कथा-कुसुम
कहानी : फोन का बिल
शानू को आज तक समझ में नहीं आया कि फोन का बिल देखकर कमल की पेशानी पर बल क्यों पड़ जाते हैं? सुबह-शाम कुछ नहीं देखते। शानू के मूड की परवाह नहीं। उन्हें बस अपनी बात कहने से मतलब है। शानू का मूड खराब होता है तो होता रहे।
आज भी तो सुबह की ही बात है। शानू चाय ही बना रही थी कि कमल ने टेलीफोन का बिल शानू को दिखाते हुए पूछा, ‘शानू! यह सब क्या है?’
शानू ने बालों में क्लिप लगाते हुए कहा, ‘शायद टेलीफोन का बिल है। क्या हुआ?’ कमल ने झुंझलाते हुए कहा, ‘यह तो मुझे पता है और दिख भी रहा है, पर कितने हज़ार रुपयों का है, सुनोगी तो दिन में तारे नज़र आने लगेंगे।‘
शानू ने माहौल को हल्का बनाते हुए कहा, ‘वाह! कमल, कितना अजूबा होगा न कि तारे तो रात को दिखाई देते हैं, दिन में दिखाई देंगे तो अपन तो टिकट लगा देंगे अपने घर में दिन में तारे दिखाने के।‘
कमल बोले, ‘मज़ाक छोड़ो, पूरे पांच हज़ार का बिल आया है। फोन का इतना बिल हर महीने भरेंगे तो फ़ाके करने पड़ेंगे एक दिन।‘
शानू ने कहा, ‘बात तो सही है तुम्हारी कमल, पर जब फोन करते हैं न तो समय हवा की तरह उड़ता चला जाता है। पता ही नहीं चलता कि कितने मिनट बात की।‘ कमल ने कहा, ‘बात संक्षिप्त तो की जा सकती है।‘
उसने कहा, ‘कमल, फोन पर संक्षिप्त बात तक तो तुम ठीक हो, पर एक बात बताओ, बात एकतरफा तो नहीं होती न! सिर्फ़ अपनी बात कहकर तो फोन बन्द नहीं किया जा सकता। सामनेवाले की भी बात उतने ही ध्यान से सुनना होता है जितने ध्यान से उस बन्दे ने सुनी है।‘
कमल ने कहा, ‘तुम्हारे कुल मिलाकर वही गिने-चुने वही चार दोस्त और सहेलियां है। रोज़ उन्हीं लोगों से बात करके दिल नहीं भरता तुम्हारा?’
शानू ने नाराज़गी ज़ाहिर करते हुए कहा, ‘क्या मतलब? क्या रोज़ दोस्त बदले जाते हैं? अरे कमल भाई, दोस्त/सहेली तो दो-चार ही होते हैं।‘ कमल ने कहा, ‘तुम्हारी तो हर बात न्यारी है लेकिन मैं एक बात कह देता हूं कि अगले महीने इतना बिल नहीं आना चाहिये।‘ कहकर कमल तेज़ तेज कदमों से अपने कमरे में चले गये।
शानू सधी हुई चाल से धीरे-धीरे कमल के कमरे में गई। कमल अपने ऑफिस के मोबाईल से किसीसे बात कर रहे थे। शानू इंतज़ार करती रही कि कब कमल मोबाईल पर बात करना बन्द करें और वह अपनी बात कहे।
शानू कभी खाली नहीं बैठ सकती और इंतज़ार…. उसे किसी सज़ा से कम नहीं लगता। सो वह वॉशिंग मशीन में कपड़े डालने का काम करने लगी।
दस मिनट बाद कमल फोन से फारिग़ हुए और शानू से बोले, ‘ कुछ काम है मुझसे? या खड़ी-खड़ी मेरी बातें सुन रही थीं।‘
