अभी आ रहीं हैं रोशनी
उन रास्तों से भी
जो खुद को
बल्ब के सहारे रोशन
किए हैं।
अभी लड़ रहे हैं
वो अंधेरों से
अपनी जंग को
और कर रहे हैं
रोशन
मुसाफिरों के लिए
रास्तों को
वो जानते हैं
कि ये मुसाफिर
आसानियों के साथ
मुझ तक नहीं पहुंचा होगा
चलना पड़ा होगा
मीलों अपने सफ़र पर
क्योंकि परदेस में
नहीं था परिवार उसका
जो वो पैसे कमाने
की खतिर छोड़ आया था
मगर अब वो
काम ही छिन चुका है
जिसने घर से दूर कर
दिया था मुझको
नहीं देखा
उसकी
खातिर
उसने अपने बच्चों
के मुंह को
मगर अब लाकडाउन लग चुका है
और परदेश
से जाने को मजबूर हूँ
बिना काम के
जिंदगी तो नहीं चलती!
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आखिरी पन्ने में
मुझे लिखनी है
वो पीड़ा
जिसको भोगते हुए
सूख चुके थे आँसू
मेरी आँखों के
मुझे बतलानी है
मजबूरी मेरी
जिसको तुम समझ नहीं
पाईं
सही तरह से
लेकिन आख़िरी पन्ने में
जगह बहुत कम है
और लिखना बहुत कुछ
बाक़ी है!