कथा-कुसुम
कहानी- अनाथ ऊपर हाथ
वह औरत न जाने कब, कहाँ से मुहल्ले में आ गई थी। करीब-करीब तीस-पैंतीस के आसपास की होगी। गेंहुए रंग की थी। देह पर लाल रंग की मैली साड़ी और पैरों में झिलमिल सितारों वाली चमकीली चुनरी ऐसे बांधे रखती, जैसे लगता कि झमकउवा पायल पहनी हो। हाथों में भी उसी तरह चमकीली चुनरी के साथ पुरानी-धुरानी चुड़िया पहने घुमती रहती थी। ऊपर से पूरे चेहरे पे लाल सिंदूर भी पोते रहती। बच्चे उसे पगली कहकर चिढ़ाते तो वह ही-ही कर हँस देती। जब वह ही-ही कर हँसती थी, मोतियों की तरह एक पंक्ति में सजे हुए उसके दांत बहुत ही खुबसुरत लगते। इस रूप में वह और भी आकर्षक लगती। शायद वह सजने-धजने की शौकीन रही होगी। उसके लंबे काले बाल रूखे-सूखे जट्टा होकर कमर तक लटक गए थे। उसमें भी वह तरह-तरह के लाल, नीला, पीला, सफेद फूल खोंसे रखती। उसे गौर से देखने पर ऐसा लगता जैसे वह अंदर से किसी बात पर आहत है। चेहरे पर हवाईयाँ उड़ रही हैं। हँसती भी तो ग़म खाए हुए की तरह। चलते-चलते अचानक अपने में बड़बड़ाने लगती। बड़बड़ाते हुए अपने आपको बचाने की कोशिश करती जैसे कोई उसे मारने के लिए आगे बढ़ रहा हो। उस समय वह मुँह से कुछ अजीब तरह की आवाजें निकालती। देखकर दिल में दया उमड़ आती।
मुहल्ले में आते-जाते जो भी देखता, मुँह से ‘उफ‘ निकल जाता। ‘न जाने कैसे लोग हैं, एक औरत को सड़क पर भटकने के लिए छोड़ दिए हैं!’ तरह-तरह के प्रश्न ज़ेहन में उठते। ‘किसके घर की है, पता नहीं कौनसी मुसीबत इसके ऊपर आन पड़ी, जो उसे इस हालत में ला दिया!’ कोई कहता ‘किसी अच्छे-भले घर की ही होगी लगता है।’ ऐसे ढेरों प्रश्न जिसका जवाब किसी के पास नहीं था।
मुहल्ले के कुछ उत्साही लोगों ने उससे उसका पता-ठिकाना पूछने की कोशिश भी की, यह सोचकर कि अगर वह ग़लती से अपने घर से बिछड़ भी गई है तो उसे उसके घरवालों तक पहुंचाने में मदद करेंगे लेकिन असफल रहे। औरत का मामला था इसलिए पुलिस को भी ख़बर की गई। पुलिस वाले आए और उसे जीप में बैठाकर ‘महिला घर’ ले जाने की कोशिश की तो उसने चिल्ला-चिल्लाकर आसमान सर पे उठा लिया। फिर उसका फोटो खींचवाकर अखबार में दिया गया लेकिन उसके परिवार का कोई अता-पता नहीं चल सका। थक हार कर सब उसने उसे उसके हाल पर ही छोड़ दिया।
