भारत सरकार ने देश के युवाओं को रोजगार देने के उद्देश्य से हाल ही में 14 जून को एक नई पहल करने का कार्य किया है, जिसके अंतर्गत भारत सरकार ने सेना में अग्निपथ योजना के माध्यम से युवाओं की भर्ती करने की घोषणा करने का कार्य किया है, इस अग्निपथ योजना की घोषणा केन्द्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह व तीनों सेना के प्रमुखों ने एक प्रेसवार्ता में की थी। भारत सरकार की महत्वाकांक्षी योजना अग्निपथ योजना के तहत केंद्र सरकार का प्लान है कि वह देश की सेनाओं में चार वर्ष के लिए युवाओं की भर्ती करके उनकों अपने पैरों पर खड़ा करते हुए उनके जीवन को अनुशासित बनाएं।
केन्द्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने महत्वाकांक्षी अग्निपथ योजना के बारे में कहा था कि- नौजवानों को सेना में सेवा का अवसर दिया जाएगा, यह योजना देश की सुरक्षा को मजबूत करने और हमारे युवाओं को मिलिट्र सर्विस का अवसर देने के लिए लाई गई है। उन्होंने कहा कि इस योजना से नौकरी के मौके बढ़ेंगे और सेवा के दौरान अजिंत हुनर और अनुभव उन्हें विभिन क्षेत्रों में नौकरी भी उपलब्ध कराएगा।
वैसे इस योजना में कम उम्र के युवाओं को सेना में भर्ती करके चार वर्ष की सेवा के बाद ही रिटायर करने का प्रावधान किया गया है, नौकरी के बाद उन्हें सेवा निधि पैकेज दिया जाएगा और इन जवानों का नाम अग्निवीर होगा, सरकार ने इस योजना की घोषणा में दुर्घटना या मृत्यु की स्थिति में अग्निवीरों को विशेष सहायता पैकेज दिए जाने की भी बात कही है। वहीं इस योजना में भर्ती किए गए जवानों में से भविष्य में सिर्फ 25 प्रतिशत को सेना में स्थायी रूप से रखा जाने का प्रावधान है, कहीं ना कहीं इस बेहद महत्वपूर्ण बिंदु के चलते ही कुछ दिनों से देश के विभिन्न हिस्सों के लाखों युवाओं में अग्निपथ योजना के प्रति बड़े पैमाने पर आक्रोश व्याप्त है। जिसके चलते ही सेना में जाने का सपना संजोए देश में युवाओं के एक वर्ग ने अग्निपथ योजना को विस्तारपूर॑क सही ढंग से समझें बिना ही, किसी भी प्रकार की लाभ-हानि की गणना किये बिना ही, देश के विभिन्न हिस्सों में बड़े पैमाने पर तोड़फोड़, आगजनी करके बहुत ही जबरदस्त ढंग से हंगामा बरपाने का कार्य कर दिया, जो अभी तक जारी है। वैसे आज की परिस्थितियों में धरातल पर देखा जाए तो आधी-अधूरी जानकारी व उकसाने के चलते ही भारत सरकार की महत्वाकांक्षी अग्निपथ योजना के खिलाफ सेना की तैयारी कर रहे लाखों अभ्यर्थियों में बहुत जबरदस्त रोष व्याप्त हो गया है, जिसके चलते देश के विभिन्न क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन चल रहे हैं, कुछ उपद्रवियों ने इस विरोध प्रदर्शन में तोड़फोड़, आगजनी व लूटपाट करके छात्रों के इस आंदोलन को हिंसक बनाने का कार्य कर दिया है। वैसे तो इन सभी प्रदर्शनकारी छात्रों को यह ध्यान रखना चाहिए कि देश में तोड़फोड़ आगजनी व लूटपाट करेंगे और फिर भविष्य में अग्निवीर कहलाएंगे यह आज के समय में संभव नहीं है, क्यूंकि आज देश में सीसीटीवी कैमरा, मोबाइल फोन के कैमरा आदि पर उपद्रवियों के हंगामे की रिकार्डिंग की हर थाने क्षेत्र में भरमार है, आज के समय में उपद्रवियों की पहचान तकनीक के माध्यम से संभव नहीं है, जिस पर सरकार कार्य अवश्य करेगी।
