कविता-कानन
इतिहास के प्रश्न
इतिहास के प्रश्न
हो सकते है बड़े क्रूर, बड़े निर्मम
जैसे कि पूछा जा सकता है
महाभारत के सारे महान योद्धाओं से,
पितामह भीष्म से,
आचार्य द्रोण से,
शांति की चाह रखने वाले
सारे कौरवों से
और युद्धक्षेत्र कुरुक्षेत्र में
कौन्तेय को
युद्ध का निश्चय कर उठने का
आवाह्न करते
श्रीकृष्ण से भी कि
क्यों नहीं किया विरोध सबने
होकर एकजुट
दुर्योधन का।
क्यों नहीं किया
शक्ति भर उद्योग किसी ने भी
युद्ध रोकने का,
टालने को महासंहार।
शान्ति के पक्षधर होने के बावजूद,
क्यों उलझे रहे सब के सब
धर्म की अर्थहीन सूक्ष्म व्याख्याओं में
क्यों नही रहा
उनकी प्राथमिकताओं में
करोड़ों बेगुनाह सैनिकों का जीवन।
क्या दुर्योधन का हठ
नहीं पड़ गया था भारी
इन सब की महानता पर,
बल पौरुष पर और
ज्ञान और कर्तव्य पर।
क्या न्याय और धर्म और शांति की
स्थापना का एकमात्र उपाय था
युद्ध ही।
क्या नहीं थी दबी
अवचेतन में इन सबके भी
युद्धलिप्सा।
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गौरैया
हर साल
गर्मियां शुरू होते ही
नानी लटका देती थी
मुंडेर से
मिट्टी की हंडिया
भर कर जल से।
नहीं भूलती थी
डालना रोज पानी
हंडिया में
शालिग्राम का भोग लगाने के पश्चात,
संभवतः
यह भी था एक हिस्सा
उनकी पूजा का।
उनको था विश्वास
की गौरैयों के रूप में
आते हैं
प्यासे पूर्वज
और चोंच भर पानी से हो तृप्त
कर जाते है हम पर
आशीष की वर्षा ।
हम बच्चों के लिए
यह था एक कौतुहल
अनेक प्रश्नों के साथ
होते हम प्रतीक्षारत रोज
इस अनुष्ठान के लिए ।
और एक दिन
नानी नहीं रहीं ।
वे भी किसी दिन
अब
आतीं होंगी
हमारी मुंडेर तक
शामिल गौरैयों के झुंड में
तलाश में जल की
और दे जाती होंगी
ढेर सारा आशीष ।
पुत्र !
पात्र को
रीता न होने देना
हम भी आयें शायद
एक दिन तुम्हारी मुंडेर तक
गौरैयों के झुंड में।
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डर
कबीर
तुमने व्यंग किया
ख़ुदा के बहरे होने पर,
मज़ाक उड़ाया
पत्थर की पूजा का,
तुमने
काशी के अभिजात्य को छोड़
मगहर में मृत्यु चुनी
पर
तुम्हारे ख़िलाफ़
न तो फ़तवे जारी हुए
सिर काट लेने के,
न हुए तुम
मॉब लिंचिंग का शिकार,
मध्य-युग के
उस क्रूरतम समय में भी।
और हम
आज इक्कीसवी सदी
के जनतंत्र में
डरे हुए है
दोहराने में
तुम्हारी कविता।
– श्रीविलास सिंह