दिन भर इधर-उधर मुहल्ले में मंडराती फिरती। किसी ने कुछ दे दिया तो खा लेती लेकिन किसी से कुछ माँगती नहीं थी। मुहल्ले के ठीक बीचो-बीच एक बड़ा-सा मैदान था, जो शादी-विवाह के समय शामियाना वगैरह गाड़ने का काम आता था। मुहल्ले के बुजुर्ग लोग मैदान के चारों तरफ सुबह शाम टहला करते थे। मैदान के एक किनारे एक घना छायादार बड़ का पेड़ था। उसी जगह पर एक बड़ा-सा टीन का शेड डाला हुआ था बरसात के मौसम में बारिश से बचने के लिये। फुर्सत के समय सेड के नीचे मुहल्ले के युवा कैरम खेला करते थे। बूढ़े-बुजुर्ग वहाँ बैठकर ताश भी खेला करते थे। उस पगली ने भी वहीं अपना ठिकाना बना लिया। दिनभर मुहल्ले में घूमने के बाद उसी शेड में आकर बैठ जाती। अपने आपसे न जाने क्या-क्या बातें करती। बात करते समय हाथों को ख़ूब नचा-नचाकर बोलती और तुरंत ही सिसक-सिसककर रोने भी लगती। उस समय उसकी आँखों से टप-टप आँसू चू रहे होते, जैसे अंदर ही अंदर किसी असहनीय पीड़ा को पीने की कोशिश कर रही हो।
इधर कुछ दिनों से वह बदली-बदली सी दिख रही थी। उसके हाव-भाव, चाल-ढाल में भी परिवर्तन आने लगा था। उसकी देह पहले की अपेक्षा कुछ अधिक फैली हुई थी। मुहल्ले की औरतों में उसके बदले स्वरूप को लेकर अंदर ही अंदर तरह-तरह की बातें होने लगीं। कुछ औरतें उसे सवालिया नज़रों से घूरने लगी थी। मानसिक रूप से वह सक्षम रहती तब न कुछ बताती। उसे तो अपने में होने वाले शारीरिक बदलाव का ज़रा भी भान नहीं था तभी तो कोई उसे इशारों ही इशारों में कुछ पूछने की कोशिश भी करता तो वह मुस्कुरा कर आगे बढ़ जाती और सामने वाला उसकी ऐसी बेफिक्री पर आहें भरकर रह जाता। गुपचुप मुहल्ले में यह चर्चा आम हो गया- ‘पगली के पेट में किसका गर्भ हो सकता है!’
पगली वैसी हालत में भी सिंदूर से मुँह पोत-पातकर मुहल्ले के दरवाजों पर जाकर खड़ी हो जाती। ही….ही कर हँसती। किसी ने दे दिया तो खा लिया नहीं तो आगे बढ़ जाती। अपने में हो रहे बदलाव से अनभिज्ञ वह मुहल्ले में दिनभर घूमने के बाद उसी शेड के नीचे रात के समय सो जाती थी। औरतें उसे छिनाल, कुलटा, आवारा कुतिया तक कहने लगी थी। वे उसे मुहल्ले से दुत्कारकर भगाने पर आमादा हो गयीं ‘न जाने कहाँ-कहाँ से चली आती हैं किस-किसका पाप लेकर, इससे मुहल्ले के पुरूषों पर भी गंदा असर पड़ सकता है।’
वहीं कुछ भलमानस औरतें उस पर तरस भी खाने लगीं। उसकी ऐसी हालत बनाने वाले कुकर्मी को जी भर कोसती ‘पगली रात को मैदान वाले शेड में सोती है। वहीं किसी हवसी ने इसके पागलपन का फायदा उठाकर अपनी आग बुझाने के लिए इसका यह हाल कर डाला।’ कुछ औरतों की शक की सुईयाँ मुहल्ले के चरफरिया टाईप पुरूषों के ईदगिर्द भी घुमने लगी थी ‘कहीं यहीं के किसी आदमी का तो हाथ इसमें नहीं है?’