शानू ने कहा, ‘यार, तुम्हारी बातें सुनने लायक होती हैं क्या? वही लेन-देन की बातें या कहानी की बातें। फ़लां कहानी अच्छी है तो क्यों और अच्छी नहीं है तो क्यों।‘ इस पर कमल ने कहा, ‘बन्दर क्या जाने अदरख़ का स्वाद।‘
इस पर शानू ने कहा, ‘मैं तो यह कहने आई थी कि टेलीफोन का बिल तो मैं देती हूं। तुम परेशान क्यों हो रहे हो। जितने का भी बिल आयेगा वह देना मेरी जि़म्मेदारी है और अभी तक तो मैं ही दे रही हूं।‘
कमल ने कहा, ‘देखो, मैं जिस पोजीशन का ऑफिसर हूं, उसमें मेरे घर के फोन का बिल मेरा ऑफिस भरेगा, पर उसकी सीमा है। तो तुम उस सीमा तक ही बात करो फोन पर ताकि जेब से कुछ खर्च न करना पड़े।‘
शानू ने कहा, ‘यह तो कोई लॉजिक की बात नहीं हुई। हर जगह पैसा क्यों आ जाता है बीच में? कभी दिल के सुकून की भी बात किया करो। जि़न्दगी में पैसा ही सबकुछ नहीं है।‘
इस पर कमल बोले, ‘पैसे की कद्र करना सीखो। रेत की मानिंद कब हाथ से फिसल जायेगा, पता भी नहीं चलेगा।‘
रोज़-रोज़ फोन करके प्रेम और स्नेह ज्य़ादा नहीं हो जाता।‘ इस पर शानू ने कंधे उचकाते हुए कहा, ‘भई देखो, मैं तो जब फोन करूंगी जी भरकर बात करूंगी। तुम्हारा ऑफिस बिल भरे या न भरे।‘
कमल ने चिढ़कर कहा, ‘याने तुम्हारे सुधरने का कोई चांस नही है?’ शानू ने कहा, ‘मैं बिगड़ी ही कब हूं जो सुधरने का चांस ढूंढा जाये।मैंने कभी रोका है तुमको किसीसे बात करने के लिये?
‘देखो शानू, मेरे ऑफिशियल फोन होते हैं। उनमें ही मैं अपने निजी फोन भी कर लेता हूं। तुम्हारी तरह हमेशा फोन से चिपका नहीं रहता।‘ कमल ने उलाहनेभरे स्वर में कहा।
शानू ने अंगड़ाई लेते हुए कहा, ‘मुझे अपने दोस्तों से, भाई-बहनों से फोन पर बात करना अच्छा लगता है। दूर से भी कितनी साफ़ आवाज़ आती है। लगता है कि पास से ही फोन कर रहे हों। आई लव इट।‘
कमल होठों ही होठों में कुछ बोलते हुए आंखें बन्द कर लेते हैं। शानू हंसते हुए कहती है, यार, हम दोनों कमाते हैं, अग़र आधा-आधा भी अमाउंट दें तो पांच हज़ार का बिल भर सकते हैं। तुम भी अपने दोस्तों से बात करो और मैं भी। क्यों मन को मारते हो?’
शानू ने बात को आगे बढ़ाते हुए कहा, ‘देखो, तुम तो फिर भी ऑफिशियल टूर में अपने लोगों से, भाई बहनों से मिल आते हो। मेरा तो ऐसा भी कोई चक्कर नहीं है।’
कमल ने एक आंख खोलते हुए कहा, ‘तुम मुझे चाहे कितना ही पटाने की कोशिश करो, मैं न तो पटनेवाला हूं इस फोन के मामले में और न ही एक भी पैसा देनेवाला हूं। ये तुम्हारे फोन का बिल है, तुम जानो और तुम्हारा काम। मेरा काम ऑफिस के मोबाईल से हो जाता है।‘
शानू ने कहा, ‘मेरा ऑफिस तो सिर्फ़ एक हज़ार देता है, उससे क्या होगा? मैं तो इस पचड़े में पड़ती ही नहीं। किसीकी मेहरबानी नहीं चाहिये। फिर फोन जैसी तुच्छ चीज़ के लिये तुमको क्यों पटाउंगी भला?’
