लघुकथाएँ
जवाब
अदालत ने उस पर दंगा करने व हिंसा फैलाने का आरोप सुनाया। पूछा, “तुम्हें आरोप मंजूर है या मुकदमा लड़ना चाहते हो?”
“सर, मैं तो एक मामूली इंसान हूँ। मेरे विरोधियों ने तीन-तीन बार जगह-जगह भयंकर दंगे और लूटपाट कराई। सर, वे तो खुले आम घूम रहे हैं।”
“देखो मिस्टर ऐसे नहीं चलेगा। तुम तो अपनी कहो, तुमने यह अपराध किया या नहीं?”
“सर पूरे देश और टी.वी. चैनलों की बहस उठाकर देख लीजिए, यही तो चल रहा है।”
“क्या चल रहा है?”
“एक पार्टी जब दूसरी पर गुजरात दंगे का आरोप लगाती है तब दूसरी पार्टी उन्हें चौरासी के दिल्ली दंगे की याद दिला देती है। एक पर जब यह आरोप लगाया जाता है कि तीन बड़े उद्योगपति घोटालेबाजों को उसने देश से भागने दिया तब जवाब में दूसरा यह कहता है कि सारा बैंक घोटाला तो उनके कार्यकाल में ही उनकी शह पर हुआ।”
न्यायाधीश ने इस चालाक अभियुक्त के जवाब को सुनकर अपना माथा पकड़ लिया। खैर, उन्होंने अभियुक्त के जवाब को आरोप अस्वीकारी मानते हुए मुदकमे को आगे गवाही के लिए मुल्तवी कर दिया।
रेवड़
देवा रेबारी के इलाके में इस बार फिर से अकाल पड़ गया। फसल तो दूर उसे अपनी मवेशी तक को बचाने के लाले पड़ गये। वह अपने भेड़-बकरी आदि को लेकर पड़ौसी उर्वर प्रदेश की ओर निकल पड़ा। रास्ते में वह एक फसल कटे खाली खेत में अपने रेवड़ को छोड़कर ढाबे पर चाय पीने रुका। कुछ और राहगीर भी वहाँ चाय का इंतजार कर रहे थे।
रेवड़ को मजे से चरते देखकर चाय-वाला चाय बनाते हुए हँस पड़ा।
“खूब हँसी आ रही है भैय्या! क्या बात है?” एक ग्राहक ने उससे पूछा।
“कुछ नहीं साहब, अभी थोड़ी देर पहले एक रेवड़़ शानदार वोल्वो एसी बस में भरा हुआ इधर से निकला था।”
“शानदार वोल्वो एसी बस में…! और रेवड़?”
“हाँ, कुछ लोग कह रहे थे कि उनमें हाल ही में चुनाव जीते हुए कुछ नेता थे। विपक्षी पार्टी शायद उनको खरीदने के लिए उन्हे कहीं हाँक कर ले जा रही थी।”
– मुरलीधर वैष्णव