लेकिन इस विरोध प्रदर्शन के पूरे घटनाक्रम का सबसे महत्वपूर्ण विचारणीय तथ्य यह है कि आखिरकार अग्निपथ योजना को जिस वक्त तक देश के दिग्गज सैन्य विशेषज्ञ भी नहीं समझ पाए थे, उस समय ही इस योजना के विरोध करने के लिए छात्रों को आखिरकार किसने बरगलाने का कार्य किया था, हाँलाकि देर सबेर पुलिस की विस्तृत जांच में इसकी परतें अवश्य खुल जाएंगी।
वैसे देखा जाए तो आज भी छात्रों को इस अग्निपथ योजना के बारे में ज्यादा कुछ मालूम नहीं है, लेकिन फिर भी वह हिंसक विरोध प्रदर्शन करके अपने ही वतन की अनमोल संपत्तियों को अपने ही हाथों से ना जाने क्यों क्षति पहुंचाने में व्यस्त हैं। सूत्रों के अनुसार अभी तक रेलवे ने सिर्फ अपने दो जोन के नुकसान के आंकलन का डेटा तैयार किया है, यह डेटा सिर्फ शुक्रवार को हुए नुकसान के आधार पर है, जिसके हिसाब से सिर्फ दो जोन में एक ही दिन में रेलवे को 120 करोड़ रुपए का नुकसान उपद्रवियों ने कर दिया, ऐसे में सबसे अधिक उपद्रव वाले क्षेत्रों में 5 दिनों के नुकसान का अगर औसत निकालें तो रेलवे का नुकसान 600 करोड़ रुपए के लगभग आता है। हालांकि यह आंकलन रेलवे द्वरा तैयार किए गए सिर्फ दो जोन के डेटा को ही आधार मानकर किया गया है, वैसे रेलवे के वास्तविक नुकसान का अनुमान उपद्रव शांत होने के बाद ही पता चल पाएगा। एक समाचार पत्र के अनुसार रेलवे ने यह जानकारी साझा की है कि विगत पाँच वर्षों में रेलवे को विभिन्न दुर्घटनाओं में जितनी क्षति पहुंची है उससे ज्यादा क्षति इन पाँच दिनों मे रेलवे को हुई है।
इन उपद्रवी तत्वों के यह सोचना चाहिए कि एक तरफ तो तुम देश पर प्राण न्यौछावर करने वाले सैनिक बनने का सपना देख रहे हो, वहीं दूसरी तरफ तुम अपने ही हाथों से देश की हजारों करोड़ रुपए की अनमोल संपत्ति को आग के हवाले कर रहे हो, आखिर यह कैसी देशभक्ति है। देश के 13 राज्यों में अग्निपथ योजना को लेकर भयंकर बवाल मचा हुआ है, जगह-जगह हुई पत्थरबाजी, हिंसा, तोड़फोड़ और आगजनी की तस्वीरों ने दुनिया में भारत की छवि को खराब करने व अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान पहुंचाने का कार्य किया है।
