क्रिस्टी समझ गई
“जल है तो जीवन है।
तो बच्चों हम सब मिलकर शपथ लेते हैं कि पानी की बरबादी नहीं करेंगे और पानी को संरक्षित करने के पूरे प्रयास करेंगे, यही बात औरों को भी समझाएंगे”
स्कूल के सामूहिक शपथ कार्यक्रम के बाद छुट्टी हो गई और सारे बच्चे उछलते कूदते घर को चल दिए।
क्रिस्टी, कक्षा सात की छात्रा थी, थोङी लापरवाह, अलमस्त ।
समझदार पर समझने की कोशिश न करती। वही करती जो उसका मन करता।
घर आते ही स्कूल बैग एक तरफ फेंक कर कूलर के सामने बैठ गई। माँ ने आवाज दी “बेटा हाथ मुंह धोकर कपड़े बदल लो। तुम्हारे लिए मैंगो शेक बनाया है।”
“ठीक है मम्मा ” क्रिस्टी स्नानघर की तरफ जाते जाते बुदबुदाई “कितनी गर्मी है .. नहा ही लेती हूँ”।
क्रिस्टी बाल्टी में पानी चलाकर कपड़े लेने चली गई और टीवी के एक दृश्य में अटकी रह गई मम्मी ने आवाज लगाई फिर से तब क्रिस्टी स्नानघर की ओर गयी बाल्टी कब की भर चुकी थी और पानी फैले जा रहा था।
मम्मी बड़बड़ा रही थी ।
क्रिस्टी लापरवाह थी । ये रोज का काम था । कभी कहीं का नल खुला छोड़ देती कभी पहले से पानी चला देती और अक्सर ही नहाने में काफी पानी फैलाती।
मम्मी -पापा समझा समझा कर थक चुके थे। पर क्रिस्टी को तो जैसे फरक ही न था किसी के कहने सुनने का।
टीवी के सामने सोफे पर बैठी क्रिस्टी अब मैंगो जूस पी रही थी और अचानक मम्मी ने आकर चैनल बदल दिया। अब कार्टून की जगह न्यूज चैनल ने ले ली । जगह जगह सूखे की खबर आ रही थी । कैसे फसल सूख रही हैं कैसे पीने तक का पानी लोगों को उपलब्ध नहीं हो रहा। पानी की विकराल समस्या से जूझ रहे हैं बहुत से राज्य और शहर।
मम्मी ने कहा “अगर समय रहते आंख न खुलीं लोगों की तो हर राज्य में यही हाल होगा । हो सकता है हमारे शहर में भी पानी न रहे।”
क्रिस्टी की तरफ देखकर कह रही थीं।
अचानक दरवाजे की घंटी बजी और क्रिस्टी ने दरवाजा खोला। सामने वाले बिट्टू की मम्मी बाल्टी लेकर खङी थीं।
उनके यहाँ पानी खतम हो गया था और जाने कैसे सबमर्सिबल से भी पानी नहीं आ रहा था।
क्रिस्टी ने आंटी की बाल्टी में नल खोला पर ये क्या पानी तो आ ही नहीं रहा था।
आंटी परेशान सी लौट गईं।
कुछ देर में क्रिस्टी की मम्मी बाजार से आईं , वो परेशान दिख रही थीं । उन्होंने बताया कि अचानक सारा पानी सूख गया है और कहीं भी पानी नहीं आ रहा।
उन्होंने क्रिस्टी से पूछा कि उसने फ्रिज में सारी बोटल भरकर रखीं हैँ या नहीं।
पर क्रिस्टी तो लापरवाह ठहरी । एक भी बोटल नहीं भरी थी उसने और जो थीं वो भी खतम कर चुकी थी।
अब तो क्रिस्टी भी घबरा गई। उसे बहुत जोरों से प्यास भी लगी थी। वो बोटल लेकर पड़ोस वाली सिम्मी के घर गई पर वहाँ भी पानी का यही हाल था। क्रिस्टी की हालत देखकर सिम्मी की मम्मी ने अपने फ्रिज से आखिरी बची बोटल निकाली और दो ढक्कन पानी उसके मुंह में डाल दिया।
पर ये क्या? इससे प्यास बुझी नहीं बल्कि और तेज हो गई। ऊपर से गर्मी और पसीने से बुरा हाल हो रहा था।
परेशान क्रिस्टी घर लौट रही थी तभी नुक्कड़ की तरफ शोरगुल सुनाई दिया। लोग उस तरफ बरतन लिए भागे जा रहे थे।
पता चला नुक्कड़ के हैंडपंप में अब भी कुछ पानी है।
क्रिस्टी भी अपनी बोटल लेकर उस ओर भागी पर वहाँ तो अपार भीड़ थी।
काफी देर जद्दोजहद करने के बाद क्रिस्टी ने बोटल भर ही ली और सुकून की सांस लेती ऐसे तैसे भीङ चीरकर बाहर निकलने लगी।प्यास के मारे उसका गला सूख गया था वो जल्दी से पानी पीना चाहती थी।उसने बोतल को मुंह से लगाया ही था कि एक आदमी उसको धकेलता हुआ निकल गया और क्रिस्टी की बड़ी मुश्किल से भरी बोटल फैल गई।
क्रिस्टी के दुख की सीमा न रही। वो वही बैठकर जोर जोर से रोने लगी।
तभी उसे कंधे पर किसी का हाथ महसूस हुआ और आवाज आई” क्रिस्टी उठो बेटा क्या हुआ? रो क्यों रही हो ?
क्रिस्टी ने झट से आंख खोल दीं।ये क्या ? मम्मी थी सामने और वो सोफा पर लेटी थी।
” तुम टीवी देखते देखते सो गईं थीं बेटा । क्या कोई बुरा सपना देखा है?”
“ओह तो ये सपना था” । क्रिस्टी की जान में जान आई।
“मम्मी बुरा नहीं अच्छा सपना देखा है ” क्रिस्टी ने कहा।
इस सपने ने उसकी आंखे जो खोल दी थीं। सपने में ही सही उसे पानी की कीमत पता चल चुकी थी। पानी को बरबाद न करने का मन ही मन अपने से वादा कर रही थी।
– अंकिता