आज दुनिया के हर हिस्से में जबर्दस्त प्रगति हो रही है। यांत्रिक संसाधनों के नेटवर्क हर जगह फैले हैं। हर कोई आगे निकलने के लिए अंधाधुंध भागदौड़ कर रहा है, लेकिन क्या इंसान सुखी हो रहा है? नहीं, बल्कि मनुष्य अपनी जड़ों से दूर जा रहा है। एक तनावपूर्ण वातावरण में वह भटक रहा है। वह इतना स्वार्थी हो गया है कि अपने फायदे के लिए किसी को भी नुकसान पहुंचाता और खुद को सही ठहराता है। यदि हमारे पास मानवता नहीं है, तो हमें मानव कहलाने में शर्म आनी चाहिए। हम इंसान नहीं हैं अगर हमारी आंखों के सामने किसी निर्दोष मासूम के साथ बुरा होता है और हमारे मन में करुणा पैदा नहीं होती है। आज के आधुनिक समय में इंसान अपने कपड़ों, पैसों से जाना जाता है, अपने कर्मों से नहीं, क्यों? मासूम निष्पाप मुस्कान अब सिर्फ एक छोटे बच्चे के चेहरे पर ही देखी जा सकती है। सम्मान और संस्कार समाप्त हो रहे हैं।
एक इंसान जितना शिक्षित, सभ्य और उन्नत दिखता है उतना ही वह हैवानियत से भरा हुआ निकलता है। समाचारों से पता चलता हैं कि समाज में कितनी अमानवीय घटनाएं हो रही हैं। कई गंभीर घटनाओं को तो समाज के सामने कभी उजागर ही नहीं किया जाता है। मनुष्य इतना स्वार्थी हो गया है कि वह पशु और के आवास के साथ-साथ आनेवाली अगली पीढ़ी के हिस्से के प्राकृतिक संसाधनों, ईंधन, स्वच्छ जल, ऑक्सीजन, जंगल, हरियाली, पर्यावरण के क्षेत्र को भी छीन रहे है। प्रकृति कभी भी मनुष्य के साथ भेदभाव नहीं करती है लेकिन मनुष्य करता है। पैसा आजकल भगवान की तरह हो गया है। भ्रष्टाचार, महिलाओं, बच्चों, बुजुर्गों और कमजोरों पर अत्याचार, जातिगत भेदभाव, धोखाधड़ी जैसे गंभीर अपराध हर दिन बड़ी संख्या में हो रहे हैं।
मनुष्य अपने एक रुपए के लाभ के लिए किसी के भी के साथ खिलवाड़ करता है। बड़े पैमाने पर खाद्य और पेय पदार्थों में घातक रसायनों की मिलावट एक ऐसा ही उदाहरण है। आजकल तो रिश्तों में भी मिलावट देखी जा रही है। रिश्तों को कलंकित करने वाले दृश्य समाज में लगातार घट रहे हैं, यानी आपके सामने अपनों की भूमिका और आपकी पीठ के पीछे दुश्मन की हक तरीकों से कमाकर फैशन, नशा, न के नाम पर पैसा बर्बाद कर रहे हैं। नौकरियों में भ्रष्टाचार, हर जगह राजनीतिक हस्तक्षेप, सिफारिश, भेदभाव, अमीर और गरीब के बीच की बढ़ती खाई समाज में असंतोष को बढ़ावा देती है। कितने ही जीवन बस संघर्ष करते हुए खत्म होते दिखते हैं। यहां आम आदमी को अपने अधिकारों के बारे में भी जानकारी नहीं है, जिसका फायदा धूर्त लोग उठाते हैं।
समाज में अज्ञानता मुख्य समस्याओं में से एक है। कई बार ऐसी समस्याओं की अनदेखी करने के कारण गंभीर समस्याएं उत्पन्न होती हैं। कुछ लोग लक्जरी जीवन के लिए करोड़ों-अरबों रुपए खर्च करते हैं तो कुछ लोगों को बुनियादी आवश्यकताओं के लिए हर दिन कई किलोमीटर चलना पड़ता हैं कुछ लोग पानी के महत्व को नहीं समझते हैं और पानी को बर्बाद करते हैं। सड़क के किनारे एक दुर्घटनाग्रस्त, बीमार या असहाय व्यक्ति मदद के लिए पुकारता-रोता है लेकिन कोई मदद नहीं करता है, बल्कि उसकी वीडियो बनाने और तस्वीरें लेने में लोग व्यस्त हो जाते हैं। कुछ जगहों पर छोटे बच्चे भूखे मर रहे हैं लेकिन कोई उनकी ओर मदद के हाथ नहीं बढाता। समाज में लगातार अनाथालय, वृद्धाश्रम बढ़ रहे हैं, संयुक्त परिवार टूट रहे हैं और छोटे घरों में बदल रहे हैं।