वहीं अग्निपथ योजना को लेकर के जल, थल और वायु सेना के अधिकारियों ने साझा प्रेसवार्ता का आयोजन 19 जून को किया, जिस प्रेसवार्ता में सैन्य मामलों के विभाग के अवर सचिव लेफ्टिनेंट जनरल अनिल पुरी ने अग्निपथ योजना का बचाव करते हुए, इस योजना का अग्निवीरों व देश को होने वाले लाभ गिनाए, उन्होंने इस योजना को सशस्त्र बलों के तीनों अंगों के उम्र घटाने का माध्यम बताया और कहा कि उम्र का यह विषय लंबे समय से विचाराधीन था यहां तक कि करगिल समीक्षा समिति ने भी इस पर टिप्पणी की थी। लेफ्टिनेंट जनरल पुरी ने कहा कि सरकार अग्निपथ योजना को लागू करने की दिशा में आगे बढ़ रही है। उन्होंने देश के युवाओं से अपना विरोध प्रदर्शन खत्म करने की अपील की। उन्होंने हिंसा आगजनी करने वाले उपद्रवियों को सीधी चेतावनी देते हुए कहा कि अग्निपथ योजना वापस नहीं ली जाएगी।
उन्होंने कहा कि सेना की नींव अनुशासन है, जिसमें तोड़फोड़ की कोई जगह नहीं है, हर एक शख्स जो हमसे अग्निवीर में जुड़ेगा, उसको अंडरटेकिंग/शपथ देनी होगी कि उसने कहीं प्रोटेस्ट में हिस्सा नहीं लिया था, तोड़फोड़ या आगजनी नहीं की थी। सभी का पुलिस वेरिफिकेशन कराया जाएगा और अगर किसी के नाम एफआईआर दर्ज मिलती है, तो वह सेना में शामिल नहीं हो सकता है। लेकिन अफसोस इस सबके बाद भी लगातार देश के विभिन्न हिस्सों में उपद्रव जारी है, एक तरफ तो चंद युवा देश पर मर मिटने के लिए तैयार बैठे हैं, वहीं कुछ युवा उपद्रव करके अपने ही हाथों से अपने ही चमन को आग लगाएं बैठे हैं। जनरकि पिछले कुछ वर्षों से देश जिस तरह के बेहद तनावपूर्ण हालात से आये दिन गुजर रहा है, उस तरह की स्थिति में देश को विकास के पथ पर अग्रसर करने के लिए तुरंत ही मेहनतकश लोगों व अमन चैन के साथ एकजुटता वाले माहौल की तत्काल सख्त जरूरत है, लेकिन कुछ लोग हैं जो देश में शातिप्रिय माहौल नहीं चाहते, वह हर बात का बड़ा बतंगड़ बनाकर देश को नुकसान पहुंचाने के लिए उतावले रहते हैं, आज हम लोगों व छात्रों को भी इस साजशि को समय रहते समझना होगा और अगर सरकार के किसी कदम से सहमत नहीं हैं तो तोड़फोड़, आगजनी व लूटपाट का रस्ता ना अपनाकर, गांधीवादी तरीके से शांतिपूर्ण ढंग अपना विरोध जताकर देश विरोधी लोगों की साजिशों को देश व समाज के हित में नाकाम करना होगा।
आज वर्तमान परिपेक्ष्य में जब भी आम लोगों की बातचीत में धरना-प्रदर्शन शब्द का ज़िक्र होता है तो हमारे जेहन में जो सबसे पहली बात ध्यान में आती है कि आज कौन से इलाकों में ट्रैफिक जाम लगने वाला है और इससे उन्हें कितनी तकलीफ होगी। कोई ये नहीं सोचता कि जो व्यक्ति धरना प्रदर्शन कर रहा है उसकी तकलीफ क्या है। यानी व्यवस्था से लेकर आम लोगों तक किसी को भी धरना प्रदर्शन से कोई लेना-देना नहीं है। हर कोई इस शब्द को लेकर संवेदनहीन हो गया है क्यूंकि आज ज़्यादातर लोगों के लिए धरना प्रदर्शन का अर्थ सड़क- जाम, नारेबाज़ी, सार्वजनिक संपत्तियों को क्षति पहुँचाना, यातायात के साधनों को सुचारू रूप से न चलने देना, आगजनी, लूटपाट और अफरातफरी का माहौल पैदा करना मात्र होता है। ये अपने आपमें बहुत चिंता की बात है क्योंकि ऐसे हालात में अगर किसी दिन हमें किसी जायज़ मुद्दे के लिए धरना-प्रदर्शन करना पड़ा तो हमारी बात भी कोई नहीं सुनेगा।
