कथा-कुसुम
अनकहा प्यार
सुबह का अखबार पढ़ते हुये अचानक मेरी निगाह अपनी नई पड़ोसन से टकरा गई। मैंने सुना तो था कि मेरे बगल वाले फ्लैट में कोई महिला अधिकारी शिफ्ट होने वाली हैं, पर आमने-सामने का यह हमारा पहला वास्ता था। हैलो- हाय से शुरू हुआ परिचय कब प्रगाढ़ता में बदल गया, पता ही नहीं चला। मेरी पड़ोसन मैडम जिले में ही एक उच्च पद पर पदस्थ थीं और उनके पति अन्यत्र किसी जिले में तैनात थे। उनके पति का आना-जाना कभी-कभार ही सम्भव हो पाता था, सो पड़ोसी होने के कारण वे मुझसे काफी घुल-मिल गयीं और एक दिन उन्होंने टोक ही दिया कि तुम मुझे हमेशा मैडम कहकर बात न किया करो। मैंने कहा- मैडम मैं अभी एक विद्यार्थी हूँ और आप इस जिले में तैनात एक वरिष्ठ अधिकारी, आखिर हमारा क्या रिश्ता हो सकता है? वह कुछ देर तक शान्त रहीं और फिर अपनी चुप्पी तोड़ते हुये बोलीं-अगर तुम बुरा न मानो तो मुझे भाभी कहकर बुला सकते हो।….. आपकी बात सही है मैडम, पर मात्र भाभी कह देने भर से तो रिश्ता नहीं जुड़ जायेगा। वैसे भी यह बड़ा नाजुक व प्यार भरा रिश्ता है, इस रिश्ते को निभा पायेंगी आप? उन्होंने अपनी आँखें ऊपर उठायीं व मेरी आँखों में आँखें डालकर बोलीं-यह जरूरी तो नहीं कि हर रिश्ते खून से ही बनते हों। रिश्तों की परिभाषा अपनत्व, स्नेह एवम् प्यार में छुपी हुयी है और अगर हम एक दूसरे को समझ सके तो ये रिश्ता हम भी आसानी से निभा सकते हैं। उस दिन के बाद से हम मुँहबोले देवर-भाभी के रिश्ते में बँध गये।
वक्त अपनी चाल चलता रहा। एक दिन सुबह-सुबह उन्होंने मेरे दरवाजे पर दस्तक दी- गुड मार्निंग जनाब! विद्यार्थी जीवन में घोड़े बेच कर सोना अच्छी बात नहीं है। अच्छे विद्यार्थियों की तरह अपने कैरियर पर ध्यान दीजिए और अध्ययन-कार्य में जुट जाईये। इससे पहले कि मैं कुछ कहता, एक अपरिचित पर मधुर सी आवाज मेरे कानों से टकरायी-नमस्ते अंकल! मेरा नाम प्रिया है और मैं कक्षा ग्यारह में पढ़ती हूँ। मैं अपकी भाभी की इकलौती प्यारी बिटिया रानी हूँ और अब यहीं पर रह कर आगे की पढ़ायी करूंगी। अच्छा भाभी! तो आपने इन्हें हमारे बारे में पहले से ही बता रखा है। चलिये अच्छा हुआ, अब हमें अपना परिचय देने की जरूरत नहीं पड़ेगी।….तो ठीक है, हाथ मिलाइये और आज से हम दोस्त हुये। अच्छा अंकल! अब आप बताइये कि कैडबरी चाकलेट पसंद है न आपको, हाँ…..हाँ क्यों नहीं? तो फिर शाम को आप कैडबरी चाकलेट लेकर आईएगा….. चल हट बदमाश कहीं की, अभी अंकल से कायदे से परिचय भी नहीं हुआ और तेरी फरमाइशें शुरू हो गयीं। आप इसकी बातों में मत आईएगा क्योंकि खाने-पीने के मामलों में दोस्ती करने में यह काफी पाजी स्वभाव की है। अरे! तुम दोनों के चक्कर में मेरी चाय भी ठंडी हो गयी। अच्छा तुम जल्दी से फ्रेश होकर आ जाओ तो एक-एक कप गर्मागर्म चाय हो जाय।….