“मैं हिंदी भाषा की एक और विडम्बना की ओर संकेत करना चाहता हूँ जिसका संबंध साहित्य से नहीं हिंदी में समाज विज्ञान संबंधी सोच और लेखन से है। आजकल हिंदी अधिकांशतः साहित्य और पत्रकारिता की भाषा हो गई है। उसमें समाज विज्ञान के विभिन्न विषयों से संबंधित मौलिक और महत्वपूर्ण चिंतन और लेखन बहुत कम है और जो है कुछ अपवादों को छोड़कर उल्लेख के लायक नहीं है। ऐसा नहीं है कि हिंदी क्षेत्र में समाज विज्ञानों से जुड़े व्यक्ति नहीं हैं, पर जो हैं वे हिंदी के बदले अंग्रेजी में लिखते हैं। ऐसा क्यों है? असल में जब से इस देश में भूमंडलीकरण की आँधी आई है तब से हिंदी क्षेत्र के अधिकांश बुद्धिजीवी स्थानीय होने से पहले राष्ट्रीय बनना चाहते हैं और राष्ट्रीय बनने से पहले अंतर्राष्ट्रीय हो जाना चाहते हैं। यह केवल अंग्रेजी में बोलने और लिखने से हो सकता है, इसलिए वे अंग्रेजी में ही लिखते और बोलते हैं।”
मैनेजर पांडेय इस बात को कई जगह उद्धृत कर चुके हैं। कई बार कह चुके हैं। परंतु आजादी से पहले ऐसा नहीं था। हिंदी में राजनीतिक, आर्थिक ,सोशल साइंस के कई अन्य विषयों पर लेखन उपलब्ध था। द्विवेदी जी का ‘संपत्ति शास्त्र’ तथा देवनारायण द्विवेदी की पुस्तक ‘देश की बात’ हिंदी में अर्थशास्त्र चिंतन की महत्वपूर्ण किताबों में से एक है। यह बात भी हमारे सामने स्पष्ट हो जाती है कि हमारे पास अपनी भाषा में आर्थिक चिंतन की अपनी शब्दावली थी। पर यह अंतरराष्ट्रीय बौद्धिक व्यक्ति होने के कारण हमने खो दी है। इस लेख में हम इन दो पुस्तकों से उपनिवेशवाद आर्थिक चिंतन की विशेषताओं की तलाश करने का प्रयास करेंगे।
इन दो पुस्तकों के आधार पर जब हम उपनिवेशवादी विरोधी आर्थिक चिंतन की बात करते हैं तो सबसे बड़ी समस्या हमारे सामने यह आ खड़ी होती है, कि, दोनों लेखकों ने बहुत से बिंदु पर या यूं कहिए कि पूरी किताब में हर पग–पग पर उपनिवेशवादी आर्थिक चिंतन प्रस्तुत किया है। सब बातों को पढ़कर थोड़ा सा आगे बढ़ेंगे तभी हम विशेषताएं खोज पाएंगे वरना हमारा लेख उनके द्वारा उपनिवेशवादी आर्थिक चिंतन के दायरे में बंधकर रह जाएगा। इसीलिए इस लेख में विशेषताओं को केंद्रि में रखने का प्रयास करा गया है।
मेरी समझ में जो मुख्य विशेषता, यह है कि दोनों लेखक इस बात को कई उदाहरण से पुष्ट करते हैं कि यह जो अंग्रेजी शासन है वह मुगल शासन से अलग है। अंग्रेज भारत का धन लूट कर किसी अन्य जगह भेज रहे है। इसका उदाहरण हम देवनारायण द्वेदी की किताब में नहर और रेल के प्रसंग के बारे में बात करते हुए समझ सकते है। वह पूरा का पूरा, चित्र खींचते हैं जहां पर वह यह साबित करने का प्रयास करते हैं कि रेल जो है उसके कारण अकाल पढ़ रहे हैं। बहुत से लोगों की मृत्यु हो रही है क्योंकि अनाज एक जगह से दूसरी जगह किसान बेचने जाता है। उसे जहां दाम ज्यादा मिलता है वह अपना अनाज वहां भेचता है और इसी बात को संपत्ति शास्त्र में महावीर प्रसाद द्विवेदी भी लिखते हैं कि भारत का अनाज विलायत भेजा जा रहा था। भारत में अनाज की कमी होती थी ,अकाल के समय में इसलिए बहुत से लोग मरते थे। साथ में गांधीजी भी इस