कभी-कभी यह आशंका भी कुनमुनाने लगती है कि हमारे देश को एक नशेड़ी की तरह आंदोलनों, धरनों, तीखे आरोपों-प्रत्यागेपों, रैलियों और उत्तेजक बयानों की आदत तो नहीं पड़ गई? विदेशी शक्तियों की दासता से मुक्त हुए 75 वर्ष जीत रहे हैं। देश आजादी का अमृत-महोत्सव मनाने में मस्त है और देश विरोधी ताकतें आजादी के नाम पर उन्माद, आगजनी, भड़काऊ बयानबाजी, हिंसा और तोड़फोड़ में व्यस्त हैं। भीड़ को पुलिस-प्रशासन का भय नहीं रह गया है, कानून की परवाह नहीं है और दंड की चिंता नहीं है क्योंकि हिंसा, आगजनी और तोड़फोड़ पर उतारू भीड़ जानती है कि उसके इन आपराधिक कुकृत्यों पर उसे दंडित करने वाली संवैधानिक प्रक्रियाएं इतनी लंबी हैं कि उसका कुछ बिगड़ने वाला नहीं बड़े-बड़े विपक्षी नेता उसके पक्ष में खड़े मिलते हैं और बड़े-बड़े वक निचली अदालतों से लेकर सर्वोच्च न्यायालय तक उसकी सुरक्षा और उसके हितों की रक्षा के लिए कमर कसकर खड़े हैं।
देश की चुनी हुई संवैधानिक लोकतांत्रिक केंद्र सरकार और राज्य सरकारों के निर्णयों को उग्र हिंसक आंदोलनों के बल पर बदलने, वापस कराने का यह खतरनाक खेल देश की प्रगति, शांति और सुरक्षा के लिए जितना बड़ा खतरा है विपक्षी राजनेताओं के लिए भी उतना ही अशुभ और विनाशकारी है क्योंकि भविष्य के निर्वांचनों में यदि ये सत्ता में आए तो यही हिंसक उन्मादी भीड़ उनकी राजनीति का पथ भी कंटकाकीर्ण कर देगी और तब उनके लिए भी लोकतांत्रिक मानमूल्यों का संरक्षण करना कठिन होगा। अतः उग्र-हिंसक आंदोलनों को उकसाना, दंगे भड़काना किसी के भी हित में नहीं है—ना सत्तापक्ष के, ना विपक्ष के और ना जनता के।
उग्र-हिंसक प्रदर्शन भी आतंक का ही एक रूप हैं जो समाज और शासन-प्रशासन पर अनुचित दबाव डालकर अपनी बात मनवाने का प्रयत्न करते हैं। लोकतांत्रिक व्यवस्था में ऐसे दबाव स्वीकार नहीं किए जा सकते, किए भी नहीं जाने चाहिए क्योंकि इनसे राज्य-सत्ता की दुर्बलता प्रकट होती है और दबाव डालने वाली अलोकतात्रिक ताकतों का मनोबल बढ़ता है। देश एक अघोषित अराजक आपातकाल की ओर जा रहा है। राजनेता अपने- अपने दलों का हित ध्यान में रखकर निर्णय ले रहे हैं अतः हम नागरिकों का दायित्व है कि वर्ग, धर्म आदि के खांचों में विभाजित राजनीति और उसके रहनुमाओं के चंगुल से निकलकर देशहित में स्वयं निर्णय लें और आपराधिक मानसिकता वाले कथित नेताओं के हाथों में हथियार बन कर अपने ही देश की देह लहूलुहान ना करें। राष्ट्र की एकता, अखंडता और स्वायत्तता के लिए समर्पित हों।
निश्चित तौर पर सरकार की इस लोकप्रिय भर्ती प्रणाली मे न सिर्फ बहुत सारी त्रुटियाँ दिख रही है मगर इसका समाधान तो संवाद से ही न निकाल सकता है। हिंसा किसी भी समस्या का समाधान कभी हो ही नहीं सकता है। समूची दुनिया भारत को अहिंसा के नीतियों पर चलने वाला देश के रूप में जानती और पहचानती है। जिसके आदर्श पुरुष महात्मा गांधी हैं। और गांधी के देश में ही हर बात पर हिंसा… !