वक्त के साथ प्रिया मुझसे काफी घुल-मिल गयी। मेरे खाने से लेकर बाहर जाने तक का हिसाब-किताब रखती। जब कभी भी मैं देर से आता तो प्रिया दरवाजे पर खड़ी मेरा इन्तजार करती रहती और जब तक मैं खाना नहीं खा लेता, अन्न का कौर मुँह में नही डालती। उसकी मम्मी भी खुश थीं कि प्रिया को बोर नहीं होना पड़ता। पर प्रिया के दिल में क्या चल रहा था, उससे मैं और उसकी मम्मी पूर्णतया अनजान थे व ऐसा सोचने का कोई कारण भी नहीं बनता था।
वो दिसम्बर की सर्द रातें थीं जब गाँव जाने हेतु मैं पैकिंग कर रहा था। रात के करीब 11 बजे थे कि दरवाजे पर खट..खट सुनकर मैंने दरवाजा खोला तो सामने प्रिया खड़ी थी। अरे! तुम इतनी रात गए यहाँ क्या कर रही हो, नींद नहीं आ रही? वह तेजी से आगे बढ़ी और एक झटके में दरवाजे को बंद कर मुझे आलिंगनबद्ध कर लिया व फूट-फूट कर रोने लगी। मैंने उसे चुप कराने की काफी कोशिश की पर वह चुप होने का नाम ही नहीं ले रही थी। रोते हुए उसके स्वर मेरे कानों से टकराये-प्लीज! मुझे इस तरह अकेला छोड़कर मत जाईये, मुझे आपके बिना यहाँ अच्छा नहीं लगेगा। यह क्या बचपना है प्रिया, मैंने उसे अपने से अलग करते हुए कहा……आप मुझे समझने की कोशिश क्यों नहीं करते, मैं आपके बिना एक पल भी नहीं रह सकती। प्रिया कुछ ही दिनों की तो बात है, फिर मैं वापस आ जाऊँगा। आखिर इसमें इतना नाराज होने की क्या बात है?…..गुस्से से पाँव पटकते हुए वह मुड़ी और बोली कि लगता है आपने ”कुछ -कुछ होता है” फिल्म ध्यान से नहीं देखी, वर्ना आपको समझ में आता कि मैं क्या कहना चाहती हूँ और फिर तेजी से दरवाजा बन्द करके चली गई। रात भर मैं प्रिया के बारे में सोचता रहा। कभी-कभी लगता कि वह मुझसे प्यार कर बैठी है, फिर अगले ही पल इस विचार को झटक देता। आखिर उसकी मम्मी को मैं भाभी कहता था और वह मुझे अंकल कह कर पुकारती थी…… फिर यह कैसे संभव हो सकता है? अगर कहीं उसकी मम्मी को ऐसा कुछ एहसास हुआ तो वह मेरे बारे में क्या सोचेंगी….. आखिर कुछ तो रिश्तों की मर्यादा होती है। यही सोचते-सोचते कब नींद आ गयी पता ही नहीं चला। सुबह गाँव जाने से पहले मैं भाभी और प्रिया से मिलने गया तो प्रिया ने बिना आँख मिलाये ही मुझे नमस्ते कहा व अंदर कमरे में चली गई।
करीब एक महीने बाद मैं गाँव से लौटकर आया तो उस समय भाभी और प्रिया कहीं बाहर गयी हुई थीं। शाम को जब वे लौटकर आयीं तो मेरा फ्लैट खुला देखकर अंदर चली आयीं….अरे तुम कब आये? घर पर सभी लोग कुशलता से हैं न। बस भाभी! अभी एकाध घण्टे पहले ही आया हूँ। तभी उनके पीछे से प्रिया भी आ गयी और धीरे से कहा-नमस्ते अंकल जी। इससे पहले कि मैं कुछ कहता, भाभी बीच में ही बोल पड़ीं-अरे हाँ! मैं तो बताना भूल ही गई कि तुम्हारे जाने के बाद प्रिया इतना रोई कि पूछो मत। मैंने लाख समझाने की कोशिश की पर एक ही रट लगायी रही कि अंकल को बुलाकर लाओ। इसकी आँखे