बात को रेखांकित करते हैं कि यह जो रेल है, यह अंग्रेजों ने अपने फायदे के लिए निर्मित किया और इससे लोग बहुत ज्यादा बीमार हो रहे हैं क्योंकि एक बीमारी को जहां बहुत समय लगता था। एक जगह से दूसरी जगह पहुंचने में अब वह बहुत अधिक रफ्तार से पहुंच रही है। साथ ही नहर भारत के आर्थिक के लिए अच्छी है और रेल अंग्रेजो के लिए। इसी कारण वश अंग्रेज रेल को विकास का मानक घोषित करते है। हम को समझना होगा की नहर हमारे लिए विकास का बिम्ब है। आज कल सरकार भी यह ही करती है,हम को समझने का प्रयास करना होगा की विकास के सही मानक है क्या।
जब हम देश की बात पुस्तक की बात करते हैं तो उसका एक अध्याय जिस्म में रेल बनाम नहर का पूरा का पूरा विवरण आता है। उसमें द्विवेदी जी नहर बनाम रेल के द्वारा यह अर्जित करते हैं कि नहर को बढ़ाना अंग्रेजी शासन के भी पक्ष में होगा क्योंकि चीजों को कम दाम में एक जगह से दूसरी जगह ले जाया जाएगा और इससे खेती हर देश भी बनेगा। इसी पुस्तक देश की बात में यह सारी बातचीत किसानों का पतन नामक शीर्षक में होती है। मुख्यता मान्यता यह है कि भारत जो है एक कृषि प्रधान देश है यहां पर कोई उद्योग धंधे नहीं है। यहां की ज्यादातर आबादी कृषि पर जीवित रहती है। पुराने और आज के समय में कई लेखक इस बात को नकार चुके हैं या कई इतिहासकारों ने भी इस बात को कहा है। भारत की मुख्य अर्थव्यवस्था कभी भी कृषि पर सम्मिलित नहीं थी। यह उपनिवेशवादी आर्थिक चिंतन के तहत भारत को एक कृषि प्रधान देश बनाया गया और इसका विरोध साफ तौर पर इस अध्याय में हमें नजर आता है और इसी अध्याय के तहत देवनारायण द्विवेदी और संपत्ति शास्त्र पुस्तक में महावीर प्रसाद द्विवेदी भी इस बात को कहते हैं कि अंग्रेजों ने व्यापारी होने के कारण यहां के उद्योग धंधों को नष्ट नष्ट किया है। इंग्लैंड में तो भारत से आए हुए कपड़े पर भारी कर लगाया गया,परंतु यहां पर फ्री मार्केट के आइडिया पर कुछ नहीं किया गया। जिससे भारत के हाथ से बनने वाला कपड़ा या हाथ के कारीगर वाले व्यापारी सब बर्बाद हो गए क्योंकि वह ब्रिटिश के भाप से चलने वाले मशीनों का सामना नहीं कर सकते थे।
देश की बात पुस्तक का एक अध्याय जो मुझे सबसे मजेदार लगा, आंतष्करणिक क्षति जिसका मतलब होता है नैतिक पतन अंग्रेजों की अफीम की कारस्तानी के बारे में लेखक इस तरह लिखता है:– “अफीम की खेती करने के और देश के किसानों का कभी अनुराग नहीं था वरन वैसे भी रहना ही प्रकट करते थे पर सरकार उनको रुपए कर्ज देकर तथा और भी बहुत तरह के से लालच दिखाकर पहले उन्हें अफीम की खेती करने में प्रवृत्त करती थी।”
मुझे समझ में आता है कि जब दिल्ली सरकार सरकारी ठेके बंद करके प्राइवेट ठेके खोलती है। तो सड़क में जहां एक शराब की दुकान हुआ करती थी। अब वहां पांच से छे दुकाने आपको आमतौर पर देखने को मिल सकती है क्योंकि सरकार कभी नुकसान नहीं करेगी जहां से उसे सबसे ज्यादा धन अर्जन होता है।आप पढ़ेंगे तो आपको आर्थिक उपनिवेशवादी विरोधी चिंतन की खासियत ,यह भी महसूस होगी की अंग्रेजों का उपनिवेश भारत या भारत के आसपास के देशों में चल रहा थ ।