भाषांतर
दुर्घटना
(चीनी कहानी का हिंदी अनुवाद)
मूल कहानी: म्यूरोंग क्स्यूकन
अनुवाद: सुशांत सुप्रिय
अपनी तिरछी निगाह से मैंने मोटरसाइकिल को ज़ोर की आवाज़ के साथ फिसलकर गिरते हुए देखा। चालक हवा में उड़ा, धम्म् की आवाज़ के साथ ज़मीन पर गिरा और रुकने से पहले दो बार लुढ़का।
मैं सन्न रह गया और मैंने कार रोक दी। मोटर साइकिल चालक बिना हिले-डुले सड़क पर पड़ा हुआ था। रात हो रही थी और दुर्घटना वाली जगह पर भीड़ थी और शोर-शराबा था। मैं सन्न….दिमाग़ से चालक के हेल्मेट के भीतर से बाहर की ओर रिसते खून को देख रहा था। लहू मई के महीने में पूरे खिले रुगोसा गुलाबों के चटख लाल रंग जैसा था।
मोटर साइकिल चालक अब भी बिना हिले-डुले सड़क पर गिरा पड़ा था। मैं अपनी कार में बैठा सोच रहा था- “कुछ भी हो जाए, तुम मरना नहीं मेरे दोस्त। यूँ भी शराब पीकर गाड़ी चलाना ग़ैर-क़ानूनी है। यदि तुम मर गए तो मेरा भी वही हाल होगा। “थोड़ी देर बाद मैं अपनी कार से बाहर निकला और धीरे-धीरे चलता हुआ उसके पास पहुँचा। अचानक वह मुड़ा और उठकर बैठ गया। फिर वह अपने हेल्मेट के भीतर से ही बड़बड़ाने लगा और गालियाँ देने लगा।
“भाड़ में जाओ तुम। तुम्हारा बेड़ा ग़र्क हो जाए। कैसे गाड़ी चलाते हो तुम?” अपने जीवन के सैंतीस सालों में पहली बार मुझे इतनी मीठी वाणी सुनने को मिल रही थी! मेरा नाम वेई है और इससे पहले भी लोगों ने मुझे शाब्दिक गुलदस्ते भेंट किए हैं किंतु अभी से पहले ऐसे अपशब्द मुझे किसी ने नहीं कहे थे। मुझे ऐसा लगा जैसे स्वर्ग से गरजने की आवाज़ आ रही हो। मैंने सोचा, “यदि यह व्यक्ति गालियाँ बक सकता है तो यह ठीक-ठाक है और यह मेरे लिए अच्छी बात है।”
पूरी सड़क पर अजवायन और मूलियाँ गिरी हुई थीं। ऐसा लगता था, जैसे वह कोई ग़रीब किसान था जो अपनी सब्ज़ियाँ आदि बेचने के लिए शहर जा रहा था। मैंने खुद को शांत महसूस किया। उठ कर दो-चार कदम चलने में मैंने उसकी मदद की। सब ठीक रहा और वह सीधा खड़ा हो गया। स्थिति अच्छी लग रही थी। एकमात्र समस्या यह थी कि उसके मुँह पर अब भी खून लगा हुआ था। मैंने फ़ैसला किया कि मैं उसे अपना कमज़ोर पक्ष नहीं दिखाऊँगा। यदि मैंने उसके साथ ज़्यादा अच्छा व्यवहार किया तो हो सकता है, वह इसका फ़ायदा उठाना चाहे। मुझे बिल्कुल पता नहीं था कि वह मुझसे मुआवज़े में क्या माँगेगा। जैसे ही उसने अपना हेल्मेट उतारा, मैं गरजा, “तुम मुझे अपना चालक लाइसेंस दिखाओ।” दुर्घटना का ज़िम्मेदार कोई भी व्यक्ति ऐसा कहने का साहस नहीं करेगा। दरअसल मैं उसे डरा-धमका कर उससे आत्म-समर्पण करवा लेना चाहता था।
वह अभी भी भौंचक्का लग रहा था। उसने अपने हाथ से अपने सिर पर लगे खून को रगड़ा, अपने हाथ को देखा और लड़खड़ाते हुए मुझसे पूछा, “तुम क्या करते हो?” उसकी उम्र पचास वर्ष से ज़्यादा होगी। उसके कपड़ों में तेल लगा था। उसने पीले रंग के रबड़ के जूते पहने हुए थे और उसके कपड़ों में से कीटनाशकों की गंध आ रही थी। शक़्ल-सूरत से वह कोई दुनियावी आदमी नहीं लगता था।
मैंने उसे ख़ूँख़ार निगाहों से घूरा। “तुम्हें उससे क्या मतलब? अपना चालक लाइसेंस दो।” वह बहुत देर तक अपने कपड़ों में लाइसेंस ढूँढ़ता रहा और फिर शर्माते हुए खीसें निपोर कर बोला, “मैं अपने साथ लाइसेंस लाना भूल गया।”
यह सुनकर मेरा पलड़ा भारी हो गया और मैंने उसके सीने में अपनी उँगली चुभाते हुए कहा, “बिल्कुल। तुम्हारा बेड़ा ग़र्क हो। तुम्हारे पास चालक का लाइसेंस नहीं है। तुम घटिया ढंग से अपनी मोटर साइकिल चला रहे थे और तुम्हारी ये हिम्मत कि तुम मुझे गालियाँ दो?”
