स्थानीय लोगों से सूचना पाकर पुलिस जंगल के उस स्थान तक पहुँच चुकी थी, जहाँ वारदात हुई थी। कुछ फोटोग्राफर उस स्थान की वीडियोग्राफी कर रहे थे व फोटो खींच रहे थे। जंगल में पशु चराने आए ग्रामीणों ने देवदार के पेड़ से एक युवक की लाश लटकी हुई देखी थी। जिस महिला ने सबसे पहले लाश लटकी हुई देखी, वह वहीं बेहोश होकर गिर पड़ी थी। उसकी चीख सुनकर लोग वहाँ इकट्ठा हुए थे और पुलिस को इस घटना की सूचना दी। देवदार के पेड़ से झूलती वह लाश उस क्षेत्र के वन मंडल के वनरक्षक की थी।
पुलिस आसपास की झाड़ियों में किसी सुराग की खोज में लगी थी। थोड़ी ही दूर उन्हें एक तेज धार हथियार भी मिला था। उस जगह को गौर से देखने पर स्पष्ट हो रहा था कि वहाँ कुछ लोगों के बीच हाथापाई जरूर हुई होगी।
ताजा कटे हुए देवदार के पेड़ों की पत्तियाँ झाडि़यों में जैसे छिपाई गई थी। ऐसा लग रहा था कि पेड़ को काटकर व उनके सलीपर बनाकर वनकाटू माफिया ले जा चुका था। स्थानीय लोगों ने पहले भी कई दफा पुलिस थाने में जंगल से पेड़ों को काटे जाने की शिकायत भी की थी। मगर वन महकमे के अफसरों के कान पर कभी जूं तक नहीं रेंगी।
लाश को स्थानीय लोगों की सहायता से पेड़ से नीचे उतारा गया। कुछ लोगों की आँखें नम थीं। कुछ लोगों का बयान दर्ज करने के बाद लाश को पोस्टमार्टम के लिए क्षेत्रीय अस्पताल में भेज दिया गया।
“बहुत अच्छा लड़का था जी।” पास के गाँव के प्रधान ने एक पुलिस अधिकारी से कहा।
“अपने काम के प्रति ईमानदार था लड़का, गर्म खून था…”।
“आप चिंता न करें, हम जल्द ही इस गुत्थी को सुलझा लेंगे। बस आप लोगों का सहयोग चाहिए।” पुलिस अधिकारी ने कहा।
उनकी बातें सुनकर स्थानीय लोगों की आपस में खुसर-फुसर शुरू हो गई थी। उस वनरक्षक का नाम होशियार सिंह था।
अगर होशियार सिंह वनरक्षक पद पर कार्यरत नहीं भी होता तो भी वह मेहनत करके एक कामयाब इंसान जरूर बन जाता। वह एक फौजी भी बन सकता था। उसकी कद काठी अच्छी तो थी ही वह दिल से एक सच्चा देश प्रेमी था। उसे अपने देश, प्रदेश व अपने गाँव से बहुत प्यार था। अगर वह किसी दूसरे सरकारी पद पर भी रहा होता तो एकदम साफ छवि का जिम्मेदार अफसर होता।
होशियार सिंह का गाँव पहाड़ की खूबसूरत चोटी पर बसा था। गाँव में कुल बीस-बाईस घर थे। गाँव से पीछे पड़ने वाले पहाड़ बर्फ से लकदक रहते। उन पहाड़ों पर कोई नहीं जाता। दिखने में वो पहाड़ पास लगते मगर थे बहुत दूर। उन पहाड़ों से आने वाली नदी गाँव के पहाड़ की तलहटी से होकर बहती थी। जब होशियार सिंह छोटा था तो अपने घर की खिड़की से घंटों उस नदी को बहते हुए देखता। बरसात के दिनों में तो नदी अपने पूरे शबाब पर होती थी। नदी का पानी मटमैला हो जाता व शोर करता हुआ बहता। बड़े-बड़े पत्थरों के बीच अठखेलियाँ करती नदी की धाराओं को देखना होशियार सिंह को बहुत सुहाता था।
