धारावाहिक
‘चमत्कार’ की संवेदनागत विशेषताएँ
सामाजिक परोपकार की भावना
भारत गाँवों का देश है। यहाँ सभी लोग सामाजिक भाईचारे से पूर्ण होते हैं। लोग एक-दूसरे की सुख-दुःख में सहायता करते हैं। परोपकार ही इनके जीवन का लक्ष्य होता है। स्वामी ब्रह्मानन्द जी एक अवधूत थे और मानव के साथ-साथ वृक्ष और पशु-पक्षियों के प्रति उनके मन में परोपकार की भावना थी। ”जैसे वृक्ष, पशु-पक्षी, सर्दी-गर्मी और वर्षा को सहज भाव से सहन कर लेते हैं। उनके पास किसी प्रकार का कोई वस्त्र नहीं होता है। इसी प्रकार मैं तो प्रकृति की गोद में पलकर उसके साथ एकाकार हो गया हूँ। यह भौतिक शरीर परोपकार में काम आ जाए, तो यह जीवन धन्य हो जाए।“1 जब ऋषि विश्वामित्र राजा दशरथ से अपने यज्ञानुष्ठान की रक्षा के लिए राम और लक्ष्मण को ले जाने की अनुमति मिल जाती है तो अयोध्या से चलने से पूर्व राम और लक्ष्मण अपनी माताओं से विदा लेने के लिए जाते हैं। वहाँ माँ कौशल्या राम और लक्ष्मण को यही कहती है कि वीरों और संतों का जन्म परोपकार के लिए होता है। उस समय माता कौशल्या कहती है कि, ”जाओ ऋषि के कार्य को दोनों भाई तन, मन लगाकर सम्पन्न करो। मुझे शुभ शकुन हो रहे हैं। भगवान् आप दोनों भाईयों को मंगल करे। चिरंजीव हो। परोपकार के लिए ही वीरों और संतों का जन्म
होता है।“2
जब श्रीराम को ऋषि विश्वामित्र अपने साथ यज्ञानुष्ठान की रक्षा के लिए ले जाते हैं तो उस समय श्रीराम की शंका का समाधान करते हुए बताते हैं कि मैं केवल लोक कल्याण के लिए यह यज्ञानुष्ठान कर रहा हूँ। दुष्टजन अकारण उसमें विघ्न उत्पन्न करते हैं। मैं विवश होकर ही आप दोनों भाईयों को यज्ञ की रक्षा के लिए यहाँ लाया हूँ।“3 जब रुक्मिणी विदर्भ देश में अत्याचारी राजा की कैद से मुक्त होकर अपनी रक्षा चाहती थी तो वह एक ब्राह्मण को श्री कृष्ण के पास उनका संदेश पहुँचाने की प्रार्थना करती है ताकि श्रीकृष्ण उसको मुक्त करवाकर उस पर परोपकार करे। ”महाराज सर्वविदित है कि आपने नराघय जरासन्ध के कारागार से 16,000 राजकुमारियों को मुक्त कराया था। आप स्वामी हैं, रक्षक हैं।“1
इस देश में साधु, संत, महापुरुष व राजा-महाराजाओं मंे ही परोपकार की भावना होती, बल्कि प्रकृति के कण-कण में भी परोपकार की भावना होती है। यही बात जब महात्मा शिवानंद और उनके शिष्य में वार्तालाप होती है को सिद्ध करते हैं। ”सहजानन्द मेघ परोपकार के लिए वर्षा करके धरती को हरा भरा करते हैं। इसी प्रकार ज्ञान प्रकाश करके साधु महात्मा इस संसार में लोगों को सन्मार्ग की ओर उन्मुख करते हैं।“2 इसी प्रकार का एक अन्य उदाहरण-”इस प्राचीन देश में अनेक परोपकारी, धर्मात्मा विक्रमादित्य जैसे सम्राट हो गये हैं। जो प्रजा को अपनी सन्तान के समान समझते थे, उनका हित करना और रक्षा करना अपना कत्र्तव्य समझते थे। जहाँ सिंह और बकरी एक घाट पर पानी पीते थे।“3
