व्यंग्य
ईमानदारी सर्वोत्तम नीति है यदि
– विनय कुमार पाठक
ईमानदारी सर्वोत्तम नीति थी, है और रहेगी। यदि इसका सर्वोत्तम लाभ लेना है तो इसे बेईमानी की चाशनी में साराबोर कर ईमानदारी के रैपर में लपेट कर किए जाने की आवश्यकता है। यदि खाँटी ईमानदारी की बात है तो फिर यह सर्वोत्तम नीति न होकर सर्वनाशी नीति बन जाती है। जिसने भी खाँटी ईमानदारी का दामन थामा, वह हानि के दलदल में डूब गया। कम से कम वर्तमान में तो यही स्थिति है। जो इस बात को समझ लेगा वही दुनिया में आगे बढ़ेगा।
अब आप देखिए इतने प्रकार के उपकरण हैं हमारे जीवन में। सभी को ईमानदारीपूर्वक बनाएँ और बेचें तो एक गैजेट सालों-साल चलेगा। सालों-साल चलेगा तो फिर एक पीढ़ी में एक ही उपकरण की आवश्यकता होगी। यानी भविष्य में बिक्री होने की संभावना न के बराबर रहेगी। ऐसे में थोड़ी-सी चालाकी की आवश्यकता बनती है। आप ग्राहक को ऐसा माल दो, जो बहुत ज्यादा दिन तक न चले। उसमें कोई न कोई कमजोर पार्ट रहे, जो जल्दी खराब हो और फिर इस पार्ट की वारंटी भी न रहे। ऐसे में आप एक ही व्यक्ति को बार-बार अपना माल बेच सकोगे। हाँ! हो सकता है वह आपके माल को न खरीदकर आपके प्रतिद्वंदी के माल को खरीदे। पर यहाँ प्रतिद्वंदी-प्रतिद्वंदी भाई-भाई या मौसेरे भाई की नीति अपनानी पड़ेगी। अर्थात माल मुझसे नहीं तो मेरे मौसेरे भाई से खरीदो। बटुआ ढीला तो तुम्हें करना ही होगा। भाई-भाई के बीच डील तो हो ही सकती है।
फिर अपने इंजीनियर को ऐसे प्रशिक्षित करो कि वह उपकरण के मरम्मत में नए उपकरण खरीदने के बराबर नहीं तो उसका अस्सी नब्बे प्रतिशत का खर्चा बताए। उदाहरण के रूप में वाशिंग मशीन ही लें। उसके मोटर की गारंटी दस वर्ष की दो पर ड्रम की सिर्फ पाँच वर्ष और इंजीनियर जाँच करने के बाद ग़लती ग्राहक पर डाल दे। मसलन अधिक कपड़ा एक साथ साफ़ करना, पानी का प्रेशर सही नहीं आना, वोल्टेज ठीक न होना आदि। जब ग़लती ग्राहक की है तो वारंटी तो वैसे भी निष्प्रभावी हो जाएगी न!
इसी प्रकार लैपटॉप को ले लें। इसके मदरबोर्ड, फादरवोर्ड, ब्रदरबोर्ड, सिस्टरबोर्ड आदि इस तरीके से बनाएँ कि साल दो साल के बाद, ध्यान रहे वारंटी पीरियड के बाद, खराब हो जाए। बनाने का खर्च नए लैपटॉप खरीदने के खर्च के बराबर हो यह भी ध्यान रहे। फिर बेचते रहो माल हर साल। और फिर इस ख़राब हुए माल को औने-पौने दाम में ग्राहक से ले लो वह भी नए प्रोडक्ट के कीमत में छूट बतला कर और फिर उसी प्रोडक्ट को झाड़ पोंछ कर किसी अन्य ग्राहक को टिका दो।
हाँ! ग्राहक सेवा केंद्र चौबीसों घंटे उपलब्ध रहे। कोमल नारीकंठ से ग्राहकों का स्वागत हो। हर एक गतिविधि के लिए एस.एम.एस. देते रहें। इससे होगा यह कि दिलजले ग्राहक के दिल की जलन शांत होगी। पर बटुआ उसका ढीला होगा और आपके बटुए का वजन बढ़ेगा। तो ईमानदारी सर्वोत्तम नीति है बशर्ते थोड़ी बेईमानी के साथ किया जाए। और यह भी जान लें कि यह कोई नई बात नहीं है। प्राय: सभी कंपनियाँ इस नीति का पूरे मन से पालन कर रही हैं। ग्राहक सेवा अथवा कस्टमर सर्विस, कस्टमर डिलाइट, कस्टमर ऑबसेशन, कस्टमर सेन्ट्रीसिटी आदि अनेक नए-नए शब्द गढ़े जाएँगे पर मूल शब्द का अर्थ वही रहेगा; कस्टमर अर्थात वह जो कष्ट से मरे।
– विनय कुमार पाठक