रोते-रोते इतनी सूज गयीं कि मैं भी डर गयी थी, किसी तरह समझा-बुझाकर इसे शान्त कराया। तभी पीछे से प्रिया की आवाज आई-जरा इनसे भी पूछिये कि इन्हे हम लोगों की याद आयी कि नहीं? एक महीना तो पूरा आराम से कटा होगा गाँव में। मैं समझ रहा था कि वह क्या कहना चाह रही है पर भाभी की उपस्थिति में चुप रहना ही मुनासिब समझा। तब तक मेरे कुछेक दोस्त आ गए थे और मैं उनके साथ बाहर निकल गया। रात को करीब 9 बजे मैं अपने फ्लैट में लौटा तो प्रिया दरवाजे पर कुर्सी लगाकर बैठी थी। मैंने ज्यों ही आगे कदम बढ़ाया तो मुस्कुराते हुये धीमे से बोली-अच्छा! तो अब जनाब को दोस्तों से फुरसत मिल गयी। हम भी आपके पड़ोस में रहते हैं, कभी-कभी हमें भी याद कर लिया कीजिये। मैने हँसते हुए कहा-क्या बात है, आज मुझ पर काफी तीखे बाण छोड़े जा रहे हैं। धीमे से फुसफुसाकर उसने कहा-जो लोगों के दिलों को जख्म देते है, उन्हें भी कभी-कभी जख्म सहने की आदत डाल लेनी चाहिये।…. क्या बात है आज काफी दार्शनिक अंदाज में बोल रही हो…..बस आपका पड़ोसी होने का असर है। इतना कहकर वह अपने फ्लैट में चली गयी।
कुछ देर बाद वह फिर से मेरे फ्लैट में आयी। उस समय मैं कोई किताब पढ़ने में मशगूल था। आते ही उसने मेरे हाथ से किताब छीन ली और नाराजगी जताते हुये कहा-एक तो आप इतने दिन बाद आये व उस पर मुझसे बात करने के लिए आपके पास दो मिनट का समय भी नहीं है। बस मैं ही पागल हूँ, आप तो कोई चीज समझना नहीं चाहते…..लीजिये मेरी डायरी पढ़कर शायद कुछ समय में आ जाये। इतना कहकर वह अपनी डायरी मेज पर छोड़ कर चली गयी। उसके जाने के बाद मैंने दरवाजा बन्द कर ट्यूबलाइट बुझा दी और टेबल-लैम्प जलाकर डायरी के एक-एक पन्ने को उत्सुकता से पलटने लगा। डायरी में लिखे एक-एक शब्द मेरे जेहन में उतरते गये। बार-बार मैं अपनी आँखों को छूकर आश्वस्त होता कि यह कोई सपना नहीं वरन सच्चाई है। प्रिया मुझे इस हद तक प्यार करती है, मैंने कल्पना भी नहीं की थी। मैं यह सोचकर भी चिन्तित हो उठा कि यदि भाभी को इस सम्बन्ध मेंं कुछ पता चल गया तो वे क्या सोचेंगी। यद्यपि मेरे और प्रिया के बीच उम्र का फासला बहुत ज्यादा नहीं था, पर अन्ततः उसकी मम्मी को मैं भाभी कहकर सम्बोधित करता था और वे भी मुझ पर अगाध विश्वास करती थीं। प्रिया ने तो मुझे एक बहुत बड़े धर्मसंकट में डाल दिया था। प्यार का यह मेरा पहला अनुभव था। पर यह इस रूप में सामने आएगा, मैंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था। कभी मेरे सामने भाभी का चेहरा घूमता तो कभी प्रिया का। दोनों में से मैं किसी को भी दुखी नहीं करना चाहता था, पर हालात यूं बने कि दोनों को एक साथ खुश रखना भी सम्भव नहीं था। यह जीवन का वो फलसफां था, जो किसी से कहा भी नहीं जा सकता था और मैं भी किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुँच पा रहा था।