नारी चित्रण
मनु ने कहा है जहाँ नारियों का पूजन होता है, वहाँ देवता निवास करते हैं। लेकिन जिस समाज में नारी जाति का सम्मान नहीं होता वह धीरे-
धीरे पतन को प्राप्त हो जाता है। भारतीय समाज में स्त्रियों की दशा बहुत दयनीय रही है। ‘उजड़ती दुनिया’ एकांकी में पशु-पक्षी, फूल-पौधे आपस में बात करते हैं, उनकी बात से भी सिद्ध होता है- ”गृहस्थाश्रम का मूलाधार नारी जाति है। नारी को ही गृह लक्ष्मी कहा जाता है। कहा भी जाता है- धरनि बिन घर भूत का डेरा।
चम्पा-बहन मनु महाराज कह गए हैं। जहाँ नारियों का सम्मान होता है, वहाँ देवता निवास करते हैं।“1
आज भारतीय समाज में स्त्रियों की दशा दयनीय है।
”चमेली-यह भी कोई जीवन है। लड़कियाँ दहेज की बलि चढ़ाई जा रही हैं, तो उनकी रोटी कौन सेकेगा।“2
स्त्रियों को भारतीय समाज में कहीं आने-जाने की आजादी नहीं थी जब नंदो देवी और स्वामी बह्मानन्द के बीच वार्तालाप होती है तो हमें इस बात का पता चलता है-
”नंदो देवी- महाराज मेरी भी आपसे एक विनती है।
स्वामी ब्रह्मानन्द- बताओ।
नंदो देवी- गुरूकुल के उत्सव में स्त्रियों को भी आने की अनुमति प्रदान करो।
स्वामी ब्रह्मानन्द-आपका यह विचार बहुत अच्छा है।“3
अब भारतीय समाज में स्त्रियों की दशा में सुधार भी होता जा रहा है। ‘नारी व्यथा’ एकांकी में जब यशोदा, सरला, कमला और बिमला नारी पात्र आपस में बात-चीत करते हैं तो हमें नारी दशा की जानकारी मिलती है। ”यशोदा-इस दुनिया में औरत की भी कोई जिन्दगी है? वह सारी उम्र किसी न किसी बंधन में बंधी रहती है।“1
इसी बात को आगे बढ़ाती हुई यशोदा की बेटी सरला कहती है-
”सरला- माँ अब समय बदल रहा है। लड़कियाँ भी अकेले स्वतन्त्र होकर विचरण करती हैं।
यशोदा- नहीं, बिटिया ऐसा नहीं है, इंगलैण्ड, अमेरिका तथा पश्चिमी देशों में तो ऐसा है। कम से कम हमारे देश में ऐसी महिलाओं को आजादी नहीं है।
सरला- पर्दा प्रथा, बाल-विवाह, अनमेल-विवाह आदि तो समस्याएँ इस देश की हैं। सबसे बड़ी समस्या लड़की के विवाह में सौदेबाजी की है। इसे दूसरे शब्दों में दहेज की मांग कहा जाता है, जिसे बुजुर्ग दहेज कहते हैं।
यशोदा- औरत के समान दूसरा सस्ता नौकर नहीं है। यह एक ऐसा नौकर है, जिसे वेतन भी नहीं मिलता है।
सरला- माँ, नारी नौकर कैसे है?