उसने अपना सिर झुका लिया और अपने बचाव में कहने लगा, “आपकी कार की बत्तियाँ नहीं जल रही थीं। मुझे कैसे पता चलता…?” तभी मैंने कुछ और लोगों को वहाँ इकट्ठा होते हुए देखा। मुझे याद आया कि यदि मुसीबत में घिर जाए तो ख़रगोश भी आदमी को काट लेता है। मुझे ख़याल आया कि क्यों न मैं इस ज़ख़्मी आदमी को कुछ रुपए-पैसे देकर मामला रफ़ा-दफ़ा कर दूँ । फ़िज़ूल के लड़ाई-झगड़े में क्या रखा है ? मैंने उसकी गिरी हुई मोटर साइकिल उठाने में उसकी मदद की। बूढ़े आदमी ने अपना सिर झुकाया, काँपते हुए वह कुछ कदम चला और फिर वह अचानक दोबारा ज़मीन पर गिर गया। इस बार वह बेहोश हो गया। मैंने उसे बहुत देर तक ज़ोर-ज़ोर से हिलाया पर वह होश में नहीं आया।
भीड़ बढ़ती जा रही थी और सड़क पर मेरी गाड़ी के पीछे अन्य गाड़ियों की एक लम्बी क़तार लग गई थी। मैं थोड़ी दूरी पर पुलिस की गाड़ी के सायरन की आवाज़ सुन सकता था। मुझे यह सब अच्छा नहीं लगा और मैंने जल्दी से ह्यू कॉओक्सिंग को फ़ोन लगाया। उन्होंने बड़े पेशेवर ढंग से मुझसे बात की। उन्होंने दुर्घटना की जगह के बारे में मुझसे प्रश्न पूछा और इससे जुड़े कुछ और सवाल किए। फिर उन्होंने मदद करने का वादा किया। मैंने फ़ोन काटा ही था कि पुलिसवाले वहाँ पहुँचने लगे। उनमें से एक ने मुझसे मेरे दस्तावेज़ माँगे। मैंने धीरे से कहा, “मैं आपके कमिश्नर का मित्र हूँ।” उसने मुझे घूरकर देखा और कहा, “फ़ालतू बकवास मत करो। गाड़ी के काग़ज़ात निकालो।”
बूढ़ा किसान भी गहरी साँसें लेते हुए होश में आ रहा था। उसने कहा, “तुम यह नहीं…।” मेरी चिंता बढ़ती जा रही थी। तभी एक सिपाही के वाकी-टाकी रेडियो से कोई आवाज़ आई। यदि ये ह्यू कॉओक्सिंग थे तो वे यकीनन अपना काम कर रहे थे। पुलिसवाला कुछ देर तक सुनता रहा और फिर बात करते हुए और मुझे कठोर निगाहों से देखते हुए वह भीड़ से थोड़ी दूर चला गया। लगभग दो मिनट बाद जब वह वापस आया तो उसका पूरा हाव-भाव ही बदला हुआ था।
उसने मुझसे कुछ नहीं कहा बल्कि वह सीधे उस किसान के पास गया और उससे बोला, “तो तुम इनके ठीक पीछे मोटर साइकिल चला रहे थे? अपना शिनाख़्ती-कार्ड, चालक का लाइसेंस और पासपोर्ट दिखाओ।” बूढ़े का चेहरा पीला पड़ गया। उसके चेहरे पर ख़ून लगा हुआ था और उसके होंठ काँप रहे थे। बहुत देर तक उसे समझ ही नहीं आया कि वहाँ क्या हो रहा है। सिपाही ने उससे कुछ कहा और पूछताछ की। फिर वह मेरी ओर मुड़ कर फुसफुसाया, “वकील वेई जी, पहले इसे अस्पताल ले चलते हैं। यह बुरी तरह घायल है।”
मैं कराहा- “क्या फूटी क़िस्मत है मेरी। लेकिन मैंने कभी नहीं सोचा था कि बूढ़ा खुद को इतना बड़ा बेवक़ूफ़ साबित कर देगा। वह अचानक उठ खड़ा हुआ और काँपते हुए अपनी मोटर साइकिल पर टिक गया। फिर उसने अपनी सब्ज़ी वाली टोकरी ली और वह सड़क पर गिरी सब्ज़ियाँ आदि उठाने लगा। हरी पत्तियों पर उसके माथे से रिस कर बहता हुआ खून गिर रहा था। मैंने और पुलिसवाले ने हैरानी से आँखें मिलाईं। सिपाही ने उससे पूछा, “सब ठीक है?”