गाँव के साथ एक घना जंगल लगता था। जंगल में देवदार, बान व चीड़ के पेड़ थे। उस जंगल में कई तरह के जंगली जानवर भी खूब पाए जाते थे। जाड़ों में जब हिमपात होता तो पूरा गाँव बर्फ की चादर से ढक जाता। घने जंगल के मध्य से होकर रास्ता पहाड़ी पर बने ग्राम देवता के मंदिर तक पहुंचता था। पहाड़ी का ऊपरी भाग समतल था। पूर्व की ओर ग्राम देवता का प्राचीन दो मंजिला पैगोडा शैली में बना भव्य लकड़ी का मंदिर था। मंदिर की दीवारों और दरवाजों पर खूबसूरत नक्काशी की गई थी। देव नव ग्रहों, लक्ष्मी, विष्णु, गणेश जी आदि के सुंदर चित्र लकड़ी पर नक्काशी कर के बनाए गए थे। मंदिर के खुले प्रांगण के साथ ही एक कम गहरी झील थी। बरसात के मौसम में पूरा मंदिर परिसर और झील धुंध में डूब जाया करते थे। पूरा वातावरण बहुत शांतिमय हो जाता था मानो देवलोक से देवतागण उतरकर तपस्या करने लगे हो।
होशियार सिंह अपने माँ-बाप की इकलौती संतान था। दादी ने ही उसका भरण पोषण किया था। वह दादी के साथ उनके हर काम में हाथ बंटाता था। होशियार सिंह ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा गाँव के विद्यालय से ही पूरी की थी। वह पढ़ाई में अच्छा तो था ही साथ ही खेती-बाड़ी का काम भी बड़ी कुशलता से करता था। घर के साथ लगने वाले खेतों में वह अकेला ही आलू बीज देता था। सुबह-सुबह गोबर का किल्टा उठाकर खेतों में डाल आता। दादी के साथ जंगल व चरांदों में भेड़ बकरियाँ चराने चला जाता। उनके पास बीस-पच्चीस भेड़ बकरियाँ थीं। यही उनकी आय का मुख्य स्त्रोत भी थी।
होशियार सिंह बचपन से ही प्रकृति से काफी गहरे से जुड़ा था। इसकी एक वजह दादी का परोक्ष रूप से उसे प्रकृति माँ को संरक्षित करने के लिए प्रेरित करना भी था। दादी से प्रकृति को उसने हमेशा प्रकृति माँ का संबोधन पाते हुए ही सुना था। प्रकृति माँ यानी सभी जीवों व वनस्पतियों को सुरक्षा प्रदान करने वाली व सबको समान रूप से प्यार करने वाली। वह प्रकृति माँ में अपनी स्वर्गीय माँ की झलक पाता। उसे जब भी अपनी माँ की याद आती, वह जंगल की तरफ चला आता था। उसे हवा में झूमते ऊंचे पेड़ों को देर तक देखते रहना अच्छा लगता था। ऊंची शाखाओं पर बैठे पंछी मानो उसके दोस्त थे। वो रंग-बिरंगी तितलियों को फूलों पर बैठते हुए बड़े चाव से देखता। उसे पता होता था कि किस पेड़ के कोटर में तोता-मैना अपने नन्हें बच्चों के साथ रह रहे हैं। वह छिपकर हिरनी को अपने शावकों के साथ लाड लड़ाते व पुचकारते हुए देखा करता। उसने नाले के पास वाली खोह में सूअर के बच्चों को उनकी माँ के पयोधरों से रसपान करते हुए भी देखा था। उसे पता था कि गौरैया ने किस पेड़ की शाखाओं पर घोंसला बनाकर अपने पंख हीन बच्चों को छुपाया है। उसे खबर रहती थी कि मादा खरगोश ने जंगल में किस चट्टान के पीछे बच्चों को जन्मा दिया है। काले बादलों को देखकर नाचने वाले जंगल के खूबसूरत मयूरों के साथ मानो उसकी पहचान हो गई थी। वह जमीन पर पंजों के निशान देखकर ही बता देता था कि मीरग कितने दिन पहले यहाँ से गुजरा होगा। उसकी सुबह ही तब होती जब मंदिर के पास वाली घनी झाडि़यों में छिपे जंगली मुर्गों का बांग देना शुरू होता। उसे कोयल की कूक व पपीहे की पीहू-पीहू सुनना बहुत अच्छा लगता था।