यशोदा- पीहर में वह बोझ समझी जाती है। विवाह के बाद घर का सारा काम करती है। पति के वंश मंे बढ़ोतरी करती है। बच्चों का लालन-पालन करती है। ससुराल में खिले हुए फूल की तरह जाती है, वहाँ वह बुढि़या होकर मर जाती है। कितनी भी सेवा करे, उसे कुछ नहीं मिलता है। सारी उम्र हाड़ पेलती है।
सरला- माँ आपने नारी की अजीब तस्वीर खींची है। अब नई पीढ़ी की नारियाँ, अपनी जिन्दगी खुद जीती हैं।
यशोदा- ऐसा कुछ शहरों में है। गाँवों में तो वही चाल बेढ़ंगी है। कितनी मुस्कराती कलियाँ दहेज के चक्र में पिस जाती हैं।“1
”नारी लक्ष्मी स्वरूप है उसके साथ अच्छा व्यवहार हो तो वह लक्ष्मी स्वरूप बनी रहेगी, अन्यथा वह चण्डी का रूप धारण कर सकती है।“2 नारी महिमा बखान करते हुए कमला यशोदा को एक पद सुनाती है-
नीरसता महँ सदा सरसता जो सरसावे
प्रेम सहित पथ प्याइ, प्यार करि हमें बढ़ावै।।
सेवा, प्यार, दुलार, दया की जो है मूरति
पालन, पोषण स्वजन करत हौवे हर्षित उनति
जननी, भगिनी, कामिनी, बहु सपने महँ देह सुख।
अस नारी निन्दा करै, से खल पावै नरक दुख।“3
आज स्त्रियाँ समस्त क्षेत्रों में पुरुषों से कन्धे से कन्धा मिलाकर आगे बढ़ रही हैं। ”आज लड़कियाँ जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में कन्धा से कन्धा मिलाकर आगे बढ़ रही हैं। कल्पना चावला अंतरिक्षयान मंे वीर गति को प्राप्त हुई। शिक्षा, राजनीति, सेना और पुलिस में भी महिलायंे आगे बढ़ रही हैं।“4
भारतीय समाज में जहाँ नारियों की प्रशंसा की जाती है वहीं निन्दा भी। क्योंकि भौतिकवादी कलयुग में सभी परिस्थितियाँ बदल चुकी हैं- ”किसी कवि ने ठीक ही लिखा है। नारी निंदा नहिं करौ, नारी सुख की खानि, जिन जनमे सुत भीष्म, युव नल हरिचंद समानि। आज विधवायें दुःख पा रही हैं। कई दुलहिनें दहेज का शिकार हो रही हैं। धन्धे बाजों के गिरोह के कपटजाल मंे फँसा रही हैं। पश्चिमी सभ्यता के मायाजाल की चमक-दमक में अपना असली स्वरूप भूल रही हैं।“1 इसी प्रकार बिमला आगे कहती है- ”नारी में ईष्र्या, कलह, कपट आदि कुछ दुर्गुण भी हैं परन्तु उसके वे स्वाभाविक दुर्गुण नहीं हैं, परिस्थितिजन्य हैं। उसके स्वाभाविक गुण करूणा, ममता, लज्जा, त्याग, सेवा, पोषण और संवर्धन है। कबीर आदि संतों ने नारी के कामिनी रूप की निन्दा की है, पतिव्रता की प्रशंसा की है। आजकल इस भौतिकवादी कलियुग में परिस्थितियाँ बदल गई हैं। सास-ननद कर रही कहीं तो पुत्र-वधू पर अत्याचार कहीं वधू ही सास-ननद को देती खड़ी कड़ी फटकार।“2
जब श्रीराम और विश्वामित्र आपस में नारी के नारीत्व छोड़ देने पर वार्तालाप करते हैं तो विश्वामित्र इस संदर्भ में कहते हैं- ”जो नारी नारीत्व को छोड़ देती है और आसुरी भाव को प्राप्त होती है, तो उसको मारने में कोई पाप नहीं है। उसमें नारी के गुण कोमलता, विनय, श्रद्धा, प्रेम और प्रणयभाव नहीं रहते।“3 वास्तव में नारी जागरण के लिए भारतीय समाज संघर्ष कर रहा है ताकि उसे देवी रूप में स्थापना की जाए।“ स्वामी ब्रह्मानन्द सरस्वती भूमा ‘कुरूक्षेत्री’ नारी जाति के परम हितकारी थे।“1
