हम किसी अस्पताल में जाएं और वहां लम्बा चौड़ा बिल इलाज से पहले या इलाज के दौरान मिल जाए तो भी हम कहेंगे ‘चलो कोई बात नहीं’। किसी ट्रेन में जाएं और वहां अगर वातानुकूलित कोच का टिकट बुक किया है तो सारा सामान घर उठा कर ले आते हैं या उसे तोड़-फोड़ देते हैं ‘चलो कोई बात नहीं’। स्कूलों में एडमिशन के लिए लाखों-करोड़ों डोनेशन के नाम पर देते हैं ‘चलो कोई बात नहीं’। न्यूज चैनल में बेवजह और फिजूल की बहस देखकर वक्त जाया करते हैं ‘चलो कोई बात नहीं’। पर्यावरण दूषित हुआ नहीं है हो चुका है फिर उसके लिए सोशल मीडिया पोस्ट डालते रहते हैं ‘चलो कोई बात नहीं’।
ऐसे हिंदुस्तान में न जाने कितने ‘चलो कोई बात नहीं’ मूवमेंट आते हैं। फिर भी हम नहीं सम्भलते, नहीं जागते हैं। क्यों क्योंकि हम भीतर से मर चुके हैं, खोखले और संवेदना हीन हो चुके हैं लेकिन इन सबसे हमें घण्टा फर्क नहीं पड़ता। क्योंकि ‘चलो कोई बात नहीं’ कहकर हर बात टाल जाते हैं।
सोनी लिव पर आई वेब सीरीज ‘चलो कोई बात नहीं’ इन सब मुद्दों पर ही बात करती है। सीरीज में पहला एपिसोड रेलवे को लेकर है। सरकारें आती है और ट्रेनों, प्लेटफार्मों पर वाईफाई की सुविधा देती है। और तो और ऐसी ही टेबलेट, वाईफाई वाली ट्रेन तेजस एक्सप्रेस भी लेकर आई। लेकिन क्या हुआ लोगों ने उसमें तोड़-फोड़ की, नहीं हुई तो रेलवे के सामान को अपना सामान समझ उठाकर चलते बनें। हमने उस अत्याधुनिक ट्रेन पर ऐसा अत्याचार किया कि उसे गरीबरथ बना दिया। भले सरकारें प्लेटफार्म को जापान बनाने की कोशिश करें। लेकिन हमें तो झुमरी तलैया पसन्द है न! ऐसे ही ट्रेन में हमारे आस-पास कोई संदिग्ध व्यक्ति हो तो भी हम उसे नजरअंदाज कर देते हैं। भले उसके द्वारा किए जा रहे कामों से हम खुद अपनी ही जान क्यों न खो बैठें।
ऐसे ही दूसरे एपिसोड में अस्पतालों का जिक्र है जिसमें दिखाया है कि कई बार मरीज डॉक्टर्स पर हमले तक कर देते हैं। कई अस्पताल मरीजों को अपना बैंक का डेबिट कार्ड समझ उसे स्वाइप करते जाते हैं। डॉक्टर भले झोला छाप हो या कैमिस्ट वाला। बाकी डॉक्टर तो हम खुद ही बने हुए हैं। कोई भी छोटी-मोटी बीमारी हो या कोरोना जैसी बीमारी आई तो गले और पेट को हवन कुंड बना डाला।
तीसरे एपिसोड में पर्यावरण को लेकर है। जिसमें प्रदूषण के कारण मौसमों में अचानक परिवर्तन को लेकर बात की गई है। ऐसे ही हर साल हमारे नेता लोग करोड़ो रुपए खर्च करके हर साल क्लाइमेट चेंज पर एक जगह एकत्र होते हैं और खाली बहस करके आ जाते हैं। हम अपने जीवन में इस मां रूपी नेचर की मां-बहन करके रखी हुई है।
