विमर्श
ईदगाह का हामिद
– फ़ानी जोधपुरी
मुंशी प्रेमचंद भारतीय साहित्य में उस स्थान पर हैं, जहाँ तक कोई कहानीकार नहीं पहुँच सका। हिन्दी और उर्दू के भाषाविदों में ये बहस का मुद्दा हो सकता है कि प्रेमचंद उर्दू के कहानीकार थे अथवा हिन्दी के मगर प्रेमचंद भाषाओं की सीमाओं से परे जाकर अपनी बात कहने वाले थे इसीलिए वो उर्दू के भी उतने ही हैं जितने हिन्दी के। प्रेमचंद की लिखी कहानी ‘ईदगाह’ एक ऐसी कहानी है, जो ज़्यादातर लोग पढ़ चुके हैं। ईदगाह लगभग बारह पृष्ठों की ऐसी कहानी है, जिसे मात्र सात लाइनों में ही व्यक्त किया जा सकता है। वो सात लाइनें कुछ इस तरह हैं-
हामिद नाम का अनाथ लड़का ईद की नमाज़ पढ़ने ईदगाह जाता है उसकी ग़रीब दादी अपने इकलौते सहारे हामिद को तीन पैसे ईदी के देती है। हामिद उन तीन पैसों से खिलौने या मिठाई के बजाय दादी के लिए एक चिमटा ले आता है ताकि रोटी बनाते वक़्त दादी की उंगलियाँ न जलें।
इस कहानी की शुरू़आत से ही शब्द संयोजन और कथ्य ऐसा है कि पाठक इससे ख़ुद को अलग नहीं कर पाता। यह कहानी केन्द्रित है हामिद पर, हामिद नाम का चार साल का बच्चा, जिसके माता-पिता गत वर्ष ही काल कवलित हो चुके हैं, में ग़ज़ब का आत्मविश्वास है। वह नंगे पाँव कई कोस दूर शहर में स्थित ईदगाह जाने से डरता नहीं बल्कि शौक़ से जाता है। हामिद को इस कहानी में दूसरे आम बच्चों के जैसा भी दिखाया गया है और दूसरे बच्चों से अलग भी। उसमें भी दूसरे बच्चों की तरह खिलौने और मिठाइयों का लालच है मगर वो दूसरे बच्चों से अलग इसलिए है कि वो अपनी इच्छाओं का त्याग करके अपनी दादी की जलती उंगलियों को बचाने के लिए अपनी पूरी ईदी ख़र्च कर के एक चिमटा ख़रीद लेता है।
हामिद के व्यक्तित्व का एक पहलू इस कहानी में और उजागर होता है और वो पहलू है उसका जुझारूपन। जब दूसरे बच्चे अपने खिलौनों की तारीफ़ और नुमाइश कर रहे होते हैं तो हामिद सभी के खिलौनों की आलोचना करता है जैसे भिश्ती की,सिपाही की,वकील वग़ैरह की और फिर तुलना करता है कि यदि शेर आ जाए तो भिश्ती मशक पटक के भाग जाएगा ,सिपाही बंदूक फेंक देगा और वकील चोगे में मुँह छिपा लेगा मगर हामिद का ये चिमटा शेर की गर्दन पर सवार हो जाएगा और यहीं झटपट वह अपनी बुद्धिमत्ता से एक शब्द इस्तेमाल करता है ‘रूस्तमे-हिन्द’ और इस प्रकार सभी को अपने जुझारूपन से अपने चिमटे की महत्ता का क़ायल कर लेता है।
इसमें हामिद की भाषा को भी स्थानीय बनाया है जैसे फ़ायर को ‘फैर ‘ क़वायद को कवायद वग़ैरह । उक्त शब्दों से ये ज्ञात होता है कि हामिद की भाषा स्थानीय और खड़ी बोली है जैसा कि आमतौर पर ग्रामीण परिवेश में रहने वालों की होती है।
इस कहानी की पृष्ठभूमि में हमें हामिद का एक संतोषी व्यक्तित्व भी हाथ लगता है ।
जब सब बच्चे चर्ख़ियों में झूला झूल रहे होते हैं,हामिद नहीं झूलता। जब दूसरे बच्चे रेवड़ी और मिठाइयाँ खा रहे होते हैं तब हामिद ख़ुद को यह कहकर समझा देता है कि ऐसा करने से उसकी ज़बान चटोरी हो जाएगी या फिर मीठा खाने के दुष्परिणाम स्वरूप उसके फोड़े-फुन्सियाँ हो जाएंगी।
हामिद के व्यक्तित्व का जो सब ये प्रभावी पक्ष है वो है उसका भाव पक्ष जिससे ओतप्रोत होकर वो चिमटा ख़रीद कर अपनी दादी को देता है और इसी पक्ष के साथ हामिद नाम के भावुक बच्चे की ये कहानी समाप्त भी हो जाती है।