इस पर कमल ने पलटवार करते हुए कहा, ‘तुम बहस बहुत करती हो। अपनी ग़लती मान लो तो कुछ बिगड़ जायेगा क्या?’ अब शानू भी चिढ़ गई और बोली, ‘फोन का वह बिल तुम्हारा ऑफिस देगा, तुम नहीं। लेकिन चिन्ता नको, चिक-चिक भी नहीं। मैं अपने फोन का बिल, अपने नोटों से दे सकती हूं।‘
यह बात सुनते ही कमल ने अपनी खुली आंख फिर से बन्द कर ली। शानू तसल्ली से सेब काटने चली गई। अपनी बात कहकर वह हल्की हो गई थी। क्यों उन बातों को ढोया जाये जो ब्लडप्रेशर हाई करें।
शानू के ऑफिस के डॉक्टर भी शानू के इस नॉर्मल ब्लडप्रेशर पर आश्चर्य करते हैं। एक दिन डॉक्टर ने कहा भी, ‘शानूजी, आप इतनी खुश कैसे रह लेती हैं। यहां तो जो भी आता है उसे या तो हाईपर टेंशन होता है, शुगर, बढा हुआ वज़न।‘
शानू ने प्रश्नवाचक आंखों से डॉक्टर को देखा तो डॉक्टर ने कहा, ‘मेरा मतलब है कि आप अभी तक फिट कैसे हैं? यहां तक कि मैं डॉक्टर हूं, मुझे हाई ब्लड प्रेशर है। रोज़ दवा लेता हूं।‘
शानू ने हंसते हुए कहा, ‘मेरा काम है टेंशन देना। देखिये, सीधी सी बात है, जिस बात पर मेरा वश नहीं होता, मैं सोचती ही नहीं। जो होना है वह तो होना ही है।‘
शानू ने अपने पहलू को बदलते हुए कहा, ‘अब यदि मैं चाहूं कि मेरे पति फलां से बात न करें, पर यदि उनको करना है तो वे करेंगे ही। चाहे छिपकर करें या सामने करें। तो क्यों अपना दिमाग़ खराब करना?’
डॉक्टर ने कहा, ‘कमाल है, आप जि़न्दगी को इतने हल्के रूप में लेती हैं? यू आर ग्रेट।‘ शानू ने कहा, ‘और नहीं तो क्या? मैं क्यों दिल जलाऊं? मेरे दिल के जलने से सामने वाले को फर्क़ पड़ना चाहिये।‘
डॉक्टर ने हंसते हुए कहा, काश, सब आप जैसा सोच पाते।‘ शानू ने भी हंसते हुए कहा, ‘सब स्वतंत्र देश के स्वतंत्र लोग हैं। मैंने किसीका कोई ठेका तो ले नहीं रखा।‘
डॉक्टर भी मेरी बात सुनकर हंसे और बोले, ‘एक हद तक आप ठीक कहती हैं। पति पत्नी भी एक-दूसरे के चौकीदार तो नहीं हैं न। यह रिश्ता तो आपसी समझदारी और विश्वास का रिश्ता है।‘
इस पर शानू ने कहा, ‘यदि किसी काम के लिये दिल गवाही देता है तो ज़रूर करना चाहिये लेकिन एक दूसरे को भुलावे में नहीं रखना चाहिये।‘
डॉक्टर ने कहा, ‘आज आपसे बात करके बहुत अच्छा लगा। मुझे लगा ही नहीं कि मैं मरीज़ से बात कर रहा हूं।‘ अरे शानू भी किन बातों में खो गई। बड़ी ज़ल्दी अपने में खो जाती है।
आज कमल बड़े अच्छे मूड में हैं। दफ्तर से आये हैं। शानू ने चाय बनाई और दोनों ने अपने-अपने प्याले हाथ में ले लिये।
यह शानू का शादी के बाद से नियम है कि वह और कमल सुबह और शाम की चाय घर में साथ-साथ पीते हैं चाहे दोनों में झगड़ा हो, अनबोलाचाली हो पर चाय साथ में पियेंगे।
कमल ने कहा, ‘ देखो शानू, एक काम करते हैं। मेरे ऑफिस के लिये मोबाईलवालों ने एक स्कीम निकाली है उसके तहत पत्नी के लिये मोबाईल फ्री है।‘ यह सुनकर शानू के कान खड़े हो गये। वह बोली, यह मोबाईल कंपनी का क्या नया फंडा है?’