इस बीच भाभी से तो मेरी बातें पूर्ववत होती रहीं, पर प्रिया जरा कम ही बातें करती। जब भी मैं उसके घर में बैठता वह कनखियों से मुझे देखती और नजर मिलते ही निगाहें फेर लेती। आखिर हारकर मैंने एक दिन प्रिया को अपने फ्लैट पर बुलाया और बहुत प्यार से ऊँच-नीच समझाने की कोशिश की। उसे मैंने स्पष्टतः बताया भी कि उसे मैं उस निगाह से नहीं देखता और अभी उसकी उम्र भावनाओं में बहकर जीवन बर्बाद करने की नहीं वरन् पढ़ाई-लिखाई करने की है। पर उस पर तो मानो प्यार का भूत सवार हो चुका था। उसने स्पष्ट शब्दों में घोषणा कर डाली कि- मुझे उम्र में इतनी भी छोटी मत समझिये कि मैं चीजों का फर्क नहीं समझती। आपकी मेरे प्रति क्या भावना है, यह तो मैं नही जानती पर मैं आपसे सच्चा प्यार करती हूँ और आपके सिवा मेरी जिन्दगी में कोई नहीं आ सकता। इतना कहकर मेरे कन्धे पर अपना सर रखकर वह फूट-फूट कर रोने लगी….. मैं आपका धर्मसंकट समझती हूँ, पर अपने दिल को कैसे समझाऊँ! आपके बिना हर कुछ अधूरा सा लगता है। क्लास में भी पढ़ाई में मन नहीं लगता, बस पन्नों पर आपका और अपना नाम लिखा करती हूँ, अब आप ही बतायें मैं क्या करूँ? अनायास ही मेरी अंगुलियाँ उसके सर को सहलाने लगी थीं। कुछ देर बाद उसने अपना चेहरा मेरे कन्धे पर से उठाया और भावावेश में आकर मेरे गालों पर अपने होंठ रख दिये। इससे पहले कि मैं कुछ समझ पाता वह मुझे अकेले छोड़ चली गई थी।
जाते-जाते मेज पर उसने एक पत्र छोड़ दिया था। मैंने उसे उठाया और पढ़ना आरम्भ किया- ”मैं जानती हूँ कि मैंने आपको एक अजीब धर्मसंकट में डाल दिया है पर इस सच्चाई को स्वीकारिये कि आपके दिल में भी मेरे लिए जज्बात हैं। आप खुद सोचिये कि जिस दिन मैं आपसे बात नहीं करती, आपको कैसा लगता है….. आपको खुद ही जवाब मिल जायेगा। मैं नहीं चाहती कि आपके लिए दुःख का कारण बनूँ, मै आपको हमेशा सुखी देखना चाहती हूँ। मैं चाहती हूँ कि आप जिन्दगी में सफलता की उन ऊँचाइयों को छुयें जहाँ मैं गर्व से महसूस कर सकूँ कि आप मेरे प्यार हैं। जरूरी नहीं कि हम समाज को दिखाने के लिए एक बन्धन में बंधे हीं, पर हमारी आत्मा एक दूसरे को स्वीकार कर चुकी है। उसके लिए शारीरिक मिलन का कोई अर्थ नहीं…… आप यह क्यूँ भूलते हैं कि राधा ने भी कृष्ण से प्यार किया था, पर दोनों किसी वैवाहिक बंधन में नहीं बँध सके। इसके बावजूद भी आज लोग राधा-कृष्ण को पूजते हैं। कृष्ण जी ने कितनों से ही रासलीला रचायी, रूक्मिणी से शादी की, कितनों के उद्धार हेतु उनसे विवाह किया पर आज भी जब कृष्ण का नाम आता है तो अपने आप ही राधा का चेहरा भी उनके साथ एकाकार हो जाता है……. ऐसा ही रिश्ता मेरा और आपका भी है। मैं आपको किसी भौतिक बन्धन में नहीं बांधना चाहती पर जिन्दगी के किसी भी मोड़ पर अपने को अकेला मत समझियेगा। आपकी प्रिया सदैव आपके साथ होगी….. !