गो-वंश संवर्धन की भावना
गाय को वेद में विश्व की माता कहा गया है। प्राचीनकाल से ही भारत में गो-वंश संवर्धन को बड़ा महत्त्व प्रदान किया है। गाय की उपयोगिता धार्मिक ही नहीं, आर्थिक भी है। श्री जाम्भोजी महाराज के पिता श्री लोहटजी हमेशा गायों की सेवा करते थे। ”यह क्या कह रही हो? मैं गौ माता की सेवा करता हूँ, पक्षियों को चुग्गा डालता हूँ। हवन करता हूँ, अतिथियों और साधुओं की सेवा करता हूँ।“2
आज भारत में गो-वंश संवर्धन के लिए आन्दोलन हो रहे हैं क्योंकि यह एक धार्मिक कत्र्तव्य है। इसी प्रकार श्री जाम्भोजी महाराज के पिता गो-वंश संवर्धन को अपना परम धर्म समझते थे। वे उनकी सेवा करते थे। इस बात का प्रमाण हमें इन पंक्तियों से मिलता है- ”मेरे पीछे से गायों को चारा-भूसा खिलाना, बछड़ों-बछडि़यों की अच्छी तरह देखभाल करना।“3
देश प्रेम की भावना
भगवान श्रीराम ने भी वाल्मीकि रामायण के लंका काण्ड में कहा है- ”जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी।“ अर्थात् मनुष्य का लगाव अपनी जन्मभूमि से अवश्य होता है। जब श्रीराम और विश्वामित्र के बीच वार्तालाप होती है तो दोनों ही में देश प्रेम व राष्ट्र उन्नति का बोध होता है।
विश्वामित्र- ”शास्त्रास्त्र किसी भी राष्ट्र की बाह्य एवं आन्तरिक सुरक्षा एवं शान्ति स्थापित करने के लिए अनिवार्य होते हैं। वे किसी भी देश की शक्ति के प्रतीक हैं। शास्त्र सज्जित वीर योद्धा संग्राम में विजयश्री को प्राप्त करते हैं और जो लोग अस्त्र-शस्त्र के अभाव में निहत्थे होते हैं, वे मारे जाते हैं।
श्रीराम- गुरूदेव सत्यवचन। इसलिए हम चारों भाई बचपन से ही धनुर्धारी हैं।
विश्वामित्र- बच्चो! धनुर्वेद में शिक्षित होना क्षत्रियों का मनोरंजन भी है तथा क्षात्र धर्म के पालन में भी सुविधा रहती है। अतः धनुर्वेदी की सैनिक शिक्षा प्रत्येक नारी और नर को अपनी जानमाल और सम्मान की रक्षा के लिए आवश्यक है।
श्रीराम-गुरूदेव। धनुर्वेद की शिक्षा देना देश के प्रत्येक नागरिक के लिए राष्ट्र की रक्षा करने के लिए आवश्यक है।
विश्वामित्र- वीर भोग्या वसुन्धरा! इस धरती पर बलवान व्यक्तियों का ही जीवन सफल होता है। निर्बल और कायर गीदड़ों की मौत मरते हैं। शक्तिशाली राष्ट्रों का ही इस धरती पर दबदबा रहता है।“1
विश्वकल्याण की भावना
स्वामी ब्रह्मानन्द सरस्वती सम्पूर्ण पृथ्वी को ही अपना घर मानते थे। वे विश्वकल्याण की भावना से ओत-प्रोत थे। ”मैं आत्ममुक्ति की अपेक्षा विश्वकल्याण को अधिक महत्त्व प्रदान करता हूँ।“1 इसी बात को माँ सरस्वती, लक्ष्मी और दुर्गा तीनों देवियों ने समवेत स्वर में वरदान दिया, ”हे वत्स! तुम शुद्ध हो, बुद्ध हो और संसार की माया से मुक्त हो। वापिस जाओ और विश्वकल्याण में लग जाओ।
(तीनों देवियां अन्तर्धान)