पगली का मामला मुहल्ले में जब तुल पकड़ने लगा। गुस्से की आँच से गर्मायी कुछ औरतें और मर्द एक दिन मीटिंग करके वह सेड ही तोड़कर गिरा देने पर विचार करने लगे कि न जाने कहाँ-कहाँ से अजनबी किस्म के लोग चले आते हैं और आकर उसी सेड में दिनभर बैठे अड्डा जमाये रहते हैं। ऐसे ही लोगों का यह काम हो सकता है।
कुछ ने इसका प्रतिवाद किया ‘अपने भी मुहल्ले के लोग तो वहाँ बैठते-उठते हैं। बच्चे खेलते हैं फिर बरसात के दिनों में टहलने घूमने वालों के लिए कितना काम आता है वह शेड। इसका मतलब ये तो नहीं हुआ कि शेड ही हटा दिया जाय। इससे कोई सोल्युशन थोड़े न निकलने वाला है! सबसे अहम बात तो यह है कि वह पागल औरत गर्भवती हो गई है और वह इस मुहल्ले को छोड़कर कहीं जाना नहीं चाहती। उसका रैनबसेरा भी वही शेड है तो मानवता के नाते उसे वहीं रहने दिया जाय।’ पगली को शेड का सहारा मिल गया।
शेड गिराने का विचार त्याग दिया गया लेकिन अब एक बदलाव यह आया कि मुहल्ले के अधेड़ पुरूष, युवा, बुजुर्गों ने उस शेड में एक गर्भवती औरत की उपस्थिति को लेकर वहाँ आना-जाना, उठना-बैठना फिलहाल के लिये स्थगित कर दिया। हाँ, औरतें वहाँ जातीं और पगली के दिन-ब-दिन बदलते शारीरिक हालात का मुआयना जरूर करना न भूलती ‘न जाने किस मानसिक विकृति से ग्रसित पुरूष का बीज उस पगली के पेट में दिन-ब-दिन आकार लेता जा रहा है।’
मिसेज सरीन को भी मैदान में सुबह शाम टहलने के दरम्यान अपने पड़ोसिनों से यह खबर सुनने को मिली तो एकबारगी उसके अंतर में एक साथ हज़ारों बत्तियाँ जल उठी फिर यकायक बुझ गईं। वह उस पगली को देखने के लिये लालायित हो उठी। मुहल्ले में कुछ साल पहले ही आई थीं मिसेज सरीन। उनकी शादी हुए दस साल से ऊपर हो गये थे लेकिन अभी तक गोद सूनी थी। उनके पति मिस्टर सरीन एक कंपनी में क्लर्क थे। पहले वे अकेले ही रहते थे। इधर जब से पत्नी को लेकर आए तो पूरा मकान ही किराए पर ले लिया था। दोनो मियाँ बीवी बहुत ही नेक, समझदार व पढ़े-लिखे इंसान थे। किसी के दुख में जरूरत पड़ने पर आगे रहते। इस काम में उनकी पत्नी मिसेज सरीन उनसे दो कदम आगे रहती। भले ज़माना चाहे कुछ भी कहे, सच बात पर बोलने से ज़रा भी पीछे नहीं हटती।
एक दिन शाम के समय महिलाओं के साथ टहलते हुए मिसेज सरीन बहुत दुखी थीं। पड़ोसिनों के बहुत कुरेदने पर उनकी आँखों में आँसू आ गए। कहने लगी “ऊपर वाला भी अजीब जजमेंट करता है बहन, जिसे औलाद चाहिए उसे नहीं मिलती और जिसे नहीं चाहिए उसकी झोली भरता है। अब यही पगली को देखिए न, मुझसे लाख सौभाग्यशालिनी तो वही है, भगवान ने उसकी झोली भर दी और मैं एक बच्चे के लिए तरस रही हूँ। सास ने बांझ की उपाधि से नवाज दिया तो रिश्तेदारों ने ताने मार-मारकर……..। काश, वह मुझे दुनिया वालों के तानों से बचा लेता। मेरी भी झोली भर देता। मैं दुनिया के तानों से बच जाती। ऊपर वाले के सामने आँचल फैलाकर भीख माँगती हूँ, इतने बड़े घर में सबकुछ होते हुए मुझे खेलने के लिए एक बच्चा नहीं है। मैं अपनी जिंदगी से निराश हो चली हूँ। अब जीने का कोई मतलब नहीं है। एक औरत संपूर्ण तभी होती है, जब उसकी बगिया हरी-भरी होती है। मेरी बगिया तो सूनी है।” और वह फफक-फफककर रो पड़ीं।
