जब लोगों ने सुना था कि चीन के वुहान प्रांत में फ्लू की तरह का एक वायरस उत्पात मचा रहा है तब तक किसी ने शायद ही सोचा होगा कि चीन की यह महामारी पूरी दुनिया को सदमे में धकेल देगा। इस महामारी ने देखते-देखते 1.4 करोड़ लोगों की जान ले ली और 40 करोड़ लोगों को अपनी चपेट में ले लिया। इस सदमे को आए हुए 5 साल का लंबा वक्त बीत गया है लेकिन इस बीमारी की टीस इतनी ज्यादा थी कि आज भी लोग इसके सदमे से बाहर नहीं हो पा रहे हैं। पर अब एक बार फिर से दुनिया भर के एक्सपर्ट ने नई महामारी आने का अंदेशा व्यक्त किया है। विश्व के नेताओं ने स्वीकार किया कि अगर इस तरह का कोई खतरा आया तो इसका मिलकर मुकाबला किया जाएगा।
द गार्जियन की खबर के मुताबिक एक्सपर्ट का दावा है कि 2025 में एक नई महामारी आ सकती है लेकिन वर्तमान व्यवस्थाओं को देखते हुए एक्सपर्ट का कहना है अगर कोरोना जैसी महामारी आई तो शायद ही हम पहले की तुलना में ज्यादा बेहतर तरीके से इसे मैनेज कर सके। आमतौर पर सरकारों का मानना है कि कोरोना एक अप्रत्याशित महामारी थी, उस समय कठिन परिस्थितियों में इसका बेहतर प्रबंधन किया लेकिन अब अगर कोई महामारी आती है तो इससे निपटने के पुख्ता तरीके उपलब्ध है लेकिन एक्सपर्ट को सरकार की बातों पर भरोसा नहीं है।
एक्सपर्ट का मानना है कि अगली महामारी आएगी ही लेकिन यह कहना मुश्किल है कि यह महामारी कहां से पैदा होगी और कब आएगी। हो सकता है कि यह महामारी 2025 में ही आ जाए। हाल के कुछ खतरनाक बीमारियों को देखते हुए अंदेशा जताया जा रहा है कि अगली महामारी एकदम निकट है।
कोरोना वायरस के बाद एक बार फिर चीन में मौत का आतंक लौट आया है। इस बार ह्यूमन मेटान्यूमो वायरस ने तबाही मचाई है, लेकिन कोरोना की तरह इस बार भी चीन इस वायरस के अटैक पर खामोश है। हालांकि चीन के स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने कहा कि चिंता की बात नहीं है। सांस से संबंधित बीमारियां अक्सर सर्दियों के दिन में बढ़ जाती हैं।
ह्यूमन मेटान्यूमो वायरस (इन्फ्लुएंजा ए) यानी माइकोप्लाज्मा निमोनिया के वायरस तेजी से फैल रहे हैं। ह्यूमन मेटान्यूमो वायरस का पैटर्न ठीक वैसा है जैसा कोरोना का था। यानी ये वायरस भी हवा के जरिए फैल सकता है। यह वायरस बच्चों को ज्यादा प्रभावित करता है। खासतौर पर ऐसे बच्चे जो खांसी, जुकाम और निमोनिया जैसी समस्याओं से पीड़ित हैं। बच्चों और बुजुर्गों का इम्यून सिस्टम कमजोर होता है इसलिए जल्दी प्रभावित होते हैं।
ह्यूमन मेटान्यूमो वायरस की वजह से चीन में एक बार फिर से कोविड-19 जैसी स्थिति बनती हुई नजर आ रही है। वहीं इसके कई मामले भारत में भी देखने को मिले। ऐसे में सवाल ये उठता है कि अब दुनिया के तमाम देश इससे बचने के लिए कौन सा कदम उठाएंगे?