चौथा एपिसोड खिलाड़ियों पर बात करता है। जिसमें दिखाया है कि हमने क्रिकेट के अलावा बाकी खिलाड़ियों को या खेलों को तवज्जो देना ही बन्द कर दिया है। ऐसे में कोई खिलाड़ी पदक ले आता है तो हम उसके सम्मान में बोलने, लिखने लगते हैं। लेकिन क्रिकेट का फिर कोई मैच हो या वर्ल्डकप हम उन बाकी खेलों और खिलाड़ियों को विस्मृत कर देते हैं।
पांचवा एपिसोड बच्चों एवं शिक्षा तथा शिक्षा व्यवस्था को लेकर बात करता है। हमें आदत हो चुकी है कि हम अगर 9 से 5 की जॉब कर रहे हैं तो हमारे बच्चे भी वही करके अपना भविष्य सुरक्षित कर ले। लेकिन हम उनकी क्रिएविटी, रचनात्मकता को भूल जाते हैं। हमारा उद्देश्य होता है कि वह बस पढ़ाई करे। न कि कोई लेखक, चित्रकार या कुछ और बने।
छठवां और आखरी एपिसोड हमारे देश की पत्रकारिता पर तंज कसता हुआ दिखाई देता है। अपने कॉमिक पंचों के कारण यह हमारे न्यूज चैनलों की असल सच्चाई को दिखाती है। वहां होने वाली फिजूल की बहसों तथा एक ही बात को रबड़ की तरह खींचकर अलग-अलग ब्रेकिंग न्यूज़ बनाकर परोसने के तरीकों को भी दिखाती है।
ये छहों एपिसोड दरअसल हमारे पूरे भारत की तस्वीर को ही उजागर करते हैं। कॉमिक पंचों के बेहतरीन इस्तेमाल से इस कॉमेडी वेब सीरीज को सजाया गया है। जिससे यह कोई भाषण पेलती नहीं नजर आती। लेकिन अपनी बात भी आराम से रखती है। हालांकि इसका बिखरा हुआ सा लेखन और उसमें कसावट न होने के कारण यह लंबी और कभी-कभी उबाऊ भी लगने लगती है। बावजूद इसके यह जरूरी है न सिर्फ देखनी बल्कि जरूरी है बल्कि इसमें दिखाई और बताई गई बातों पर गम्भीर होकर सोचने के लिए भी मजबूर करती है।
सीरीज में रणवीर शौरी, विनय पाठक स्टैंडअप करते हुए हंसाते-गुदगुदाते और अभिनय करते हुए उसमें खोए से नजर आते हैं। कविता कौशिक, करण वाही, सुरेश मेनन , अतुल खत्री के साथ-साथ अंकुश बहुगुणा , कृति विज , वैभव यादव, अनुप्रिया करोली, इसमीत कोहली, अमित टण्डन, विभा छिब्बर, अशोक पाठक सभी ने मिलकर इस सीरीज में अपना बेहतर अभिनय किया है। निर्देशक सुकृति त्यागी इसे जरा और कस पाती कुछ जगह स्क्रिप्ट राइटरों के हाथों से फिसली रेत को समेट पाती तो यह सीरीज निखरकर सामने आती।
मोहम्मद अनस, मनुज चावला, रोहन देसाई, गुरसिमरन और गुरलीन पन्नू ने मिलकर सीरीज का लेखन तो जानदार किया लेकिन डायरेक्टर और एडिटर की कैंची ही जरा कम धार वाली निकली जो यह सीरीज इतना लोगों तक नहीं पहुंच बना पाएगी। ऐसी सीरीज के लिए माउथ पब्लिसिटी तथा लगातार मिलने वाली प्रतिक्रियाएं ही इसे आम दर्शकों तक इस ओटीटी की भीड़ में अलग खड़ा कर सकेगी। कास्टिंग, सिनेमैटोग्राफी, कैमरा, बैकग्राउंड स्कोर, म्यूजिक, गीत-संगीत के मामले में भी सीरीज अच्छी है। पूरे भारत को एक ही सीरीज या फ़िल्म में कई अलग-अलग एंगल और नजरियों से दिखाने में सीरीज कामयाब होती है। इसकी छुटपुट कमियों, गलतियों को छोड़कर इसे देख लीजिएगा ‘चलो कोई बात नहीं।’
अपनी रेटिंग – 2.5 स्टार