स्वगत कथन- मैंने अपने जीवन में पहली बार यह दिव्य दृश्य देखा है। यह कोई स्वप्न तो नहीं था। भगवान की लीला निराली है। मैं आज बड़ा प्रसन्न हूँ। अब विश्वकल्याण ही मेरे जीवन का लक्ष्य है। दिव्य देवियाँ तो यह ओउम् संयुक्त पंचरंगा ध्वज मेरे लिए वरदान स्वरूप छोड़ गई हैं।“2
ऋषि विश्वामित्र भी श्रीराम को यज्ञानुष्ठान की रक्षा के लिए विश्वकल्याण के उद्देश्य से ले जाते हैं।
श्रीराम की भाँति ‘रुकिमणी’ एकांकी में भगवान श्रीकृष्ण भी विश्व-कल्याण की भावना से ओत-प्रोत है। इसी के परिणाम स्वरूप वे 16000 राजकुमारियों को जरासन्ध की कैद से मुक्त कराते हैं।
वीरता की भावना
दुष्ट व्यक्ति शांति और सज्जनता को दुर्बलता समझते हैं। ऋषि विश्वामित्र जब भी यज्ञ किया करते तो राक्षस उसमें बाधा डाल देते थे। इसी कारण ऋषि विश्वामित्र राजा दशरथ से श्रीराम की वीरता को देखते हुए अपने यज्ञानुष्ठान की रक्षा के लिए श्रीराम को लेने आते हैं। इस विषय में राजा दशरथ से विश्वामित्र कहते हैं- ”भूपति! आप पुत्र मोह के वशीभूत न होकर मेरी समस्या का विचार कीजिए। श्रीराम के अतिरिक्त उन बलशाली और छली राक्षसों का दमन करने के लिए इस धरती पर अन्य कोई वीर मुझे दिखाई नहीं देता।“1 इसी प्रकार ऋषि वशिष्ठ भी राम की वीरता के बारे में बताते हैं- ”श्रीराम देवताओं के भी वन्दनीय है। बल-बुद्धि, विद्या तथा युद्ध में इनका सामना त्रिलोक में कोई भी नहीं कर सकता। फिर राक्षस तो उनके लिए तिनकों के समान हैं।“2 इस प्रकार राम अपनी वीरता का परिचय देते हुए यज्ञानुष्ठान की रक्षा करते हैं।
धार्मिक भावना
धर्म उसे कहते हैं जो धारण किया जाए। धर्म के दस लक्षण बताए गए हैं- धृति (धैर्य), क्षमा, दम, अस्तेय, शौच, इन्द्रिय, निग्रह, धी, सत्य, अक्रोध, विद्या।“3 ‘चमत्कार’ एकांकी में मास्टर रण सिंह और भक्त जयकिशन गुरूकुल रक्षा के बारे में बातें करते हुए धर्म के बारे मंे कहते हैं कि, ”इनका धर्म बनता है कि गुरूकुल की सुरक्षा, भरण-पोषण और प्राकृतिक आपदाओं से भी इसकी रक्षा करें।“4
जब विश्वामित्र राजा दशरथ से श्रीराम को मांगने आते हैं तो गुरू वशिष्ठ धर्म की व्याख्या इस प्रकार करते हैं- ”राजन् आप इक्षवाकुवंश में साक्षात् वंश-मर्यादा और धर्म के स्वरूप हो। आप अपने धर्म का पालन करें। अधर्म का भार सिर पर न उठायें।“1 श्रीराम ने मातृत्व से ऊँचा धर्म को स्थान दिया है। श्रीराम कहते हैं- ”धर्म तो क्षमा ही सिखाता है।“2 इसी प्रकार विश्वामित्र भी, ”मैं सत्य, अहिंसा का पालन करना अपना परम धर्म मानता हूँ। पर दुष्टों को यह अच्छा नहीं लगता। उनका विश्वास विध्वंस और हिंसा में है।“3 इसी प्रकार आगे कहते हैं- ”पुत्र! इस दुरंगी दुनिया में संन्यास या ब्राह्मण धर्म और गृहस्थ धर्म में अन्तर है। संन्यास या साधुता शान्त भाव का नाम है। सर्दी, गर्मी, सुख-दुःख, हानि-लाभ, यश-अपयश, जय-पराजय, जीवन-मृत्यु में समत्व भाव रखना संन्यासी का धर्म एवं स्वभाव है।“4 इस धरती पर जब सुख शांति और समृद्धि का राज होता है तब धर्म फलते-फूलते हैं।