उसकी नीव वाइट मैन बर्डन (white man’s burden) के तहत थी तो उसी विचार को लेखक इस अध्याय में खारिज करते हैं। वह साबित करते हैं कि आप जिस विचार के तहत अपना पूरा शोषण– दमन का चक्र चला रहे है तथा जोंक की तरह इंसान के शरीर से खून चूसने वाला व्यापार चला रहे हैं वह गलत है क्योंकि आप नैतिक रूप से पतित व्यक्ति हैं। हिंद स्वराज में गांधी भी कहते हैं जो इस किताब के निकट की किताब है। पूरी अंग्रेजी सभ्यता ही नाश करने वाली है इसमें लोगों का कोई दोष नहीं है वह व्यक्ति तो गुमराह होकर इस सभ्यता के तहत सब कर रहे हैं तो उन्हें बुरा ना कहते हुए, सभ्यता को बुरा कहना चाहिए। इस तरह अंग्रेजी शासन की रीड की हड्डी पर वार कर उनके दमनकारी चक्र का नाश करते है।
अगर हम इस चिंतन की अगली विशेषता की बात करें ,दोनों लेखक इस बात को साबित करना चाहते हैं; महावीर प्रसाद द्विवेदी से ज्यादा देवनारायण द्विवेदी क्योंकि वह अपने कष्ट दमन वाले अध्याय में इस बात को कह देते हैं कि हमें अब भारतीयों का शासन चाहिए। इस देश का उद्धार तभी हो सकता है जब अंग्रेजों की जगह हम खुद हमारा शासन चलाएं। आय और व्यय और कष्ट दमन वाले अध्याय में यह बात कहते हैं। इस चीज को आप आज भी समझ सकते हैं कि उपनिवेशवाद राष्ट्रों का नहीं होता है, वह एक विचार है। इसी बात को भगत सिंह कह कर गए हैं कि गोरे अंग्रेजों के बाद इस देश का शासन भूरे अंग्रेजों के हाथ में चला जाएगा क्योंकि समझ उसी तरह की है। इस बात को समझने की कोशिश करें तो वह यही सिद्ध करना चाहते हैं आज के समय में की जब तक गरीब व्यक्ति के हाथ में शासन नहीं जाएगा तब तक असली विकास नहीं होगा।
मुझे एक विशेषता जो नजर आती है इस पूरे चीजों पर विचार करते वह यह है कि यह केवल आर्थिक चिंतन नहीं है ,यह राजनीतिक –आर्थिक चिंतन है। क्योंकि इनकी अधिकतर चीजें देश की गुलामी से राजनीति से भी जुड़ी हुई है। यहां पर राजनीति किस तरह से देश की अर्थव्यवस्था को संचालित करती है वह बहुत महत्वपूर्ण है। इसी आधार पर दोनों लेखक अंग्रेजी शासन के तहत जो अर्थव्यवस्था चल रही थी उसको राजनीति से जोड़कर देखने के कारण इन सब विशेषताओं का निरूपण कर पा रहे थे। अगर यह कोरा आर्थिक चिंतन होता तो आज के समय में इतना संगत ना होता। इस वक्त की कुछ ही चीजों पर विचार हो पाता परंतु इस चिंतन में धन किस तरह आ रहा है, कहां जा रहा है, वह किसके द्वारा संचालित है, उस धन के चक्कर में घूमने के कारण किस किसको फायदा पहुंच रहा है, किस को नुकसान पहुंचा और इस चक्र में अर्थ के चक्र में वह सबसे ज्यादा शोषण हो रहा है। इस सब की बातचीत इन दोनों पुस्तकों में उपलब्ध है।
एक विशेषता जो मुझे देवनारायण जी की पुस्तक में दिखी वह यह है कि सरकार हमेशा लोगों को दबाकर रखना चाहती है इसीलिए हथियारों पर अपना दबदबा कायम कर लेती है और लोगों से हथियार छीन लेती है और इस बात को देवनारायण भी अपनी पुस्तक में आर्म्स एक्ट के जरिए समझते है। आज गांव में जाएंगे तो दीवारों में तलवारें आपको मिलेगी क्योंकि उस समय वह दीवारों में गाड़ दी गई गई थी। वह कहते हैं कि आप सबको हथियारों का परीक्षण