डॉ. सोनिया जी ने ‘विकेश निझावन’ जी के जीवन व साहित्य पर गहन अध्ययन एवं विवेचन करके उनके जीवन व साहित्य पर ‘विकेश निझावन : जीवन और साहित्य’ शीर्षक से यह अनूठा शोधपरक जीवनी-ग्रंथ लिखा है। यह पुस्तक, शोधार्थी, लेखक व समीक्षक के लिए प्रेरणादायक संकलन के रूप में अपनी उपादेयता को प्रमाणित करता है।
साहित्य जीवन और जगत् की आलोचना है, साहित्य के इस निकष पर जो विधा सर्वाधिक खरी उतरी है, वह है- शोधपरक जीवनी। यह कृति विकेश निझावन जी के जीवन पर अब तक हुए शोध कार्यों में से एकमात्र ऐसी कृति है, जिसमें उनकी रचनाओं के आधार पर उनके जीवन-चरित के संदर्भ में चेतना को स्पष्ट करने का प्रयास लेखिका ने किया है, और वह अपने प्रयास में सफल रहीं हैं।
विकेश जी पर हुए शोध कार्यों में ही नहीं, बल्कि हरियाणा प्रदेश में रचित शोधपरक साहित्य में श्रीवृद्धि करने वाली इस कृति की समीक्षा प्रस्तुत करते हुए कहा जा सकता है कि विकेश जी बहुमुखी प्रतिभा सम्पन्न साहित्यकार है। उन्होंने अपनी इस बहुमुखी-बहुरंगी प्रतिभा से साहित्य की विभिन्न विधाओं को रंगिमा प्रदान की है, लेकिन इनमें सर्वाधिक चटक रंग कहानियों पर चढ़ाया है। उन्होंने अपनी प्रखर प्रतिभा से साहित्य की अनेक विधाओं को समृद्ध किया है। उनका जन्म, 7 अक्तूबर 1949 को हरियाणा के अम्बाला शहर में हुआ। उनके पिता डॉ श्याम सुन्दर निझावन व्यवसाय से एक डॉक्टर एवं प्रभावी व्यक्तित्व के स्वामी थे। विकेश जी ने हिन्दी में पंजाब विश्वविद्यालय से एम.ए. की। विकेश जी में साहित्य-रचना के बीज बचपन से ही विद्यमान है। उन्होंने 12-13 वर्ष की आयु में जब वे सातवीं कक्षा में थे, तभी से कविता लिखना आरम्भ किया। 10वीं कक्षा में इन्होंने सर्वप्रथम ‘विदा’ कहानी लिखी, जो ‘वीर प्रताप’ पत्रिका में प्रकाशित हुई। 1973 में ‘जाने और लौट आने के बीच’ कहानी ‘सारिका’ पत्रिका में छपी। यह कहानी इतनी प्रसिद्ध हुई कि इसका अनुवाद अंग्रेजी, गुजराती, मलयालम, तेलगू, पंजाबी और उर्दू भाषाओं में हुआ है। घर के सात्विक एवं सुरूचिपूर्ण वातावरण, साहित्य के प्रति उनका अगाध निष्ठा व श्रद्धा, उनकी साहित्य-रूचि और प्रतिभा को परिमार्जन किया है। जीवन में संयम, साधना, शील और मर्यादा के वे प्रतीक है। और इसी का प्रतिफलन उनके साहित्य में भी दृष्टिगोचर होता है। विकेश जी की प्रमुख कहानी संग्रह है-हर छत का अपना दुःख(1982), अब दिन नहीं निकेलगा(1984), महादान(1988), महासागर(1990), आखिरी पड़ाव व अन्य कहानियाँ(1991), मेरी चुनिन्दा कहानियाँ(1994), गठरी(1999), कोई एक कोना(2000), कथा-पर्व(2006), छुअन तथा अन्य कहानियाँ(2015)। विकेश जी केवल कहानी-लेखन में सिद्ध नहीं हैं, वरन् काव्य में भी एक से बढ़ कर एक सुन्दर कृति दी है। उनका प्रमुख काव्य रचनाएँ है- एक खामोश विद्रोह(1983), मेरी कोख का पांडव(1987), एक टुकड़ा आकाश(1996), शेष को मत देखो(2003)। मुखतारनामा(उपन्यास), कोकून(उपन्यास), दुपट्टा(लघुकथा संग्रह), प्यारा-बचपन(भाग-1 एवं भाग-2), बचपन के गीत(भाग-1 एवं भाग-2) इत्यादि कृतियां भी उनके साहित्य के धरोहर के रूप में मानी जातीं हैं। हरियाणा और पंजाब की सांस्कृतिक विरासत उनकी रचनाओं में तप कर निखरी है।