होशियार सिंह को जंगल में पाए जाने वाले लगभग सभी वृक्षों के वैज्ञानिक नाम पता थे। उसे पेड़- पौधों, झाडि़यों, बेल-बूटों व औषधियों की यह पहचान अपनी दादी की वजह से हो गई थी। जब भी दादी के साथ जंगल में भेड़ बकरियाँ चराने जाता तो तरह-तरह की वनस्पतियों और जीव जंतुओं को गौर से देखता। उसे दादी से पता चला था कि कौनसी पेड़ की छाल का प्रयोग करके मलेरिया का इलाज किया जाता है। उसे जब भी कहीं चोट लगती वो घाव पर एक औषधीय पत्तों वाली जड़ी बूटी का लेप बनाकर लगा देता। उसे पहाड़ अच्छे लगते थे, पेड़-पौधे खूब भाते, खिलते हुए फूल, चमकती हुई कलियाँ उसका मन मोह लेती थीं। रसपान करते भँवरे, फूलों पर मंडराती तितलियाँ उसके चित को आकर्षित करती थी। वह कई दफा ऊंचे पेड़ों को गले लगाने के लिए अपनी दोनों बाजुएं उनके मोटे तनों के इर्द-गिर्द फैलाकर उनसे लिपट जाता था।
उसे अपनी पाठ्य पुस्तक में उत्तर प्रदेश के चमोली जिले में 1970 में हुए चिपको आंदोलन से बहुत प्रेरणा मिली थी। वह उन ग्रामीण महिलाओं को किसी वीरांगना से कम नहीं समझता था, जो अपनी जान की परवाह किए बगैर पेड़ों को बचाने के लिए भ्रष्ट तंत्र व वन विभाग के ठेकेदारों से भिड़ गई थीं। पेड़ों को बचाने के लिए ग्रामीण महिलाएँ खुद पेड़ों के तनों से लिपट गई थी। होशियार सिंह हर बरसात में खाली जगहों पर नए पौधे जरूर लगाता और दूसरों को भी प्रेरित करता। उसने अपने दादी से सुन रखा था कि यह जंगल व जीव-जंतु ईश्वर की सौगात हैं। इन्हें संभाल कर रखना व इनका संरक्षण करना हमारी जिम्मेदारी भी है और कर्तव्य भी।
वह दादी से कई बार पूछता की दादी इस जंगल की रक्षा कौन करता है? इस में रहने वाले जीव जंतुओं को कौन संभालता है? उसके इन मासूम सवालों को सुनकर दादी उसे बताती कि ‘जंगलों की रक्षा बनशीरा देव स्वयं करते हैं। वह हर पेड़ पौधे, हर जीव जंतु की हिफाजत करते हैं। कौन आदमी जानबूझकर जंगलों में आग लगाता है, कौन पेड़-पौधों को अपने लालच के लिए नाजायज काटता है, कौन जंगल में रहने वाले मासूम जीव जंतुओं का शिकार उनके मांस, खाल, सीगों आदि के लिए करता है बनशीरा देव यह सब जानते हैं और ऐसा करने वाले दुष्ट आदमियों को वो सजा भी देते हैं। चाहे फिर वो सजा किसी को बीमारी के तौर पर हो या फिर गरीबी की मार के रूप में।’
दादी ने बताया कि पिछले साल हरिया ने देवदार के पेड़ चोरी-छिपे काटे थे, तब से उसके घर में बरकत नहीं होती है। कभी उसकी बीवी बीमार रहती है तो कभी उसका डंगर मर जाता है। उसने अपनी लाडी को अच्छे-अच्छे अस्पतालों में भी दिखाया मगर कोई फायदा नहीं। खूब पैसा भी बहाया पर सब व्यर्थ। थक हारकर जब वह ग्राम देवता के गूर के पास गया तो गूर ने बनशीरा देव का प्रकोप बताकर उसे इसका समाधान बताया। तब जाकर देव बनशीरा का क्रोध शांत हुआ था।
होशियार सिंह के मन में अक्सर ये सवाल उठता था कि देव बनशीरा कहाँ रहते होंगे? कैसे दिखते होंगे? उनसे कैसे मिला जा सकता है?