‘पहले पूरी बात सुन लो। हां, तो मैं कह रहा था कि मेरा तो पोस्टपेड है। तुम यह नया नंबर ले लो, इसका जो भी बिल आयेगा, मैं चुका दूंगा।‘ कमल ने शानू का हाथ अपने हाथ में लेते हुए कहा।
अपनी बात पर प्रतिक्रिया न होते देखकर आगे बोले, ‘लैण्डलाईन नंबर कटवा देंगे। हम दोनों के पास मोबाईल है ही। बच्चों के साथ कॉन्फरेंसिंग सुविधा ले लेंगे, किफायत में सब काम हो जाया करेगा। फोन का बिल भी नहीं भरना पड़ेगा।‘
पता नहीं, शानू भी किस मूड में थी, उसने हामी भर दी। कमल ने भी शानू को सेकेण्ड थॉट का मौका दिये बिना दूसरे ही दिन नया नंबर लाकर दे दिया। अब कमल आश्वस्त हो गये थे कि शानू के फोनों का उनके पास हिसाब रहेगा, बिल जो उनके नाम आयेगा।
शानू को सपने में भी ग़ुमान नहीं था कि उसके फोनों का हिसाब रखा जायेगा। वह मज़े से फोन करती रही। जब एक महीने बाद बिल आया तो अब कमल की बारी थी।
कमल ने फिर एक बार फोन का बिल शानू के सामने रखते हुए कहा, ‘देखो शानू, तुम्हारा बिल रुपये 2000/- का आया है। क्या तुम फोन कम नहीं कर सकतीं? मेरा ऑफिस मुझे मेरे फोन का बिल देगा। तुम्हारा बिल तो मुझे देना है।‘
शानू को अचंभा हुआ और उसने कहा, ‘लेकिन कमल, यह तुम्हारा ही प्रस्ताव था। उस समय फोन करने के पैसों की सीमा तुमने तय नहीं की थी। ऐसा नहीं चलेगा। पहले बता देते तो मैं नया नंबर लेती ही नहीं।‘
शानू ने कमल को एक रास्ता सुझाते हुए कहा, ‘मेरा पुराना नंबर तो सबके पास है। एक काम करती हूं, अपने पुराने नंबर पर मैं फोन रिसीव करूंगी और तुम्हारे दिये नंबर से फोन कर लिया करूंगी।‘
कमल ने अपनी खीझ को छिपाते हुए कहा, दो नंबरों की क्या ज़रूरत है? बात तो वही ढाक के तीन पातवाली रही न!’ शानू ने इस बात को आगे न बढ़ाते हुए चुप रहना ही बेहतर समझा।
अगले दिन शाम को कमल ऑफिस से आये और बोले, ‘शानू, मैंने तुम्हारे मोबाईल का बिल भर दिया है पर प्लीज़, इस महीने ज़रा ध्यान रखना।‘
शानू ने कुछ नहीं कहा। उसने तय कर लिया था कि उसे मोबाईल प्रकरण में निर्णय लेना है, कोई बहस नहीं करना है और इस विषय में बात करने के लिये रविवार सर्वोत्तम दिन है1
रविवार को सुबह के नाश्ते के बाद शानू ने कहा, ‘कमल, एक काम करो। तुम अपना यह नंबर वापिस ले लो। मैं इस नंबर के साथ ख़ुद को सहज महसूस नहीं कर रही।‘
कमल ने कहा, ‘क्या प्रॉब्लम है? मैंने बिल भर दिया है।‘ कमल को शानू की यह आदत पता है कि सामान्य तौर पर वह किसी भी बात को दिल से नहीं लगाती है। वह ‘रात गई, बात गई’ वाली कहावत में विश्वास रखती है। तो अब अचानक क्या हो गया?