आज के मनुष्य में, मैं और मेरा, केवल यह सोच दिखती है। जो स्वयं के लिए सोचते हैं, उनमें दूसरों के प्रति ईष्याभाव बढ़ गया है। दूसरों की सफलता का तिरस्कार करने, दूसरों के दुखों में खुशी मनाने और दूसरों को दोष देने की प्रवृत्ति लगातार बढ़ी है। रिश्तों, दोस्ती, परिवार, आस-पड़ोस, कार्यस्थल, कार्यालय, हर क्षेत्र में यही बात होती है। आपस में ही गुटबाजी कर शीत युद्ध लड़ते रहते है।
आखिर लोग ऐसा व्यवहार क्यों करते हैं? यदि किसी व्यक्ति में मानवता नहीं है, तो वह किस प्रकार का मानव है? समाज में अधिकांश अपराध ईर्ष्या और श्रेष्ठता की भावना से पैदा होते हैं जिनमें सज्जन उलझ जाते हैं, बेईमान सफल हो जाते हैं और ईमानदार अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ता ही रह जाता है। माता-पिता दस बच्चों की देखभाल कर सकते हैं लेकिन दुनिया में इससे ज्यादा दुर्भाग्यपूर्ण क्या हो सकता है कि दस बच्चे एक साथ अपने माता-पिता की देखभाल नहीं कर सकते। कई जगहों पर तो इंसानों की जिंदगी जानवरों से भी बदतर है। जितने जानवर एक दूसरे से नहीं लड़ते उससे अधिक इंसान छोटी-छोटी बातों पर लड़ते मरते हैं।
कोई भी धर्म मनुष्य को दूसरे धर्मों से घृणा करना नहीं सिखाता। सभी धर्म न्याय, शांति और सद्भाव सिखाते हैं। लेकिन केवल इंसान ही धर्म-धर्म में अंतर देखता है। हम इंसान सब एक समान हैं, तो यह भेदभाव क्यों? दुनिया भर के गांवों और शहरों में जातिगत भेदभाव की गंभीर घटनाएं हो रही हैं, जिससे कई बच्चे अनाथ और बेघर हो गए हैं। आज का मनुष्य मानवता की ओर रुख न करते हुए दानवता की ओर बढ़ रहा है दुनिया में हर जगह अच्छे काम की सराहना करनी और बुरे काम को रोकना चाहिए। सभी प्राणियों में मनुष्य के सोचने और समझने की क्षमता अधिक होती है, लेकिन फिर भी इंसान कभी-कभी जानवरों से भी बदतर घटिया काम करता है। प्रेम से लोगों का मन जीतना, दया, करुणा और निस्वार्थ सेवा दुनिया में मानवता का आधार है। मानवता से बढकर में कुछ नहीं है।
हमारे देश की भूमि महान समाज सुधारकों, वीर क्रांतिकारियों और महान व्यक्तित्वों से भरी हुई है। डॉ. अंबेडकर, मदर टेरेसा, महात्मा ज्योतिबा फुले, सावित्रीबाई फुले, स्वामी विवेकानंद, संत समाज के कई लोगों ने अपना पूरा जीवन लोगों की सेवा में लगा दिया। आज भी बहुत सारे प्रबुद्ध जन अपने-अपने क्षेत्रों में जरूरतमंदों की सेवा में खुद को समर्पित कर मानवता को वास्तविक अर्थों में जीवित रखे हुए हैं। चाहे तो यह लोग समृद्धि और विलासिता को जीवन जी सकते हैं लेकिन उन्होंने समाज सेवा करने का फैसला किया। रोते हुए चेहरे पर मुस्कान लाना ही असली खुशी है। जो आध्यात्मिक खुशी किसी भूखे व्यक्ति को भोजन देने से मिलती है, आप उस खुशी को कहीं खरीद नहीं सकते।
आइए हम सभी आज शपथ लें कि हर दिन जितना संभव हो, इंसानियत के लिए कुछ जरूर करेंगे। कभी भी अपने पद का दुरुपयोग न करेंगे, अन्याय का विरोध करेंगे और न्याय का साथ देंगे, हमेशा नियमों का पालन करेंगे, सर्वधर्म समभाव, एकता अखंडता, एक देश एक समाज के लिए काम करेंगे, कभी किसी का हक नहीं छीनेंगे, भ्रष्ट व्यवहार और मिलावटखोरी से दूर रहेंगे एवं हर सप्ताहांत अपने स्वयं के व्यवहार का मूल्यांकन करेंगे। हमारी छोटी सी मदद देश में बहुत बड़ी सफलता की नींव रख सकती है और कई लोगों की जान बचाकर जीवन को खुशहाल बना सकती है। आज भी समाज के हजारों लोग मिल जाएंगे जो देश और विदेश में अपनी सफलता का बिगुल बजाने के बावजूद किसी गांव में गुमनाम और सादा जीवन जीकर पर्यावरण असहाय की मदद कर रहे हैं। जीवन में हमेशा उच्च आदर्श का पालन करें। मानव जन्म मिला है, तो मानव के रूप में जिएं। आडंबर से ऊपर उठकर मानवता को समझें।