पगली आजकल अनमयस्क-सी रहने लगी थी। अब वह ज्यादा इधर-उधर घूमने के बजाय शेड में ही दिनभर पड़े रहती। मिसेज सरीन ने जब से सुना था कि मुहल्ले की वह पगली गर्भवती है, वह मारे खुशी से फुली न समा रही थीं पर क्यों! उसे खुद ही नहीं मालूम लेकिन वह इन दिनों ख़ूब खुश रहने लगी थीं, जैसे वह किसी नये मेहमान के आने की तैयारियों में हो। पगली जब-जब उसके घर के दरवाजे पर आती, वह उसे खाने को ख़ूब पौष्टिक भोजन देती। सुबह के समय अब वह औरतों के साथ टहलने न जाकर अकेले ही निकल जाती। अपने आँचल में छुपाकर कुछ रोटियाँ और दूध लेती जाती। उसे अपने सामने बैठाकर खिलाती। जब तक वह खा नहीं लेती। वह वहाँ से हिलती नहीं थी। दोपहर को उसे पिलाने के लिए नारियल का डाब लेकर रख लेती थी। खाना खिलाने के बाद वह उसे डाब का पानी पीने को जरूर देती। शाम के समय भी उसका वही रूटीन बन गया था। वह पगली का विषेश रूप से ध्यान रखने लगी।
मुहल्ले की औरतों में यह खबर भी करंट की तरह दौड़ पड़ी। पर्दे की आड़ लेकर मिसेज सरीन को उस पगली को खिलाने के लिए जाते हुए देखती। तरह-तरह की बातें करती लेकिन मिसेज सरीन के प्रति उनके मन में कोई दुर्भावना नहीं थी।
‘ठीक ही तो कर रही हैं मिसेज सरीन। आखिर कौन उसके लिए करेगा, किसी की तो वह कुछ लगती नहीं है! अगर सरीन कर रही है तो अच्छी बात ही है, उसमें बुरा लगने वाली कोई बात है ही नहीं। ग़लती से पगली को कुछ हो हवा गया तो पूरे मुहल्ले को पाप लगेगा। उसके पेट में पल रहा गर्भ बढ़ रहा है। इस समय किसी भले घर की औरत होती तो कितना परहेज बरती जाती मगर वह तो पागल है और वह भी किसी हवसी का शिकार, जिसका पाप उसके पेट में पल रहा है उसके लिए कौन इतना करेगा!’
‘पगली तो निष्कलंक, निष्पाप है। उसने तो जानबूझकर ग़लती नहीं की है, जिसकी सज़ा उसे मिले। सज़ा तो उन वहशियों को मिलनी चाहिए, जिन्होंने अपनी हवस की भूख मिटाने के लिये इस विक्षिप्त औरत को शिकार बनाया। ऐसे ही भूखे भेड़िए समाज में गंदगी फैलाते हैं। ये अधम तो मानसिक रूप से सक्षम लड़कियों तक को नहीं छोड़ते। पहले नकली प्यार के जाल में फंसाते हैं, उन्हें शादी का प्रलोभन देते हैं फिर उसकी देह से खेलते हैं। उन्हें अभिशप्त कर देते हैं।’
‘आजकल लड़कियाँ भी कम नहीं हैं, जान-बूझकर ऐसे आग से खेलती हैं, जिसकी बची हुई राख पिछवाड़े के किसी कूड़ा-करकट फेंकने वाले डस्टबिन में मिलती है। कुत्ते नोचते हैं। चींटियाँ काटती हैं। लोग देखकर आहें भरते हैं ‘न जाने किस कलंकिनी माँ की करतूत है।’ धन्य तो वे हैं, जो फेंकी हुई उस राख को अपने आँगन में रख लेते हैं। पालते हैं। पोसते हैं। उसे एक नाम देते हैं। मिसेज सरीन आज इस मुहल्ले में नहीं होती तो पगली और उसके अभागे बच्चे का क्या हश्र होता, सोचकर रूह कांप जाती है।’
