कथा-कुसुम
कहानी- एक इच्छा की मौत
और आखिर वो इच्छा मर ही गई, कई दिनों तक जीवन और मृत्यु के बीच लटकती उस इच्छा ने दम तोड़ ही दिया। जब कोई आदमी मर जाता है तो लोग शोकाकुल होकर कहते हैं कि वो पूरा हो गया, पर इस इच्छा के बारे में ये भी नहीं कह सकते क्योंकि जो इच्छाऐं पूरी हो जाती है वो मरती नही बल्कि अमर हो जाती है, मरती केवल वही इच्छाएँ हैं जो पूरी नहीं होती, अधूरी इच्छाएँ यानी यह इच्छा भी बिना पूरा हुए ही मर गई।
इधर सामने ही एक शोक सभा रखी गई है, सी. एम. साहेब भी आ रहे हैं अरे नहीं। यह सभा इस इच्छा की मृत्यु के शोक में नही रखी गई, ये कौन सा किसी बड़े राजनेता की इच्छा थी, न ही ये किसी राजनीतिक पार्टी की महत्वाकांक्षा थी कि इसकी मौत पर कोई चिंतन बैठक की जाती। ये तो एक साधारण इंसान की इच्छा थी, इसकी मौत की खबर तो किसी को कानों-कान भी न लगी, तो फिर सी. एम. साहब के कानों तक कहाँ पहुंचती! सी. एम. साहब को तो शायद ये भी नहीं पता होगा कि साधारण इंसान की भी कुछ इच्छाएँ हो सकती हैं। ये जानकर तो वो हैरान ही होगें। भला साधारण इंसान की क्या इच्छा हो सकती है! खैर अगर हो भी तो ऐसी इच्छा ने दम तोड़ना ही था, साधारण इंसान की इच्छा! सी. एम. साहब तो किसी बड़े इंडस्ट्रियलिस्ट के निधन पर रखी गई शोक सभा को संबोधित करने के लिऐ आ रहे हैं।
जिसकी ये इच्छा थी उसके पिता ने एक बार कहा, “हम लोग बेहद साधारण हैं।”
पुत्र ने उत्तेजित होते हुऐ कहा,”मगर हमारी इच्छाऐं तो असाधारण हैं।”
पिता ने कुछ नहीं कहा, बस एक ठंडी सांस ली, शायद उसकी भी किसी समय कोई असाधारण इच्छाएँ रही हों,शायद उसके पिता ने भी कभी उससे यही कहा हो और उसने भी यही जवाब दिया हो, शायद कितनी ही पीढ़ियों से ये परपंरा ज्यूं की त्यूं कायम रखने वालो में से वो भी एक हो, साधारण इंसान भी बस! , मुझे समझ नही आता कि उनका इच्छाएँ पैदा करने का हक ही क्या और वो भी ऐसी असाधारण इच्छाएँ!
इस इच्छा ने जब सुना कि वो असाधारण है तो वो फूली ना समाई। तब वो इच्छा अल्हड़ थी, उसके अंग-अंग से यौवन टपकता था। एक दम नई नवेली दुल्हन की तरह। तब अगर कोई भी उसे देखता तो अपनाने को तैयार हो जाता। इच्छा अल्हड़ थी, वह खुश थी, इतरा रही थी पर वो ये न समझ पाई कि वो बेशक एक असाधारण इच्छा है पर जिसकी वो इच्छा है और वह सब भी जो उसे अपनाना चाहते हैं सभी साधारण इंसान हैं।, ये साधारण लोग वही हैं जिनकी महक ही कुछ अलग होती है, गलीज़ लिसलिसी सी महक, दूर से ही इनकी पहचान हो जाती है, वही भीड़ इकट्ठा करने वाले, और इनके नाम? अजी छोड़िये साहेब, इनके नाम में क्या रखा है, क्योंकि नाम से इनकी पहचान नहीं हो सकती, जिनकी पहचान नाम से हो वो साधारण नहीं रहते! हां पहचान के कई अन्य चिन्ह है। ये वही लोग हैं जिनके दम पर बड़ी बड़ी राजनीतिक पार्टियाँ अपनी राजनीति की रोटियाँ सेंकती है और इनकी रोटी से खेलती हैं। वही लोग जिनके कंधो पर बंदूक रख कर अलग-अलग धार्मिक गुट दूसरो के सीने छलनी करते हैं, वही लोग जो पूंजीपतियो के लिए बड़ी-बड़ी फैक्ट्री और दफ्तरों को चलाने में अपना जीवन व्यतीत करते हैं, वही लोग जिनके काबू में रखने के लिए तरह-तरह के कानून बनाए जाते हैं। वही