निठल्लों को सदमा न पहुंचाइए: आसिम अनमोल
अरे, भाई किसने कह दिया कि निठल्ले लोगों में कोई योग्यता नही होती! अगर योग्यता नही होती तो वो एक मजलिस बनाकर निठल्ले लोगों को संगठित करके एक मजबूत संगठन कैसे बना लेते?आज तो ये बात उछाल दी गई है। आईन्दा यह बात नही उछलनी चाहिए। वरना इतने कर्मठ और योग्य निठल्लों को बहुत सदमा पहुंचेगा। ये ठीक नहीं कि वो डिप्रेशन में चले जाएं और हम नहीं चाहते कि वो सदमे में जाकर अपना संगठन कमजोर करें। हमारे ये निठल्ले बहुत सारा काम रोज़ाना हमारे सभ्य समाज के लिए कर जाते हैं और हमको इसकी भनक तक नही लगती।
जिस तरह कुछ नेता समाज में परिवर्तन लाने की बात करते हुए अपनी फ़र्ज़ी नज़र घुमाते हैं। उसी प्रकार निठल्लों की भी करामाती नज़र बरोबर रहती है। उनको इस बात का पूरा अनुमान रहता है कि कौन कितने बजकर कितने मिनट पर अपने घर से निकल रहा है। ताकि वो उनकी अनुपस्थिति में उनके जीवन के अतीत की बख़िया उधेड़ सकें। निठल्लों का एक विशेष गुण यह भी होता है कि उनको अपनी चटिया (मजलिस) में अपनी साख बनाने के लिए खुद के पास बोलने के लिए शब्दकोष का होना अतिआवश्यक होता है। ताकि वो आस पड़ोसियों की बुराई इतनी सुंदरता से करें कि वो असत्य होकर भी सत्य प्रतीत हो। तभी निठल्लेपन की गरिमा भी बनी रह सकती है।
वरना फायदा क्या निठल्लेपन का तमगा लटकाने से। इसे सलीके से दर्शाने की भी परफार्मेंस अच्छी होनी चाहिए। जैसे कुछ लोगों के अंदर कुछ चीज़ें गॉड गिफ्टेड होती हैं। वैसे ही निठल्लों के अंदर भी ताका झांकी करना,खुद को सूरमा समझना,एक बड़ा विचारक मानना,अपनी बात को जबरदस्ती स्वीकृत करा लेना यह सब विशेष लक्षण होते हैं। जिसके बल पर निठल्ला सिफ़र होकर भी सिफ़र से पहले कई अंकों को लगाने की परम्परा विकसित करता रहता है।
निठल्लेपन में हरगिज लचीलापन नही होना चाहिए। निठल्ला लोगों के अंदर आपस में मतभेद कराने की भरपूर सलाहियत रखता है। यह सलाहियत तब सफल होती दिखती है,जब हमारा समाज टूटता और बिखरता हुआ नज़र आने लगता है। इसलिए निठल्ले लोगों को हलके में नही लेना चाहिए,बल्कि इनकी योग्यता को विशेष तौर पर समझना चाहिए। निठल्लों के विशेष योगदान पर अनुसंधान संस्थान की स्थापना सरकार को करनी चाहिए ताकि इनका योगदान देश और समाज के सामने आ सके।
– आसिम अनमोल