‘मुहल्ले के टुकड़ों पर पल रही है वह तो अब उसकी जिम्मेवारी भी मुहल्ले वालों पर ही आ जाती है न, ऐसे में मिसेज सरीन अगर उसकी देखभाल कर रही हैं तो बुरा ही क्या है! मानवता के नाते ही ऐसे मामले में किसी न किसी को तो आगे आना ही होता। मिसेज सरीन उस असहाय औरत के लिए इतना सबकुछ कर रही हैं तो हो सकता है, उसमें उसका अपना स्वार्थ है तो भी ठीक ही तो है। उसका बच्चा नहीं है। बांझ कहाना कौन औरत पसंद करेगी। हो सकता है वह उस बच्चे को अपना ले। अगर उसे पगली से ही एक बच्चा मिल जाता है तो उसकी यह इच्छा पूरी हो जाएगी। वह भी तो एक बच्चे के लिए तरस रही है।’
‘एक बच्चा गलियों में मारा-मारा फिरने से बच तो जाएगा। पढ़-लिखकर समाज में सर उठाके चल तो सकेगा। कितने ऐसे लावारिश बच्चे रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड पर घुमते रहते हैं। भीख माँगते हैं, पर्स उड़ाते, चोरियाँ करते हैं। पुलिस उन्हें पकड़कर कितना मारती है, जिन्हें देखकर मन तड़प जाता है। कितनी जहालत की जिंदगी जीते हैं ये देश के नौनिहाल, जिनका कोई सपना नहीं, बस रेलवे के बोगियों में झाड़ु मारकर पैसेंजर्स के आगे हाथ पसार देते हैं पैसे के लिए। लोगों का छोड़ा हुआ जूठा खाना खाकर अपने पेट की भूख मिटाते न जाने कितनी बार देखा है। काश उन सब बच्चों को कोई न कोई गोद ले लेता तो उनका भविष्य संवर जाता। वे ऐसे लावारिश तो न भटकते। मिसेज सरीन जो कर रही हैं, सही कर रही हैं। इस मामले में उन्हें टोका-टोकी करना या किसी तरह की दखलंदाजी करना उस पगली के प्रति अन्याय होगा।’
मिसेज सरीन की महत्वकांक्षा और एक अबोला प्यार उस पगली के प्रति देखकर मुहल्ले की स्त्रियाँ और पुरूष भी आगे बढ़कर उसकी देखरेख में सहायक बनकर जुट गए ‘बच्चा जिसका भी है, है तो वह भगवान का ही रूप।’ पगली मुहल्ले की हो गई। सभी के लिए विशेष प्राथमिकता में शामिल। थोड़ा-थोड़ा डोनेट करके मुहल्ले वालों ने शेड के बगल में ही जुगाड़ लगाकर एक घेरानुमा कोठरी बना दी। उसमें बिजली की बत्ती लगा दी गई। कोठरी में एक पुराना गद्दा भी मिसेज सरीन अपने पलंग से उतार लाई और पगली के लिए बिछा दिया, जिसमें वह आराम से सो सके। माहौल ऐसा लगा रहा था, जैसे मुहल्ले वाले किसी विशेष कार्य प्रयोजन में लगे हुए हैं।
बरसात के दिन आ गये थे। जब-तब मौसम खराब होने लगा। गरज के साथ बूंदा-बांदी पड़ने लगती। ऐसे समय में मिसेज सरीन पागलों तरह भागते हुए पगली के पास चली जाती। इस हालत में पगली को अकेले शेड में छोड़ना ठीक नहीं है। उसे तो अपने शरीर की कोई चिंता नहीं है। कहीं इधर-उधर चली गई या उसे कुछ हो हवा गया तो वह अपने को कभी माफ नहीं कर पाएगी। इतने दिनों की मेहनत पर पानी फिर जाएगा। एक उम्मीद भी तो वह अपने दिल में पाले बैठी थी। कहीं उससे वह हाथ न धो बैठे।
