समझ नहीं आ रहा कि कहाँ से शुरू करूँ! दिमाग में एक साथ कई बातें चल रहीं हैं, न जाने कितना शब्दों में ढाल सकूँगी। दिल पर एक बोझ है, जिसे उतारना भी जरूरी है। 30 जनवरी को मित्र दोलन का मैसेज आया कि “आपको पता है अख्तर भईया नहीं रहे!” सुनकर मैं जैसे कुछ समझ ही नहीं पाई कि ये कह क्या रही है! ऐसा कैसे हो सकता है! एक हँसते-खेलते इंसान के यूँ अचानक दुनिया से विदा हो जाने की सूचना मेरे लिए बेहद दुखद और चौंकाने वाली थी। अख्तर भईया यानी सय्यद अख्तर हुसैन भाई, जिन्हें मैं सईद भाई के नाम से संबोधित करती हूँ। ‘हस्ताक्षर’ के पहले अंक से ही वे इससे जुड़े थे। एक पाठक के रूप में उनका इस पत्रिका से विशेष लगाव रहा। हमेशा शेयर करते थे और टिप्पणी भी अवश्य देते थे। अंक के निकलते ही उनका कॉल आना भी लगभग तय सा ही था।
बीते दो वर्षों से उनसे बात बहुत कम होने लगी थी। गलती मेरी ही रही। अपनी परेशानियों और व्यस्तता में इतनी उलझी रही कि न तो किसी मैसेज का जवाब दे पाती और न ही किसी से बात। बस जितना बेहद जरूरी रहा, उतना ही। रचनात्मक कार्य भी पीछे छूट रहे थे। वे जानते थे कि मैं वैसे भी व्हाट्सएप वगैरह पर सक्रिय नहीं रहती, बातचीत तो बिल्कुल ही नहीं। इसलिए वे प्रायः कॉल ही किया करते थे। दुनिया-जहान की बातें। उनका अम्बिकापुर से विशेष स्नेह रहा। हमेशा उसकी बातें किया करते थे कि कैसे अबकी उसको स्वच्छता में नंबर वन बनाना है। एक जागरूक नागरिक होने के साथ ही वे समाजसेवी भी थे। उनका प्रकृति प्रेम भी ग़ज़ब ही था और मैनपाट घुमक्कड़ी की पसंदीदा जगह। मुझे हमेशा कहते कि “मैनपाट नहीं देखा तो कुछ नहीं देखा।” हमेशा वहाँ की तस्वीरें भेजते, वीडियो भी। जिनमें से कई ‘हस्ताक्षर’ के लिए उपयोग में लेती आई हूँ। मेरे जन्मदिन पर भी फोटो कोलाज़ और वीडियो जरूर ही आता था।
मित्र नीलम ने जब बताया कि “आपको बहुत याद करते थे” तो जैसे मैं अपराध बोध में डूब ही गई। उन्हें ब्रेन ट्यूमर हुआ था और ये बात मुझे उनके देहांत के बाद पता चली। “उन्होंने मुझे बताया क्यों नहीं!” इस बात को सोच मुझे उन पर भी गुस्सा आ रहा था। लेकिन वे तो बिन कहे ही इस दुनिया से विदाई ले चुके थे। नीलम ने पूछा कि “तुमने उनका नए साल वाला वीडियो नहीं देखा था क्या?” “नहीं” कहते हुए मैं शर्म और दुख से गड़ी जा रही थी। दरअसल नए साल पर सईद भाई ने वीडियो भेजा था। इधर नवंबर से सासु माँ का स्वास्थ्य दिनोंदिन बिगड़ता जा रहा था। आगरा कई बार जाना हो रहा था और फिर महीने भर बाद उनका भी निधन हो गया। परिवार में यह आकस्मिक दुख और व्यस्तता के मध्य अन्य सब से संतुलन बना पाना कठिन हो रहा था। सईद भाई के वीडियो पर मेरी नज़र गई तो कवर पर उनकी तस्वीर थी। मैंने तब यह सोचकर क्लिक नहीं किया था कि नववर्ष की शुभकामनाएं होंगी, क्योंकि वह हमेशा भेजा करते थे। कॉल लॉग देखा तो याद आया कि बीच में एक बार उनसे कुछ पल ही बात हुई थी और मैंने कहा था कि कुछ दिनों में करती हूँ बात। उसके बाद हमेशा ये बात दिमाग में तो रही कि सईद भाई से बात करनी है, लेकिन मैं कर न सकी। कहाँ पता था कि वो बाद अब कभी नहीं आ सकेगा।
उनसे कभी मुलाक़ात नहीं हुई, उनके व्यक्तिगत जीवन की भी अधिक जानकारी नहीं है मुझे। लेकिन इतना जानती हूँ कि उनके हृदय में अपने मित्रों और परिवार के लिए बहुत स्नेह था, वे सबकी चिंता करते थे और आवश्यकता पड़ने पर खूब मदद भी। नीलम ने जब वीडियो का बताया तो मेरी चैट से तो डिलीट हो चुका था लेकिन फिर मैंने उसे सईद भाई की टाइमलाइन पर जाकर देखा तो पता चला कि मैं उनकी तस्वीर से भ्रम में आ गई थी। दरअसल वह उन्होंने नए साल के लिए नहीं बनाया था बल्कि उसमें उनके सभी दोस्त उन्हें स्वास्थ्य लाभ की शुभकामनाएं दे रहे हैं। उनके ट्यूमर का पता भी एकाध महीने पहले ही चला था। न जाने मेरी शुभकामनाएं उनके काम आतीं या नहीं पर यह दुख हमेशा रहेगा कि उस वीडियो में उनके लिए दुआएं माँगती, मैं नहीं थी। जब वे अस्पताल में जीवन और मृत्यु के मध्य संघर्ष कर रहे थे, तब उनके सारे अपने उनके साथ थे और मैं इस सबसे अनभिज्ञ अपनी परेशानियों का रोना लिए बैठी थी।
सईद भाई, मैं क्षमाप्रार्थी हूँ कि आपके कष्ट में आपके साथ खड़ी न रह सकी। ईश्वर आपको बहुत सुख से रखे। आप जिस भी दुनिया में गए हैं वहाँ आपको शांति मिले और परिवार को इस आघात से उबरने की शक्ति। हमारी हार्दिक संवेदनाएं सभी परिजनों के साथ हैं। क्या ही कहूँ सांत्वना में क्योंकि उन्होंने जो खोया है, उसकी भरपाई तो कभी न हो सकेगी। सईद भाई के जाने से अम्बिकापुर ने एक पर्यावरण प्रेमी, सजग नागरिक खो दिया है और ‘हस्ताक्षर’ ने अपनी अब तक की यात्रा के साक्षी बने एक अजीज साथी को। ‘हस्ताक्षर’ परिवार आपको श्रद्धासुमन अर्पित करता है। बीते दो-तीन माह से हमारी इस यात्रा में ठहराव अवश्य आ गया था लेकिन आपकी स्नेहिल मुस्कान हमें अब पुनः आगे बढ़ने की प्रेरणा दे रही है।
विदा, सईद भाई!