अब इसने भारत में भी दस्तक दे दी है। पांच साल पहले 2020 में भी नया साल शुरू होते ही कोरोना ने दहलाया था। कुछ लोग इसे चीन से जोड़ रहे हैं, तो कुछ 2025 को 2020 की कॉपी बता रहे हैं। क्योंकि ठीक इसी समय आज से पांच साल पहले कोविड-19 ने भी दस्तक दी थी। इसके बाद से पूरी दुनिया में जन-जीवन अस्त-व्यस्त हो गया था। कोरोना महामारी के समय भी ऐसा ही हुआ था, जब चीन ने पूरी दुनिया से सच्चाई छिपाई, जिसका खामियाजा तमाम देशों को बुरी तरह से चुकाना पड़ा।
चीन से शुरू हुआ ह्यूमन मेटान्यूमो वायरस अन्य देशों में भी फैलना शुरू हो चुका है। भारत में भी इसके मामले सामने आए। ह्यूमन मेटान्यूमो वायरस चीन के बाद अब भारत में भी दस्तक दे चुका है। इस वायरस के भारत में अब तक 8 केस सामने आ चुके हैं। यह वायरस बच्चों को ज्यादा प्रभावित करता है। खासतौर पर ऐसे बच्चे जो खांसी, जुकाम और निमोनिया जैसी समस्याओं से पीड़ित हैं। कोरोना वायरस बच्चों को ज्यादा शिकार नहीं बनाता था, लेकिन यह वायरस छोटे बच्चों और बुजुर्गों को ज्यादा चपेट में लेता है। बच्चों और बुजुर्गों का इम्यून सिस्टम कमजोर होता है इसलिए जल्दी प्रभावित होते हैं। इसके संक्रमण से बचने के लिए भी कोरोना जैसी सावधानियां जरूरी हैं।
कुछ साल पहले जिस तरह कोरोना वायरस ने लोगों को परेशान किया था, उसके बाद अब इस वायरस के आने से सभी चिंता में हैं। हालांकि, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा ने पैनिक ना करने की अपील की है और कहा है कि यह वायरस नया नहीं है और इस पर बारीकी ने नजर रखी जा रही है।
भारत दुनिया के सबसे बड़े और सबसे अधिक आबादी वाले देशों में से एक है, जिसकी आबादी 1.4 बिलियन से ज़्यादा है। हाल के वर्षों में अपनी महत्वपूर्ण आर्थिक वृद्धि के बावजूद, भारत अभी भी कई स्वास्थ्य चुनौतियों का सामना कर रहा है जो इसके नागरिकों की सेहत को प्रभावित कर रही हैं। इनमें से कुछ स्वास्थ्य समस्याएँ लंबे समय से चली आ रही हैं, जबकि अन्य उभरती हुई चुनौतियाँ हैं जिन पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है।
भारत में कुपोषण एक बड़ी स्वास्थ्य चुनौती है, जिसमें कुपोषण और सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी का प्रचलन बहुत ज्यादा है। भारत में पाँच वर्ष से कम आयु के 38.4% बच्चे अविकसित हैं, और 21% कमज़ोर हैं। तपेदिक, मलेरिया और डेंगू बुखार जैसी संक्रामक बीमारियाँ भारत में अभी भी प्रचलित हैं और एक बड़ी स्वास्थ्य चुनौती पेश करती हैं। भारत में तपेदिक के वैश्विक बोझ का एक चौथाई से अधिक हिस्सा है, जहाँ हर साल अनुमानित 2.8 मिलियन मामले दर्ज किए जाते हैं। मलेरिया भी भारत में एक बड़ी समस्या है, जहाँ अनुमानित 85% आबादी इस बीमारी के जोखिम में है।
भारत में स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति अच्छी नहीं है। स्वास्थ्य व्यवस्था की कमजोरी की आंशिक जिम्मेदारी 1919 और 1935 के अधिनियमों को दी जा सकती है। इनमें स्वास्थ्य को राज्य के विषय के रूप में रखा गया था। क्षेत्रों का को असमान विकास राज्यों के बीच की स्वास्थ्य सेवा में बड़ा अंतर ला देता है। यूपी और बिहार बुरी स्थिति में हैं, जबकि तमिलनाडु और केरल की स्वास्थ्य सेवाओं की तुलना उच्च-मध्यम आय वाल देशों से की जा सकती है।