मिसेज सरीन को अपने पास पाकर पगली इतना खुश होती, जैसे उसका अपना कोई सगा आ गया। मिसेज सरीन को वह पहचानने लगी थी। देखते ही बेसब्री से उसे ऐसे पकड़ लेती कि कहीं मिसेज सरीन हाथ छुड़ाकर चली न जाय। उस समय उसकी आँखों के दोनों कोर भींगें हुए होते। शायद वह अपने अंदर के मातृत्व के दर्द को मिसेज सरीन के साथ जैसे बाँट लेना चाहती हो। मिसेज सरीन का कलेजा फट पड़ता। उसके सामने न चाहते हुए भी फफककर रो पड़ती। वह भी उसे तब तक छोड़ना नहीं चाहती, जब तक पगली उसका हाथ पकड़े रखती। मातृत्व सुख से वंचित मिसेज सरीन उसे अपने बाँहों में ऐसे जकड़े रखती, जैसे वह उसका नवजात बच्चा पकड़े हो।
बरसात से बचने के लिये वह उसे अपने घर ले आई। दो कमरों वाले घर में एक कमरा, जो उसने मेहमानों के आने-जाने के लिए रखा था, फालतू पड़ा था। उसी में पगली का बेड लगा दिया। अब वह पगली, पगली नहीं थी। नहला धुलाकर, साफ-सुथरा करके बालों के जटट् को काट कर सवांर दिया था मिसेज सरीन ने। उसे सुंदर स्त्री में तब्दिल कर दिया। वह दिखने में पहले भी सुंदर लगती थी। अब उसने सिंदूर से मुँह पोतना छोड़ दिया था। हाँ, मिसेज सरीन उसके जूड़े बनाकर उसमें रंगीन फूल लगाना न भूलती थीं। जब मिसेज सरीन उसे आईने के सामने खड़ी कर देती, वह घंटों वहाँ खड़े होकर अपने आपको निहारती रहती। मिसेज सरीन उसे जब भी ‘बड़ी दी‘ कहती तो वह मुस्कुरा देती। उसकी सेवा में वह एक पैर पर खड़ी थी। समय पर चेकअप कराना। कब कौनसी दवा देनी है, इसका पूरा ख़याल रखने लगी।
मेटरनीटी हॉस्पिटल में पगली ने एक बहुत ही सुंदर व स्वस्थ्य बच्चे को जन्म दिया। नवजात लड़की थी। मिसेज सरीन का मारे खुशी के ठिकाना न रहा। मुहल्ले में जैसे ही यह खबर फैली, चारों ओर से बधाइयों का तांता लग गया। हॉस्पिटल से लौटने के बाद मिस्टर सरीन ने पूरे मुहल्ले में मिठाई बंटवाई। छः दिन के बाद मुंहजुठी की रस्म मनाने के लिए मिसेज सरीन ने पूरे मुहल्ले को पार्टी दी। पार्टी का इंतजाम उसी मैदान में हुआ था, जहाँ पगली रहती थी। पार्टी में सरकारी अधिकारी भी आए थे। उन्होंने बच्चे को गोद लेने की कागजी करर्वाई पूरी करके उन्हें बधाईयां दी। मिस्टर और मिसेज सरीन ने बच्ची को इकट्ठे मेहमानों के सामने गोद लेने की घोषणा करते हुए वादा किया कि आज की पार्टी हम दोनों की बड़ी बहन को समर्पित है। अगर यह नहीं मिलती तो हम अधूरे होते। इसने हमारी जिंदगी खुशियों से भर दी। जब तक यह जीवित रहेगी, हम दोनों की बड़ी बहन बनकर रहेगी।
तालियों की गड़गड़ाहट के साथ सरीन दंपति का स्वागत करते हुए मुहल्ले वालों ने नवजात के उज्ज्वल भविष्य के लिए शुभकामनाएँ दीं। पगली भी बन संवरकर वहीं मिसेज सरीन के बगल में ममता की मूर्ति बनी खड़ी मुस्कुरा रही थी। उसे अपना घर मिल गया था।
– प्रदीप कुमार शर्मा