कथा-कुसुम
गुमनाम
उनके नथूने ख़ुशबू से तर-ब-तर हो रहे थे। उनके कानों की लवों से टकरा रही थी सुमधुर राष्ट्र ध्वनि की मिठास, उनके हृदय में उठ रहा था देशभक्ति का अजब ज्वार। हर तरफ शोर पैदा करने वाले लाउडस्पीकर की मधुरता आज देखते बनती थी। फूल से झर रहे थे। देशभक्ति के गीतों की माला से पूरा देश तरंगित। उनके हाथों से तिरंगे की डोर की चहक बस बोलने ही वाली थी। तिरंगे में बँधे विविधवर्णी पुष्प भारत माता के खूबसूरत रेखांकन पर बिखरकर खुशियाँ बाँटने को तैयार थे। रंग-बिरंगे परिधानों के बीच एक दिनी उत्सव का उत्साह चरम पर। तभी एक युवा ने पूछ लिया,
– इन नंग-धड़ंग देहातियों के फोटो का यहाँ क्या काम?
– नहीं जानते?
– नहीं।
– इनके काम सुनोगे, दंग रह जाओगे। इन झारखण्डी वीरों सिद्धो-कान्हूं ने अपने भाई-बहनों संग मिलकर अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिए थे।
– और यह? तीर लेकर चट्टान पर पाँव रखकर खड़ा है, कौन है ?
– पच्चीस की उम्र में बलिदान होनेवाला वीर, भगवान बिरसा मुंडा। सबने हँसते हुए शहादत दी थी।
– इन सबका नाम तो सुना नहीं।
– देश को नए इतिहास की जरूरत है दोस्त। चाहिए पुनर्लिखित इतिहास!
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शहीद
अंग्रेजों के लिए काल बन गए थे श्याम लाल। देशवासियों पर किए जा रहे अंग्रेजों के अत्याचारों से त्रस्त होकर उन्होंने हथियार उठा लिया था। घर-परिवार छोड़ बाघों-भालुओं, हाथियों के बीच जंगलों की शरण में। एक अंग्रेज अफसर ने निरपराधों के साथ महिलाओं पर भी हाथ डाला था।
एक दिन उन्होंने साथियों संग उस गाड़ी पर हमला बोल दिया, जिसमें मय परिवार वह अफसर तफरीह के लिए जा रहा था। अफसर धराशायी। कुछ साथी बेइज्जती का बदला लेने के लिए ब्रिटिश महिलाओं की ओर बढ़े।
श्याम लाल की एक कड़कदार आवाज ने सबके पाँव बाँध लिये-
नहीं! यह कार्य हमारे साथियों को शोभा नहीं देता।
– लेकिन उन्होंने हमारी…!
– …नहीं, तो नहीं! ये हमारे संस्कार नहीं हैं। ऐसे बदला नहीं लेंगे हम।
और यह ‘ नहीं ‘ निर्णय बन गया। बाद में वे फाँसी पर चढ़ा दिए गए।
एक दिन देशवासियों की ख़ुशहाली की कल्पना में डूबे श्याम लाल यहाँ हमारे स्वतंत्र देश में पधारे। सब तरफ मार-काट मची थी। स्त्रियों को बेइज्जत किया जा रहा था। रेप के बाद जलाया जा रहा था। कहीं घर के बाहर, कहीं घर के अंदर। समाज पूरी तरह से नंगा हो रहा था।
वे लौटने लगे। बुदबुदाहट उनके शर्मिंदा होठों पर-
उस समय नहीं, वास्तव में आज फाँसी मिली है हमें।
– अनिता रश्मि