स्वतंत्रता के बाद से केंद्रीय स्वास्थ्य बजट नगण्य रहा है। संविधान ने केंद्र के लिए स्वास्थ्य क्षेत्र में समान भूमिका का प्रावधान नहीं किया है। इसलिए राज्यों के बीच स्वास्थ्य बुनियादी ढांचे की खाई चौड़ी हो गई है। नियमों में असमानता है। केंद्र दवाओं के निर्माण के लिए नियम बनाता है। लेकिन लाइसेंस राज्य देते हैं।
सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार को आदेश दिया था कि आपातकालीन और जरूरी देखभाल के लिए नागरिकों को बिना भुगतान के भी सुविधा दिए जाने का प्रबंध किया जाए, लेकिन इसकी जमीनी हकीकत कुछ और ही है। भारत में स्वास्थ्य व्यवस्था की बदहाली का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि यहां 1,050 मरीजों के लिए सिर्फ एक ही बेड उपलब्ध है। इसी तरह 1,000 मरीजों के लिए 0.7 डॉक्टर मौजूद है।
ऐसे में, ग्रामीण भारत, जहाँ 65% आबादी रहती है, कोविड-19 से किसी भी अन्य क्षेत्र की तुलना में अधिक तबाह और तबाह हो गया है। ग्रामीण स्वास्थ्य सेवा भारत के स्वास्थ्य मंत्रालय के सामने सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है। 70 प्रतिशत से अधिक आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है और स्वास्थ्य सुविधाओं का स्तर कम है, इसलिए बीमारियों के कारण मृत्यु दर अधिक है।
बड़ी आबादी के लिए महंगे और निजी अस्पतालों में इलाज कराना तो बहुत दूर की बात है, इतनी बड़ी आबादी के लिए भारत पहले से ही स्वास्थ्य क्षेत्र पर सबसे कम खर्च करने वाला देश है। केवल बेहतर नीतियां बनाने से ही काम नहीं चलेगा, उन्हें अमल में भी लाना होगा। सरकारों में स्वास्थ्य नीति बनाने वालों को सुनिश्चित करना होगा कि इलाज के लिए भटकते मरीजों को सही समय पर सही उपचार मिल सके।
भारत कई स्वास्थ्य चुनौतियों का सामना कर रहा है जो उसके नागरिकों की भलाई को प्रभावित कर रही हैं और सभी नागरिकों की भलाई सुनिश्चित करने के लिए और अधिक काम किए जाने की आवश्यकता है। सरकार को पर्यावरण प्रदूषण, अपर्याप्त स्वच्छता और गरीबी सहित इन स्वास्थ्य चुनौतियों के मूल कारणों को दूर करने पर भी ध्यान केंद्रित करना चाहिए। एक साथ मिलकर काम करके हम इन स्वास्थ्य चुनौतियों का समाधान कर सकते हैं और सभी नागरिकों के लिए एक स्वस्थ और अधिक समृद्ध भारत का निर्माण कर सकते हैं।
चीन से एक बार फिर नया वायरस आतंक फैला रहा है। चीन के अस्पतालों में लंबी-लंबी लाइनें लगी है। हर चेहरे पर मास्क लौट आया है। इतना ही नहीं, चीन एक बार फिर इसे दुनिया की नजरों से छिपाए रखना चाहता है, जैसा उसने कोरोना को लेकर भी किया था। सवाल है कि क्या चीन फिर से दुनिया को नई महामारी देने वाला है। इसे लेकर सभी जगह खौफ है और लोग जानना चाहते हैं कि आखिर यह ह्यूमन मेटान्यूमो वायरस कितना खतरनाक है।
चीन के जैसी स्थिति भारत में ना हो इसके लिए सरकारें तो अलर्ट मोड पर चली गई हैं लेकिन इसमें हम सबों को भी अपनी ओर से पूरी सावधानी बरतने की जरूरत है क्योंकि सावधानी ही सुरक्षा है। पहले से ही हेल्थ सिस्टम पर दबाव है। ऐसे में नई महामारी का झेलना बहुत मुश्किल हो सकता है। राहत की बात है कि यह वायरस उतना जानलेवा नहीं है, जितना कोरोना था।