पिछले साल के जाने और नए वर्ष के आगमन पर अमृता प्रीतम की एक कविता है- जैसे दिल के फिकरे से, एक अक्षर बुझ गया, जैसे विश्वास के कागज पर, सियाही गिर गयी, जैसे समय के होंठों से, एक गहरी सांस निकल गयी और आदमजात की आँखों में, जैसे एक आंसू भर आया, नया साल कुछ ऐसे आया।
लम्हा दर लम्हा, बातों ही बातों में एक और साल 2022 हमसे अलविदा हो रहा है और नववर्ष 2023 हर्षोल्लास के साथ दस्तक दे रहा है। किन्हीं के लिए साल 2022 जल्दी-जल्दी गुजरा होगा तो किन्हीं के लिए विलंब से बीता होगा। जिनके लिए बुरा रहा है। उन्हें अपना यह अतीत भूलकर आने वाले कल के बारे सोचना होगा। क्योंकि यह नववर्ष नये उत्साह, उमंग, हर्ष, नवनिर्माण व नूतन संकल्पों का पावन प्रसंग है। यह हमें बीते साल की गलतियों व भूलों को सुधारकर जीने का एक नया अवसर प्रदान करता है। दरअसल, जीवन पल-पल के सौम्य धागे से बुना हुआ है।
यह समय पिछली घटनाओं पर नजर डालने का है, ताकि नए साल में उससे कुछ सबक लिया जा सके, साथ ही भविष्य की योजनाओं के निर्माण का भी यह समय है। हर साल अनेक उतार-चढ़ाव और खट्टे-मीठे अनुभव देकर जाता है। जिंदगी में उतार–चढ़ाव जीवन का अभिन्न अंग है। इनसे बचा नहीं जा सकता है, परंतु नया साल हमें एक नई शुरुआत करने को प्रेरित करता है। इसलिए समय हमारे जीवन का महत्वपूर्ण अंग है।
दिसंबर जाने को आतुर है और हम बार-बार पीछे मुड़कर देख रहे हैं। इस साल ऐसा हुआ, वैसा हुआ। अक्सर हम उपलब्धियों को याद नहीं करते। टूटी हुई कड़ियाँ याद आती हैं, रिसते हुए दुःख मन को कचोटने लगते हैं। वे गलतियाँ बार-बार सामने आ खड़ी होती हैं, जिनकी वजह से पराजय का मुंह देखना पड़ा। अपने से बिछुड़े हुए मित्र याद आते हैं। अपनी कुटिलताएँ, अपना गुस्सा, अपने कठिन फैसले, सब एक के बाद एक सामने से गुजरने लगते हैं। दिसम्बर के महीने में कोई नयी शुरुआत करने की नहीं सोचता, न नये संकल्प लेता है। लेकिन दिसम्बर के आखिरी दिनों में वह उमंग और उल्लास से भर जाता है, शायद इसीलिए कि जो बीत गया सो बीत गया। अब हम शुरू से शुरू करें।
ग्लेडस्टन सरीखा प्रतिभाशाली व्यक्ति अपने जेब में एक छोटी-सी पुस्तक लेकर हमेशा निकलता था। उन्हें चिंता रहती थी कि कहीं कोई घड़ी व्यर्थ न चली जाए। उनके लिए समय अमूल्य धन था। वैसे देखा जाए तो धन मनुष्य कृत संचय होने के कारण इसे चोर चुराकर तो शक्तिशाली छीनकर ले जा सकता है, परंतु समय ईश्वर प्रदत्त सम्पत्ति होने के कारण ऐसी वारदात नहीं हो सकती। इसलिए हमें भी प्रत्येक पल का सदुपयोग करते हुए जीवन को ऊंचा उठाने का प्रयास करना चाहिए।