विकेश जी पारदर्शी और संघर्षधर्मी व्यक्तित्व के स्वामी है। मधुरता, सहजता, उदारता, मिलन सारिता, कलाप्रियता आदि उस अनुपम व्यक्तित्व के कुछ चटक रंग है। समाज की उन्नति के ताने-बाने से साहित्य बुनने वाले उनकी साहित्य में समाज की अनुकूलताओं और प्रतिकूलताओं का हृदयस्पर्शी चित्रण है। उन्होंने समाज के बाधक तत्वों पर यत्र-तत्र तीखा व्यंग्य कर उन्हें सुधारने और समाज को शिक्षा देने का प्रयास किया। इनकी साहित्य मानवतावादी विचारों के उज्ज्वल भावों की संवाहक हैं,भाव और शिल्प की दृष्टि से अप्रतिम हैं। साहित्यिक कार्य के छोटे से बीज से बहुत फल देने वाला वृक्ष बन जाता है। जीवन की उन्नति, विकास और आनन्द के लिए हमें अपनी साहित्य के अनुरूप कार्य करने चाहिए। ‘विकेश निझावन’ जी की साहित्य में भारतीय संस्कृति की झांकी प्रस्तुत होती है। इसलिए ‘विकेश निझावन : जीवन और साहित्य’ का अध्ययन महत्वपूर्ण स्थान रखता है।
इस शोधपरक पुस्तक को अध्ययन की दृष्टि से सोनिया जी ने आठ अध्यायों में विभाजित किया है। प्रथम अध्याय का शीर्षक ‘विकेश – व्यक्तित्व एवं कृतित्व’ है, इसमें विकेश जी की जीवन-यात्रा पर प्रकाश डाला गया है। उनके युग और परिस्थितियाँ, जीवन परिचय एवं उनका व्यक्तित्व का विवरण दिया गया है। द्वितीय अध्याय का शीर्षक ‘विकेश – कहानीकार’ है, इसमें विकेश जी की कहानियों पर प्रकाश डाला गया है। जिसके अंतर्गत कहानियों में अंतर्निहित संबंधों की विशद पड़ताल की गयी है। भाव-तन्मयता और अभिव्यक्ति में उनके कहानियों को सर्वदा एक नया भावभूमि पर प्रतिष्ठित कर देते हैं। इसी कड़ी में तृतीय अध्याय है, जिसमें साहित्यकार विकेश जी की कविता-लेखन पर अनुठी विवेचना की गई है। काव्य में अभिव्यंजनापरक बिंब का बड़ा महत्त्व है। इस अध्याय में काव्य में सुन्दर शब्द चयन, अद्भूत शब्द-शक्ति तथा प्रभावशाली अलंकारों पर प्रकाश डाला गया है। विकेश जी की कविताएँ मौन को स्वर देती हैं, ये कविताएँ अपने परिवेश से प्रभावित होती हैं। चतुर्थ अध्याय में, विकेश जी की उपन्यास यात्रा पर प्रकाश डाला गया है। ‘मुखतारनामा’ उपन्यास में भारतीय न्यायिक व्यवस्था, कोर्ट-कचहरी में विलम्ब से होने वाले निर्णय एवं समाज में फैली बुराईयों का अद्भूत चित्रण है। ‘कोकून’ उपन्यास के माध्यम से विकेश जी ने कुछ प्रश्न उठाए हैं। जैसे इन्सान जीवन में क्या देकर जाता है? दूसरा प्रश्न उपन्यास में यह उठता है, कि इन्सान सुरक्षित