शानू ने कहा, ‘बात बिल भरने की नहीं है। मुझे पोस्टपेड की आदत नहीं है और फिर इसमें अन्दाज़ा नहीं रहता और बिल ज्य़ादा हो जाता है। मुझे प्रीपेड ज्य़ादा सूट करता है। उसमें मुझे पता रहता है कि कितना खर्च हो गया है और मैं अपनी जेब के अनुसार खर्च कर पाती हूं।‘
बहुत दिनों बाद शानू ने ख़ुद को शीशे में देखा। इस मोबाईल ने उसके चेहरे को निस्तेज कर दिया था। आंखों के नीचे काले घेरे बन गये थे। कपड़े भी कैसे पहनने लगी थी वह। उसने ख़ुद को फिर से मस्त तबियत की और हरफ़नमौला बनाने का निर्णय लिया और इसके साथ ही अब शानू इस बात का ध्यान रखने लगी थी कि कमल के सामने फोन न किया जाये। इस तरह अनजाने में शानू में छिपकर फोन करने की आदत घर करती जा रही थी। अब वह फोन करते समय घड़ी देखने लगी थी।
वह समझ नहीं पा रही थी कि इस फोन के मुद्दे को कैसे हल किया जाये। कमल का ध्यान अक्सर शानू के मोबाईल पर लगा रहता कि कब बजता है और शानू कितनी देर बात करती है।
अब हालत यह हो गई थी कि मोबाईल के बजने पर शानू आक्रांत हो जाती थी और कमल के कान सतर्क। यदि वह कान में बालियां भी पहन रही होती तो किसी न किसी बहाने से कमल कमरे में आते और इधर-उधर कुछ ढूंढ़ते और ऐसे चले जाते कि मानो उन्होंने कुछ देखा ही नहीं।
शानू को आश्चर्य होता कि कमल को यह क्या होता जा रहा है? उनकी आंखों में वह शक के डोरे देखने लगी थी। शानू सोचती कि जो ख़ुद को शानू का दोस्त होने का दावा करता था लेकिन अब वह धीरे-धीरे टिपिकल पति के रूप में तब्दील होता जा रहा था। मोबाईल जी का जंजाल बनता जा रहा था।
शानू को इस चूहे-बिल्ली के खेल में न तो मज़ा आ रहा था और न ही उसकी इस तरह के व्यर्थ के कामों में कोई दिलचस्पी थी। शानू शुरू से ही मस्त तबियत की लड़की रही है।
अपने जोक पर वह ख़ुद ही हंस लेती है। सामनेवाला हैरान होता है कि जिसे जोक सुनाया गया वह तो हंसा ही नहीं। अब इसमें शानू को क्या दोष? अग़र सामनेवाले को जोक समझ ही नहीं आया। उसकी ट्यूबलाइट नहीं चमकी तो वह क्या करे।
तो इस मस्त तबियत की शानू इस मोबाईल को लेकर क्यों मुसीबत मोल ले? कोई उसकी हंसी क्योंकर छीने जो उसे अपने मायके से विरासत में मिली है। वह अपने मायके में बड़ी है। वह हमेशा डिसीज़न मेकर रही है, क्या वह अपने मोबाईल के विषय में डिसीज़न नहीं ले सकती?
दूसरे महीने कमल ने फिर शानू को मोबाईल का बिल दिखाया। यह बिल रुपये 1500/- का था। कमल ने कहा, ‘देखो शानू, इस महीने 500 रुपये तो कम हुए। ऐसे ही धीरे-धीरे और कम करो। ज्य़ादा से ज्य़ादा रुपये 600/- का बिल आना चाहिये।‘
अब शानू की बारी थी। वह बोली, ‘देखो कमल, हम दोनों वर्किंग हैं। हमारी ज़रूरतें अलग अलग हैं और होनी भी चाहिये। मेरी हर ज़रूरत तुम्हारी ज़रूरत से बंधे, यह कोई ज़रूरी नहीं है। हम लाईफ पार्टनर हैं, मालिक-सेवक नहीं।‘
कमल ने चश्मा लगाते हुए कहा, ‘मैंने ऐसा कब कहा? मैं तो किफा़यत की बात कर रहा हूं।‘ शानू ने कहा, ‘यार, कितनी किफ़ायत करोगे? किसीके बोलने-चालने पर बंदिश लगाने का क्या तुक है?’ …और फिर मैं तो फोन का बिल दे रही थी। कभी किसीको रोका नहीं फोन करने से। पढ़नेवाले बच्चे हैं, वे भी फोन करते हैं। मुझे तो तुम्हारे ऑफिस से मिलनेवाले मोबाईल की तमन्ना भी नहीं थी। तुम्हारा प्रस्ताव था।‘