अतीत की चिंता नहीं करनी चाहिए। किसी विद्वान ने इस संदर्भ में उचित ही कहा है कि- ‘अतीत भविष्य की प्रयोगशाला है।’ अतीत में अपनी कमियों व गलतियों से सबक लेने भविष्य में उसे न दोहराने का प्लेटफार्म वर्तमान है। इसी को लक्षित करते हुए खलील जिब्रान ने कहा है – ‘बीता हुआ कल आज की स्मृति है और आने वाला कल आज का स्वर्ण है।’
अतः वर्तमान हमारे पास है। इसलिए प्रत्येक पल का सदुपयोग जीवन की सतह पर इस तरह आनंद से व्यतीत करना चाहिए, जिस प्रकार हरित पर्ण पर ओस की बूंदें नृत्य कर रही हो। जो समय चिंता में गया, समझो कूड़ेदान में गया। जो समय चिंतन में गया, समझो तिजोरी में जमा हो गया।
अतः समय ही सम्पत्ति है, श्रृंगार व अमृततुल्य है। इसी के द्वारा हम जीवन को ऊंचा उठा सकते हैं। मार्क ट्वेन का कहना है कि- ‘हमें जो सबसे बहुमूल्य वस्तु मिली है, वह है समय। अतः उसे किफायत से खर्च करना चाहिए। समय का इंतजार इंसान तो कर सकता है लेकिन समय इंसान का इंतजार नहीं कर सकता। समय का प्रवाह अविरल है। यह न रुकता है और न थकता है, यह तो सतत चलता है। इंसान के पास सीमित समय हैं। यह इंसान के विवेक और बुद्धि पर निर्भर करता है कि वह इस समय का सदुपयोग करता है या दुरुपयोग। समय मुट्ठी में बंद रेत की तरह फिसलता जाता है। दरअसल, वक्त को जाते वक्त नहीं लगता। दीगर, यह भी सच्चाई है कि हर इंसान को अपना अतीत सुहाना लगता है।
जो बीत गया, वह और बेहतर हो सकता था। लेकिन आज बह एक बेहतर शिक्षक बन कर हमारे सामने है। जो बीत गया, उसने हमारे लिये जीवन को एक लय दी है। वह हमारे भविष्य की नींव में चुपचाप पड़ा रहेगा। वह अब हमसे कुछ नहीं मांगेगा, लेकिन हमारी यादों को सहलाता रहेगा। वह जितना पीछे छूटता जायेगा, उतना मीठा भी होता चला जायेगा। जो बीत गया, वह हमारे जीवन की घटनाओं की छँटनी करना जानता है। क्या रखना, क्या छोड़ देना, यह जानता है वह। जो बीत गया, वह एक साल आपके भविष्य की घोषणा करते हुए जायेगा। वह मुँह छुपाकर नहीं जायेगा, अपितु जाते-जाते बताता जायेगा कि आने वाले साल में आपको कैसे चलना है, किनके साथ उठना-बैठना है, किनके साथ कदमताल करनी है।
लोग दिसम्बर को साल के अंत की तरह देखते हैं। वे इसे सूर्यास्त की तरह देखते हैं। वे ऐसे देखते हैं, जैसे उनके जीवन का एक अध्याय समापन की ओर हो। दिसम्बर हमारे लिये कोमल धूप लेकर आता है। हमारे भीतर स्वास्थ्य को लेकर जो टूट-फूट हुई है, उसकी मरम्मत करने के लिए आता है। वह उन सपनों को तराशने के लिये आता है, जो कभी हमने अपने भविष्य के लिये देखे हैं। वह हमारे साथ जीवन के गीत साले गाने के लिये आता है। वह हमें निसर्ग के हिंडोले में बुलाने के लिये आता है। वह आता है, एक कहानी सुनाने के लिये, जिसमें रात कितनी भी लम्बी हो, वह अलविदा कहकर लौट जाती है नई सुबह का उपहार।