बूढ़ा सब्जीवाला अपनी छाती को मलते हुए बोला, “यहाँ दर्द हो रहा है।”
अब दूसरा अनुभवी सिपाही आगे आया। उसने बूढ़े से पूछा कि क्या वह यह मामला निपटाना चाहता है। उसने आगे कहा, “तुम्हारे पास चालक का लाइसेंस नहीं है। फिर तुम इनके ठीक पीछे मोटर साइकिल चला रहे थे। लगता है कि तुमने इनकी कार में टक्कर मारी। तुम्हें अपनी ग़लती माननी होगी, समझे?” फिर उस पुलिसवाले ने मुझे कहा, “आपकी भी ग़लती है। आपकी गाड़ी की बत्तियाँ नहीं जली थीं।” मैं चुपचाप मान गया कि गलती मेरी भी थी ।
बूढ़ा भयभीत लग रहा था और हकलाते हुए उसने मुझसे माफ़ी माँगी। मैं मन ही मन हँस रहा था। लेकिन मैंने राहत की साँस ली। पुलिसवाला वाक़ई जानता था कि इस मामले को कैसे निपटाना है। उसने मेरी कार के टक्कर लगने वाली जगह की ओर इशारा करके पूछा, “क्या आपकी कार ठीक है?”
“कार की मरम्मत करने वाले को दिखाए बिना कुछ भी कहा नहीं जा सकता। लेकिन डेंटिंग-पेंटिंग में कम-से-कम तीन-चार हज़ार युआन का खर्चा लग जाएगा।”
सब्ज़ी बेचने वाले बूढ़े की आँखें फैल गयीं और बेहद भयभीत होकर उसने अपनी जेब से मुड़े-तुड़े नोटों की एक गड्डी निकाली। कुल मिलाकर उसके पास केवल सौ युआन की रक़म थी। वह इतना घबराया हुआ था कि उसकी आँखों से आँसू निकलने लगे। “मेरे पास इतने ही युआन हैं। आप चाहें तो मेरी मोटरसाइकिल रख लीजिए।”
“यह पुरानी मोटरसाइकिल तो कबाड़ी के काम ही आएगी। मैं इसे क्यों लूँ।” मैंने कहा। पुलिसवाला धीमी आवाज़ में उस बूढ़े से बात करने लगा। अब बूढ़ा ज़ोर से काँपा। फिर उसने अपनी जैकेट खोली और भीतर की जेब में रखे साढ़े तीन सौ युआन और निकाल लिए। काँपते हाथों से उसने सारी रक़म मुझे दे दी। उसकी आँखों से आँसू रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे। “यह रक़म मैंने खाद ख़रीदने के लिए बचा कर रखी थी। मेरे पास इतनी ही रक़म है।” मैंने उससे वे साढ़े तीन सौ युआन ले लिये। बूढ़े ने अपने मोटरसाइकिल का इंजन चालू करने की कोशिश की पर वह इस काम में असफल रहा। फिर एक हाथ से अपनी सब्ज़ी का टोकरा पकड़े और दूसरे हाथ से अपना मोटरसाइकिल सँभाले वह धीरे-धीरे चलता हुआ आगे बढ़ गया। उसके माथे से अब भी खून रिस रहा था।
धीरे-धीरे भीड़ छँट गयी। पहले पुलिसवाले ने धीरे से मुझसे कहा, “आगे से आप पी कर गाड़ी मत चलाइएगा।”
“समझ गया भाई, समझ गया।” मैंने कहा। “तुम अपनी चाय-पानी के लिए कुछ रख लो।” उसने जवाब नहीं दिया और सीटी बजाते हुए वह आगे बढ़ गया। मैंने वापस आकर अपनी कार का इंजन चालू किया। गाड़ी चलाते हुए जब मैं अगले मोड़ पर पहुँचा तो मैंने पाया कि वह बूढ़ा किसान सड़क के किनारे उगे एक छोटे-से पेड़ के पास रुका हुआ था। उसका चेहरा बेहद पीला पड़ा हुआ था। वह एक हाथ से अपना पेट पकड़े हुए बेतहाशा खाँस रहा था। हमारी आँखें आपस में मिलीं और फिर मैं दूसरी ओर देखने लगा जैसे हमारे बीच कुछ हुआ ही नहीं था।
“यातायात पुलिस ने मामला निपटा दिया है।” मैंने सोचा। “अब मैं इस व्यक्ति के लिए कुछ करके मुसीबत क्यों मोल लूँ?” मैंने गाड़ी की गति बढ़ाई और यह सोचता हुआ फ़ेंगशान शहर की ओर आगे बढ़ गया कि मेरी प्रतीक्षा कर रही मेरी प्रेमिका ग्ज़ायो ली मेरे आने में देर हो जाने की वजह से चिंतित होगी।
– सुशांत सुप्रिय