भगवान श्रीकृष्ण धर्म पालन हेतु अपने अधर्मी मामा कंस का दमन करते हैं। ”गोपालकृष्ण धर्म पालन के बड़े पक्के बताये जाते हैं। उन्होंने अपने अधर्मी, अत्याचारी मामा कंस का भी दमन कर दिया।“5
भ्रष्टाचार का चित्रण
आज भ्रष्टाचार एक ऐसा दानव है जो पूरे संसार में अपना जाल फैला रहा है। आजकल समाचार पत्रों में भ्रष्टाचार में लिप्त लोगों के किस्से आम हो चुके हैं।
‘भ्रष्टाचार का दानव’ एकांकी में गुरूजी ने भ्रष्टाचार को माया का रूप बताया है। यह समाज में अन्याय को जन्म देता है।
”गुरू जी- जनता को भ्रष्टाचार रूपी भेड़ समझते हैं। कोई भी हो भेड़ की ऊन तो उतारता है।
शिष्य- हाथ जोड़ कर। गुरू जी कई लोग भ्रष्टाचार या रिश्वतखोरी को
सुविधा-शुल्क कहते हैं।“1 भ्रष्टाचार के कारण आज देश खोखला होता जा रहा है। ”देश का दण्ड विधान भ्रष्टाचार के कारण निर्बल हो गया है।“2
चरित्र निर्माण पर बल
वर्तमान में भारतीय जनता का चरित्र का स्तर गिरता जा रहा है। वह भ्रमित होकर कुमार्ग पर चल रहा है उसके हृदय में प्राणियों के प्रति कोई करूणा भाव नहीं है। वह हिंसक होता जा रहा है। भले-बुरे का उसे कोई ज्ञान नहीं है। चरित्र निर्माण सत्संगति से ही संभव है क्योंकि इससे दुराचारी का आचरण शुद्ध हो जाता है। जिस प्रकार मैला वस्त्र जल से धोने से निर्मल हो जाता है उसी प्रकार भगवान के चरणों में आये हुए व्यक्ति का चरित्र बन जाता है। भगवान और अंगुलिमाल के बीच वार्ता इसी बात को स्पष्ट करती है।
”भगवान- कुसंगत से भ्रमित होकर प्रत्येक मनुष्य कुमार्गगामी होता है। वह सत्संगत से सुधर जाता है।
अंगुलिमाल- भगवन्! मेरे अन्तःकरण पर अविद्या की काली छाया छा गई थी। मुझे भले-बुरे का ज्ञान नहीं था।“1
सिद्धांतहीन साधु-संन्यासियों का चित्रण
आज सिद्धांतहीन साधु-संन्यासी देश को पतन की तरफ ले जा रहे हैं। इस प्रकार के साधु संन्यासियों का उद्देश्य सांसारिक वैभव प्राप्त करना है, ज्ञान का प्रकाश फैलाना नहीं। ये स्वयं भटकी हुई जनता को सन्मार्ग पर ले जाने की बजाये स्वयं ही भटके हुए हैं। आज के साधु संन्यासी ज्यादा से ज्यादा दान दक्षिणा लेकर जगत् कल्याण का डंका बजाते हैं। विश्वामित्र इस बारे में कहते हैं- ”जो स्वार्थी है, वह साधु नहीं है।“2
आज के संन्यासी मदिरापान व माँस भक्षण करते हुए गुलछर्रे उड़ाते हैं। गुरू शिष्य की वार्तालाप में इसी का चित्रण हुआ है।
”शिष्य- एक महात्मा श्री गंगा जी के तट पर रह रहे थे। सज्जनों यह कलियुग गृहस्थियों की बात छोड़ो और उनके पैर सदा कीचड़ में रहते हैं।
गुरू जी- फिर क्या हुआ?
शिष्य- महात्मा जी ने कहा यह गंगा पतित पावनी है, अब इसका भी जल निर्मल नहीं रहा। साधु-समाज की क्या कहूँ, इसके भी दो भेद हो गये हैं, एक स्वादु समाज है और एक साधु समाज।
गुरू जी- यह बात, सहजानन्द सही है। जो त्याग-तपस्या के साकार स्वरूप थे, वे आज वातानुकूलित भवनों में रहते हैं, चेलों, चेलियों के साथ विदेशों से खरीदी हुई कारों में बैठकर जहाँ तहाँ योग, ब्रह्मविद्या का उपदेश देते हैं। लोग उनके पीछे नोटों की अटैचियां लेकर घूमते हैं।“1
– डाॅ. मुकेश कुमार