों की सेवा के लिए ही लगे हुए हैं। लेडीज़ को हर जगह प्रायोरिटी मिल जाती है इसीलिए मैं और मेरी सहेलियाँ ज़्यादा से ज़्यादा स्टॉक यहाँ से उठाकर आप जैसे ज़रूरतमंदों को दे देते हैं। आप लोगों की मेहनत बचती है और हमें हमारा कमीशन मिल जाता है। अब जल्दी बताइये हमारी हेल्प चाहिए या अपनी किस्मत आजमाएंगे?”
मरता क्या न करता! अपनी लिस्ट कन्या को थमा दी तो उसने काग़ज़ पर नज़र डालते हुए कहा, “ये इतना सारा माल तो कम से कम पाँच हज़ार में आएगा अंकल। तीन एडवांस दे दो बाकी बोतलें मिलने पर दे देना। गुप्ताजी को सौदा कुछ महँगा लगा पर क्या करते, दूसरा कोई चारा भी नहीं था इसलिए चुपचाप तीन हज़ार रुपये पर्स से निकालकर लड़की को थमा दिए। लड़की ने उनको पेड़ के नीचे इंतज़ार करने को कहा और ख़ुद लपक कर सबसे आगे चली गयी।
करीब आधे घंटे के बाद गुप्ताजी अपना स्टॉक गाड़ी में रखकर प्रसन्न मन से गुनगुनाते हुए अपनी बिल्डिंग के पास पहुँच गये तब अचानक गुप्ताइन का ख़याल आया। इतनी सारी बोतलों के साथ उन्हें देखकर वो तो घर में घुसने भी नहीं देगी तो अब इतनी मेहनत से दुगने दाम पर लायी गयी इन प्यारी बोतलों को होम मिनिस्टर की नज़रों से कैसे बचाया जाय? यह सवाल हथौड़े की तरह दिमाग में चोट मारने लगा। एक बार सोचा कि फिलहाल स्टॉक को गाड़ी की डिक्की में ही रहने दें लेकिन अगर श्रीमतीजी किसी काम से गाड़ी ले गईं तो फिर तो गुप्ताजी की पोल खुल जाएगी। तभी उनकी नज़र अपनी बिल्डिंग की पार्किंग के एक कोने में काफी अरसे से खड़ी खटारा गाड़ी पर पड़ी और बस उन्होंने झट से अपना पूरा स्टॉक उस गाड़ी के अन्दर छिपा दिया और एक बोतल अपनी कमीज़ के अन्दर रख कर घर आ गये। चारों तरफ़ निगाह घुमाकर अपनी डिक्टेटर बीवी की लोकेशन टटोली और उसे किचन में देखकर झट से बोतल अपनी अलमारी में छिपाकर बाहर के कमरे में आकर बैठ गये और बड़े प्यार से बीवी को आवाज़ देकर एक प्याला चाय बनाने को कहा।
फिर शाम को अपनी सफलता की कथा सुनाने के लिए साहनी साहब को फोन किया तो उन्होंने अपने मित्र को बधाई देते हुए पूछा कि क्या बीयर की दो बोतलें गुप्ताजी उनको दे सकते हैं? गुप्ताजी ने पूरी दरियादिली दिखाते हुए अपने यार को बिल्डिंग की पार्किंग में आने को कहा और खुद भी वहाँ पहुँच गये और फिर उनको अपने छिपाए गये खजाने तक लेकर आये लेकिन उनकी हवाइयाँ उड़ गयीं यह देखकर कि वह पुरानी खटारा वहाँ से ग़ायब थी। बेचारे गुप्ताजी लड़खड़ाते हुए दीवार का सहारा लेकर किसी तरह संभले और फ़ौरन बिल्डिंग सोसाइटी के सेक्रेटरी को फोन करके पुरानी गाड़ी के बारे में पूछा तो पता चला कि वह गाड़ी तो कबाड़ी ले गया। काफी दिनों से उसको कह रखा था मगर लॉक डाउन की वजह से वह आ नहीं सका था। आज कुछ देर पहले वह आया और गाड़ी ले गया। “मगर मिस्टर गुप्ता आप उस गाडी के बारे में क्यों पूछ रहे हैं?” सेक्रेटरी ने सवाल किया और गुप्ताजी ने फोन काट दिया।
बेचारे गुप्ताजी तब से अपना सिर धुन रहे हैं और चेतन नाम के उस कबाड़ी को सब जगह ढूँढ रहे हैं, जो उनको कंगाल कर गया था।
– आरती पंड्या