लेख
अभिभावकों को समझना होगा बच्चों के मनोविज्ञान को: मनोज चौहान
छात्र किसी भी राष्ट्र की अमूल्य धरोहर हैं और किसी भी देश का भविष्य उन्हीं पर निर्भर करता हैl किसी भी महान शख्सियत के विद्यार्थी जीवन पर नज़र डालें तो यक़ीनन वह परिश्रम और संघर्षों के बीच से होकर गुजरा हैl अब्राहिम लिंकन, लाल बहादुर शास्त्री, अब्दुल कलाम जैसे अनेक नाम इसके साक्षात उदाहरण हैंl
वर्तमान परिप्रेक्ष्य में स्थितियां तेजी से बदली हैंl एक विद्यार्थी के जीवन में जहाँ शिक्षकों का अहम योगदान है, वहीं दूसरी तरफ अभिभावकों की भूमिका को भी कम करके नहीं आँका जा सकताl वैश्वीकरण और प्रतियोगिता के इस दौर में हर अभिभावक यही चाहता है की उनकी संतान परीक्षा में अच्छे अंक लेकर उतीर्ण होl यूँ तो पूरा वर्ष ही अभिभावक अपने बच्चों के लिए चिंतित रहते हैं, मगर ये चिंता उस वक्त और अधिक बढ़ जाती है, जब परीक्षाएं सामने होंl
अपने बच्चों के लिए अभिभावकों की यह चिंता तो लाजिमी है, मगर इस बात का ध्यान रखना भी नितांत आवश्यक है कि अपेक्षाएं इतनी अधिक ना हों कि छात्र डिप्रेशन में ही आ जायेl डिप्रेशन में आकर छात्रों द्वारा खुदखुशी के मामले भी अक्सर प्रकाश में आते रहे हैंl
अभिभावकों को अपने बच्चों की तुलना अन्य बच्चों से करने से भी बचना चाहिए क्योंकि हर बच्चा विभिन्न गुणों, विवेक, शारीरिक क्षमता और स्वभाव के साथ ही पैदा होता हैl इसीलिए वो कुशाग्रता, बुद्धि और व्यक्तित्व के मामले में एक-दूसरे से अलग होते हैंl बच्चों में ऐसे कई जन्मजात गुण होते हैं, जिन पर अभिभावकों के मार्गदर्शन और व्यवहार का असर पड़ता हैl ज्ञानवर्धक टी.वी. कार्यक्रम भी उनकी समझ बढाने और व्यक्तित्व विकास में सहायक होते हैंl अक्सर यह भी देखा गया है कि अभिभावकों का ध्यान बच्चों पर कम और उनके परीक्षा परिणाम की तरफ ज्यादा होता हैl समस्या तब और अधिक बढ़ जाती है जब दोनों ही अभिभावक नौकरी पेशा हों l इससे कहीं ना कहीं एक ‘कम्युनिकेशन गैप’ पैदा होने की सम्भावना बढ़ जाती है l
बीबीसी शिक्षा संवाददाता ‘शॉन कॉगलन’ की एक रिपोर्ट के अनुसार चीनी परिवार के बच्चे पश्चिमी देशों के स्कूलों में बेहतर प्रदर्शन करते हुए देखे गए हैंl वर्ष 2014 में ब्रिटेन के ‘इंस्टिट्यूट ऑफ़ एजुकेशन’ द्वारा ऑस्ट्रलियाई स्कूलों का अध्ययन किया गया, जिसमें यह जानने की कोशिश की गई कि क्यों ये चीनी बच्चे दूसरों से बेहतर प्रदर्शन करते हैंl उक्त अध्ययन में यह बात सामने आई कि चीनी परिवार के 15 साल के बच्चे अपने ऑस्ट्रलियाई सहपाठियों से 2 साल आगे थेl यह अध्ययन इसके लिए कड़ी मेहनत और अभिभावकों की प्रतिबद्धता की ओर इशारा करता हैl
कई बार अभिभावक अपने बच्चों से अपनी उन अपूर्ण इच्छाओं को पूरा करने की भी आस लगा बैठते हैं, जिन्हें वे कभी अपने विद्यार्थी काल में या अपने जीवन में करने में सफल न हुए होंl यह जरुरी नहीं है कि बच्चे की रूचि उन्हीं चीजों में हो, जो उनके लिए अभिभावक सही समझते हों l दसवीं कक्षा उतीर्ण करने के बाद विषयों का चयन करते समय भी अभिभावकों को अपनी मर्जी बच्चों पर नहीं थोपनी चाहिए बल्कि उन्हें उनकी मर्जी और रूचि के अनुसार ही विषयों का चयन करने देना चाहिए l
अभिभावकों और बच्चों के बीच एक स्वस्थ संवाद का होना जरुरी है ताकि अगर बच्चे किसी परेशानी से जूझ रहें हो तो उसका एक सकारात्मक हल निकाला जा सकेl अपने जीवन के प्रेरणादायक प्रसंग और अनुभवों को बच्चों के साथ साँझा करके भी उन्हें तनाव और भयमुक्त किया जा सकता हैl
– मनोज चौहान