दादी अपने लाडले के इन सवालों के जवाब देते हुए कहती कि देव बनशीरा का कोई एक ठिकाना नहीं होता। वह तो जंगलों की देखभाल करते हुए घूमते रहते हैं। कहा जाता है कि देवता अक्सर सफेद चोले में देखे गए हैं। ऊंचे लंबे कद के।
मासूम होशियार का बड़ा मन होता कि काश देव बनशीरा से कभी मुलाकात हो तो घंटों बैठकर उनसे बातें करूँ। उनसे हर पेड़-पौधे, पशु-पक्षी के बारे में ढेर सारी जानकारी लूँ। उनके साथ कभी इस डाल तो कभी उस डाल घूमते हुए पूरे जंगल का भ्रमण करूँ।
पोस्टमार्टम की रिपोर्ट के बाद वनरक्षक होशियार सिंह का शव उसके गाँव पहुंचा दिया गया था। पूरा गाँव चीख-पुकार से भर गया था। सबकी आँखों का तारा होशियार सिंह इस तरह सबको छोड़कर चला जाएगा, किसी ने नहीं सोचा था। दादी माँ रोते-रोते कई बार बेहोश हो चुकी थी। ‘क्या बिगाड़ा था मेरे बच्चे ने किसी का, जो उसके साथ ऐसा किया!!
हे भगवान! इससे पहले मुझे ही मौत क्यों नहीं आ गई।’
हर कोई दादी के शब्द सुनकर रो पड़ा। कुछ युवा गुस्से में आकर ‘पुलिस प्रशासन मुर्दाबाद’ और ‘होशियार सिंह अमर रहे’ के नारे भी लगा रहे थे।
सबने नम आँखों से अपने चहेते होशियार सिंह को अंतिम विदाई दी। उस दिन बादल बरसने लगे थे। पूरा गाँव मातम में डूबा था। पहाड़ इस घटना से शोक संतप्त थे। जंगल का हर पेड़, हर पौधा चुपचाप खड़ा था मानो अपने दोस्त की मौत से सुन्न हो गया हो। पशु-पक्षी मानो अपनी भाषा में अपने साथी होशियार सिंह को बुला रहे थे। होशियार के रूप में एक पर्यावरण प्रेमी को खोकर देव बनशीरा भी जरूर रोए होंगे।
एक बार की बात है जब होशियार सिंह दादी माँ के साथ जंगल में भेड़-बकरियाँ चराने गया था। हल्की-हल्की बारिश शुरू हो गयी थी। दादी के कहने पर होशियार सिंह भेड़-बकरियों को घर की तरफ खदेड़ने लगा। जल्दी घर पहुंचने के लिए जैसे ही होशियार सिंह बकरियों को भगाने लगा, अचानक उसका पैर फिसला और वह गहरी खाई की तरफ लुढ़कने लगा। उसकी चीख सुनकर दादी भी घबरा गई। होशियार सिंह ने महसूस किया कि जैसे किसी ने उसे बाजू से पकड़कर गहरी खाई में गिरने से बचा लिया था। वह खाई से सुरक्षित स्थान पर आ चुका था। अब बूंदा-बांदी तेज होने लगी थी। होशियार सिंह ने देखा कि थोड़ी दूर कोई व्यक्ति जंगल के रास्ते से बंसी बजाता हुआ जा रहा है। उस व्यक्ति ने मखमली श्वेत रंग का चोला पहन रखा है। उसके सर पर गुलाबी रंग का साफा है। जैसे ही होशियार सिंह उसकी तरफ बढ़ा, वह व्यक्ति और दूर जाता हुआ दिखाई दिया। होशियार सिंह दौड़ता हुआ उस व्यक्ति की तरफ भागा मगर उसके पास पहुंचते ही वह व्यक्ति कहीं ओझल हो गया।
अब बारिश और तेज हो चुकी थी। होशियार सिंह ने यह बात घर जाकर दादी को बताई। दादी ने कहा कि बच्चा तेरी जान आज देव बनशीरा ने बचाई है। तू कितना भाग्यशाली है रे!