कमल ने बिना किसी प्रतिक्रिया के अपने चिरपरिचित ठंडे स्वर में कहा, ‘तुम इतनी उत्तेजित क्यों हो जाती हो? ठंडे दिल से मेरी बात पर सोचो, बिना वज़ह फोन करना छोड़ दो।‘
यह सुनकर शानू को अच्छा नहीं लगा और बोल पड़ी, ‘हमेशा वजह से ही फोन किये जायें, यह ज़रूरी तो नहीं।‘ कमल ने कहा, ‘यही तो दिक्कत है। सब अपने में मस्त हैं। उल्टे तुम उनको डिस्टर्ब करती हो।‘
शानू ने कुछ कहना चाहा तो कमल ने हाथ के इशारे से रोकते हुए कहा, ‘कई बार लोग नहीं चाहते कि उन्हें बेवज़ह फोन किया जाये। उनकी नज़रों में तुम्हारी इज्ज़त कम हो सकती है।‘
शानू ने गुस्से से कहा, ‘ बात को ग़लत दिशा में मत मोड़ो, बात मोबाईल के बिल के भुगतान की हो रही है। मेरे दोस्तों में मुझ जैसा साहस है। यदि वे डिस्टर्ब होते हैं तो यह बात वे मुझसे बेखटके कह सकते हैं। उनके मुंह में पानी नहीं भरा है।‘
कमल ने पलटवार करते हुए कहा, ‘किसकी कज़ां आई है जो तुमसे यह बात कहेगा। तुम्हें किसी तरह झेल लेते हैं। तुम्हें विश्वास न हो तो आजमाकर देखो, एक हफ्ते किसीको फोन मत करो, कोई तुम्हारा हाल नहीं पूछेगा। तुम तो मान न मान मैं तेरा मेहमान वाली बात करती हो।‘
शानू ने कहा, ‘कमल, तुम मुझे मेरे दोस्तों के खिलाफ़ नहीं कर सकते। मुझ पर इन बातों का कोई असर नहीं होता। मेरे दोस्तों से बात करने की समय सीमा तुम क्योंकर तय करो?’ कमल ने चिढ़ते हुए कहा, ’कभी मेरे रिश्तेदारों भी बात की है?’ इस पर शानू ने तपाक से कहा, ‘कब नहीं करती, ज़रा बताओगे? वहां भी तुमको एतराज़ होता है कि फलां से बात क्यों नहीं की।‘ इस पर कमल हुंह करके चुप हो गये।
शानू अपनी रौ में बोलती गई, ‘कमल, मुझे अपने दोस्त और सहेलियां बहुत प्रिय हैं। वे मेरे आड़े वक्त मेरे साथ खड़े होते रहे हैं। मेरी दुनियां में नाते रिश्तेदारी के अलावा भी लोग शामिल हैं और वे मेरे दिल के करीब हैं। उनके और मेरे बीच दूरी लाने की कोशिश मत करो।‘
शानू ने कमल के कान के पास जाकर सरग़ोशी की, ‘तुम्हीं बताओ, क्या तुम मेरे कहने से अपने दोस्तों को फोन करना छोड़ सकते हो? नहीं न? फिर सारे ग़लत सही प्रयोग मुझ पर ही क्यों?’
कमल ने कहा, ‘तुमने कभी सोचा है कि तुम्हारी मित्रता को लोग ग़लत रूप में भी ले सकते हैं? कम से कम कुछ तो ख़याल करो।‘
अब तो शानू का पारा सातवें आसमान पर था, बोली, ‘मैंने कभी किसीकी मित्रता पर कमेंट किया है? कुछ दोस्त तो खुलेआम दूसरे की बीवियों के साथ फिल्म देखते हैं, घूमते हैं, उन्हें कोई कुछ नहीं कहता? मेरे फोन करने मात्र पर इतना बखेड़ा?’
कमल हैरान थे शानू की इस मुखरता पर। वह बोलती रही, ‘मैं अपने मित्रों के साथ न तो घूमती हूं और न उनसे किसी तरह का फायदा उठाती हूं, इस बात को कान खोलकर सुन लो। मेरे जो भी मित्र हैं, वे पारिवारिक हैं।‘
कमल ने कुछ कहने की कोशिश की तो शानू ने उसे अनसुना करते हुए कहा,’और तुम उनसे बेखटके बात करते हो जबकि अपने दोस्तों के साथ तुम चाहो तभी बात कर सकती हूं। कैसे मेरी बात बीच में काटकर बात की दिशा बदल देते हो, कभी ग़ौर किया है इस बात पर?’
कमल ने मानो हथियार डालते हुए कहा, ‘मेरी एक बात तो सुनो।‘ शानू ने कहा, ‘नहीं, आज तुम मेरी बात सुनो। तो हां, मैं कह रही थी किमेरे दिल पर क्या गुजरती होगी जब सबके सामने तुम ऐसा करते हो। मैंने कभी कुछ कहा तुमसे?’