सिर्फ आपकी
प्रिया
पहली बार लगा कि प्यार व्यक्ति के वजूद को कितना महान बना देता है। मैं सोच भी नहीं सकता था कि इतनी कम उम्र में प्रिया इतना दार्शनिक और आध्यात्मिक विचार भी रखती होगी। वैसे भी प्यार किसी उम्र का मोहताज नहीं होता। धीमे-धीमे प्रिया के व्यवहार में गम्भीरता और मेरे प्रति अधिकार भावना आती गई। वह मेरी हर छोटी-बड़ी बात का ख्याल रखने लगी थी। कभी-कभी जब मैं उसे रोकता तो हँसकर कहती- ” पता नहीं हम इस शहर में कितने दिन के मेहमान हैं । जब मैं चली जाऊँगी तो जैसे रहना होगा, वैसे रहियेगा। तब कोई रोकने वाला नहीं होगा।” ऐसा कहते समय उसकी आँखों से आँसू छलक पड़ते थे।
वक्त भी कभी-कभी बहुत बेरहम हो जाता है। कुछ ही दिनों बाद पता चला कि प्रिया की मम्मी का दूसरे जिले में स्थानान्तरण हो गया है। उन्होंने अपना स्थानान्तरण रूकवाने के लिए बहुत कोशिश की पर सब बेकार। उन लोगों ने धीमे-धीमे अपने सामान की पैकिंग करना आरम्भ कर दिया। प्रिया और उसकी मम्मी दोनों की ही अाँखों में मुझसे बिछुड़ने का गम था….. आखिर एक परिवार सा रिश्ता जो बन गया था। प्रिया को अक्सर आँखों ही आँखों में रोते देखता पर अपने दिल को मजबूत किये हुए था। आखिर वह दिन भी आ गया जब उनके जाने का समय आ गया। काफी देर तक मैं उनके साथ बैठा रहा। कुछ देर के लिए प्रिया की मम्मी किचन की ओर गईं तो प्रिया मेरे करीब आकर बैठ गई। मेरे दोनों हाथों को अपने हाथों मे लेकर बोली-याद है न वह राधा-कृष्ण वाली बात, भूलियेगा नहीं….. जिन्दगी में जब भी किसी मुकाम पर पहुँचियेगा तो हमें भी याद कर लीजियेगा। फिर हँसते हुए बोली आखिर हमारा भी कुछ अंश आपमें है। इतना कहकर वह मुझसे पागलों की तरह लिपट गयी, उसकी आँखों से आँसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे……. शायद वह रात भर रोई थी क्योंकि उसकी आँखें सूजी हुयी थीं।
उनका सारा सामान ट्रक से जा चुका था। मैं उनके साथ रेलवे स्टेशन तक गया था। प्रिया एक क्षण के लिए भी मेरा हाथ नहीं छोड़ रही थी। ट्रेन छूटने को तैयार थी और प्रिया मेरे हाथों को जोर से भींच रही थी, शायद कुछ खोने का एहसास था। ट्रेन चली तो उसके साथ मैं भी प्रिया का हाथ पकड़ कर कुछ देर तक दौड़ता रहा पर टे्रन की रफ्तार तेज होते ही हमारा हाथ छूट गया। मैं जड़वत खड़े होकर उसके हिलते हाथों को दूर जाते देख रहा था मानो वे दोनों हाथ फैलाये मुझे बुला रही हो। जब दिलो-दिमाग थोड़ा शान्त हुआ तो आॅटो करके अपने फ्लैट की ओर चल दिया। अचानक उस हाथ को जिसे प्रिया ने थाम रखा था देखा तो कागज का एक मुड़ा-तुड़ा टुकड़ा नजर आया। खोलकर देखा तो प्रिया के लिखे शब्द थे- ” खुश रहियेगा। मेरे जाने पर उदास होकर मत रोइएगा, मेरी कसम है आपको।” फ्लैट पर पहुँचते-पहुँचते मेरे सब्र का बाँध टूट चुका था, दरवाजा अन्दर से बन्द करके तकिये में मुँह रखकर मैं काफी देर तक रोता रहा। ऐसा लगा जैसे एक अनकहा दर्द उभर कर बाहर आ रहा हो….। मैं प्रिया की आखिरी कसम की लाज नहीं रख पाया था।
– कृष्ण कुमार यादव