होते हुए भी असुरक्षित होने का बोझ क्यों लिए चलता है? विकेश जी की उपन्यास मानवीय संवेदनाओं का सार्थक कोलाज़ हैं। पंचम अध्याय उनकी लघुकथा विषय पर आधारित है। ‘दुपट्टा’ लघुकथा संग्रह की अधिकांश लघुकथाओं में सम्बंधों के खोखलेपन को दर्शाया है। षष्ठ अध्याय उनकी बाल साहित्य पर आधारित है। इनकी बाल साहित्य, बच्चों को प्रेरणा देती हुई उनके मानसिक और व्यक्तित्व का विकास करती है। सप्तम अध्याय में साहित्यकार विकेश निझावन का साहित्य में शिल्पगत विवेचन को विकसित करता है। विकेश जी ने उपन्यास, कहानी, कविता, लघुकथा, बाल-साहित्य लगभग सभी विषयों पर अपनी लेखनी चलाई है। इनका भाषा-सौष्ठव बहुत ही उत्तम श्रेणी का है। विषय को ध्यान में रखते हुए, विषय के सभी पक्षों एवं आयामों पर दृष्टिपात करने का प्रयास इस अध्याय में किया गया है। अष्टम तथा अंतिम अध्याय में, उपसंहार शीर्षक से लेखिका सोनिया जी ने अपने अध्ययन का निष्कर्ष प्रस्तुत किया है। इस अध्याय में साहित्यकार की उसके अनुभवों के प्रति सही समझ को विकसित करता है। विकेश जी अपने भोगे हुए जीवन व जीवनानुभावों को पूरी सहजता और ईमानदारी से साहित्य में प्रस्तुत करता है, वह जीवन की समस्याओं और कठिन परिस्थितियों से पलायन नहीं करता, और न ही घबराता है, बल्कि डटकर सामना करता है।
इस तरह हम देखते हैं कि सोनिया जी ने विकेश जी के साहित्य का ही नहीं, बल्कि उनके जीवन का विश्लेषण भी बहुत ही गंभीरतापूर्वक किया। अगर लेखिका सोनिया जी के लेखकीय स्वभाव और उनकी इन शोधपरक जीवनी ग्रंथ को जोड़कर देखा जाए तो भविष्य की एक अच्छी महिला साहित्यकार के साथ-साथ एक प्रखर आलोचक के रूप में भी सोनिया जी का नाम स्पष्ट रूप् से उभरता दिखाई देता है। सोनिया जी, जो भी लिखती हैं, वह महत्वपूर्ण, ज्ञानवर्धक और प्रामाणिकता की दृष्टि से विश्वसनीय कहा जा सकता है।
यह शोधपरक पुस्तक, विकेश जी की साहित्य की अमूल्य धरोहर के रूप मानी जाती है। भारतीय संस्कृति के सांस्कृतिक पक्ष को उभारने के लिए विकेश जी ने भरसक प्रयास किया है। अतः विकेश जी के साहित्य में निहित मानव मूल्य, समाजोपयोगी और जनोपयोगी है। जैसे फूल तमाम दिशाओं से हवा ग्रहण करता है किंतु खिलता अपनी शर्तों पर है, उसी तरह से विकेश जी भी अपनी शर्तों पर जीने और साहित्य को अपनी दृष्टि देकर उसका विकास करने वाले कवि एवं साहित्यकार हैं। यह कृति वास्तत्व में लेखिका का स्वतंत्र रूप से किया गया और निष्पक्ष होकर प्रस्तुत किया गया वह श्रमसाध्य शोध कार्य है, जो शोध के मानदण्डों पर खरा उतरता है, और स्वतंत्र शोध में रुचि रखने वाले अध्येताओं एवं शोधार्थियों को किसी साहित्यकार के जीवन एवं साहित्य पर स्वतंत्र शोध के लिए प्रेरित करने में सक्षम है। वस्तुतः इसके लिए लेखिका हार्दिक अभिनंदन एवं शुभकामनाओं की पात्र हैं।