….दूसरी बात, मुझे परिवार की मर्यादा का पूरा खयाल है। मुझे क्या करना है, कितना करना है, कब करना है, मुझे पता है और मैं अपने मित्रों का रिप्लेसमेंट नहीं ढूंढती और फिर कई मित्र तो मेरे और तुम्हारे कॉमन मित्र हैं। ‘
कमल को इस बात का अहसास नहीं था कि बात इतनी बढ़ जायेगी। उन्होंने शानू का यह रौद्र रूप कभी नहीं देखा था। वह अपने मित्रों प्रति इतनी संवेदनशील है, उन्होंने सोचा भी नहीं था। कमल का मानना है कि जि़न्दगी में मित्र बदलते रहते हैं। इससे नई सोच मिलती है।
उन्होंने बात संभालते हुए कहा, ‘देखो शानू डियर, यह मेरा मतलब कतई नहीं था। मित्रों का दायरा बढ़ाना चाहिये। मैं फोन करने के लिये इन्कार नहीं करता पर हर चीज़ लिमिट में अच्छी लगती है।‘
शानू ख़ुद को बहुत अपमानित महसूस कर रही थी। उसने तुनककर कहा, ‘मित्रों का दायरा बढ़ाना चाहिये, यह मुझे पता है पर पुराने दोस्तों की दोस्ती की जड़ों में छाछ नहीं डालना चाहिये। मैं अपनी दोस्ती में चाणक्य की राजनीति नहीं खेल सकती। जो ऐसा करते हैं, वे जि़न्दगी में अकेले रह जाते हैं।‘
कमल ने कहा, ‘बात फोन के बिल के पेमेंट की हो रही थी। तुम भी बात को कहां से कहां ले गईं। तुम इतना गुस्सा हो सकती हो, मुझे पता नहीं था। समय पर मैं ही काम आउंगा।‘
शानू को लगा कि मानो उसे चेतावनी दी जा रही है। वह कमल के इस व्यवहार पर हैरान थी। कोई इंसान इतना कर्क्यूलेटिव कैसे हो सकता है? क्या पैसा इतना महत्वपूर्ण है कि उसके सामने सबकुछ नगण्य है?
आज शानू की सोच जैसे थमने का नाम ही नहीं ले रही थी। क्या दोस्ती जैसे पाक़-साफ रिश्ते में बनियों जैसा गुणा-भाग करना उचित है? पुरुष महिला से दोस्ती निभा सकता है, पर महिला को पुरुष मित्रों से मित्रता निभाने के लिये कितने पापड़ बेलने पड़ते हैं? कमल की तो इतनी महिला मित्र हैं, शानू ने हमेशा सबका आदर किया है, घर बुलाया है।
जो शामें शानू घूमने के लिये रखती है वे शामें उसने कमल के मित्रों के लिये डिनर बनाने में बिता दी हैं। क्या कभी कमल ने इसे महसूस करने की ज़रूरत महसूस की है कि शानू की अपनी भी जि़न्दगी है, उसे भी अपनी जि़न्दगी जीने का पूरा अधिकार है।
अग़र कमल अपने दोस्तों के साथ खुश रहते हैं, शानू से उनके लिये मेहनत से डिनर बनवाते हैं तो फिर शानू के मित्रों को कमल सहज रूप से क्यों नहीं ले पाते? क्या हर पुरुष पत्नी के मामले में ऐसा ही होता है? शानू बड़ी असहज हो रही थी।
उसका वश चलता तो उस निगोड़े मोबाईल को खिड़की से बाहर फेंककर चूर-चूर कर डालती, पर इसमें कमल का दिया नंबर है। शानू ने ख़ुद को संयत किया। उसे कोई तो निर्णय लेना था। वह ग़लत बात के सामने हार माननेवाली स्त्री नहीं थी।
उसे याद है कि इसी सच बोलने की आदत के चलते उसे अपने कॉलेज का बेस्ट स्टूडेन्ट के पदक से हाथ धोना पड़ा था। यह दीग़र बात थी कि उस पदक को पानेवाली लड़की एक सप्ताह बाद अपने प्रेमी के साथ भाग गई थी और कॉलेज की प्राचार्या पछताने के अलावा कुछ नहीं कर पाई थीं।
जब रविवार आया तब नाश्ते के समय उसने कमल के सिम को वापिस कर दिया। उसके बाद उसके होठों पर जो बाल-सुलभ मुस्कान आई वह स्वयं ही उस पर बलिहारी हो रही थी।
– मधु अरोड़ा