12वीं कक्षा तक की पढ़ाई गाँव के स्कूल से पूरी करने के बाद होशियार सिंह आगे की पढ़ाई दस किलोमीटर दूर कस्बे के कॉलेज से पूरी करने गया। उसके पसंदीदा विषय थे- जीव विज्ञान और वनस्पति विज्ञान।
समय बीतता गया। कॉलेज पूरा करने के बाद होशियार सिंह के बाकी दोस्त शहरों में नौकरी की तलाश करने निकल गये। मगर होशियार सिंह दादी को घर में अकेला भला किसके सहारे छोड़ता! उन्हीं दिनों प्रदेश वन विभाग की तरफ से वनरक्षकों के रिक्त पदों को भरने हेतू आवेदन पत्र आमंत्रित किए गये थे। होशियार सिंह ने भी अपना आवेदन पत्र जमा किया।
शारीरिक रूप से होशियार तो पहले से ही फिट था। लिखित परीक्षा में भी उसने अच्छा प्रदर्शन किया। दादी के आशीर्वाद और अपनी मेहनत के बूते होशियार सिंह वनरक्षक बन गया।
पोते की सफलता के बाद दादी की खुशी का तो ठिकाना ही नहीं रहा। हर घर जाकर उसने मिश्री और बताशे बांटे थे। ग्राम देवता को मीठी खीर अर्पित की थी। दादी इसलिए भी खुश थी क्योंकि होशियार सिंह की तैनाती पास ही के इलाके के वनमण्डल में हुई थी। उनके गाँव का जंगल भी उसी वन मंडल के अंतर्गत आता था। वनरक्षक की वर्दी में होशियार सिंह खूब जंचता था। वह अपना काम पूरी मेहनत से करता।
होशियार सिंह बहुत खुश था क्योंकि अब उसका शौक ही उसकी आमदनी का स्रोत बनने जा रहा था। समय के साथ-साथ उस इलाके का बहुमुखी विकास होने लगा। गाँव तक पक्की सड़कें पहुंच चुकी थीं। बस सुविधाएँ बढ़ा दी गई थी। विधायक ने पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए उस जंगल के बीचो-बीच एक विश्रामगृह बनवाने का काम सरकार से शुरू करवा दिया था। मुख्य सड़क से एक लिंक रोड निकाला गया था, जो जरूरत से अधिक चौड़ा था। विश्राम गृह के लिए निर्धारित जगह तक सड़क पहुंचाने में न जाने कितने ही हरे-भरे पेड़ों की बलि दे दी गई। काम बहुत तेजी से चल रहा था। जेसीबी मशीनें पल भर में पेड़ों को उखाड़कर फेंक रही थी। वहाँ के जंगली जानवरों का बसेरा उजड़ने लगा था। होशियार सिंह को यह सब देखकर बहुत बुरा लग रहा था। उस काम का ठेका काजलू ठेकेदार ने ले रखा था। वह एक नंबर का घपलेबाज था। बहुत-से काले काम उसके नाम दर्ज थे। मगर उसकी पहुंच इतनी थी कि कोई भी उसके विरुद्ध आवाज नहीं उठा पाता था।