लोग जिनके मन में देश प्रेम पैदा करने के लिए दुश्मन देश का खौफ पैदा किया जाता है। ये लोग पैदा सिर्फ मरने के लिए होते हैं या फिर अपनी जैसी और भीड़ पैदा करने के लिए! वही लोग जिनका इस्तेमाल आसानी से किया जा सकता है। राजशाही ने इनका इस्तेमाल किया, अब लोकराज वाले अपने ढंग से और समाजवाद वाले अपने ढंग से! शायद आने वाले वक्त में कोई नई शासन प्रणाली आए तो वो अपने ढंग से इनका इस्तेमाल करे। ये लोग पैदा ही इसके लिए होते है, और पावर में बैठे लोगों को वैसे भी इन से जरा अलग और बच के रहना चाहिए कम्बख्तछूत की तरह अपना असर दूसरों पर छोड़ देते हैं। अब इस इच्छा को ही देख लीजिए, कभी असाधारण रही यह इच्छा भी अपनी मौत से पहले इन लोगों के बीच रहकर बिल्कुल साधारण सी हो गई थी, अगर यह इच्छा भी समय रहते इन लोगों से दूर हो जाती तो अपनी विलक्षणता न गंवाती।
लीजिए बात चल रही थी इस इच्छा की मौत की और हम पहुंच गए, इन कमबख्त गलीज़ साधारण लोगों पर! आप सोच रहे होगें कि मैनें अब तक आपको इस इच्छा के बारे में बताया क्यों नहीं? पता नहीं क्या ससपैंस पैदा करना चाहता हुं मैं? नहीं, नहीं ऐसी कोई बात नहीं! मैं कौन सा कोई जीरो जीरो सैवन के उपन्यास की कहानी कह रहा हूँ, न ही मै किसी अंग्रेजी कहानीकार की तरह क्लाईमैक्स में कोई नाटकीय परिवर्तन की बात कर रहा हूँ। मैं तो बस एक साधारण इंसान की इच्छा की बात कर रहा हूँ, जिसकी मौत हो गई है। पर असल में यह इच्छा है कौन सी?
यह इच्छा तो कोई भी वह इच्छा हो सकती है जो साधारण लोग पैदा करते ही रहते हैं। ये किसी बेरोज़गार की नौकरी हासिल करने की इच्छा हो सकती है, ये किसी भूख से बिलखते बच्चे की खाना खाने की इच्छा हो सकती है, ये इच्छा उन हजारों अजन्मी बच्चियों की जनम लेने की इच्छा हो सकती है जिन्हें उनकी मां की कोख में सिर्फ इसलिए कत्ल कर दिया गया क्योंकि वो लड़की के रूप में जनम लेना चाहती थीं। ये इच्छा गोलियों से छलनी किसी आतंकवादी की दोबारा आम जिंदगी जीने की इच्छा भी हो सकती है, ये इच्छा दहेज की वजह से जली एक बहू की वापस निर्मल त्वचा पाने की हो सकती है, ये इच्छा ईराक और सीरिया के युद्ध में मारे गए हजारों नागरिकों की जीने की इच्छा हो सकती है। ये हिरोशिमा और नागासाकी में ऐटोमिक दंश झेलते लोगों की निरोग होने की इच्छा हो सकती है। ये इच्छा बेसलान में मारे गऐ प्यास से तड़पते उन बच्चों की पानी पीने की इच्छा हो सकती है। ये इच्छा धार्मिक दंगो में जिंदा जलाए गए मासूम लोगों की ज़िन्दगी जीने की इच्छा हो सकती है। ये इच्छा लाखों करोड़ों साधारण इंसानों की असाधारण रूप में पैदा होने वाली कोई भी साधारण सी इच्छा हो सकती है जो हर पल कहीं न कहीं पैदा होती है और मरती रहती है।
लीजिए बातों-बातों में पता ही नहीं चला सी. एम. साहब तो आकर चले भी गए। उन्हें न तो इस इच्छा की मौत के बारे में पता चलना था, न ही पता चला! चलिए अब आप भी चाहें तो इस इच्छा की गली-सड़ी बदबूदार लाश से जरा किनारा कर और नाक पर हाथ रख के गुजर सकते हैं, और फिर ऐसी इच्छाओं की मौत पर क्या शोक मनाना जो साधारण इंसान की इच्छा थी और हर रोज, हर पल, हर घड़ी कहीं न कहीं मरती रहती है!
– हरदीप सबरवाल