दीजिए। तो आपको एक बड़ी स्थाई सेना की आवश्यकता नहीं होगी जब आप जंग करने जाएंगे तो आपको हथियार चलाने के लिए बहुत से लोग मिलेंगे। इस तरह की चीज को आप आज भी देख सकते हैं। सरकार हथियारों पर अपना दबदबा बनाए हुए हैं; आप को हथियार रखने के लिए सरकार से एक तरह की इजाजत प्राप्त करनी पड़ेगी। हथियार रखना मतलब असली स्वतंत्रता को प्राप्त करना है जब आपके पास हथियार होगा तभी तो आप अपनी आत्मरक्षा कर पाएंगे चाहे वह किसी दूसरे व्यक्ति के खिलाफ हो। चाहे वह सामने वाले सरकार के खिलाफ है। मतलब देव नारायण द्विवेदी शायद यह चाहते हो कि अगर भारत में ज्यादा से ज्यादा लोगों को हथियार चलाना आ पाएगा तो जब हमें अंग्रेजो के खिलाफ एक हथियारबंद युद्ध करना पड़े तो हमारे पास अधिक से अधिक लोग होंगे उन्हें जवाब देने के लिए।
इस पूरे आर्थिक चिंतन की एक विशेषता और है वह यह है कि यह अपने आधारभूत तत्व साम्यवाद ना होते हुए भी उसके काफी निकट है। और पूंजीवाद की एक बहुत महत्वपूर्ण आलोचना के रूप में हमारे सामने प्रस्तुत होता है।
मुझे जहां तक देश की बात और द्विवेदी जी का संपत्ति शास्त्र पढ़कर उपनिवेशवाद एक आर्थिक चिंतन की विशेषताएं समझ में आई वह यह है कि उपनिवेशवाद आज भी खत्म नहीं हुआ है चाहे सरकार बदल गई हो पर आर्म्स एक्ट जैसा कानून या मादक पदार्थों वाला या एकदम से डाक सेवाओं का आधारभूत चीजों का मूल्य बढ़ा देना बिना व्यक्ति की या समाज की राय लिए गलत है। बस इस आर्थिक चिंतन में आजादी से पहले अंग्रेजो के खिलाफ बोला जा रहा था और अब उस शासन व्यवस्था के खिलाफ बोला जा रहा है जो पूंजीपतियों के पक्ष में खड़े होकर गरीब व्यक्ति का शोषण कर रही है।
संक्षिप्त में मैं इस आर्थिक चिंतन की विशेषताओं का उल्लेख करो तो मेरे हिसाब से यह समकालीनता का आर्थिक चिंतन है। इस चिंतन की खासियत यह है की अंग्रेजों पर प्रहार करते हुए भी उनको अपने पक्ष में खड़ा करता है। देवनारायण द्वेदी इस बात को साबित करते हैं कि इस चीज से भारत का फायदा है तो आपका भी फायदा है और सबसे बड़ा इसकी विशेषता यह है कि यह सब खामियां अंग्रेजी शासन में दिखाते हुए भारत के लिए होम डोमिनेंट स्टेटस की मांग करता है क्योंकि उस समय तक पूर्ण स्वराज की स्थापना नहीं हुई थी। परंतु इस आर्थिक चिंतन की खासियत यह किसी अंग्रेज के या किसी भारतीय के खिलाफ ना होते हुए उपनिवेशवाद विरोधी और शोषण के विरोध का राजनीतिक और आर्थिक चिंतन है। भारत के संदर्भ में तो जितना यह उस समय में स्थित है उतना ही समकालीन भी है क्योंकि सरकार का रवैया तब भी उपनिवेशवादी था और आज भी उपनिवेशवादी है बस उपनिवेशक और शोषणकर्ता बदल गए हैं। इस चिंतन को गोरख पाण्डेय अपनी कविताओं में समाते हैं। दो कविताएं नीचे उद्धृत कर रहा हूं।
राजा बोला रात है
रानी बोली रात है
मंत्री बोला रात है
संतरी बोला रात है
यह सुबह सुबह की बात है
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वे डरते हैं
किस चीज़ से डरते हैं वे
तमाम धन-दौलत
गोला-बारूद पुलिस-फ़ौज के बावजूद ?
वे डरते हैं
कि एक दिन
निहत्थे और ग़रीब लोग
उनसे डरना
बंद कर देंगे