एक दिन जंगल में गश्त करते हुए होशियार सिंह ने तीन लोगों को ताजा काटे गए पेड़ के स्लीपर बनाते हुए देखा। जैसे ही होशियार सिंह ने उन्हें आवाज दी वे लोग वहाँ से भाग खड़े हुए। होशियार सिंह ने जब पता किया तो पाया कि वो काजलू ठेकेदार के लोग थे, जो चोरी-छिपे जंगल से पेड़ काटकर उनके स्लिपर बना रहे थे और यह सब पंचायत के प्रधान धन्नालाल के इशारे पर हो रहा था। प्रधान और काजलू ठेकेदार ने जंगल से पेड़ों का अवैध कटान कर स्लीपर बेचने का गोरखधंधा शुरू किया था। इस धंधे से स्थानीय विधायक को भी मोटी पत्ती पहुंचाई जा रही थी। होशियार सिंह को पूरा माजरा समझते देर नहीं लगी। अपने प्यारे जंगल को इस तरह उजड़ता देख अब उसे और भी दुख हो रहा था। उसने मन ही मन ठान लिया था कि प्रधान और ठेकेदार के धूर्त इरादों को कभी भी पूरा नहीं होने देगा।
विश्रामगृह का काम तेजी से चल रहा था। एक दिन गश्त करते हुए होशियार सिंह जब वहाँ पहुंचा तो उसने देखा कि प्रधान धन्नालाल भी वहीं मौजूद था। होशियार सिंह ने पिछले दिनों की उस घटना के बारे में आपत्ति जताते हुए कहा कि अगर विश्रामगृह निर्माण के एवज में अनावश्यक पेड़ों को काटने का काला धंधा जारी रखा तो वह उनकी शिकायत प्रदेश के वन विभाग के बड़े अफसर से कर देगा।
प्रधान और ठेकेदार ने होशियार सिंह को बहलाने, फुसलाने व लालच देने की पूरी कोशिश की। मगर होशियार सिंह अपने उसूलों पर टिका रहा। होशियार सिंह के तेवर देखकर प्रधान और ठेकेदार आग बबूला हो उठे। कुछ दिन तक प्रधान व ठेकेदार ने अपने काले कारनामों को रोकने के बाद फिर से पेड़ों को कटवाना शुरू कर दिया। हर रोज कई-कई पेड़ काटकर उनके सलीपर बनवाकर मिट्टी से भरे टिपरों में छिपाकर लकड़ी को शहर भेजा जाने लगा।
एक दिन जंगल में घूमते हुए होशियार सिंह का पैर किसी चीज से टकराया और वह जमीन पर गिरते-गिरते बचा। उसने देखा कि जिस चीज से वह लड़खड़ाकर गिरने वाला था वह पेड़ का एक कटा हुआ तना था, जिसे पेड़ की कटी हुई टहनियाँ डालकर छिपाया गया था। यह देखकर होशियार सिंह को बहुत गुस्सा आया। गुस्से में तमतमाया होशियार सिंह उस जगह पहुंचा, जहाँ पर निर्माण कार्य चल रहा था।
“तुम लोग ऐसे नहीं मानोगे। लगता है मुझे तुम्हारी करतूतों को बड़े अधिकारी को बताना ही पड़ेगा। यह जंगल क्या तुम्हारे बाप की जागीर है कि जब चाहो जैसे चाहो प्रयोग किया।” होशियार सिंह का गुस्सा शब्दों में फूट पड़ा था।
“अबे ओए! ज्यादा मत बोल। क्या कर लेगा तू? चुपचाप अपनी नौकरी कर। तू जानता नहीं हमें। ठेकेदार काजलू आंखें दिखाते हुए बोला।
“धमकी देते हो? मैं आज ही तुम्हारी शिकायत करूँगा। पुलिस अधिकारी को भी पत्र लिखूंगा।”
अचानक होशियार सिंह को पीछे से किसी ने पकड़ा। उसकी साँसें उखड़ने लगी थीं। ये कोई और नहीं पंचायत प्रधान धन्नालाल था।