हमें ऐसा अभ्यास हो चला है कि हम दिसंबर लगते ही नये साल के स्वागत की तैयारियाँ शुरू कर देते हैं। यह होना भी चाहिए, लेकिन होना तो यह भी चाहिए कि हम दिसम्बर का महीना सिंहावलोकन के लिये छोड़ दें। यह महीना सिंहावलोकन का है, इसे खाली नहीं जाने दिया जा सकता। सिंहावलोकन करते समय केवल बीत चुके कुछ महीनों पर नहीं, पूरे अतीत पर विहंगम दृष्टि डालिए। हम जितना जा सकते हैं, जाने का प्रयत्न करना चाहिए। सिंहावलोकन करते समय बचपन याद आना चाहिए। वे मोड़ याद आना चाहिए, जिन्होंने हमारी दिशा बदल दी थी। वे लोग याद आना चाहिए, जो आपको सोना बनाने में कसौटी बन गये। वे जगहें, वो वन-उपवन, वे रास्ते, वो पगडंडियाँ याद आनी चाहिए, जिन्होंने हमारी साँसों को रवानी दी। तब हम पायेंगे कि दिसंबर का महीना हमारे लिये नये वर्ष की सौगात लेकर खड़ा है।
दिसंबर प्रेम का मधुमास है। यह प्रेम की ऊष्मा को महसूस करने का समय है। यह भविष्य का स्वागत करने के लिये तोरणद्वार सजाने का महीना है। यह एक खंडकाव्य है, जो सुखान्त है। यह एक यज्ञ है, जिसकी पूर्णाहुति में दिन बड़े हो जाते हैं, रातें सुकून देने वाली। दिसंबर एक आश्वासन है कि अब समय अनुकूल होगा। दिसम्बर आ खड़ा हुआ है मंगलकलश और कुंकुम-अक्षत लेकर। कितना भाग्यवान है यह, कि नवागत वर्ष की नई सुबह इसी की गोद से उछलती हुई सबके घरों में दस्तक देगी।
दिसंबर के महीने में साल भर के कर्मों का बही खाता खोलकर मत बैठिए। न पुण्य आपने किये हैं, न पाप। वे परिस्थितियाँ थीं, जिनमें आप थे। इसलिये न तो किसी बात का संताप हो, न गिला-शिकवा, न थोथा अहंकार। अपने भीतर झाँक लीजिए एक बार, हल्का-फुल्का विश्लेषण कीजिए और फिर से चल पड़िए उस यात्रा पर, जिसमें कोई पड़ाव नहीं है। दिसंबर और जनवरी के बीच भी कोई पड़ाव नहीं है। दो साँसों के बीच भी कोई पड़ाव नहीं होता। इसलिये मनीषी, पराक्रमी और वीर पुरुष जीवन भर अविराम यात्रा में होते हैं। दिसंबर आपके साथ चलते हुए नये साल की पहली जनवरी में मिल जायेगा। वह विदा नहीं लेगा, वह कहीं छूटेगा नहीं। एक यही दिसंबर है, जो नये साल की धड़कन से जुड़ जाना जानता है। सोचिए, नव वर्ष की कितनी घनीभूत इच्छाओं का शिल्पकार है यह दिसंबर।
तो चलिए, यह दिसंबर है। यह अपने आखिरी सप्ताह में आपके पूरे परिवार को एक साथ जोड़ने का पुण्य कमा कर ही दम लेगा। शीतकालीन अवकाश के फुरसती पल दिसंबर ने ही तो बनाये हैं। दूर-दूर के स्कूल-कॉलेजों में पढ़ने वाले बच्चे अभी से इंतजार में हैं, कि इकत्तीस दिसंबर दौड़ लगाकर पास आ जाए। दिसंबर के पास कम से कम पिछले ग्यारह महीनों के वे अनुभव हैं, जो आपके-हमारे साथ जुड़े हैं। कुनकुनी धूप में बैठिए अपने परिवार के साथ, और ग्यारह महीनों का एल्बम पलटते जाइए, निहारते चले जाइए। यह दिसंबर ही है, जो किसी बड़े-बूढ़े की तरह या सान्ता क्लाज की तरह हमारे ऊपर अपनी जान छिड़क देगा, और हम-आप वाह-वाह करते हुए नये वर्ष के उत्सव में डूबते चले जायेंगे।