इस कहानी में हामिद के व्यक्तित्व की एक और विशेषता भी प्रकट होती है जिसे उत्सुक या कुछ नया जानने के लिए उत्सुक कहा जा सकता है। जब उसका मित्र मोहसिन जिन्न के बारे में बात करता है कि जिन्न क्या-क़्या कर सकते हैं तब हामिद जिन्नों के बारे में पूछता है उनके क़दम, शरीर और विशेषताओं से बारे में पूछता है।
इस कहानी में जब हामिद के दोस्तों रेवडियां या गुलाब जामुन खाने वाले प्रसंग को पढ़ने पर हामिद का स्वाभिमानी होना भी प्रकट होता है ।
स्वाभिमानी होने के अलावा हामिद का एक और गुण भी इस कहानी में एकदम से प्रकट होता है और वो है साहस का ,हालांकि इस पूरी कहानी में साहस के सन्दर्भ में देखे जाने वाली कोई घटना परोक्ष रूप से नहीं है मगर जब दुकानदार द्वारा चिमटे का मूल्य छ: पैसे बताया जाता है तब हामिद उस चिमटे का दाम तीन पैसे लगाकर अपनी आयु के हिसाब से साहस का ही परिचय देता है जिसका प्रतिफल उसे चिमटे के रूप में मिलता है जिसे लेकर वह विजेताओं की भांति बच्चों के समक्ष जाता है।
हालांकि मुंशी प्रेमचंद ने इस कहानी में हामिद के चरित्र को अच्छी तरह स्थापित करने की कोशिश की है और वो इसमें सफ़ल भी हुए हैं शायद इसी कारण ये कहानी कई अकादमिक कक्षाओं के कोर्स में पढ़ने को मिल जाएगी मगर फिर भी ये कहानी हामिद के संदर्भ में कई सवाल खड़े करती है । हामिद की उम्र इस कहानी में चार वर्ष बताई गई है कहानीकार ने उसका वर्णन करते हुए यह भी लिखा है कि हामिद मानता है कि उसके पिता धनार्जन हेतु गए हैं और माँ अल्लाह के पास अच्छी-अच्छी चीज़ें लेने गई है वह दोनों एक दिन ज़रूर लौटेंगे ,यह सोच एक चार वर्ष के बच्चे के लिए सर्वथा उपयुक्त है इस उम्र के बच्चों में इतना भोलापन स्वभाविक है मगर दूसरी तरफ़ जब वो अपने मित्रों के समक्ष चिमटे का महिमा मण्डन करता हुआ चिमटे के पक्ष में तर्क देता है तो ये प्रश्न उठना स्वभाविक है कि इतनी भोली सोच रखने वाला बच्चा इतना तार्किक भला कैसे हो सकता।
दूसरी बात ये कि इस पूरी कहानी में दो बार हामिद द्वारा ‘किताब में लिखा है’ वाक्य का प्रयोग हुआ है गौरतलब है कि हामिद को कहीं भी किसी मदरसे/स्कूल में पढ़ने जाने का कोई विवरण इस कहानी में कहीं नहीं मिलता तो हामिद को कैसे पता चला कि किताब में किसी (जिन्नों) के बारे में क्या लिखा हुआ है? ये भी इस पूरी कहानी में कहीं नहीं आया कि हामिद ने किसी के मुँह से सुना हो कि ऐसा किताब में लिखा है। इसके अलावा आज के दौर में जब माता-पिता बच्चों की शिक्षा के प्रति अत्याधिक जागरूक होने के बावुजूद चार वर्ष के बालक को ऐसी शिक्षा नहीं दे पाते हैं न दिला पाते हैं जिससे वह किताबों में लिखे जिन्नों के बारे में पढ़ सके तो इतने वर्षों पूर्व गाँव में रहने वाले एक चार वर्षीय बालक में इतनी प्रतिभा कहां से आ गई कि उसे किताबों में लिखी बातों का ज्ञान हो गया वो भी ऐसी स्थिति में जब बालक हामिद आम बच्चों की तरह ही है उसमें किसी प्रकार की प्रतिभा का उल्लेख नहीं है।
कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि मुंशी प्रेमचंद ने बालक हामिद के व्यक्तित्व को भावना प्रधान बना कर कहानी में स्थापित करने की कोशिश की जिसमें वो कामयाब भी रहे फिर भी उन्होंने हामिद के व्यक्तित्व में कुछ ऐसी बातें भी रख दी हैं जो कल्पनाओं से परे है।
– फ़ानी जोधपुरी