छटपटाहट में होशियार सिंह जमीन पर गिर पड़ा। उतने को ठेकेदार काजलू जल्दी से झपटते हुए होशियार सिंह के सीने पर जा बैठा। निर्दोष होशियार सिंह की गर्दन पर अब दोनों ने कसाव बढ़ा दिया था। कुछ ही देर में उसके शरीर में हरकत होना बंद हो गई। जालिमों ने निर्दोष होशियार सिंह पर कोई तरस नहीं खाया। धन्नालाल और काजलू ने होशियार सिंह की लाश को जंगल के दूसरे हिस्से में देवदार के पेड़ की एक मजबूत शाखा से लटका दिया। घर पर बूढ़ी दादी उस रात होशियार सिंह का इंतजार करती रही। गाँववालों ने उसे समझाया कि शायद होशियार सिंह कहीं चला गया हो। कल तक वापिस आ जाएगा। मगर दादी को पता था कि उसे बिना बताए होशियार सिंह कहीं नहीं जाता।
दादी को किसी अनहोनी की आशंका होने से दिल बैठा जा रहा था।
अभी सुबह जंगल में पशु चराने गए लोगों ने होशियार सिंह की लाश को पेड़ से लटकते हुए देखा था। एक ईमानदार लड़के की मौत का गम सबको था, प्रधान और ठेकेदार को छोड़कर। कुछ दिनों बाद दोनों ने फिर से अपना काला धंधा शुरू कर दिया था। अब तो उन्हें रोकने वाला भी कोई नहीं था। हर रोज कई पेड़ों की बलि दी जाने लगी थी। जंगली मुर्गों, सूअरों की रोज दावत उड़ाई जा रही थी। शराब की बोतलें जंगल में यहाँ-वहाँ बिखरी पड़ी थी।
एक शाम को प्रधान, ठेकेदार व उनके आदमी जंगल में जंगली जानवरों के मांस की दावत उड़ा रहे थे, दारू पी रहे थे। अचानक जंगल में जोरदार आवाजें आना शुरू हुई। मानो कोई चीख रहा हो। मानो कई-कई पेड़ एक साथ गिरने लगे हो। उनके दो आदमियों ने किसी श्वेत वस्त्रधारी को भी देखा था। मगर प्रधान व ठेकेदार ने ये कहकर उनकी बात की खिल्ली उड़ाई कि शराब के नशे में तुम लोगों को कुछ भी दिखने लग जाता है।
फिर कुछ दिन बाद ऐसा हुआ कि पूरे इलाके के लोगों के होश उड़ गये। जंगल में उसी स्थान पर जहाँ होशियार सिंह की लाश पेड़ से लटकी मिली थी, वहीं प्रधान, ठेकेदार और उसके आदमियों की लाशें लटकी हुई मिलीं।
बच्चा-बच्चा हैरान था कि आखिर इतने धाकड़ लोगों को कोई कैसे मार सकता है? आखिर किसने उनको मार कर लटकाया होगा?
कहीं बूढ़ी दादी ने अपने पोते की मौत का बदला तो नहीं लिया? मगर वह वृद्धा ऐसा काम कैसे कर सकती थी? क्या आपस में रंजिश से ही हुआ मगर फिर इससे फायदा किसको होगा?
क्या देव बनशीरा ने ही अपने जंगल को उजाड़ने वाले लालची लोगों को उनके पापों की सजा दी थी? ये रहस्य आज तक कोई नहीं जान पाया।
मगर कई लोगों का कहना था कि प्रकृति ने इंसाफ किया है। देव बनशीरा ने न्याय किया है। देवता की जय हो।
उस घटना के बाद जंगल फिर से फलने-फूलने लगा था।
(यह कहानी हिमाचल प्रदेश के मंडी जिले की एक सत्य घटना से प्रेरित है।)
– मनोज कुमार शिव