कविता-कानन
कविता- अब कर तू विज्ञान की बातें
परी लोक की कथा सुना मत,
ओरी प्यारी-प्यारी नानी।
झूठे सभी भूत के किस्से,
झूठी है हर प्रेत-कहानी।
इस धरती की चर्चा कर तू
बतला नये ज्ञान की बातें।
कैसे ये दिन निकला करता,
कैसे फिर आ जातीं रातें?
क्यों होता यह वर्षा-ऋतु में,
सूखा कहीं-कही पै पानी।
कैसे काम करे कम्प्यूटर,
कैसे चित्र दिखे टीवी पर।
कैसे रीडिंग देता मीटर,
अब कर तू विज्ञान की बातें।
छोड़ पुराने राजा-रानी,
ओरी प्यारी-प्यारी नानी।।
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कविता- माफ करो समधी जी
दूल्हा बनकर, थोड़ा तनकर
खुश थे बंदर भाई,
नाचें संगी-साथी उनके
बजे मधुर शहनाई।
लिए हाथ में वरमाला इक
बंदरिया फिर आई,
दरवाजे पर दूल्हे राजा-
बंदर को पहनाई।
बदंर का बापू बोला फिर
“बेटी वाले आओ,
क्या दोगे तुम अब दहेज में
उसकी लिस्ट बनाओ।”
गुस्से में आकर ऐसे तब
बोला बेटी वाला-
“अब दहेज का नहीं जमाना
क्या कहते हो लाला।
यदि की अक्कड़-बक्कड़ तुमने
फौरन पुलिस बुलाऊँ,
पाँच साल की फौरन तुमको
अब तो जेल दिखाऊँ।”
बंदर का बापू यह सुनकर
थोड़ा-सा चकराया,
और अपनी गलती पर बेहद
शरमाया, पछताया।
बोला वह बेटी वाले से
“माफ़ करो समधी जी,
माँग दहेज मैंने कर डाली
बहुत बड़ी गलती जी।”
– रमेश राज