नववर्ष ऐसे समय में दस्तक देता है जहां शीतलहर व समुद्ध के ठंडे होते जल के कारण कई जीव-जंतु बेमौत मर रहे होते है। लेकिन इसी विषम व दुःख की घड़ी से निकलकर हर परिस्थितियों से लड़ने का साहस बांधने के लिए विश्व के हर कोने में नववर्ष मनाया जाता है। जहां संवुक्त राज्य अमेरिका में लोग 31 दिसंबर की पूर्व संध्या पर देर रात तक पार्टियां करके नववर्ष के आगमन का उत्सव मनाते हैं तो वहीं चीन के लोग 17 जनवरी और 19 फरवरी के बीच में नया चाँद देखकर नववर्ष का स्वागत करते हैं। चीन में समारोह के रुप में मनाये जाने वाले इस नववर्ष को हथुआन टैनह कहा जाता है। इस दौरान वे सड़कों पर लालटेन की रोशनी करते हैं ताकि मार्ग को प्रकाशित किया जा सके। स्कॉटलैंड में, नया साल हहोगमनीह कहलाता है। स्कॉटलैंड के गांवों में, तारकोल के बैरल में आग लगा कर सड़कों पर नीचे लुढ़का दिया जाता है। इस अनुष्ठान के प्रतीक का अर्थ है कि पुराने साल को जला कर नए साल को प्रवेश करने की अनुमति दी गईं है। नए साल के दिन को ग्रीस में सेंट बासिल के महोत्सव के रूप में मनाया जाता है। बच्चे इस आशा से अपने जूते छोड़ देते है ताकि संत बासिल, जो अपनी दास लिए प्रसिद्ध थे आएंगे और उनके जूतों को तोहफों से भर देंगे। यहूदी नव वर्ष को ‘रोश हशानाह’ कहा जाता है। यह एक पवित्र समय है जब यहूदी अतीत में किए गए गलत कार्यों को याद करते हैं, और फिर भविष्य में बेहतर करने का वादा करते हैं। विशेष सेवा सभाएं आयोजित की जाती हैं। बच्चों को नए कपड़े दिए जाते हैं और फसल के समय को लोगों को याद दिलाने के लिए नववर्ष की रोटियां पकाई जाती हैं। ईरान का नया वर्ष मार्च में मनाया जाता है। ये न केवल सौर कैलेंडर के अनुसार नए साल की शुरूआत है, वरन, ‘बसंत की शरूआत’ भी होती है। जापान में नए साल के दिन सभी लोग नए कपड़े पहनते हैं और घरों को पाइन की शाखाओं और बांस के साथ सजाया जाता है जो लंबे जीवन का प्रतीक है। यूरोपियन देशों जैसे इटली, पुर्तगल और नीदरलैण्ड में परिवारों पहले चर्च सेवाओं में भाग लेने के साथ नये साल की शुरूआत करते हैं। बाद में, वे अपने मित्रों और रिश्तेदारों के यहां जाते हैं। इटली में, लड़कों और लड़कियों को नववर्ष दिवस पर पैसे का उपहार दिया जाता हैं। इस तरह पूरे विश्व में अलग-अलग तरीको और तारीखों के साथ नववर्ष मनाया जाता है।
और अंत में हरिवंश राय बच्चन की कविता की चंद पंक्तियाँ…
वर्ष पुराना, ले, अब जाता
कुछ प्रसन्न– सा, कुछ पछताता
दे जी भर आशीष, बहुत ही इससे तूने दुख पाया है।
साथी, नया वर्ष आया है।
उठ इसका स्वागत करने को
स्नेह बाहुओं में भरने को
नए साल के लिए, देख, यह नई वेदनाएं लाया है।
साथी, नया वर्ष आया है